परम पावन 14 वें दलाई लामा
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माइंड एंड लाइफ यूरोप - पॉवर एंड केयर - पहला दिन ९/सितम्बर/२०१६

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ब्रसेल्स, बेल्जियम, ९ सितंबर २०१६ - आज प्रातः ब्रसेल्स की सड़कों पर अभी भी चुप्पी सधी थी जब परम पावन दलाई लामा बोज़र ललित कला केन्द्र के लिए गाड़ी से निकले। जिस मार्ग से वे गए, वह भव्य सरकारी भवनों, विभिन्न अलंकृत गिरजाघरों और रॉयल स्क्वायर में क्रांतिकारी बोइओं के गोडफ्राइड की प्रभावशाली अश्वारोही प्रतिमा से होते हुए निकला। गाड़ी से चलकर बोज़र सेंटर होते हुए हेनरी ले बोइफ सभागार पहुँचने पर पुराने मित्र, शुभचिंतक और जनता के सदस्य उनसे बातचीत करने के लिए आगे आए।


जब परम पावन, पहले सत्र के पैनल सदस्यों, साथ ही १९०० श्रोताओं ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया तो माइंड एंड लाइफ यूरोप के प्रबंध निदेशक सेंडर टाइडमेन ने ३१ माइंड एंड लाइफ संवाद में उनका स्वागत किया, जो कि यूरोप की राजधानी ब्रसेल्स में पहली बार हो रहा है। उन्होंने उन सभी के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होंने कार्यक्रम के आयोजन में योगदान दिया था, विशेष रूप से स्वयंसेवक। अपने स्वागत भाषण में युनिवर्सिटे लिबरे दे ब्रक्सेल्स (यूएलबी) के अध्यक्ष पियरे गुरज्ञन ने सुझाव दिया कि सम्मेलन के विषय पावर और केयर का एक पहलू नेतृत्व था और टिप्पणी की कि जो लोग दुनिया को बदलना चाहते हैं, वे नेता हैं।

प्रातःकालीन सत्र के संचालक, श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड ने कहा कि पॉवर एंड केयर (शक्ति व देखभाल) के बीच संबंधों की जानकारी प्राप्त करने के लिए तीन दिन थे, जिस दौरान उन्होंने आशा व्यक्त की, कि इन दोनों के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना संभव होगा। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर फ्रांज दे वाल को आचारविज्ञान शीर्षक के तहत विचार विमर्श का प्रारंभ करने के लिए आमंत्रित किया। दे वाल ने चिम्पांजी और बोनोबो के करीबी अध्ययन से शक्ति और प्रभुत्व के संबंधों के बारे में जो कुछ जाना है, उस पर बात की। उन्होंने मनोरंजक रूप से चित्रों द्वारा जाने माने नेताओं की तुलना प्रभावी पुरुष के द्विपाद अकड़ और विनम्र के झुकने की पहचान से की। दे वाल ने बताया कि प्रभावी नर चिंपांज़ी या बोनोबो के नेतृत्व में पॉवर एंड केयर का एक संयोजन हो सकता है, क्योंकि विभिन्न तरीकों में से जो तरीका वह अपनाता है वह दल में झगड़ों को समाप्त करना है। और जहाँ सांत्वना आम तौर पर मादाओं के साथ जुड़ी है, प्रभावी नर इस में भी प्रतिभा दिखाते हैं।

टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर, परम पावन ने उत्तर दियाः
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"मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि मैं इस माइंड एंड लाइफ बैठक में सम्मिलित हूँ और इसे कार्यान्वित करने में जो प्रयास लगा है मैं उसकी सराहना करता हूँ। हम विगत ३० से अधिक वर्षों से इस तरह की बैठकें कर रहे हैं और मैं फ्रांसिस्को वरेला को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूँगा जो प्रारंभिक प्रेरित प्रतिभागी थे। १९७३ में यूरोप की अपनी प्रथम यात्रा के दौरान मुझे यह अनुभव होने लगा कि जहाँ इन देशों में से कई अत्यधिक विकसित देश थे, पर उनके सभी निवासी सुखी न थे। वे बहुत अधिक तनाव और प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे थे। भौतिक विकास शारीरिक सुख प्रदान करता है, परन्तु चित्त को सहज नहीं करता। मैंने सोचा कि अपनी निजी आस्था के बावजूद, आंतरिक शांति की स्थापना करने के लिए उपायों को साझा करने से एक बेहतर विश्व को बनाने में सहयोग मिल सकता है। उस समय हमारे विहारीय समुदाय द्वारा मुझे आगाह किया गया था जिन्हें भय था कि विज्ञान हमारी परम्पराओं को बाधित करेगा और पाश्चात्य मित्र जिन्होंने चेताया कि विज्ञान धर्म का नाश करता है। पर हम आगे बढ़े, अपने विचार विमर्श प्रारंभ किए और अब यहाँ यूरोप में हैं।"

परम पावन ने यूरोप में अतीत में हुए संघर्ष की बात की, जिसकी परिणति दो विश्व युद्धों की हिंसा और विनाश में हुई। इसकी पृष्ठभूमि में यूरोपीय संघ का गठन एक अच्छा विचार और परिपक्वता की निशानी थी। उन्होंने अपने समय के एक भौतिक विज्ञान शिक्षक, कार्ल फ्रेडरिक वॉन वाइज़ेकर को उद्धृत किया जिन्होंने उन्हें बताया था कि उनके बचपन में फ्रांसिसियों के लिए हर जर्मन दुश्मन था और हर जर्मन के लिए फ्रांसिसी इसी तरह की भावना रखते थे पर अब ऐसा नहीं है। यह बदल गया है।

उन्होंने माइंड एंड लाइफ न केवल भौतिक विकास बल्कि उसके साथ जुड़ी आंतरिक मूल्यों पर ध्यान देने के लिए प्रशंसा की। जिस परिणाम को देखने की वे आशा रखते हैं वह व्यापक शारीरिक सुस्वास्थ्य तथा आंतरिक शांति है। उन्होंने इंगित किया कि न केवल जो धर्म में विश्वास करते हैं उन्हें प्रेम व करुणा की आवश्यकता है - पर हम सबको है। यद्यपि चिम्पांजी का अध्ययन हमें मानव व्यवहार के बारे में कुछ बता सकता है, पर इसको लेकर परम पावन शंकाकुल हैं कि वह मानव बुद्धि के विषय  में क्या बता सकता है , जिसका दुरुपयोग  संघर्ष को जन्म देता है ।

प्रोफेसर एम सारा ब्लेफर ह्रदे ने नृविज्ञान शीर्षक के अंतर्गत शिशुओं के पोषण के विभिन्न उपायों का परीक्षण किया। जहाँ संभव है कि एक चिंपांज़ी माँ उसके शिशु के पहले चार महीनों में उसके साथ स्पर्श संपर्क नहीं तोड़ती हो, परन्तु कुछ मानव शिकारियों के बीच नवजात शिशुओं की देखभाल उनके जन्म के तुरन्त बाद दूसरों द्वारा की जाती है। अंतर यह है कि मनुष्य जानते हैं कि यदि बच्चे को जीवित रहना है तो दूसरों की सहायता आवश्यक है। एक मानव शिशु १५ साल तक निर्भर रह सकता है जिस दौरान माताओं को बहुत सहायता प्राप्त होती है।

परम पावन ने उल्लेख किया कि एक बात जिन्हें वे समझ नहीं पाए हैं कि जहाँ मानव माताएँ करुणाशील होती हैं और उनका अपनी सन्तानों के साथ एक बंधन होता है, मादा कछुए रेत में अपने अंडे देती हैं और जब अंडों से बच्चे निकलते हैं तो वे नहीं होतीं। नन्हें कछुओं और उनके अनुपस्थित माताओं के बीच स्नेह का कोई बंधन नहीं होता।

उन्होंने दोहराया कि वैज्ञानिक निष्कर्ष, कि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है आशा का एक स्रोत है। इसका अर्थ यह है कि यदि हम प्रयास करें तो हम सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों की स्वाभाविक उन्मुक्तता जो अपने साथ खेल रहे बच्चों के साथ सतही मतभेदों की परवाह नहीं करते, एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था, जिसमें आंतरिक मूल्यों के लिए कोई स्थान नहीं है, की अपर्याप्तता के कारण प्रायः उनके वयस्क हो जाने पर नहीं बची रहती।


पारिस्थितिकीय के संबंध में, प्रोफेसर योहान रोकस्ट्रम ने समझाया कि हमने गलत मान्यताओं पर अपनी अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण किया है। हमने मान लिया कि हम एक बड़े ग्रह पर एक छोटा विश्व हैं, जबकि हम एक छोटे से ग्रह पर एक बड़ा विश्व बन गए हैं। यद्यपि १९९० तक ऐसा प्रतीत हुआ कि ग्रह हमें झेलने में सक्षम है, पर अब हम विनाश के कगार पर हैं। एक आशावादी स्वर में उन्होंने इंगित किया कि ओजोन रिक्तीकरण के संबंध में कार्रवाई की गई और क्षति की मरम्मत हो गई - अब हमें एक जीवाश्म ईंधन मुक्त भविष्य स्थापित करने की आवश्यकता है।

ध्यान तथा लगन से सुनते हुए परम पावन की टिप्पणी थी "अद्भुत, धन्यवाद," और बैठक मध्याह्न भोजन के लिए स्थगित हो गई।

मध्याह्न का सत्,र जिसका संचालन रोशी जोआन हैलिफ़ैक्स ने किया वह मनोविज्ञान, एन्डोक्रनालजी (अंतःस्त्राविका) और तंत्रिका विज्ञान पर केंद्रित था। प्रोफेसर डॉ एलेक्जेंड्रा फ्राइंड ने शक्तिशाली लोगों के बीच अंतर बताते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने सुझाया कि यदि कोई किसी से वास्तव में कोई शक्तिशाली नाम पूछे तो लोग हिटलर या माओ का उल्लेख कर सकते हैं। परन्तु उन्होंने सुझाया कि अंग्रेजों से सत्ता लेकर इसे भारत के लोगों के लिए पहुँचाने में महात्मा गांधी ने शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से महान शक्ति का प्रयोग किया। उन्होंने सत्ता के उद्देश्य के बारे में बात की और लक्ष्य का संदर्भ दिया जिसकी ओर आप अपने प्रयासों को निर्देशित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सत्ता का संबंध लोगों पर प्रभाव डालने से है, फिर चाहे वह लोगों पर हो अथवा पर्यावरण पर और हम सत्ता के अंधकारयुक्त और उज्जवल पक्ष में अंतर कर सकते हैं।

एन्डोक्रनालजी (अंतःस्त्राविका) विषय के संबंध में प्रोफेसर डॉ मार्कस हाइनरिक्स ने ऑक्सीटोसिन, टेस्टोस्टेरोन और कोर्टिज़ोन जैसे हार्मोन के प्रभाव के बारे में बात की। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ऑक्सीटोसिन एयर कंडीशनिंग प्रणाली या नाक स्प्रे के माध्यम से 'प्रेम हार्मोन' का वितरण विश्व को परिवर्तित नहीं कर सकता।

न्यूरो साइंटिस्ट, प्रोफेसर डॉ तानिया सिंगर ने शक्ति और देखभाल के संबंध में उनके कार्य से संबंधित निष्कर्षों की बात की, जो उन्होंने उन लोगों के साथ की थी जो देखभाल व करुणा में धर्मनिरपेक्ष ध्यान प्रशिक्षण ले रहे थे। उन्होंने कहा कि लोग केवल आयु के साथ और अधिक करुणाशील नहीं हो जाते। प्रशिक्षण के माध्यम से करुणा के साथ संलग्न होना आवश्यक है और इसमें प्रयास शामिल है। और तो और यह सर्वरोग निवारण करने वाला नहीं है, ध्यान का प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि आप क्या ध्यान कर रहे हैं। तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में हाल के निष्कर्ष बताते हैं कि परोपकारिता और करुणा को वास्तव में प्रशिक्षण के माध्यम से विकसित किया जा सकता है, जो मस्तिष्क लचीलेपन तथा सकारात्मक सामाजिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है।


प्रोफेसर डॉ रिचर्ड श्वार्ट्ज एक मनोचिकित्सक हैं, जो परिवार व्यवस्थाओं में कार्य करते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि विनाशकारी भावनाएँ प्रायः शक्ति तथा देखभाल की अभिव्यक्ति है जो चरम हो गई है। उन्होंने अपने मरीज़ की अपनी पूर्व पत्नी की हत्या करने के आवेग की चिंता से श्रोताओं को उत्सुकता से भर दिया। वह रोगी इससे जूझता रहा और इस तरह की जांच करने से बचता रहा कि वह इस तरह का अनुभव क्यों करता है। पर जब अंततः उसे ऐसा करने के लिए मना लिया गया, तो उसने असहायता की भावना के भय को पहचाना जिसका संबंध उसके बाल्यकाल की एक घटना से थी। डॉ श्वार्ट्ज ने समाप्त कियाः

"मेरा संदेश है कि हम अपने आंतरिक दुश्मनों को उसी देखभाल और करुणा से संबोधित करें, जो परम पावन हमें अपने बाहरी दुश्मनों के साथ करने की सलाह देते हैं।"

अपने समापन टिप्पणी में परम पावन ने कहा:

"मैं लोगों द्वारा चित्त और भावनाओं में ली जा रही रुचि की सराहना करता हूँ। यह एक अच्छा प्रारंभ है। मैंने आज प्रातः उल्लेख किया कि वास्तविक कठिनाइयों को निर्मित करने वाले हमारे अपने चित्त में हैं। यदि आप में आंतरिक शांति है, तो बाहरी समस्याएँ आपके चित्त को व्याकुल नहीं करेंगी। संभवतः आप अपनी पीड़ा को संभालने में भी सक्षम हो सकते हैं। जब ध्यान की बात आती है तो शमथ ध्यान अथवा मात्र जागरूकता के विपरीत विश्लेषणात्मक ध्यान के लिए बुद्धि को काम में लाने की आवश्यकता होती है।

"जहाँ तक करुणा के विकास का संबंध है, हम सब में एक आधारभूत जैविक प्रतिक्रिया है, जो हमें छोटे बच्चों के रूप में प्राप्त हुए स्नेह से निकली है जिस पर निर्माण किया जा सकता है। तानिया सिंगर ने पूछा कि क्या इसके विकास का क्रम है और ऐसा है। साधारणतया हम उपेक्खा की भावना के विकास के द्वारा प्रारंभ करते हैं।

"हममें से कोई भी समस्या नहीं चाहता पर फिर भी हम अपने लिए इतनी सारी समस्याएँ पैदा कर लेते है। यदि हम बदलना चाहें तो हम कहाँ शुरू करें? सरकार या बड़ी संस्थानों के साथ नहीं, अपितु व्यक्ति के रूप में स्वयं से। अपने चित्त का रूपांतरण करते हुए और आंतरिक मूल्यों को विकसित करते हुए, हम स्वयं को परिवर्तित कर सकते हैं, हमारे परिवारों और समुदायों को प्रभावित कर सकते हैं और इस प्रकार मानवता में परिवर्तन ला सकते हैं। स्वयं के साथ प्रारंभ कर हमें करुणा को हमारे नित्य प्रति जीवन का एक अंग बनाना चाहिए।"

सम्मेलन कल जारी रहेगा जिसमें सत्रों में आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं और अर्थशास्त्र और समाज से दृष्टिकोण का अवलोकन किया जाएगा।

 

 

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