परम पावन 14 वें दलाई लामा
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शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर विचार विमर्श और एक सार्वजनिक व्याख्यान - कम्पेशन एस ए पिलर ऑफ वर्ल्ड पीस २६/जून/२०१६

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इंडियानापोलिस, इन संयुक्त राज्य अमेरिका, २५ जून २०१६- सेक्यूलर एथिक्स इन एजुकेशन (शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता) (एसईई) के लिए मसौदा दिशा-निर्देशों पर चर्चा के लिए आज प्रातः कई विशेषज्ञों को एमोरी-तिब्बत भागीदारी के सदस्यों में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। उनमें डैनियल गोलमेन, लिंडा लांटियरी, मार्क ग्रीनबर्ग और किम्बर्ली शोनर्ट - रेइश्ल ने सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा में अग्रणी कार्य किया है।

अपने उद्घाटन भाषण में, परम पावन दलाई लामा ने कहा:


"हमें एक ऐसे कार्यक्रम का कार्यान्वयन करना है, जो सौहार्दता को प्रोत्साहित करता है - एक सराहना कि यदि आपमें सौहार्दता है तो आपका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा और आप और आपके संबंध दोनों सुखी होंगे। यदि दूसरी ओर आप भय और चिंता की भावना से भरे हों तो ऐसे कोई लाभ न होंगे। यह यहाँ और इस समय के बारे में है, आगामी जीवन के बारे में नहीं। यदि आपका चित्त सहज है तो शिक्षा और अधिक प्रभावी होगी।"

गेशे लोबसंग तेनज़िन ने समझाया कि परम पावन के दृष्टिकोण पर चिंतन करने के प्रयास में प्रस्तावित शिक्षा के ढांचे में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, जिसका मार्गदर्शक सिद्धांत करुणा है, में कौशल के तीन भाग शामिल हैं: स्वाध्याय, जिसमें शामिल हैः शरीर और चित्त को शांत करनाः भाग लेने के लिए सीखना, भावनात्मक साक्षरता और स्वयं की देखभाल। दूसरा भाग दूसरों से संबंध रखना है, जिसमें दूसरों की सराहना शामिल है, सहानुभूति, हमारी आम मानवता और सामाजिक कौशल को पहचानना। तीसरे भाग उत्तरदायी निर्णय लेने में शामिल है: अन्योन्याश्रितता की सराहना और महत्वपूर्ण सोच को व्यवहृत करना।

डैनियल गोलमेन ने बताया कि एसईई ढांचा ध्यान के अभाव, करुणा और अन्योन्याश्रितता की कम समझ जिन्हें वर्तमान कार्यक्रमों में सुलझाया नहीं गया है, को संबोधित करना है। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शब्द के प्रयोग को चुनौती दी जिसके अर्थ समस्या पूर्ण हो सकते हैं और परम पावन से पूछा कि क्या उनमें उस शब्द के प्रति कोई लगाव था। परम पावन ने कहा कि उन्हें नहीं था, परन्तु वह सदैव अपने धर्मनिरपेक्ष शब्द के प्रयोग का स्पष्टीकरण देते हैं, जैसा कि भारत में समझा जाता है - अर्थात सभी धार्मिक परम्पराओं और उनके दृष्टिकोण के लिए भी जिनकी किसी में आस्था नहीं है, के प्रति पक्षपात रहित सम्मान। मार्क ग्रीनबर्ग ने सुझाव दिया है कि मात्र नैतिकता का संदर्भ देना बहुत अधिक अमूर्त दर्शन की भांति लगता है।

लिंडा लांटियरी, जो कुछ भी कहा गया था उसमें से अधिकांश से सहमत थीं और एसईई के ढांचे में करुणा और अन्योन्याश्रितता को केन्द्रित रूप में देखते हुए उन्होंने सराहना व्यक्त की।

जैसे ही बातचीत समाप्त होने को थी उनसे पूछा गया कि क्या वे कुछ और जोड़ना चाहते थे, परम पावन ने कहा कि चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की एक सरल समझ शामिल करना उपयोगी होगा। इसकी कल्पना करते हुए कि अंततः यह कार्यक्रम किस तरह चीन के लिए लाभकारी होगा, उन्होंने माओ की सांस्कृतिक क्रांति की विनाशकारिता की तुलना शिक्षा के क्षेत्र में सांस्कृतिक क्रांति की संभावित रचनात्मकता के साथ किया।


मध्याह्न भोजनोपरांत इंडियाना फार्मर्स कोलिज़ीयम में कांग्रेस सांसद सूज़न ब्रूक्स ने ६५०० की संख्या के श्रोताओं से परम पावन का परिचय कराते हुए उन्हें शांति और अखंडता का व्यक्ति बताया जिन्होंने जिन्होंने दशकों से करुणा के संदेश को साझा किया है।

"भाइयों और बहनों, मैं यहाँ आकर बहुत खुश हूँ। इतने विशाल जनमानस को संबोधित करना मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है, मैं यह देखकर खुश हूँ कि इस सभा में विभिन्न धर्मों के लोग सम्मिलित हैं," परम पावन ने अपना व्याख्यान प्रारंभ किया।

"पिछले ५७ वर्षों से भारत मेरा दूसरा घर रहा है और मैं यह देखकर अत्यंत प्रभावित हुआ हूँ कि किस प्रकार विदेशी धार्मिक परम्पराएँ - पारसी, यहूदी, ईसाई और इस्लाम, स्वदेशी परम्पराओं जैसे सांख्य, जैन और बौद्ध परम्पराओं के साथ साथ पनपे हैं। भारत दिखाता है कि अंतर्धार्मिक सद्भाव संभव है। ये सभी परम्पराएँ प्रेम, क्षमा, सहनशीलता, संतोष और सादगी का एक जैसा संदेश संप्रेषित करती हैं। स्वानुशासन उस संदेश का दूसरा भाग है। यद्यपि जो दार्शनिक विचार वे प्रतिपादित करते हैं, वे भिन्न हो सकते हैं, वे करुणा जैसे इस अभ्यासों को प्रबल बनाने के एक समान लक्ष्य को साझा करते हैं।

"आज के विश्व में हमें, भाईचारे और भगिनीचारे की भावना की आवश्यकता है क्योंकि हम सभी मनुष्य रूप में समान हैं। यदि हम सभी मनुष्यों की एकता को लेकर और अधिक जागरूक होते तो एक दूसरे की हत्या, अमीर और गरीब के बीच की खाई अथवा रंग, वर्ग या जाति के आधार पर कोई भेदभाव का कोई आधार न होता। धर्म के नाम पर हत्या अकल्पनीय है। आप धर्म को स्वीकार करें या नहीं यह आप पर निर्भर है, पर यदि आप करते हैं तो आप को ईमानदारी से करना चाहिए।

"इसी कारण से मुझे लगता है कि 'मुस्लिम आतंकवादी' या 'बौद्ध आतंकवादी' जैसे शब्दों का प्रयोग करना गलत है। जो कोई भी किसी प्रकार का एक आतंकवादी कार्य करता है वह सच्चा मुसलमान या बौद्ध नहीं रह जाता। जहाँ तक ​​बर्मा में भिक्षुओं का प्रश्न है, जिनके विषय में सूचना है कि वे मुसलमानों को परेशान कर रहे हैं, मैंने उनसे आग्रह किया है कि वे बुद्ध के चेहरे का स्मरण करें, क्योंकि बुद्ध उन्हें सुरक्षा देते।

"जब मैं अमेरिका आते हुए हीथ्रो हवाई अड्डे पर था तो किसी ने मुझसे कहा कि यद्यपि मैं अब ८१ का हूँ, पर मेरा चेहरा मात्र ६० वर्ष का प्रतीत होता है और पूछा कि इसका क्या रहस्य है? मैंने पहले शरारत से कहा, 'यह मेरा रहस्य है और मैं आपको बताना नहीं चाहता', पर फिर समझाया कि यह चित्त की शांति से जुड़ा है।"

परम पावन ने कहा कि आज जब जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था जैसे कारक राष्ट्रीय सीमाओं के अंदर तक सीमित नहीं हैं, वास्तविकता हमें बताती है कि हम अन्योन्याश्रित हैं। उन्होंने कहा कि हमें आवश्यक नहीं कि वे धर्म पर निर्भर हों, शिक्षा प्रणाली में सौहार्दता लाने के उपायों को खोजने की आवश्यकता है। इसमें आम मानवीय मूल्यों के प्रति एक सार्वभौमिक अपील शामिल है जैसा कि वे प्रातः विशेषज्ञों और सम्बद्धित लोगों के साथ चर्चा कर रहे थे। उन्होंने पूछा,

"हम कैसे प्रारंभ करें? संयुक्त राष्ट्र या व्हाइट हाउस की ओर देखते हुए? नहीं - महत्वपूर्ण बात अपने अंदर आंतरिक शांति का विकास करना है। यदि हम सौहार्दपूर्ण हों तथा और १० लोगों के साथ साझा करें और वे एक और १० के साथ साझा करें तो हम एक अंतर ला पाएँगे। यदि २१वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में हम केवल अतीत के उदाहरण के पालन करें और बल के द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करें तो यह शताब्दी पिछली शताब्दी की ही तरह दुखी होगी।

"एक बार मैं हिरोशिमा में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं की बैठक में सम्मिलित हुआ और किसी ने सुझाव दिया कि ईश्वर के आशीर्वाद से शांति कायम होगी। जब मेरे बोलने की बारी आई तो मैंने कहा कि शांति लाने के लिए आशीर्वाद से कुछ अधिक की आवश्यकता होगी; हमें कार्रवाई करने की आवश्यकता है। चूँकि यह मनुष्य हैं जो हिंसा और युद्ध में भाग लेते हैं तो यह मनुष्य हैं जिन्हें शांति का निर्माण करने के लिए कार्य करना चाहिए।"

इसके बाद जो कई प्रश्न श्रोताओं की ओर से आए, उनमें से कई सरल अनुरोध थे कि वे परम पावन से हाथ मिला सकें। अन्य प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने हारून बेक के निर्ष्कर्ष की बात की, कि जब हम क्रोधित होते हैं और अनुभव करते हैं कि हमारे क्रोध की वस्तु पूरी तरह से नकारात्मक है, तो उस भावना का ९०% मानसिक प्रक्षेपण है। अहिंसा के विषय में उन्होंने कहा कि हिंसा और अहिंसा के बीच वास्तविक सीमांकन प्रेरणा में निहित है और कहा कि करुणा हिंसा को कभी जन्म नहीं देती।


जब एक प्रश्नकर्ता ने परम पावन को बताया कि विश्व में वह एक व्यक्ति हैं जिनसे कई लोग मिलना चाहेंगे और पूछा कि वे किससे मिलना चाहेंगे, परम पावन ने स्टीफन हॉकिंग की तीक्ष्ण बुद्धि और उनकी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की दृढ़ता की सराहना करने का उल्लेख किया। यद्यपि वे उनकी विधवा से मिले हैं पर वे मार्टिन लूथर किंग जूनियर से भेंट करना चाहते थे। दो व्यक्ति जिनसे मिलकर उन्हें प्रसन्नता हुई है, वे हैं उनके मित्र बिशप डेसमंड टूटू और जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल, जिनके विषय में उन्होंने ध्यान दिया कि यूरोप में शरणार्थी संकट के संदर्भ में उन्होंने करुणा शब्द का प्रयोग कई बार किया।

उनके जीवन के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने कहा:

"मैं कोई खास नहीं हूँ। मनुष्य रूप में हम सभी समान हैं मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से। हम सब एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और हम सभी को ऐसा करने का अधिकार है।"

और जब एक मां ने पूछा कि उन स्वाभाविक अच्छे गुणों को किस तरह सुरक्षित रखा जाए जो बच्चों में होते हैं जब वे छोटे होते हैं, परम पावन ने सलाह दी, उनके साथ समय बिताते हुए और उन्हें प्रेम तथा स्नेह के साथ घेरते हुए। "प्रेम व दया की मेरी पहली शिक्षिका," उन्होंने कहा, "मेरी माँ थी।"

जब समय समाप्त हुआ तो उन्होंने उन सभी से उनके प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थता के लिए क्षमा याचना की, जो प्रश्न पूछने की प्रतीक्षा कर रहे थे। अन्य सार्वजनिक आयोजनों की तरह जिनमें वे सम्मिलित हुए थे, आयोजकों में से एक प्रतिनिधि ने एक संक्षिप्त वित्तीय बयान दिया और स्पष्ट किया कि शेष राशि स्थानीय धर्मार्थ कार्यों के लिए दी जाएगी। अपने श्रोताओं से जो उन्होंने कहा उस पर सोचने और यदि उसमें कोई सार्थकता दिखाई पड़े तो उस पर कार्य करने के लिए आग्रह करते हुए परम पावन ने मंच से नीचे आए और धीरे -धीरे श्रोताओं की सामने वाली पंक्ति से हाथ मिलाते, शब्दों का आदान प्रदान करते, पुस्तकों पर हस्ताक्षर कर और रुकते हुए जब प्रफुल्लित व्यक्तियों ने उनके साथ सेल्फी ली अपना रास्ता बनाया।

कल परम पावन भारत लौटने की अपनी यात्रा प्रारंभ करेंगे। 

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