परम पावन 14 वें दलाई लामा
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दिल्ली में रूसी बौद्धों के लिए प्रवचनों का समापन २७/दिसम्बर/२०१६

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दिल्ली, भारत - इस वर्ष रूसी बौद्धों के प्रवचन के लिए कलमिकिया, बुर्यातिया, थूवा, रूस, मंगोलिया, तिब्बत, एस्टोनिया, यूक्रेन, कजाकिस्तान, किरगीज़िया, लिथुआनिया, बेलारूस और कई अन्य देशों से १३०० से अधिक लोग दिल्ली में एकत्रित हुए। आज प्रातः उनके साथ सम्मिलित होने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने रूसी टेलिवज़न चैनल १ की ओकसाना शेमलेवा को एक छोटा साक्षात्कार दिया।

उन्होंने उससे कहा कि विश्व में आज हमें परोपकारिता की एक बड़ी भावना को विकसित करने की आवश्यकता है।

"जिस ग्रंथ का पाठ मैं यहाँ अपने बौद्ध भाइयों और बहनों के साथ कर रहा हूँ वह इसे किस तरह करना है उसके निर्देशों के सबसे अच्छे स्रोतों में से एक है। हमें प्रज्ञा की भी आवश्यकता है। हमें वास्तविकता का विश्लेषण करने की आवश्यकता है और जिस तरह क्वांटम भौतिकी हमें बताता है कि वस्तुओं की कोई वस्तुनिष्ठ वास्तविकता नहीं है, भारतीय मध्यमक परम्परा हमें बताती है कि यद्यपि वस्तुएँ स्वतंत्र रूप से अस्तित्व रखती दिखाई पड़ती हैं, वैसा कुछ भी अस्तित्व में नहीं होता, जैसा दृश्य होता है वैसा कुछ भी अस्तित्व में नहीं होता। जो मुझे सुनने आते हैं मैं उन बौद्धों को सलाह देता हूँ कि उन्हें २१वीं सदी के बौद्ध होने की आवश्यकता है, यह समझ रखते हुए कि बुद्ध की देशनाएँ क्या हैं, मात्र विश्वास के आधार पर नहीं, कारण के आधार पर भी।"

शेमलेवा ने स्पष्ट किया कि रूस में लोग ताबीज रखना पसंद करते हैं और पूछा कि परम पावन लोगों को सुखी होने के लिए क्या सुझाव देते हैं। यह उत्तर देते हुए कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है, उन्होंने आगे कहा कि सच्चा आशीर्वाद भौतिक वस्तुओं के बजाय अपने हृदय से आता है।
"एक प्रसिद्ध तिब्बती अभ्यासी मिलारेपा, बिना किसी सम्पत्ति के एक भिखारी की तरह रहते थे। एक बार जब एक चोर रात में उनकी गुफा के अंदर घुसा तो वे हँसने लगे और उसे आवाज़ देते हुए कहा कि जब मैं दिन में कुछ खोज नहीं पाता तो तुमने यह किस तरह सोच लिया कि रात में तुम्हें कुछ मिलेगा? चित्त का विकास बाह्य आकर्षणों पर निर्भर नहीं करता। बुद्ध ने भी बिना किसी संपत्ति, यहाँ तक कि बिना जप माला के छह वर्ष गंभीर ध्यान में लगाए और बुद्धत्व प्राप्त की।

"बंबई का एक धनी परिवार एक बार मुझसे आशीर्वाद का अनुरोध करने के लिए मुझे देखने आया और मैंने उन्हें बताया कि अपने से बाहर आशीर्वाद ढूँढना भूल है जबकि वास्तविक आशीर्वाद आपके अपने हृदय में है। उन्होंने
सुझाया कि चूँकि वे समृद्ध थे तो उन्हें अपने धन का उपयोग बंबई की झुगी झोंपड़ियों में रहने वालों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए करना चाहिए। वह आशीर्वाद का एक वास्तविक स्रोत होगा।"

विश्व भर में उन्होंने जो मित्र बनाए हैं जैसे रूस के मिखाइल गोर्बाचेव उनके बारे में पूछे जाने पर, परम पावन ने उत्तर दिया कि वह अपने सभी मित्रों का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि एक इंसान के रूप में जो मित्र
उन्होंने बनाए हैं कि वे जीवन भर के मित्र हैं।

एक ऐसे विश्व में, जिसमें किसी का एक शेर या एक हाथी द्वारा मारा जाना समाचार बन जाता है, पर मानवों का एक दूसरे की हत्या करना कम आकर्षण का कारण बनता है। परम पावन ने कहा कि हमें अपने आप को स्मरण कराना है कि सभी ७ अरब मनुष्य हमारे भाई और बहनें हैं। ऐसा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ कुछ देशों को प्रभावित करती हैं और कुछ को नहीं, वे हम सभी को प्रभावित करती हैं। उन्होंने कहा कि मानवता की एकता को बढ़ावा देने के लिए हमें शिक्षा की आवश्यकता है। हम विस्मरित कर जाते हैं कि हम सब एक ही तरह से जन्म लेते हैं, तथा हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक ही समान हैं।

शेमलेवा ने कलमिकिया और थूवा में बौद्ध धर्म की स्थिति के बारे में पूछा। परम पावन ने समझाया कि चूँकि व्यक्तिगत रूप से वे रूस जाने में असमर्थ हैं, कुछ रूसी बौद्ध बुद्ध धर्म की उनकी व्याख्या सुनने के लिए उत्सुक हो भारत में उन्हें सुनने के लिए आए हैं। दूसरे, जो इतनी दूर आने में आर्थिक रूप से असमर्थ हैं वे लातविया आए हैं जहाँ इस वर्ष के प्रारंभ में उन्होंने धर्मकीर्ति के 'दिङ्नाग के प्रमाण समुच्चय पर भाष्य - प्रमाणवर्तिका' के दूसरे अध्याय पर प्रवचन दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने इस कठिन ग्रंथ का चयन किया था क्योंकि वह यह सुनकर प्रभावित हुए थे कि रूस में २०वीं सदी के पूर्वार्ध में रूसी अनुवाद का प्रयास किया गया था।

सभागार में अपना आसन ग्रहण करते हुए परम पावन ने समझाया कि मात्र ९ बजे हैं और ११ बजे तक प्रवचन द्वारा वे ग्रंथ को समाप्त करने तथा बोधिचित्तोत्पाद समारोह का नेतृत्व करने की आशा रखते हैं। तत्पश्चात समूहों को उनके साथ सामूहिक तस्वीर लेने का अवसर प्राप्त होगा, पर उन्होंने जोर देकर कहा कि 'हाथ से आशीर्वाद' नहीं होगा।

"एक वयोवृद्ध अमदो लामा थे," उन्होंने स्मरण किया, "जिन्हें प्रवचनार्थ कहीं आमंत्रित किया गया। उन्होंने निमंत्रण देने वालों से कहा कि वे वास्तव में बहुत वृद्ध हो चुके थे और आने में असमर्थ थे। अनुरोधकर्ताओं ने उत्तर दिया कि यदि वे प्रवचन के लिए नहीं आ सकते तो इतना भी पर्याप्त होगा यदि वे मात्र आशीर्वाद देने के लिए आएँ। इस प्रकार, वे हैरान हो गए जब लामा न केवल आए परन्तु उन्होंने एक व्यापक और गहन प्रवचन दिया। अंत में उन्होंने टिप्पणी कि, 'मैं इस तरह का लामा नहीं हूँ जो अन्य लोगों के सिर पर अपना दूषित हाथ रखे। मैं उस तरह का हूँ जो सिखाता है कि क्या अपनाया जाना चाहिए और क्या त्याज्य है, जो कम से कम किसी रूप में सहायक हो सकता है।"

परम पावन ने 'हृदय सूत्र' का उल्लेख किया और कि यह प्रज्ञा पारमिता के एक लघु सूत्रों में से एक है। उन्होंने समझाया कि किस तरह इस में निहित धारणी पाँच मार्गों को इंगित करती है। 'गते' संभार मार्ग को इंगित करता है। दूसरा 'गते' प्रयोग मार्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिस दौरान ध्यान और अंतर्दृष्टि का अभ्यास संयुक्त होता है। 'पारगते' दर्शन मार्ग को इंगित करता है जिसमें अभ्यासी शून्यता पर अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है और एक आर्य हो जाता है। 'पारसंगते' भावना मार्ग का प्रतीक है, 'बोधि', प्रबुद्धता का जबकि 'स्वाहा' आधार रखने का प्रतिनिधित्व करता है।

परम पावन उत्साह ने पूर्ण गति से 'बोधिसत्वचर्यावतार' के अध्याय ९ का पाठ पुनः प्रारंभ किया और बीच बीच में टिप्पणी के लिए रुकते हुए श्लोक ५४ पर रुके

चूंकि शून्यता प्रतिपक्ष है
क्लेश और अज्ञान के आवरण का
(तो) जो शीघ्र ही सर्वज्ञता का इच्छुक है
क्यों उस की भावना नहीं करता?

उन्होंने नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' के अध्याय २२ के प्रथम श्लोक को जिसका प्रयोग वे स्वयं करते हैं और उसे तथागत पर लागू करने के बजाय स्वयं पर करते हैं।

न ही स्कंध, न स्कंधों से पृथक
स्कंध उनमें नहीं और न ही वे स्कंध में हैं
तथागत स्कंध युक्त नहीं हैं
तो तथागत क्या है ?

उन्होंने टिप्पणी की कि वह इसे नैरात्म्य पर ध्यान करने का एक प्रभावी रूप पाते हैं।

उन्होंने जो ग्रंथ में पढ़ा उसने परम पावन से यह सूचना देने हेतु प्रेरित किया कि उन्होंने वैज्ञानिकों से पूछा है कि किस कदम पर कणों का संगठन किस चरण पर चेतना का आधार बनता है, पर अभी तक एक उन्हें एक पर्याप्त उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है। उन्होंने यह पूछने का भी स्मरण किया कि यदि एक सही गर्भ, एक सही अंडा और एक सही शुक्राणु एक साथ आते हैं तो एक चेतना स्वतः उत्पन्न होगी। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह नहीं होगा, पर कोई स्पष्टीकरण नहीं कि ऐसा क्यों है। बौद्ध लेखों का सुझाव है कि एक अतिरिक्त कारक - चेतना - उसमें आ जाती है।

एक बिंदु पर जहाँ वे 'प्रतीत्य समुत्पाद' की अभिव्यक्ति की व्याख्या कर रहे थे, उन्होंने टिप्पणी की कि 'प्रतीत्य' शून्यवाद के विचार का खंडन करता है, जबकि 'समुत्पाद' स्थायित्व के विचार का खंडन करता है ।

एक बार जब अध्याय ९ का पठन पूरा हो गया तो परम पावन ने अध्याय १० का द्रुत गति से पाठ किया जिसका संबंध परिणामना से है। पुस्तक को समाप्त कर वे प्रारंभ की ओर लौटे और औपचारिक रूप से प्रथम श्लोकों फिर से पढ़ा।

त्रिरत्न में शरण लेने और आधार के रूप में बोधिचित्तोत्पाद के लिए जाने माने श्लोक को लेते हुए परम पावन ने बोधिचित्तोत्पाद का एक संक्षिप्त समारोह के रूप में श्रोताओं का नेतृत्व किया। उन्होंने स्मरण कराया कि इस समय जो चित्त हमारे पास है वह बुद्ध का चित्त बन सकता है। उन्होंने अंतिम टिप्पणी करने से पहले बुद्ध का उद्बोधन करते हुए अवलोकितेश्वर, मंजुश्री और आर्य तारा के मंत्रों का संचरण दिया।

"इस पुस्तक को जब भी समय मिले, पढ़ें और इसका अध्ययन करें। यदि आप ऐसा करें तो आप पाएँगे कि वर्ष दर वर्ष में आप धीरे-धीरे और अधिक आराम और शांत हो जाएँगे। मैं लातविया में पुनः आप में से कुछ लोगों से भेंट करने की आशा करता हूँ।"

कल परम पावन बोधगया की यात्रा करेंगे, जहाँ वे ३४वीं बार कालचक्र अभिषेक प्रदान करेंगे।

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