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परम पावन दलाई लामा के सम्मान में शिवाछेल (शान्तिवन) में एक विदाई मध्याह्न भोज २४/अगस्त/२०१६

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लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत, २४ अगस्त २०१६ - इस वर्ष परम पावन दलाई लामा के लद्दाख की यात्रा के अंतिम दिन लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (एलबीए) ने उनके सम्मान में शिवाछेल (शान्तिवन) स्थल पर एक अलंकृत शामियाने में मध्याह्न भोज का आयोजन किया, जहाँ उन्होंने हाल ही में प्रवचन दिए थे। सभी लद्दाखी बौद्ध परम्पराओं के वरिष्ठ सदस्य, जिनमें गदेन ठिपा रिज़ोंग रिनपोछे और ठिकसे रिनपोछे सहित एलएडीएचसी के परिषद सदस्य, डॉ सोनम दावा (सीईसी, एलएडीएचसी), जोरा रिगजिन (विधायक, जम्मू और कश्मीर राज्य) और अन्य गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए।

 

एलबीए के अध्यक्ष श्री ठिनले दोरजी ने परम पावन के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा "एक बार पुनः इस भोज में हमें परम पावन दलाई लामा की उपस्थिति का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। इसके बाद भी परम पावन के दर्शन की हमारी तृष्णा कभी शांत नहीं होती। अतः मैं प्रार्थना करता हूँ कि परम पावन भविष्य में भी हमसे मिलने बार बार आएँ।"
पारम्परिक लद्दाखी संगीत प्रदर्शनों के उपरांत, जिसका सभी ने आनंद उठाया, परम पावन ने उत्तर दियाः

"गीत और नृत्य प्रदर्शन, जिन्होंने हमारा मनोरंजन किया है, वे सुनने के भेंट थे। कलाकारों द्वारा पहनी पारंपरिक वेश भूषाएँ देखने की भेंट थे। परन्तु लद्दाख बौद्ध संघ द्वारा प्रदान किया जा रहा समार्पण सूंघने और चखने के लिए है, जिसकी मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ।" और सभी हँस पड़े।

"यह एक राजनीतिक सभा नहीं है, यह एक आध्यात्मिक प्रकृति का है, जिसमें गुरु - शिष्य, आपके और मेरे बीच का संबंध है। यद्यपि मुझे "दलाई लामा" कहकर संबोधित किया जाता है पर यह मात्र एक परिपाटी है जिसे हमने बनाया है। मैं अपने आपको कुछ विशिष्ट नहीं मानता। तथ्य यह है कि मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ, जिसने बुद्ध की देशनाओं के त्रिपिटकों का अध्ययन किया है, जिसने एक लंबे समय से तीन अधिशिक्षाओं को व्यवहृत किया है। इसलिए जो मैं सदा स्मरण रखता हूँ वह यह कि मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ और नालंदा आचार्यों का अनुयायी हूँ।

"आपने मेरे सम्मान में इस मध्याह्न भोज की व्यवस्था की है, परन्तु अपने आध्यात्मिक गुरु के लिए प्रमुख समर्पण आपके धर्म का अभ्यास होना चाहिए। जो मैं जानता हूँ और जो मैंने आपके साथ अनुभव किया है वह मैंने आपके साथ साझा किया है। आपने जो समझा है उसे आपको अभ्यास के समर्पण के रूप में कार्यान्वित करना चाहिए।"


परम पावन ने घोषणा की कि पहली बार जब से वह १९६० के दशक में लद्दाख में आए उन्होंने पाया है कि लोगों में भक्ति है और वे उनकी सलाह को लेकर जागरूक हैं। इसलिए लोगों की सेवा तथा बुद्ध की शिक्षाएँ देने के लिए वह हर वर्ष लौटने के विचार को लेकर प्रसन्न हैं। परिणामस्वरूप उनसे किए गए अनुरोधों को स्वीकार करते हुए वे अगले वर्ष नुब्रा और थोरथुक की यात्रा की योजना रखते हैं।

परम पावन ने उल्लेख किया कि वे विगत कई दशकों से धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा,

"मैं यह देखकर खुश हूँ कि लद्दाख में धार्मिक सद्भाव पनपता है। पर फिर भी, यह मेरा उत्तरदायित्व है कि मैं आपको इसमें और भी अधिक प्रयास डालने हेतु प्रोत्साहित करूँ। यह देखकर मैं वास्तव में खुश हूँ कि लद्दाख में न केवल शिया और सुन्नी मुस्लिम समदायों के बीच के संबंधों में निकटता हैं परन्तु मुसलमानों और बौद्धों की आपसी संबंध भी सौहार्दपूर्ण हैं। मैं इसकी प्रशंसा करता हूँ और इसे बढ़ाने के लिए जो मुझ से बन पड़े वह करता हूँ।"

कारगिल में मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के उनके समुदायों की आपसी समझ और मैत्री में सुधार करने के सहयोग के लिए उनके प्रयास के बारे में लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन की रिपोर्ट का स्मरण करते हुए परम पावन ने उन्हें बताया कि उन्होंने अच्छा कार्य किया था, परन्तु उन्हें उस अच्छे कार्य को बरकरार रखना चाहिए।

परम पावन ने पारम्परिक ढोल वादक तथा संगीतकार बेदा समुदाय, जो लद्दाखी समारोहों में बजाते हैं, के विषय में पूछताछ की जिनको भेदभाव का सामना करना पड़ा है। उन्होंने बुद्ध के कथन को उद्धृत करते हुए कहाः

"मेरी शिक्षाओं में वंश और वंशज महत्वपूर्ण नहीं हैं। धर्म का अभ्यास उससे अधिक महत्वपूर्ण है।"


"जाति के आधार पर लोगों के खिलाफ भेदभाव करना गलत है," परम पावन ने बल देते हुए कहा। "भले ही इसमें लम्बे समय से चली आ रही स्थानीय रीति रिवाज़ और परम्पराएँ शामिल हों, हमें शिक्षा के माध्यम से इन व्यवहारों में परिवर्तन लाना होगा। आज के विश्व में इस तरह के भेद-भाव अब और स्वीकार्य नहीं हैं। मैं जाति के आधार पर भेदभाव का विरोध करता हूँ। मैं इसकी आलोचना करता हूँ और यहाँ भारत में हिन्दू धार्मिक नेताओं से अपील करता हूँ कि वे इस ओर उदासीन न हों, परन्तु परिवर्तन लाने के लिए कदम उठाएँ। जाति पर आधारित भेदभाव पर काबू पाना केवल राजनेताओं की चिन्ता का विषय नहीं बल्कि धार्मिक नेताओं को भी इस ओर पहल करनी चाहिए।"

यह स्मरण दिलाने पर कि भोजन तैयार था, परम पावन ने टिप्पणी की, "निस्सन्देह जिस मुख्य कारण के लिए हम यहाँ एकत्रित हुए हैं वह भोजन करना है। चलिए इसका आनंद लें।"

भोजनोपरांत एक लघु प्रश्नोत्तर सत्र के बाद, परम पावन उन लोगों की ओर देख हाथ हिलाते हुए, जो उनकी एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़े थे, गाड़ी से अपने निवास लौटे। कल परम पावन धर्मशाला लौटेंगे। 

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