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परम पावन दलाई लामा की महापौरों के साथ धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर चर्चा १२/फरवरी/२०१६

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रोचेस्टर, मिनेसोटा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ११ फरवरी २०१६ - रोचेस्टर में एक ठंडी धूप से खिली प्रातः में परम पावन ने एनाहेइम, सी ए के महापौर टॉम टेट, लुइविलै, वाइ के महापौर ग्रेग फिशर तथा रोचेस्टर, एम.एन. के महापौर अर्डेल ब्रेडे के साथ कई समान विचार रखने वाले लोगों से भेंट की, जो दयापूर्ण तथा करुणाशील नगरों के निर्माण के हेतु काम कर रहे थे। एनाहेइम ने 'दया का नगर' और लुइविलै ने 'करुणा का नगर' नाम का चयन किया था।

दल का स्वागत करते हुए परम पावन ने कहा, "हम आज के विश्व में बहुत अधिक दुःख के साक्षी हैं जिसमें हाल की शरणार्थी समस्या भी शामिल है। हमें प्रश्न उठाना होगा कि आज के विश्व में ऐसा क्या गलत है। मुझे लगता है कि हममें एक-दूसरे के जीवन के प्रति सम्मान की भावना, दूसरे के कल्याण को लेकर सोच की भावना, जो दया है, की कमी है। हम केवल मैं, मैं, मैं के बारे में सोचते हैं, यही आज की समस्या का बीज है।


परम पावन ने दया और करुणा के नगरों के रूप में अपने नगरों का नामकरण करने को लेकर महापौरों के प्रयासों की प्रशंसा की। उनके विचार से अधिक दयालु लोगों के विकास को व्यवस्थित रूप से प्रारंभ करने के प्रयास का समय आ गया है। इस प्रक्रिया में सात अरब मनुष्यों को शामिल करने की क्षमता होनी चाहिए फिर चाहे वे आस्थावान हों या फिर आस्थाहीन हों।

"सभी बच्चे अपनी माताओं से अपार स्नेह और प्रेम प्राप्त करते हैं। यह एक जैविक कारक है जो धर्म पर आधारित पर नहीं है। हमें इस स्तर पर इन मूल्यों को बढ़ावा देने का उपाय खोजने में सक्षम होना चाहिए, जो धार्मिक आस्था पर आधारित नहीं है। इसी को मैं धर्मनिरपेक्ष नैतिकता नाम से संबोधित करता हूँ। धर्मनिरपेक्षता भारतीय संदर्भ में न केवल धार्मिक विश्वासियों का, परन्तु उनका भी जो धर्म में विश्वास नहीं करते, सम्मान करना है।"

परम पावन ने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के लिए एक शिक्षण पाठ्यक्रम ढूँढने के महत्व पर बल दिया, जो धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के क्षेत्र में उचित रूप से समाने में सक्षम हो। उन्होंने दल को जानकारी दी कि एमोरी विश्वविद्यालय की सहायता से धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर एक मसौदा पाठ्यक्रम विकसित किया गया है। यह धर्मनिरपेक्ष शिक्षा पाठ्यक्रम हमारे सामान्य ज्ञान और अनुभवों के साथ वैज्ञानिक शिक्षा के संयोजन पर आधारित है। पाठ्यक्रम के मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए इस वर्ष भारत और अमेरिका में बैठकों और विचार-विमर्शों की योजना बनाई गई है।

इस प्रयास के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर बल देते हुए परम पावन ने कहा, "मैं अपनी मृत्यु तक सात अरब मनुष्यों की एकता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। जब भी मैं दूसरे मनुष्य को देखता हूँ तो मैं सदा उन्हें एक साथी मानव के रूप में देखता हूँ, जो सहज रूप से निकटता की प्रबल भावना लाती है। यदि कोई गौण स्तरों को देखता है तो आप एकाकीपन की भावना से ग्रसित होते हैं।"

परम पावन ने कहा कि वह ऐसे लोगों से मिलने को लेकर प्रोत्साहित हुए हैं, जो दया और करुणा के महत्व को समझने में सच्ची रुचि दिखा रहे हैं। वे इसे एक आशापूर्ण संकेत की तरह देखते हैं। वे इस ओर संयुक्त राज्य अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका को भी देखते हैं।

"अमेरिका सबसे शक्तिशाली आर्थिक देश है। यह सराहनीय है। अब हमारी आंतरिक सम्पन्नता, आंतरिक मूल्य की ओर अधिक ध्यान देने का समय आ गया है। मुझे लगता है कि इस ओर संयुक्त राज्य अमेरिका में काफी क्षमता है। यदि अमेरिका दया और करुणा के अधिक शहरों और तदनुसार एक व्यावहारिक मानव मूल्य आधारित शिक्षा पाठ्यक्रम का विकास करने में सक्षम हो जाए तो उसका प्रभाव पड़ेगा। पहले से ही कई लोग यह अनुभव करते हैं कि भौतिक प्रगति अपने आप में एक सुखी जीवन का विकास करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"

लुइविलै के महापौर ग्रेग फिशर ने कहा कि २०१३ में परम पावन द्वारा उनके शहर की यात्रा के दौरान परम पावन ने उनसे अनुरोध किया वे अपने समुदाय में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की अवधारणा को लागू करने का प्रयास करें। अपने अनुभव द्वारा मेयर ने पाया कि जब वे 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द का प्रयोग करते थे तो लोग अभी भी किंचित आशंकित थे क्योंकि कुछ लोगों को लगा कि यह गैर-धार्मिक था। उन्होंने कहा कि उन्होंने 'मानवीय मूल्यों' या 'सार्वभौमिक मूल्यों' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जो लोगों को और अधिक स्वीकार्य था। उन्होंने दया, प्रेम और करुणा की चर्चा आधारभूत मानवीय मूल्यों के रूप में की।

उन्होंने परम पावन को सूचित किया कि लुइविलै अपनी स्कूल प्रणाली में अपने करुणाशील विद्यालयों की परियोजना के साथ इन आधारभूत मानवीय मूल्यों के शिक्षण को क्रियान्वित कर रहा था। उन्होंने तीन विद्यालयों से प्रारंभ किया जहाँ वे छोटे बच्चों को दया, प्रेम और करुणा और सजगता और ध्यान पर केन्द्रित सामाजिक और भावनात्मक व्यवहार सिखा रहे थे। ये बच्चे कठिन परिस्थितियों से आए थे तथा प्रथम बार अपने जीवन में अपने चित्त की गति को धीमा करने में सक्षम हुए थे और वास्तव में पहली बार अपने चित्त को खोल कर सीखने की शुरुआत कर रहे थे।

यह प्रश्न पूछे जाने पर कि क्या वे कोई रिपोर्ट बाहर ला रहे थे या प्रभाव पर कोई अनुसंधान कर रहे थे, मेयर फिशर ने परम पावन को सूचित किया कि वे वर्जीनिया विश्वविद्यालय के साथ काम कर रहे थे और यह तुलना करने के लिए कि क्या कोई स्थायी अंतर है, इस वैज्ञानिक उपाय का प्रयोग करते हुए दस विद्यालयों और इस उपाय का प्रयोग न करते हुए एक अन्य १० स्कूलों का परीक्षण करने की योजना बना रहे थे।

परम पावन ने कहा, "मैं विगत दस वर्षों से कई वैज्ञानिकों, शैक्षिक पेशेवरों और अन्य लोगों के साथ बातचीत कर रहा हूँ। उनमें से कई सहमत थे कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह भौतिक मूल्यों पर केंद्रित है। अतः सौहार्दता पर शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता थी। परन्तु प्रारंभिक चरणों में इसे एक छोटे स्तर पर करने की आवश्यकता है और एक बार सकारात्मक परिणाम स्पष्ट हो गए तो इसे विस्तारित किया जा सकता है ताकि और अधिक विद्यालयों और स्थानों को सम्मिलित किया जा सके।"

"राजनीतिक नेता वर्तमान मौजूदा समस्याओं को लेकर बहुत अधिक व्यस्त थे। परन्तु यह प्रयास भविष्य की समस्याओं का समाधान था। मुझे विश्वास है कि सदी के उत्तरार्ध में नेता जो अधिक मानव मूल्य आधारित शिक्षा प्रणाली के साथ बड़े होंगे वे अधिक करुणाशील होंगे। फिर २१वीं सदी शांति और करुणा की हो सकती है।"

एक अन्य सहभागी ने कनाडा के विद्यालयों में एक दया के कार्यक्रम के विकास में उनके प्रयासों की बात की। वे देख पा रहे थे कि इस दया कार्यक्रम के छात्र इस प्रकार के कौशल का विकास कर रहे थे जो उनकी कक्षाओं से बहुत परे थीं। वे उनके जीवन का कौशल बन गईं और वे उन्हें अपने घर माता पिता तक ले गए। वे माता पिता की ओर से टेलीफोन मिलने पर खुश थे कि उनका दस वर्षीय बच्चा खाने की मेज़ पर संघर्ष समाधान के बारे में बात कर रहा था। माता-पिता की इस ओर रुचि उत्पन्न हुई चूँकि उन्होंने एक सकारात्मक प्रभाव देखा।

इस दल के लिए एक सादे मध्याह्न भोजन की मेजबानी के पश्चात, परम पावन ने उन सभी को आने के लिए धन्यवाद दिया।

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