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बौद्ध धर्म और विज्ञान के मध्य सेतु बंधन, एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी, दिन तीन २०/दिसम्बर/२०१६

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मुंडगोड, कर्नाटक, भारत - एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी, दिन तीन लगातार तीसरे दिन, परम पावन दलाई लामा एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी में भाग लेने के लिए डेपुंग लाची से डेपुंग लोसेललिंग महाविहार तक शुभचिंतकों का अभिनन्दन करते हुए पैदल निकले। तिब्बती विज्ञान सोसायटी के युवा छात्रों का एक समूह, जो संगोष्ठी में भाग लेने आया था, महाविहार के द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। उन्होंने उनके साथ एक तस्वीर के लिए पोज़ किया, विज्ञान के क्षेत्र में उनकी रुचि की सराहना की और उन्हें मात्र सामान्य अध्ययन से आगे जाने और विशेषज्ञ होने की सलाह दी।

पांचवां सत्र तंत्रिका विज्ञान और प्रश्न, कि चित्त क्या है और उसका शरीर, मस्तिष्क और व्यक्तिपरक अनुभव से संबंध के लिए समर्पित किया गया था। क्रिस्टोफ कोच ने आधुनिक विज्ञान के पिता फ्रांसीसी दार्शनिक देकार्त, जिसकी प्रसिद्ध उक्ति थी - मैं चेतन हूँ, इसलिए मैं हूँ। कोच ने कहा कि इस पहल के बावजूद, ३० या ४० वर्ष पहले तक विज्ञान ने चेतना में कम ही रुचि ली थी।
अब कुछ समझ है कि यह कुछ देखने, सुनने, याद करने, भूख लगने इत्यादि जैसा है। परन्तु, यदि हम पूछें कि किसमें चेतना का अनुभव है, तो आम सहमति है कि यह केवल मनुष्य में है। अब उस व्यवस्था के संबंध में जो चेतना को जन्म देती है, न्य़ूरोसाइंटिस्ट ने सेरेब्रल कॉर्टेक्स के एक भाग की पहचान कर ली है कि यदि चेतना को होना है, तो वह वहाँ होगी। अब कुत्तों, मधुमक्खियों, जिनके दिमाग छोटे परन्तु घने जटिल हैं, या यहाँ तक कि भ्रूण भी क्या चेतन हैं, तो अभी तक ज़ाहरी तौर पर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है।

लोड़ो संगपो ने इस उक्ति के साथ अपनी प्रस्तुति प्रारंभ की कि चेतना एक समस्या है। बौद्ध स्थिति यह है कि चेतना शारीरिक घटकों से अलग है। हर चेतना की एक पूर्व चेतना होती है। चेतना को प्रभास्वरता, स्पष्ट, सचेत और जागरूक रूप में वर्णित किया गया है। ऐन्द्रिक और मानसिक चेतना के बीच अंतर किया जाता है।

अगली पैनल चर्चा के दौरान परम पावन ने कोच से पूछा कि क्या वे माप सकते हैं कि क्या एक विकृत चेतना शंका अथवा प्रज्ञा में परिवर्तित की जा सकती है। कोच ने या तो निर्माण करने या आवश्यक प्रयोग करने में असमर्थता दिखाई और प्रकट किया कि इस तरह के अधिकांश कार्य चूहों पर किए जाते हैं। क्रिस इम्पे ने बाद में सुझाया कि उसे अभिनेताओं को काम पर लेने का विचार करना चाहिए। परम पावन ने कहा कि मानव चेतना और एक चूहे की चेतना में एक महत्वपूर्ण गुणात्मक अंतर है।

"कई वर्षों से मैंने स्वीकृत ध्यान के अनुभव के साथ बौद्ध और अबौद्ध अभ्यासियों के परीक्षण का सुझाव दिया है," उन्होंने कहा। "उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे हैं जिनकी 'आंतरिक उष्णता' का विकास इस तरह का है कि वे ऊंचे पर्वतों में बर्फ में वस्त्रहीन बैठ सकते हैं।"

लोबसंग तेनजिन नेगी ने अवलोकन में योगदान दिया, कि जहाँ बौद्ध विज्ञान का मानना है कि चित्त भौतिक गुणों पर निर्भर नहीं है, तांत्रिक दृष्टिकोण है कि चित्त ऊर्जा से संबंधित है। सूक्ष्म चेतना सूक्ष्म ऊर्जा पर सवार होती है। कोच ने दोहराया कि उनका मानव मस्तिष्क का अध्ययन बाह्य दृष्टिकोण तक सीमित है और वे तथा उनके सहयोगी की स्थिति है - मस्तिष्क नहीं, कोई चित्त नहीं। गतिरोध को पाटने के लिए मिशेल बिटबोल ने पूछा कि क्या यह कहा जा सकता है कि चेतना उत्पन्न करने की बजाय, मस्तिष्क उसे परिवर्धित करता है।

संवाद अव्यवस्थित हो गई जब क्रिस्टोफ कोच ने उल्लेख किया कि उनके सहयोगियों ने सुझाया है कि चेतना के बिना ध्यान की अवस्थाएँ हैं और ध्यान के बिना चेतना की अवस्थाएँ हैं। बौद्ध विज्ञान एकाग्रता के संदर्भ में चेतना का एक पक्ष है। प्रख्यात वरिष्ठ विद्वान गेशे पलदेन डगपा और परम पावन ने संवाद में अपनी बात रखी पर समझ और परिभाषा के मतभेद बने रहे।

मध्याह्न भोजनोपरांत गेशे ल्हगदोर ने संगोष्ठी का अंतिम सत्र प्रारंभ किया, जो धर्मनिरपेक्ष नैतिकता या शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक मूल्यों की आवश्यकता पर चर्चा करने वाला था। किम्बर्ली शोनर्ट - रेशल ने सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा के संदर्भ में हृदय को शिक्षित करने को लेकर जो प्रगति हुई है, उसकी सूचना दी। लक्ष्यों में से एक विशेष रूप से बच्चों में दया, सुख और स्वास्थ्य पोषण करना है। उन्होंने शिक्षा के दृष्टिकोण जो बच्चों के व्यापक स्तर पर ज्ञान, व्यवहार, मूल्य और कौशल जैसे आत्म-नियमन, आत्म जागरूकता, सहानुभूति, करुणा, परोपकार और नैतिक निर्णय लेने को बढ़ावा देते हैं, की सूचना दी।

कूलों में सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण ध्यान की आवश्यकता के बारे में आम सहमति ने एमोरी विश्वविद्यालय को परम पावन के प्रोत्साहन के साथ, इस दृष्टि को आगे ले जाने हेतु एक ढांचा तैयार करने के लिए प्रेरित किया। लोबसंग तेनजिन नेगी ने समझाया कि ऐसा ध्यान प्रशिक्षण और करुणा और देखभाल में प्रशिक्षण का संबंध न केवल सही निर्णय लेने से है, पर सही कार्य द्वारा उसके अनुपालन में भी है।

पैनल चर्चा को खोलते हुए, टिम हैरिसन ने विचारार्थ शिक्षण के लिए दो दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। एक प्रारूप में बच्चे को एक कंप्यूटर या पात्र की तरह देखा जाता है जिसे ज्ञान और तथ्यों के साथ भरा जाना है। एक अन्य में बच्चे की तुलना एक पुष्प या पौधे से की जाती है और शिक्षक के कार्य का एक भाग उसे पानी देना है और मिट्टी की देखभाल करनी है और उसे बढ़ने देना है। इससे प्रत्येक शिक्षक को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता को केन्द्र में लाया गया जो धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के लिए विभिन्न उपाय काम में लाएगा। करुणा के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जो शिक्षक लाभान्वित हुए हैं उनकी सूचनाएँ उपलब्ध हैं।

किम्बर्ली शोनर्ट - रेशल ने एक प्रश्न का उत्तर दिया कि क्या बच्चों के विकास में कोई महत्वपूर्ण अवसर थे, जब धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में प्रशिक्षण सबसे प्रभावी था या जिसके करने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाया कि जब बच्चे ५-७ वर्ष १०-१३ वर्ष के होते हैं और किशोरावस्था में होते हैं तो वे महत्वपूर्ण समय हैं, परन्तु उन्होंने जोर देकर कहा कि जिसकी वास्तव में आवश्यकता है, वह एक पाठ्यक्रम है जो उस समय प्रारंभ होता है जब बच्चे स्कूल शुरू करते हैं और लगातार बना रहता है जैसे जैसे वे अपनी सम्पूर्ण शिक्षा में अग्रसर होते हैं।

गैल देसबोर्देन द्वारा संगोष्ठी की कार्यवाही का पूर्ण और संक्षिप्त सारांश देने के उपरांत, परम पावन को अपने विचारों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया। सबसे पहले उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके पास कहने के लिए कुछ न था, परन्तु उन्होंने प्रस्तुतकर्ताओं और पैनल सदस्यों को उनकी भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने डेपुंग लोसेललिंग को आयोजन स्थल देने और संगोष्ठी में संलग्न विभिन्न तकनीशियनों को यह सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ ठीक हो और कुशल अनुवादकों के प्रति आभार व्यक्त किया।

"इस तरह के सम्मेलनों में हमारा पहला लक्ष्य अपने ज्ञान और समझ का संवर्धन है और उस लक्ष्य के संदर्भ में हमने गहन विचार विमर्श किया है" उन्होंने घोषित किया। "पर दूसरा लक्ष्य आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों के सुख का प्रश्न है। यदि २१वीं सदी को २०वीं सदी से अलग होना है तो यह महत्वपूर्ण है कि जो लोग आज की युवा पीढ़ी के हैं वे स्वयं को अलग ढंग से आचरित करें।

"कुछ वैज्ञानिक इस प्रमाण को सूचित करते हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है। हमारे भीतर बीज होने के बावजूद अतीत में हमने इसकी उपेक्षा की है। हमें सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर इसको विकसित करने के उपाय ढूंढने हैं। इस समय कई स्थानों में बहुत अधिक संकट हैं जो सोचने के भ्रांत तरीकों से उत्पन्न होते हैं। यदि हमारा लक्ष्य है कि भविष्य में एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व हो तो केवल शिक्षा परिवर्तन लाएगी। हम उदासीन नहीं रह सकते। मैं बुद्ध का अनुयायी हूँ, परन्तु मैं भी मात्र एक मानव हूँ। मैं अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रहा हूँ - मैं केवल कहता हूँ कि आप अपना करें।"

लगातार तीसरे दिन, परम पावन दलाई लामा एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी में भाग लेने के लिए डेपुंग लाची से डेपुंग लोसेललिंग महाविहार तक शुभचिंतकों का अभिनन्दन करते हुए पैदल निकले। तिब्बती विज्ञान सोसायटी के युवा छात्रों का एक समूह, जो संगोष्ठी में भाग लेने आया था, महाविहार के द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। उन्होंने उनके साथ एक तस्वीर के लिए पोज़ किया, विज्ञान के क्षेत्र में उनकी रुचि की सराहना की और उन्हें मात्र सामान्य अध्ययन से आगे जाने और विशेषज्ञ होने की सलाह दी।

पांचवां सत्र तंत्रिका विज्ञान और प्रश्न, कि चित्त क्या है और उसका शरीर, मस्तिष्क और व्यक्तिपरक अनुभव से संबंध के लिए समर्पित किया गया था। क्रिस्टोफ कोच ने आधुनिक विज्ञान के पिता फ्रांसीसी दार्शनिक देकार्त, जिसकी प्रसिद्ध उक्ति थी - मैं चेतन हूँ, इसलिए मैं हूँ। कोच ने कहा कि इस पहल के बावजूद, ३० या ४० वर्ष पहले तक विज्ञान ने चेतना में कम ही रुचि ली थी।

अब कुछ समझ है कि यह कुछ देखने, सुनने, याद करने, भूख लगने इत्यादि जैसा है। परन्तु, यदि हम पूछें कि किसमें चेतना का अनुभव है, तो आम सहमति है कि यह केवल मनुष्य में है। अब उस व्यवस्था के संबंध में जो चेतना को जन्म देती है, न्य़ूरोसाइंटिस्ट ने सेरेब्रल कॉर्टेक्स के एक भाग की पहचान कर ली है कि यदि चेतना को होना है, तो वह वहाँ होगी। अब कुत्तों, मधुमक्खियों, जिनके दिमाग छोटे परन्तु घने जटिल हैं, या यहाँ तक कि भ्रूण भी क्या चेतन हैं, तो अभी तक ज़ाहरी तौर पर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है।

लोड़ो संगपो ने इस उक्ति के साथ अपनी प्रस्तुति प्रारंभ की कि चेतना एक समस्या है। बौद्ध स्थिति यह है कि चेतना शारीरिक घटकों से अलग है। हर चेतना की एक पूर्व चेतना होती है। चेतना को प्रभास्वरता, स्पष्ट, सचेत और जागरूक रूप में वर्णित किया गया है। ऐन्द्रिक और मानसिक चेतना के बीच अंतर किया जाता है।

अगली पैनल चर्चा के दौरान परम पावन ने कोच से पूछा कि क्या वे माप सकते हैं कि क्या एक विकृत चेतना शंका अथवा प्रज्ञा में परिवर्तित की जा सकती है। कोच ने या तो निर्माण करने या आवश्यक प्रयोग करने में असमर्थता दिखाई और प्रकट किया कि इस तरह के अधिकांश कार्य चूहों पर किए जाते हैं। क्रिस इम्पे ने बाद में सुझाया कि उसे अभिनेताओं को काम पर लेने का विचार करना चाहिए। परम पावन ने कहा कि मानव चेतना और एक चूहे की चेतना में एक महत्वपूर्ण गुणात्मक अंतर है।

"कई वर्षों से मैंने स्वीकृत ध्यान के अनुभव के साथ बौद्ध और अबौद्ध अभ्यासियों के परीक्षण का सुझाव दिया है," उन्होंने कहा। "उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे हैं जिनकी 'आंतरिक उष्णता' का विकास इस तरह का है कि वे ऊंचे पर्वतों में बर्फ में वस्त्रहीन बैठ सकते हैं।"

लोबसंग तेनजिन नेगी ने अवलोकन में योगदान दिया, कि जहाँ बौद्ध विज्ञान का मानना है कि चित्त भौतिक गुणों पर निर्भर नहीं है, तांत्रिक दृष्टिकोण है कि चित्त ऊर्जा से संबंधित है। सूक्ष्म चेतना सूक्ष्म ऊर्जा पर सवार होती है। कोच ने दोहराया कि उनका मानव मस्तिष्क का अध्ययन बाह्य दृष्टिकोण तक सीमित है और वे तथा उनके सहयोगी की स्थिति है - मस्तिष्क नहीं, कोई चित्त नहीं। गतिरोध को पाटने के लिए मिशेल बिटबोल ने पूछा कि क्या यह कहा जा सकता है कि चेतना उत्पन्न करने की बजाय, मस्तिष्क उसे परिवर्धित करता है।

संवाद अव्यवस्थित हो गई जब क्रिस्टोफ कोच ने उल्लेख किया कि उनके सहयोगियों ने सुझाया है कि चेतना के बिना ध्यान की अवस्थाएँ हैं और ध्यान के बिना चेतना की अवस्थाएँ हैं। बौद्ध विज्ञान एकाग्रता के संदर्भ में चेतना का एक पक्ष है। प्रख्यात वरिष्ठ विद्वान गेशे पलदेन डगपा और परम पावन ने संवाद में अपनी बात रखी पर समझ और परिभाषा के मतभेद बने रहे।

मध्याह्न भोजनोपरांत गेशे ल्हगदोर ने संगोष्ठी का अंतिम सत्र प्रारंभ किया, जो धर्मनिरपेक्ष नैतिकता या शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक मूल्यों की आवश्यकता पर चर्चा करने वाला था। किम्बर्ली शोनर्ट - रेशल ने सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा के संदर्भ में हृदय को शिक्षित करने को लेकर जो प्रगति हुई है, उसकी सूचना दी। लक्ष्यों में से एक विशेष रूप से बच्चों में दया, सुख और स्वास्थ्य पोषण करना है। उन्होंने शिक्षा के दृष्टिकोण जो बच्चों के व्यापक स्तर पर ज्ञान, व्यवहार, मूल्य और कौशल जैसे आत्म-नियमन, आत्म जागरूकता, सहानुभूति, करुणा, परोपकार और नैतिक निर्णय लेने को बढ़ावा देते हैं, की सूचना दी।

स्कूलों में सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण ध्यान की आवश्यकता के बारे में आम सहमति ने एमोरी विश्वविद्यालय को परम पावन के प्रोत्साहन के साथ, इस दृष्टि को आगे ले जाने हेतु एक ढांचा तैयार करने के लिए प्रेरित किया। लोबसंग तेनजिन नेगी ने समझाया कि ऐसा ध्यान प्रशिक्षण और करुणा और देखभाल में प्रशिक्षण का संबंध न केवल सही निर्णय लेने से है, पर सही कार्य द्वारा उसके अनुपालन में भी है।

पैनल चर्चा को खोलते हुए, टिम हैरिसन ने विचारार्थ शिक्षण के लिए दो दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। एक प्रारूप में बच्चे को एक कंप्यूटर या पात्र की तरह देखा जाता है जिसे ज्ञान और तथ्यों के साथ भरा जाना है। एक अन्य में बच्चे की तुलना एक पुष्प या पौधे से की जाती है और शिक्षक के कार्य का एक भाग उसे पानी देना है और मिट्टी की देखभाल करनी है और उसे बढ़ने देना है। इससे प्रत्येक शिक्षक को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता को केन्द्र में लाया गया जो धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के लिए विभिन्न उपाय काम में लाएगा। करुणा के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जो शिक्षक लाभान्वित हुए हैं उनकी सूचनाएँ उपलब्ध हैं।

किम्बर्ली शोनर्ट - रेशल ने एक प्रश्न का उत्तर दिया कि क्या बच्चों के विकास में कोई महत्वपूर्ण अवसर थे, जब धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में प्रशिक्षण सबसे प्रभावी था या जिसके करने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाया कि जब बच्चे ५-७ वर्ष १०-१३ वर्ष के होते हैं और किशोरावस्था में होते हैं तो वे महत्वपूर्ण समय हैं, परन्तु उन्होंने जोर देकर कहा कि जिसकी वास्तव में आवश्यकता है, वह एक पाठ्यक्रम है जो उस समय प्रारंभ होता है जब बच्चे स्कूल शुरू करते हैं और लगातार बना रहता है जैसे जैसे वे अपनी सम्पूर्ण शिक्षा में अग्रसर होते हैं।

गैल देसबोर्देन द्वारा संगोष्ठी की कार्यवाही का पूर्ण और संक्षिप्त सारांश देने के उपरांत, परम पावन को अपने विचारों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया। सबसे पहले उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके पास कहने के लिए कुछ न था, परन्तु उन्होंने प्रस्तुतकर्ताओं और पैनल सदस्यों को उनकी भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने डेपुंग लोसेललिंग को आयोजन स्थल देने और संगोष्ठी में संलग्न विभिन्न तकनीशियनों को यह सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ ठीक हो और कुशल अनुवादकों के प्रति आभार व्यक्त किया।

"इस तरह के सम्मेलनों में हमारा पहला लक्ष्य अपने ज्ञान और समझ का संवर्धन है और उस लक्ष्य के संदर्भ में हमने गहन विचार विमर्श किया है" उन्होंने घोषित किया। "पर दूसरा लक्ष्य आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों के सुख का प्रश्न है। यदि २१वीं सदी को २०वीं सदी से अलग होना है तो यह महत्वपूर्ण है कि जो लोग आज की युवा पीढ़ी के हैं वे स्वयं को अलग ढंग से आचरित करें।

"कुछ वैज्ञानिक इस प्रमाण को सूचित करते हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है। हमारे भीतर बीज होने के बावजूद अतीत में हमने इसकी उपेक्षा की है। हमें सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर इसको विकसित करने के उपाय ढूंढने हैं। इस समय कई स्थानों में बहुत अधिक संकट हैं जो सोचने के भ्रांत तरीकों से उत्पन्न होते हैं। यदि हमारा लक्ष्य है कि भविष्य में एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व हो तो केवल शिक्षा परिवर्तन लाएगी। हम उदासीन नहीं रह सकते। मैं बुद्ध का अनुयायी हूँ, परन्तु मैं भी मात्र एक मानव हूँ। मैं अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रहा हूँ - मैं केवल कहता हूँ कि आप अपना करें।"

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