परम पावन 14 वें दलाई लामा
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धार्मिक सद्भाव पर बल देते हुए तीर्थयात्रा २७/जुलाई/२०१६

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लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत, २७ जुलाई २०१६ - कल पूरे दिन के विश्राम के पश्चात परम पावन दलाई लामा प्रातः लेह के मुख्य बाजार पहुँचे जहाँ सैकड़ों की भीड़ उनकी एक झलक पाने की प्रतीक्षा कर रही थी। लेह बाजार के सौंदर्यीकरण की परियोजना के अंग के रूप में, बाज़ार से होकर जाता मुख्य मार्ग वाहनों के यातायात के लिए बंद कर दिया गया था और केवल पैदल चलने वालों के लिए खुला था। जब परम पावन ५० मीटर की दूरी पर स्थित जोखंग मंदिर जाने के लिए पैदल निकले तो लोग उनका ध्यानाकर्षित करने की होड़ में थे।


मार्ग में, परम पावन ने कई वयोवृद्ध लद्दाखियों को आशीर्वाद दिया और पर्यटकों का अभिनन्दन किया। एक विदेशी पर्यटक ने अपना हाथ बढ़ाया और परम पावन का अभिनन्दन किया और उन्हें सूचित किया कि वह नीस, फ्रांस का निवासी था। परम पावन ने हाल ही में उनके नगर में हुई त्रासदी के प्रति विशिष्ट रूप से नीस और सामान्य तौर पर फ्रांस के लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट की। उन्होंने कहा कि हम सब को एक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण करने के लिए प्रयास करना चाहिए और मात्र प्रार्थना से यह लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा।
 
जोखंग मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करने पर, लद्दाख बौद्ध संघ, लद्दाख बौद्ध यूथ एसोसिएशन और लद्दाख बौद्ध महिला एसोसिएशन के अध्यक्षों तथा पदाधिकारियों द्वारा परम पावन का अनुरक्षण किया गया। परम पावन ने पारम्परिक लद्दाखी ढोल वादकों को आशीर्वाद दिया। मंदिर के अंदर, ठिगसे रिनपोछे, मुख्य कार्यकारी पार्षद, डॉ सोनम दावा, विधायक नवांग रिगजिन जोरा, अन्य राजनीतिक नेता, और लद्दाख बौद्ध संघ के सामान्य परिषद के सदस्य अंदर परम पावन के स्वागत की प्रतीक्षा कर रहे थे।

अपना आसन ग्रहण करने के उपरांत परम पावन ने एक प्रारंभिक प्रार्थना बुद्ध स्तुति के साथ सभा का नेतृत्व किया। इसके बाद चोंखापा की प्रतीत्यसमुत्पाद स्तुति तथा बुद्ध की लौकिक शिक्षाओं के प्रसार के लिए परम पावन की प्रार्थना का पठन हुआ ।


अपने उद्घाटन टिप्पणी में, परम पावन ने कहा कि वे जब भी तिब्बती मंदिरों की यात्रा करते हैं तो वे तिब्बतियों को सलाह देते हैं कि वे मंदिरों का उपयोग न केवल पूजा के लिए करें परन्तु उन्हें शिक्षा का केन्द्र भी बनाएँ। बुद्ध की शिक्षा तथा दर्शन का परिचय देना महत्वपूर्ण था। एक सम्पूर्ण बौद्ध होने के लिए बौद्ध धर्म का ज्ञान आवश्यक था। इसी तरह, परम पावन ने लद्दाखियों से आग्रह किया कि वे सुनिश्चित करें कि जोखंग मंदिर भी शिक्षा का एक केंद्र बने।

परम पावन ने उल्लेख किया कि लद्दाख बौद्ध संघ की एक रिपोर्ट, जो उन्हें दी गई थी, में सूचित किया गया है जोखंग मंदिर में एक धार्मिक आदान प्रदान के लिए कारगिल से मुसलमानों को आमंत्रित किया गया था। परम पावन ने इस प्रयास की प्रशंसा की। उन्होंने उत्तरदायी व्यक्तियों को सलाह दी कि कभी कभी कुछ धार्मिक छुट्टियों के दौरान, अच्छा होगा कि बौद्धों, विभिन्न धर्मों के अभ्यासियों और यहाँ तक कि किसी तरह की आस्था न रखने वालों के बीच सेमिनार और विचार विमर्श का आयोजन किया जाए। उन्होंने भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी धार्मिक सद्भाव की परम्परा की सराहना की। अब यह बहुत महत्वपूर्ण था कि बाकी के विश्व को भारत के धार्मिक सद्भाव का उदाहरण दिखाया जाए।

वर्तमान विश्व में, सीरिया, इराक और अफगानिस्तान जैसे देशों में हिंसा और धर्म के नाम पर बहुत अधिक हिंसा थी। आस्थावान होते हुए इस पीड़ा के प्रति उदासीन रहना नैतिक रूप से गलत है। परम पावन बल देते हुए कहा कि यह प्रत्येक का उत्तरदायित्व था कि विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के बीच अधिक समझ को बढ़ावा दिया जाए जो फिर एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व की ओर ले जाएगा।


जोखंग मंदिर से प्रस्थान कर परम पावन, मुगल सम्राट औरंगजेब और स्थानीय लद्दाखी राजा देलदन नमज्ञल के बीच एक समझौते के तहत १६६६ - ६७ में निर्मित सुन्नी मस्जिद, के लिए एक और ५० मीटर चले। मस्जिद की सीढ़ियों पर सुन्नी समुदाय अध्यक्ष और अन्य सदस्यों ने उनका स्वागत किया। प्रार्थना सभागार में प्रवेश करने के पश्चात परम पावन के आसन ग्रहण करने के पूर्व सुन्नी मौलवियों ने प्रार्थना में सभा का नेतृत्व किया।

सड़क में आगे एक और २०० मीटर की दूरी पर, परम पावन ने अपनी तीर्थयात्रा का अंतिम चरण तय किया और शिया मस्जिद की यात्रा की, जहाँ शिया समुदाय के अध्यक्ष और कई शिया मौलवियों ने उनका स्वागत किया। शिया समुदाय के सदस्यों के अतिरिक्त, सुन्नी और बौद्ध समुदायों के प्रतिनिधि भी प्रार्थना सभागार में शरीक हुए।

शिया अध्यक्ष ने श्रोताओं को सूचित किया कि यह परम पावन की इस मस्जिद की तीसरी यात्रा थी। अपनी टिप्पणी में, अध्यक्ष ने कहा कि विश्व धर्म के नाम पर आतंकवाद की चुनौती का सामना कर रहा था जो मानवता के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था और उसकी निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ आदर्शवादी इन आतंकवादी गतिविधियों के लिए इस्लाम के नाम का प्रयोग कर रहे थे और यह गलत था।

दोनों समुदायों को संबोधित करते अपनी टिप्पणी में परम पावन ने बताया कि किस प्रकार पाँचवें दलाई लामा के समय, लद्दाखी मुस्लिम व्यापारियों को एक मस्जिद का निर्माण करने के लिए उन्हें भूमि प्रदान की गई थी। यह तिब्बती मुस्लिम समुदाय की स्थापना के रूप में चिह्नित हुआ। तब से तिब्बती सरकार के सभी आयोजनों में तिब्बती मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। वे एक बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति वाला समुदाय था जिनकी विशेषता नम्रता और शांति थी। उनके बीच कलह का कोई इतिहास न था। उनके पास सदैव साझा करने के लिए सुन्दर कहानियाँ थीं। वे इस्लाम के सच्चे अनुयायी थे।

तत्पश्चात परम पावन ने स्मरण किया कि किस तरह अतीत में विश्व युद्ध १ और २ के परिणामस्वरूप बहुत अधिक पीड़ा थी। कई लोग मारे गए थे। अभी इसी क्षण, इसी ग्रह पर, हजारों लोगों की हत्या की जा रही है और कई भुखमरी का सामना कर रहे हैं। परन्तु परम पावन वैज्ञानिकों से यह जानकर प्रोत्साहित थे कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील थी। यदि आधारभूत मानवीय प्रकृति विध्वंसकारी हो तो करुणा को बढ़ावा देने के प्रयास का कोई लाभ न होगा, पर वस्तु स्थिति ऐसी नहीं थी।

परम पावन जोर देकर कहा कि विश्व के सभी सात अरब मनुष्य सुख चाहते थे। इस संबंध में विश्व के सभी प्रमुख धर्म प्रेम, करुणा, क्षमा और सहिष्णुता के अभ्यास पर बल देते हैं। धर्म को विभाजन और संघर्ष का स्रोत नहीं होना चाहिए। एक व्यक्ति के स्तर पर एक सत्य, एक धर्म की अवधारणा को स्मरण रखना महत्वपूर्ण है। और समुदाय के स्तर पर कई सत्य, कई धर्म।

धर्मों की विविधता की आवश्यकता की व्याख्या करते हुए परम पावन ने कहा,


"विविध दर्शन आवश्यक हैं। दो हजार से अधिक वर्षों से जीवन के विभिन्न तरीकों का विकास हुआ है। महान शिक्षक अवतिरत हुए और प्रेम के संदेश की शिक्षा दी। परन्तु विभिन्न वातावरण के कारण, जीवन के विभिन्न तरीके हुए। विभिन्न मानसिक स्वभाव हैं। इसलिए विभिन्न दार्शनिक विचारों का होना आवश्यक है।"

उन्होंने आगे समझाया कि मध्य पूर्व में यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म हैं, जो एक ही अब्राहिमक परिवार से आए हैं। भारत में सांख्य, हिंदू धर्म, जैन और बौद्ध धर्म थे। विभिन्न दर्शन प्रेम के महत्व के बारे में दृढ़ विश्वास लाने के लिए मात्र अलग उपाय थे। उनमें से प्रत्येक में प्रेम के अभ्यास के अपने शक्तिशाली तरीके थे।

इस्लाम पर चर्चा में, परम पावन ने व्यक्त किया कि किस तरह उन्होंने अपने मुसलमान मित्रों से सीखा कि इस्लाम का सच्चा अभ्यास प्रेम का अभ्यास है। एक सच्चे मुससमान को अपना प्रेम अल्लाह के सभी प्राणियों तक विस्तार करना चाहिए। इसी तरह, एक सच्चे बौद्ध को अपना प्रेम सभी सत्वों तक विस्तृत करना चाहिए। विभिन्न दार्शनिक विचारों में विभिन्नता के बावजूद, दोनों का एक ही उद्देश्य एक ही लक्ष्य था।

मुस्लिम समुदाय में निहित संघर्ष पर बोलते हुए परम पावन ने कहा,

"यह देखना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई मुस्लिम देशों में शिया और सुन्नियों के बीच संघर्ष है। यह बहुत दुख की बात है, विशेषकर कि जब धर्म इस संघर्ष का स्रोत था। यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि शिया और सुन्नी एक ही पैगंबर मुहम्मद के अनुयायी हैं। दोनों कुरान पढ़ते हैं और दिन में पाँच बार नमाज़ अता करते हैं। उन्हें अपने छोटे मतभेदों को दर किनार कर देना चाहिए और याद रखना चाहिए कि वे एक ही आस्था के अभ्यासी हैं।"

परम पावन ने इंगित किया कि यह कैसा दुर्भाग्य है कि इन दिनों कई आतंकवादी हमलों के लिए मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया जा रहा है। उन्होंने हम सब से इस तरह की सोच को बदलने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। सभी समुदायों में हमेशा शरारती लोग रहेंगे फिर चाहे वह बौद्ध, यहूदी, ईसाई या मुसलमान हों।

परम पावन ने कहा कि हमें सावधान रहना चाहिए और मुस्लिम आतंकवादी या बौद्ध आतंकवादी जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक बार एक आस्था रखने वाला कोई आंतक का कार्य करता है तो वह फिर उस धर्म का अभ्यासी नहीं रह जाता/जाती। परम पावन को 'जिहाद' शब्द समझाते हुए एक मुस्लिम मौलवी ने उसे अपनी विनाशकारी भावनाओं से संघर्ष करने का रूप में पारिभाषित किया था, न कि दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए। इसलिए यह समझाने के लिए पर्याप्त कारण हैं कि इस्लाम के अभ्यासी प्रेम के अभ्यासी थे।

परम पावन ने कहा कि ११ सितंबर के बाद से अपनी ओर से वे इस्लाम का पक्ष सुरक्षित करने हेतु प्रयासरत हैं, ये समझाते हुए कि इस्लाम विश्व का एक महत्वपूर्ण धर्म है। इस्लाम का सार प्रेम का अभ्यास था।

उनकी वापसी पर, मार्ग के किनारे के विशाल जनमानस जिनकी संख्या बढ़कर हज़ारों में हो गई थी, ने परम पावन का अभिनन्दन किया।

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