व्रोक्ला, पोलैंड, २० सितंबर २०१६ - परम पावन दलाई लामा का व्रोक्ला में पहला दिन टीवीएन के पियोत्र क्रास्को द्वारा एक साक्षात्कार के साथ प्रारंभ हुआ। बातचीत उनके मृत्यु से कोई भय न होने और उनके इस विचार कि पुद्गल अथवा धर्म नैरात्म्य के अनूठे बौद्ध अंतर्बोध से उनकी नकारात्मक भावनाओं में कमी आई थी, से संबंधित थी। उन्होंने यह विश्वास भी व्यक्त किया कि लाखों वर्षों में एक के बाद एक जीवन में किए गए अभ्यास द्वारा बुद्धत्व तक पहुँचना संभव है। उन्होंने कहा कि विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का प्रमुख संदेश प्रेम है।
हाल ही में दर्शाए सीरिया में मलबे से बचाए गए एक छोटे बालक के संबंध में एक प्रश्न ने उन्हें स्मरण कराया कि इस्लाम में नमाज़ दयालु और करुणाशील अल्लाह को संबोधित किया जाता है। उन्होंने दृढ़ता पूर्वक कहा कि जैसे कि अन्य धार्मिक परम्पराओं में है, कुरान का संदेश प्यार है। उन्होंने सूचित किया कि हाल ही में वे अफ्रीका और मध्य पूर्व के युवा लोगों से मिले थे, जिनमें से कुछ ने बम हमलों के तत्काल बाद यह निर्णय लिया था कि वे शांति के लिए स्वयं को समर्पित करेंगे।
परम पावन ने सुझाव दिया कि युवाओं को लड़ने और मारने के लिए प्रेरित किया जा सकता है जब उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि केवल एक ही सत्य है और एक ही आस्था है और ऐसे संसार में रहने का कोई अर्थ नहीं जहाँ कई सत्यों के अस्तित्व और आस्थाओं का बाहुल्य यथार्थ है। उन्होंने सलाह दी कि बल द्वारा लोगों को खत्म करने की बजाय उन तक पहुँचकर उनकी समस्याओं को सुनना अधिक प्रभावी होगा। उन्होंने सिफारिश की कि शिक्षा, जिसमें सार्वभौमिक मूल्य शामिल हों, एक बेहतर भविष्य को आकार देने का मार्ग है।
व्रोकला के पुराने शहर से होते हुए एक छोटे ड्राइव के बाद परम पावन को सिटी हॉल लाया गया, जहाँ महापौर राफाल डुटकाइविज़ के अनुरक्षण में उनका एक गुंबददार १३वीं सदी के कक्ष में एक कार्यक्रम में स्वागत किया गया। २०१६ में, व्रोक्ला, स्पेन के सैन सेबेस्टियन के साथ साथ संस्कृति का एक यूरोपीय केन्द्र है। आर्कबिशप जे कुपनी, पार्षदों, विश्वविद्यालयों के रेक्टरों, शहर के अधिकारियों, सांस्कृतिक संस्थानों के निदेशकों और व्रोक्ला के मानद नागरिकों सहित २०० अतिथियों के समक्ष महापौर ने परम पावन का परिचय कराया और उन्हें स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक उपहार प्रस्तुत किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंग के रूप में, मिस्र के एक समूह, ईरानी और कुर्द गायकों ने एक अत्यंत भावप्रवण प्रस्तुति रखी। नगर परिषद के अध्यक्ष जेसक ओस्सोवस्की ने इस विशेष अवसर पर उनके बीच परम पावन की उपस्थिति की सराहना की और संबोधित करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया। विनोदपूर्वक कहते हुए कि साधारणतया वे सम्मान भाव व्यक्त करने के लिए खड़े होकर बात करना पसंद करते हैं, पर इस अवसर पर कैमरामैन ने उनसे बैठने के लिए कहा था, परम पावन ने आरंभ किया:
"भाइयों और बहनों, मैं जहाँ भी जाता हूँ स्वयं को ७ अरबों मनुष्यों में से एक मानता हूँ। हम सभी शांति और आनंद चाहते हैं, पर हमें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें से कई हमारी अपनी बनाई हैं। जब हम राष्ट्रीयता, जाति, संस्कृति और धर्म की विभिन्नताओं पर बल देते हैं तो हम भूल जाते हैं कि एक गहन स्तर पर हम सभी समान रूप से मानव हैं। अतः मैं सदा मानवता की एकता और एकजुटता की हमारी आवश्यकता की पहचान पर बल देता हूँ। हमें शांति और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने हेतु एकजुटता की आवश्यकता है।
"एक बौद्ध भिक्षु के रूप में मैं आमतौर पर ऐन्द्रिक सुख जैसे संगीत आदि की ओर अधिक ध्यान नहीं देता, पर मैंने वास्तव में यहाँ इन गायकों के प्रदर्शन का आनन्द उठाया। उन्हें सुनते हुए मुझे लगा कि हमारे बीच एकजुटता की भावना लाई गई है, जो हमें मानवता की एकता का स्मरण कराता है और कि हमारी सभी धार्मिक परम्पराओं का संदेश प्रेम, सहिष्णुता, क्षमा और आत्मानुशासन है। यही कारण है कि मैं मानता हूँ कि दार्शनिक दृष्टिकोण में विभिन्नता के बावजूद हम सब आध्यात्मिक भाई और बहनें हैं।"
तत्पश्चात जाने माने पियानोवादक जनूज़ ओलेजनिज़ाक द्वारा शोपेन की मंत्रमुग्ध करती प्रस्तुति हुई, जो कानों व आँखों को मोहित करने वाली थी।
सिटी हॉल से किंचित दूरी पर परम पावन और महापौर ने व्रोक्ला के सिटी म्यूसियम का दौरा किया और यूरोप के अपरिचित पिता कार्डिनल कोमिनेक को समर्पित 'क्षमा और सुलह' पर एक प्रदर्शनी देखी। यात्रा के दौरान परम पावन ने स्कूली बच्चों के एक दल से बातचीत की। उनमें से एक युवा लड़के ने उनका अभिनन्दन ऑर्डर ऑफ स्माइल्स के प्राप्तकर्ता के रूप में की, एक पुरस्कार, जो बच्चों द्वारा प्रेम, संवेदनशीलता और बच्चों की सहायता के लिए प्रतिष्ठित वयस्कों को प्रदान किया जाता है, जो उन्हें १९९३ में मिली थी।
संग्रहालय के बाहर, परम पावन और महापौर दोनों ने संक्षिप्त भाषण दिए। परम पावन ने २०वीं सदी की बड़ी हिंसा का स्मरण करते हुए आग्रह किया कि यदि २१वीं सदी को अलग रूप रखना है तो भविष्य में समस्याओं का समाधान क्षमा तथा सुलह की भावनाओं के साथ सार्थक बातचीत के माध्यम से खोजा जाना चाहिए। उन्होंने दोहराया कि वह यूरोपीय संघ की भावना से कितने प्रभावित हैं, जो संकीर्ण राष्ट्रीय हितों के स्थान पर साझा हितों को ऊपर रखती है। उन्होंने अपने युवा श्रोताओं से पूछा:
"आप क्या सोचते हैं? यह आप युवा भाई और बहनें हैं, जो एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर सकते हैं और इससे आप ही लाभान्वित होंगे। मैं यह देखने के लिए जीवित रहने की आशा नहीं रखता।"
संग्रहालय में लौटकर जेसक ज़ाकोवस्की (पोलित्का) ने परम पावन का साक्षात्कार लिया और उनसे अपने एक शरणार्थी के रूप में जीवन की तुलना, उनसे करने को कहा, जो यूरोप में एक बड़ी संख्या में आ रहे थे। परम पावन ने जोर देकर कहा कि दीर्घकालिक समाधान उन स्थानों में शांति कायम करना है जहाँ से ये लोग पलायन कर रहे हैं। बच्चों को शिक्षा और युवाओं को प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जो जब वे अंततः अपने घर लौटेंगे तो अपने-अपने देशों के पुनर्निर्माण के लिए उन्हें लैस करेगा। उन्होंने संकेत किया कि तिब्बती शरणार्थियों की प्रार्थना व उद्देश्य सदा स्वदेश लौटने की है। यह पूछे जाने पर कि क्या यह शरणार्थियों की स्वाभाविक भावना है, परम पावन ने उत्तर दिया, "हाँ"।
उन्होंने बताया कि कि किस प्रकार १९५० दशक के मध्य से अंत तक तिब्बत में समस्याएँ बढ़ीं, जिसकी परिणति भारत पलायन और एक शरणार्थी बनने में हुई। उन्होंने दोहराया कि १९७४ से तिब्बतियों ने स्वतंत्रता की मांग न करने का निश्चय किया है और चीनी लेखकों और बुद्धिजीवियों के बीच उनके मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को मिले समर्थन की पुष्टि की।
ज़ाकोवस्की ने परम पावन के विचार से मुद्दा उठाया कि आतंकवादियों तक पहुँचना, उनकी बात सुनना और उन्हें तर्क देकर समझाना संभव होना चाहिए और कहा कि बहुत से लोगों को लगता है कि उन्हें मारना अपेक्षाकृत रूप से सरल है। "यदि आप १००,००० को मारो तो क्या उससे समस्या का समाधान होगा?" परम पावन ने प्रतिवाद किया। "क्या वह अधिक दुर्भावना नहीं उकसायेगी तथा और हिंसा नहीं भड़काएगी? हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए एक मानवीय समाधान खोजना है। जब वैज्ञानिक हमें बताते हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है, तो वह आशा का एक स्रोत है।"
पारंपरिक पोलिश पोड़ फ्रेड़ा रेस्तरां में मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन डिपो हिस्ट्री सेंटर का दौरा करने गए, जो केवल पाँच दिन पहले १९८० के एकजुटता विरोध के स्थान पर खुला था। उपस्थित २५० लोगों में अधिकांश छात्र थे, जिन्होंने परम पावन का स्वागत किया और अपने प्रश्न उनके समक्ष रखने से पूर्व उन्हें संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया।
"युवा भाइयों और बहनों, यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि एक मनुष्य के रूप में हममें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से क्या समानता है, क्योंकि आज मानवता को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हममें से कोई भी समस्या नहीं चाहता पर फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि हम अदूरदर्शिता के कारण, सम्पूर्ण वास्तविकता को देखें बिना मात्र एक पहलू पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमें अपनी बुद्धि का पूरा उपयोग कर एक व्यापक परिप्रेक्ष्य लेने की आवश्यकता है। हताश होने के स्थान पर अपने उत्साह को बनाए रख न्याय और स्वतंत्रता के लिए काम करना महत्वपूर्ण है।"
परम पावन ने उन्हें बताया कि वह व्रोक्ला पुनः आएंगे, क्योंकि उनके मित्र महापौर ने उन्हें आमंत्रित किया था। जिन लोगों ने उन्हें प्रभावित किया है उनमें उन्होंने एकजुटता के नेता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लेक वालेसा का उल्लेख किया, पर वैज्ञानिकों को भी शामिल किया। उन्होंने कहा कि उदाहरणार्थ यह वैज्ञानिक थे, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में चेताया था जो अब इस तरह का एक संकट बन गया है।
छात्रों और स्थानीय एकजुटता प्रतिनिधियों ने उन्हें उपहार भेंट किया और छात्रों ने उनसे स्मारक पुस्तिका में लिखने का अनुरोध किया। अपने होटल लौटने से पहले परम पावन ने श्रोताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाईं।