मुंडगोड, कर्नाटक, भारत - प्रातः ८ बजे के पहले डेपुंग लाची से डेपुंग लोसेललिंग पैदल चलना अपेक्षाकृत ठंडा होता है, जो परम पावन दलाई लामा ने आज फिर एक बार किया। मार्ग में उन्होंने तिब्बतियों और भारतीयों, स्थानीय निवासियों, तीर्थयात्रियों और याचकों का अभिनन्दन किया और कइयों से हाथ मिलाए, जिससे उनके हर्ष व आश्चर्य स्पष्ट झलक रहे थे।
डेपुंग लोसेललिंग पहुँचने पर उन्होंने डॉ संजय गुप्ता, जो एक चिकित्सक और प्रसारक हैं, को एक साक्षात्कार दिया जिसका प्रसारण सीएनएन द्वारा होगा, जो एमोरी विश्वविद्यालय की तरह, अटलांटा, जॉर्जिया, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित है। डॉ गुप्ता, जो यहाँ एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी के प्रसारण से संबंधित हैं, ने परम पावन से एक सच्ची मुस्कान के महत्व के विषय में प्रश्न करते हुए प्रारंभ किया।
परम पावन ने उत्तर देते हुए कहा, "कुछ अन्य प्राणी हो सकते हैं जो अपने ढंग से अपनी सौहार्दता अभिव्यक्त करते हैं, परन्तु मुस्कुराने की क्षमता मनुष्यों के लिए अनूठी जान पड़ती है। एक सामाजिक प्राणी के रूप में हमें मित्रों की आवश्यकता होती है। मैत्री विश्वास पर आधारित है और विश्वास बढ़ता है जब हम एक दूसरे के प्रति वास्तविक स्नेह प्रदर्शित करते हैं। यदि आप ईमानदार, सच्चे और दूसरों की सेवा कर रहे हों तो चाहे कुछ और ही क्यों न चल रहा हो, आप आत्मविश्वास का अनुभव कर सकते हैं।"
यह पूछे जाने पर कि यदि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, तो हम क्यों नहीं विश्व में इसे अधिक रूप में नहीं देख पाते, परम पावन ने उत्तर दिया कि, जब बच्चे पांच या छह वर्ष के होते हैं, वे भोले भाले और खुले दिल वाले होते हैं। वे राष्ट्रीयता, धर्म, जाति इत्यादि को लेकर चिंता नहीं करते। परन्तु जैसे जैसे वे एक भौतिकवादी समाज में बड़े होते हैं, उनके आधारभूत मानवीय मूल्य, जैसे करुणा, दूसरों के प्रति चिंता आदि की उपेक्षा जैसी होने लगती है और वे निष्क्रिय हो जाते हैं। क्रमशः वे दूसरों को धोखा देने और धमकाने लगते हैं और कई मामलों में उनकी हत्या तक कर देते हैं।
"संयुक्त राज्य अमेरिका में," परम पावन ने आगे कहा, "बढ़ती संख्या में शहर स्वयं को 'दया का शहर' या 'करुणा का शहर' के नाम से संबोधित करते हैं और बच्चों में इन गुणों को प्रोत्साहित करने के कार्यक्रम विकसित कर रहे हैं।
"भारत और अमेरिका में भी हम शिक्षा प्रणाली की मुख्यधारा में सार्वभौमिक मूल्यों को रखने के लिए एक मसौदे पाठ्यक्रम पर काम कर रहे हैं। हम कुछ स्कूलों इसे एक अग्रणी परियोजना के रूप में चलाने की योजना रखते हैं और यदि सकारात्मक परिणाम निकलें तो हम इसे और अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध कराएँगे।"
गुप्ता जानना चाहते थे कि परम पावन दलाई लामा के बारे में लोग और क्या जानना चाहेंगे जो वे पहले से नहीं जानते। परम पावन ने उनसे कहा कि वे स्वयं को एक साधारण बौद्ध भिक्षु समझते हैं, जो आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से एक है। उन्होंने इसे नकारा कि उनकी भूमिका उन्हें किसी भी प्रकार के दबाव में डालती है, परन्तु समझाया कि किस तरह उन्होंने विपश्यना को विकसित किया है जो क्रोध तथा मोह को अपने ऊपर हावी होने की कमियों का परीक्षण करती है, और किस तरह ये नकारात्मक भावनाएँ भ्रांत धारणा पर निर्भर होती हैं कि वस्तुओं में स्वभाव सत्ता होती है।
परम पावन ने समझाया बौद्ध धर्म में एक सृजनकर्ता ईश्वर की कोई भूमिका नहीं है और नालंदा आचार्य नागार्जुन और शांतिदेव, साथ ही तिब्बती विद्वान और आचार्य चोंखापा का उदाहरण दिया जिनका उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था। अंत में, उन्होंने सुझाव दिया कि आधुनिक विज्ञान बौद्ध विज्ञान से जो सीख सकता है का संबंध चित्त और भावनाओं के कार्यों का प्रश्न है, विशेष रूप से यह कि विनाशकारी भावनाओं से किस प्रकार निपटा जाए ।
लोसेललिंग सभागार में एमोरी - तिब्बत संगोष्ठी, बौद्ध धर्म और विज्ञान के मध्य सेतु बंधन पुनः प्रारंभ हुआ। चोनडु समफेल द्वारा संचालित तीसरा सत्र भौतिकी पर केन्द्रित का प्रश्न था कि ब्रह्मांड के मूल घटक क्या हैं और इसकी उत्पत्ति किस तरह हुई। एक दूसरे के साथ संबंध रखते हुए पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के आकार के विशद चित्र, साथ ही उनके बीच दूरी के साथ प्रारंभ कर डॉ क्रिस इम्पी ने प्रदर्शित किया कि किस तरह एक शिक्षक रोमांचक और साथ ही प्रभावी हो सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि हम आकाशगंगा को रात के खाने की थाली के आकार के रूप में सोचें तो ब्रह्मांड भारत के आकार का होगा।
यह समझाते हुए कि ब्रह्मांड और इसके भौतिक घटक 'बिग बैंग' के साथ १३.८ अरब वर्षों पूर्व अस्तित्व में आए थे, उन्होंने कहा कि ब्रह्मांड के सभी वर्तमान घटक उस समय अस्तित्व में थे। जबकि भौतिक जगत का मात्र ५% सामान्य वस्तुओं का बना है - प्रोटॉन, न्यूट्रॉन्स और इलेक्ट्रॉन, अन्य और २३% काले पदार्थ का होता है। यही है जो घन प्रदान करता है जो सभी आकाशगंगाओं को एक साथ धारण करता है। ब्रह्मांड के शेष ७२%, काली ऊर्जा है, जिसे अब तक अच्छी तरह से समझा नहीं गया है, यद्यपि वैज्ञानिकों की मान्यता है कि यही ब्रह्मांड का द्रुत गति विस्तार पैदा कर रहा है।
अपनी प्रस्तुति में, श्रद्धेय थबखे ने एक बौद्ध परिप्रेक्ष्य से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के कारण कारकों पर चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि बौद्ध धर्म एक निर्माता ईश्वर की आवश्यकता को स्वीकार नहीं करता। उन्होंने आगे कहा कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति में दो मुख्य कारक सामग्री थे, भौतिक जो विभिन्न कणों से मिलकर बने हैं और परिस्थितियों पर आधारित, सत्वों के संदर्भ में सामूहिक कर्म है जो गठन की प्रक्रिया प्रारंभ करता है। उन्होंने चार चरणों का उल्लेख कियाः निर्माण, बने रहना, विनाश और शून्य।
परम पावन ने कर्म के प्रकार्य और ब्रह्मांड के गठन में सूक्ष्म चित्त और ऊर्जा की भूमिका पर बाद की पैनल चर्चा में योगदान दिया। उन्होंने यह भी सिफारिश की, कि जो प्रायः भ्रमित रूप से तत्वों के रूप में जाना जाता है: पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु, जो अब 'स्रोत कणों' के रूप में जाना जाता है, यह अधिक सहायक होगा यदि उसे ठोस, तरल, उष्ण और चलन के संदर्भ में निर्दिष्ट किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि गति न केवल आकाश के माध्यम से है, पर गति समय के माध्यम से भी है।
मध्याह्न भोजनोपरांत संचालक, एर आइसन, ईटीएस कार्यक्रम के संस्थापक और जीव विज्ञान समूह के एक सदस्य ने चौथे सत्र की शुरुआत की, जो जीव विज्ञान पर केंद्रित था। वे जीवविज्ञानी स्कॉट गिल्बर्ट का परिचय कराते हुए खुश थे जिनके विषय में उन्होंने कहा कि वे एक महान वैज्ञानिक थे जिनकी पाठ्यपुस्तकों का उन्होंने एक छात्र और एक शिक्षक दोनों ही रूप में इस्तेमाल किया था। एक चूज़े की गर्भावस्था और मानव युग्मनज के चित्र के साथ, गिल्बर्ट ने निषेचन, अंग गठन और एकीकरण के दौरान प्रतीत्य समुत्पाद का वर्णन किया। उन्होंने समझाया कि किस प्रकार कोशिकाओं के दो वर्ग मिलते हैं और उनमें से प्रत्येक एक दूसरे के साथ व्यवहार से कार्यात्मक होता है। एक स्पष्ट उदाहरण आंख का विकास है जहां लेंस और रेटिना एक दूसरे के बनने में सहायक होते हैं।
ङवंग नोरबू ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति पर बौद्ध परिप्रेक्ष्य पर चर्चा करते हुए पूछा कि जीवन क्या है, पृथ्वी पर मानव जीवन की उत्पत्ति किस तरह हुई और भ्रूण विकास के चरण क्या हैं। उन्होंने कई कारकों को रेखांकित किया जो जीवन को पारिभाषित करते हैं, जिनमें प्रजनन की क्षमता, उत्तेजनाओं के प्रति प्रतिक्रिया, पोषण ग्रहण करना और मल को निकालना शामिल हैं।
बाद की चर्चाओं के दौरान जिनमें परम पावन ने भी भाग लिया, स्कॉट गिल्बर्ट ने कहा कि जीवन का अधिकांश भाग पारस्परिक रूप से साथ रहना है। उत्क्रांति पारम्परिक रूप से प्रतिस्पर्धा की विशिष्टता रखती है, परन्तु उन्होंने सुझाया कि जीवन ने संसार पर होड़ से नहीं अपितु सहयोग से कब्ज़ा किया है।
दिन की कार्यवाही के अंत में, परम पावन के एक प्रश्न के उत्तर में क्रिस्टोफ कोच ने एक चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति बताई कि पश्चिम में, और उनके सहयोगियों के बीच, बहुत कम लोग गंभीर रूप से अन्य जीव, पशु, पक्षियों और कीड़ों को चेतना युक्त मानते हैं। उन्होंने इसका कारण सृष्टि में निहित मनुष्य के विशेष स्थान की एक संभवतः धार्मिक रूप से निकली धारणा को उत्तरदायी ठहराया और पुष्टि की, कि यह विचार कि अन्य प्राणियों में भी चेतना है, कुछ नया है।