परम पावन 14 वें दलाई लामा
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प्रेस, पेरिस बार काउंसिल और स्थानीय तिब्बती समुदाय के साथ भेंट १३/सितम्बर/२०१६

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पेरिस, फ्रांस, १३ सितंबर २०१६- एजेंसी फ्रांस-प्रेस, ले क्रोइ (क्रिस्टियन डेली न्यूज) और ले पॉइंट (एक साप्ताहिक समाचार पत्रिका) सहित कई समाचार एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने परम पावन दलाई लामा के साथ आज प्रातः एक साथ एक साक्षात्कार का आयोजन किया। उन्होंने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि फ्रांस सुख के विषय में किस तरह बात कर सकते हैं और परम पावन ने उत्तर दिया कि यह प्रश्न कई विकसित देशों में पूछा गया था। भौतिक लक्ष्य और भौतिक विकास बहुत सहायक हो सकते हैं, पर उनका लाभ सीमित है। वे हमारी मानसिक व्याकुलता पर प्रभाव डाले बिना भौतिक सुख प्रदान करते हैं।


उन्होंने कहा, "हमें प्रतीत होता है कि यदि हम अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा कर लें तो हमारी सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा, पर ऐसा नहीं है।"
यह पूछे जाने पर कि क्या वे पोप फ्रांसिस से मिलना चाहेंगे, उन्होंने उन्हें बताया कि १९७३ से लेकर उन्होंने प्रत्येक पोप से भेंट करने का प्रयास किया है, पर वर्तमान स्थिति में यह अभी तक संभव नहीं हुआ है। इसी तरह उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें निराशा है कि वे फ्रेंकोइस ओलैंडे से हाथ नहीं मिला सके, जिसके उत्तर में उन्होंने कहा लोगों से मिलना अधिक महत्वपूर्ण है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि ५ वर्ष पूर्व राजनैतिक उत्तरदायित्व से अवकाश ग्रहण करने के बाद से वे तिब्बत की संस्कृति, भाषा और प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के बारे में अधिक चिंता रखते हैं। उन्होंने पुष्टि की कि चीन के तिब्बत के साथ संबंध को लेकर जिस मध्यम मार्ग दृष्टिकोण की वकालत उन्होंने की वह अभी भी व्यवहार्य बनी हुई है, क्योंकि यह एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद समाधान की परिकल्पना है। उन्होंने कहा:

"एक तरफ की विजय और दूसरे पक्ष की पूर्ण पराजय के दिन अब समाप्त हो चुके हैं। हमें मेल मिलाप करने की आवश्यकता है, अन्यथा हम सफल नहीं होंगे।"

परम पावन ने पत्रकारों को बताया कि दलाई लामा की संस्था को संरक्षित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि सब कुछ एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं होता। सबसे महत्वपूर्ण सलाह जिस पर वे लोगों का ध्यान चाहेंगे वह यह है कि आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों का हित हर किसी के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने सार्वभौमिक उत्तरदायित्व की भावना को अपनाने की तुलना यूरोपीय संघ की भावना से की जिसके अनुसार सिर्फ स्थानीय या राष्ट्रीय हित को समर्थन देने की तुलना में बड़े हित को समर्थन दिया जाए।

प्रवासियों की समस्या को जटिल बताते हुए उन्होंने कहा, "हम तिब्बतियों ने भारत और अन्य देशों में शरण ली, परन्तु हमारा दीर्घकालिक लक्ष्य तिब्बत लौटना है। अफ्रीका और मध्य पूर्व के लोगों को अवसर दिया जाना चाहिए। निर्दोष और असहाय, विशेष रूप से बच्चों को अस्थायी आश्रय की आवश्यकता है। बच्चों को शिक्षा और युवाओं को प्रशिक्षण की आवश्यकता है, ताकि जब वे अंततः वापस लौटें तो वे अपने देशों के पुनर्निर्माण में हाथ बँटा सकें।"

टीएफआइ के यान बर्थेस के साथ एक अलग साक्षात्कार में युवाओं पर अधिक केंद्रित करते हुए परम पावन ने उनसे कहा कि वह समझते हैं कि युवा भविष्य को लेकर चिंता का अनुभव करते हैं, पर वे इस तथ्य से शक्ति ग्रहण कर सकते हैं कि अधिकांश लोग हिंसा से तंग आ चुके हैं और सही अर्थों में पर्यावरण के संरक्षण को लेकर चिंतित हैं। २०वीं सदी के उत्तरार्ध में पर्यावरण पर किसी ने कोई विचार नहीं किया था पर अब यह एक आम विषय है। महत्वपूर्ण बात यह है, कि अपना विश्वास न गंवाया जाए और आशा न छोड़ी जाए। उन्होंने स्वयं को आशावादी कहकर वर्णित किया।

जब बर्थेस ने प्रवासियों के बारे में भी पूछा तो परम पावन ने लाचार स्त्रियों, भूखे बच्चों और बूढ़े लोगों के बारे में सूचनाएँ और चित्रों को देख अनुभव कर रही अपनी उदासी की बात की। वे अपने आप से यह प्रश्न पूछने से न रोक सके कि उन लोगों ने क्या गलती की थी।

भविष्य में दलाई लामा के बारे में एक अन्य प्रश्न के उत्तर में, परम पावन ने स्पष्ट किया कि तिब्बती बौद्ध परम्परा एक लामा की संस्था से काफी पुरानी है। उन्होंने कहा कि क्या होगा अभी तक स्पष्ट नहीं है। यदि तिब्बती लोग एक और दलाई लामा चाहते हैं, तो एक विकल्प हो सकता है कि जब वर्तमान अवलंबी अभी जीवित है तो एक अच्छा उम्मीदवार चुना जाए।

बर्थेस ने पूछा कि जब प्रातः उठते हैं तो परम पावन स्वयं से क्या कहते हैं, और उन्होंने नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' से कुछ प्रारंभिक पंक्तियों का उल्लेख कियाः

जिसने प्रतीत्य समुत्पाद,
अनिरोध, अनुत्पाद,
अनुच्छेद, अशाश्वत,
अनागम, अनिर्गम,
अनेकार्थ, अनानार्थ,
प्रपञ्च उपशम, शिव की देशना दी है,
उस सम्बुद्ध को प्रणाम करता हूँ, जो वक्ताओं में श्रेष्ठ हैं।


प्रेस के साथ एक आम बैठक को संबोधित करते हुए परम पावन ने एकत्रित पत्रकारों को बताया कि आज कई समस्याओं का सामना जो हम कर रहे हैं वह हमारी अपनी निर्मित हैं।

"परन्तु" उन्होंने कहा, "हमारा भविष्य विश्व के अन्य हिस्सों पर निर्भर है, अतः हमें आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य की एकता की स्पष्ट भावना, एक भावना कि हम सब एक मानव परिवार के हैं, की आवश्यकता है।वैज्ञानिकों की खोज कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा का एक बड़ा स्रोत है।"

उन्होंने मानव सुख को बढ़ावा देने और अंतर्धार्मिक सद्भाव के प्रोत्साहन हेतु लिए अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया। एक तिब्बती के रूप में और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जिनमें तिब्बती लोगों ने अपना विश्वास कायम किया है, वे तिब्बती संस्कृति और भाषा को जीवित रखने और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित हैं।

इस प्रश्न, कि ध्यान किस तरह लोगों को एक सुखी जीवन जीने में सहायता कर सकता है, ने परम पावन को एक स्पष्टीकरण देने के लिए प्रेरित किया।

"ध्यान मात्र अपनी आँखें बंद कर कुछ चिंतन न करना नहीं है। ऐसा लगता है कि यहाँ तक ​​कि कबूतर भी वह कर सकते हैं। कहीं अधिक प्रभावी है विश्लेषण करना जो वास्तविक समाधान प्रदान करता है।"

मध्याह्न के पूर्वार्ध में परम पावन गाड़ी से मेइसां दे अवोकाट्य गए, बार काउंसिल के अध्यक्ष एम फ्रेदेरिक सिकार्ड ने ३५० श्रोताओं के समक्ष उनका स्वागत किया। उन्होंने उन्हें एक पदक प्रदान किया, जो १९८२, १९८५, और आज की मिलाकर उनकी तीन यात्राओं और पर्यावरण संबंधी अधिकार के सार्वभौमिक उत्तरदायित्व में उनके सहयोग के उपलक्ष्य में था। सार्वभौमिक उत्तरदायित्व के प्रति बार काउंसिल के समर्थन की सराहना करते हुए मैडम सोफिया स्त्रिल - रीवर ने उनके कार्य की तुलना फ्रांसीसी क्रांति के दौरान किए गए कार्य से की जब वकीलों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी।

 
परम पावन सदा की तरह अपना संबोधन प्रारंभ कियाः

"आदरणीय बड़े भाई और बहनों और छोटे भाइयों और बहनों, मैं सदैव इसी तरह प्रारंभ करता हूँ क्योंकि जिन कई समस्याओं का सामना हम आज कर रहे हैं वे इसलिए उत्पन्न होती हैं क्योंकि हम अपने बीच के गौण भेदों पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं और यह अनदेखा कर देते हैं कि किस तरह मनुष्य के रूप में हम आधारभूत रूप में समान हैं। हम एक ही तरह से जन्म लेते हैं और हम उसी तरह मरते हैं, बिना किसी औपचारिकता के। हम सभी एक सुखी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं और ऐसा करने का अधिकार है। यदि हम केवल यह पहचान जाएँ तो इससे बहुत अधिक बदमाशी, धोखाधड़ी और शोषण को रोका जा सकता है। एक बौद्ध के रूप में जो मेरी चिंता है वह यह कि बौद्ध मानवता की भलाई के लिए योगदान कर सकते हैं।

"जैन और सांख्य परंपरा के एक अंग की तरह, बौद्धों का मानना ​​है कि हम ही अपनी स्थिति के लिए उत्तरदायी हैं, हमारे साथ जो होता है वह हमारे हाथों में है। यदि हम अच्छा करते हैं तो हम लाभान्वित होते हैं, यदि हम हानि पहुँचाते हैं, तो उसके परिणाम झेलते हैं। एक बात जिससे मैं बड़ी आशा प्राप्त करता हूँ वह शिशुओं, जो अभी बोल भी नहीं पाते, के साथ किए प्रयोगों से हाल के वैज्ञानिक निष्कर्ष हैं कि मनुष्य का मूल स्वभाव करुणामय है।

"मानवता के सामान्य हित पर चिंतन हमें पर्यावरण, जो हमारा घर है, के विषय में सोचने के लिए बाध्य करता है और स्वाभाविक रूप से इस छोटे ग्रह की बेहतर देखभाल करने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेरित करता है।"

फ्रेदेरिक सिकार्ड फ्रेंच ने परम पावन को आने के लिए धन्यवाद देते हुए बैठक का समापन किया तथा श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड को बड़ी कुशलता के साथ फ्रांसीसी, भोट और अंग्रेज़ी में अनुवाद करने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की।


पैले दु कांग्रे में ३१०० तिब्बती जिनमें कई युवा थे, परम पावन को सुनने के लिए एकत्रित थे। आगमन पर उन्होंने परम पावन का पारम्परिक रूप से स्वागत किया, युवा पुरुष टाशी शोलपा नृत्य प्रदर्शन करते और युवतियों ने गायन के साथ उनके साथ सभागार में प्रवेश किया। तिब्बती एसोसिएशन के अध्यक्ष, ङवांग तेनपा द्वारा एसोसिएशन की उपलब्धियों की एक रिपोर्ट पढ़े जाने के पश्चात जिसमें भोट भाषा की रविवारीय कक्षाएँ शामिल थी, परम पावन ने संबोधित किया।

"अतीत के कर्म और प्रार्थना के कारण हमने तिब्बतियों के रूप में जन्म लिया है और आज एक साथ मिलने का अवसर मिला है। मुझे खुशी है। हमारा इतिहास १००० वर्षों से अधिक प्राचीन है और हमारा धर्म और संस्कृति गहन हैं। तिब्बत में आज, भले ही लोगों के अंदर आग हो पर वे धुएँ को बाहर निकलने में भी असमर्थ हैं। इसलिए, हममें से जो स्वतंत्र देशों में हैं, यह हम पर निर्भर करता है कि अपने देश की स्थिति को स्पष्ट करें।

"हम निर्वासन में ५७ वर्षों से हैं और यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी अस्मिता और संस्कृति को जीवित रखें, लगाव के कारण नहीं, परन्तु इसलिए कि हमारी संस्कृति के पहलुओं के कारण विश्व लाभान्वित हो सकता है। सोंङ्चेन गम्पो और ठिसोंग देचेन की करुणा, शांतरक्षित की सहायता से नालंदा विश्वविद्यालय की बौद्ध परम्पराएँ तिब्बत में स्थापित की गईं। उनमें से भारत से लाये तर्क और प्रमाण और कहीं संरक्षित नहीं की गई है। हमारी परंपरा, कठोर अध्ययन और विश्लेषण द्वारा प्रतिष्ठित है तो, जहाँ चीन, जापान और वियतनाम में बौद्ध 'हृदय सूत्र' का पाठ करते हैं, जैसा हम करते हैं, वे उसके वास्तविक अर्थ की सराहना बहुत कम रखते हैं जबकि हम इसकी  व्याख्या करने में सक्षम रहते हैं।

"अध्ययन महत्वपूर्ण है। निर्वासन में आने के बाद से मैंने नमज्ञल विहार और हमारी भिक्षुणी विहारों में शास्त्रीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित किया है। एक परिणाम यह है कि इस वर्षांत में अपनी शिक्षा पूर्ण करने वाली भिक्षुणियों को गेशे-मा की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा।

"एक अभियान के भाग के रूप में लोगों को २१वीं सदी का बौद्ध बनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, वास्तव में बौद्ध धर्म क्या है इसके बारे में समझ प्राप्त करने के लिए, हमने ग्रंथ संग्रह कांग्यूर और तेंग्यूर को तीन शीर्षकों-विज्ञान, दर्शन और धर्म में विभाजित किया है। विज्ञान और दर्शन से संबंधित संग्रह का भोट भाषा में संकलन और प्रकाशन हो चुका है और अन्य भाषीय संस्करण शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। उसके बाद अध्ययन महत्वपूर्ण होगा।"

परम पावन अपनी कुर्सी से खड़े हुए और मंच के सामने तक आकर जनसमुदाय को देखते हुए जिन्हें वे पहचानते थे उनकी ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाया। मंच के सामने से अपनी ओर बढ़े हाथों में से उन्होंने कइयों से हाथ मिलाया, सभागार से बाहर निकले और वापस अपने होटल के लिए प्रस्थान किया। 

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