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चिल्डर्न इन क्रासफायर द्वारा 'हृदय को शिक्षित करने' पर चर्चा ११/सितम्बर/२०१७

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डेरी, उत्तरी आयरलैंड, यूके, एक धुंधली, गीली सुबह में परम पावन दलाई लामा ने अपने मेजबान रिचर्ड मूर के साथ प्रेस के सदस्यों से भेंट की। एक संक्षिप्त औपचारिक परिचय के उपरांत उन्होंने प्रेस की भूमिका और अपनी स्वयं की भूमिका के संबंध में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया।

 "आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में लोगों को शिक्षित करने और उन्हें सूचित करने में मीडिया की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। जब मैं चीनी मित्रों से मिलता हूँ तो मैं उन्हें बताता हूँ कि १.३ अरब चीनियों को यह जानने का अधिकार है कि क्या हो रहा है और एक बार वे जान जाएँ तो उनमें सही और गलत के निर्णय की क्षमता है। इस तरह जिस तरह की सेंसर व्यवस्था का वे सामना कर रहे हैं वह नैतिक रूप से गलत है। एक स्वतंत्र देश में, मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 "मेरी तीन प्रमुख प्रतिबद्धताएँ हैं। मैं केवल एक मनुष्य हूँ, पर मेरा मानना है कि हममें से हर एक का उत्तरदायित्व बनता है कि वह एक खुशहाल मानवता में योगदान करे। मैं मानव मूल्यों को बढ़ावा देने हेतु प्रतिबद्ध हूँ। एक बौद्ध भिक्षु होने के नाते मैं अंतर्धार्मिक सद्भाव के लिए भी समर्पित हूँ। तिब्बती के रूप में, मैं तिब्बती बौद्ध संस्कृति को संरक्षित करने और साथ ही तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण और पारिस्थितिकी की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हूँ।"

 परम पावन से पूछे गए इस एक प्रश्न के साथ प्रश्नों के क्रम प्रारंभ हुए कि यदि उनकी कोई एक इच्छा हो तो वह क्या होगी और ऐसा क्या जो उन्हें दुखी करता है। उन्होंने उत्तर दिया कि वह एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व, कम संघर्ष और मानव जीवन में शस्त्रों की भूमिका को कम हुआ देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि शांति वास्तव में मात्र संवाद से निर्मित हो सकती है। उन्होंने यमन में स्थिति का उदाहरण दिया और बर्मा में जो रोहिंग्या के साथ हो रहा है, ये बातें उन्हें दुखी करती हैं, क्योंकि दोनों ही मानव निर्मित पीड़ा के विषय हैं जिनका मानवीय समाधान है।

 उत्तरी आयरलैंड शांति प्रक्रिया के बारे में उन्होंने घोषित किया कि प्रत्येक देश उनके लोगों का होता है अतः शांति प्रक्रिया का क्या होता है, यह भी लोगों पर निर्भर करेगा।

 उन्होंने रिचर्ड मूर को हमारे लिए एक उदाहरण के रूप में वर्णित किया "जहाँ मैं केवल बोलता हूँ, वह वास्तव में करुणा को कार्य में ढालने में लगे हैं। और यह उस त्रासदी को जो उन पर टूट पड़ी थी, अन्य बच्चों के लिए कुछ हितकारी रूप में रूपांतरित करने में है।"

 इस बात पर बोलने के लिए बल दिए जाने पर कि वे उत्तर कोरिया के संकट में उलझे लोगों को किस तरह की सलाह देंगे, उन्होंने टिप्पणी की, कि चूँकि वह इस बात को लेकर निश्चित नहीं थे कि उससे संबंधित लोगों ने अपने सामान्य ज्ञान का प्रयोग किया था, उनके लिए सलाह देना कठिन होगा। परन्तु उन्होंने कहा कि पुतिन द्वारा बातचीत करने की आवश्यकता पर बल देना उचित था। बल के और अधिक प्रदर्शन से समस्या का समाधान नहीं होगा, पर संभवतः परिणामस्वरूप दक्षिण कोरिया और जापान और पीड़ित होंगे।

 "आणविक शस्त्रों का उपयोग अचिन्तनीय है। हमें गंभीरता से परमाणु मुक्त विश्व की प्राप्ति का लक्ष्य रखना चाहिए। वास्तव में हमारा दीर्घकालिक लक्ष्य एक विसैन्यीकृत विश्व होना चाहिए। यह मुझे मेरे अपने जीवनकाल में देखने की आशा नहीं है, पर हमें इसे अपना लक्ष्य बनाना चाहिए।"

 चिल्डर्न इन क्रासफायर की पहल में परम पावन के समर्थन के महत्व को दर्शाते हुए, रिचर्ड मूर ने समझाया कि आज के सम्मेलन का विषय - 'हृदय को शिक्षित करना' २०११ में परम पावन की टिप्पणियों से सीधे उभरा था। उन्होंने आगे कहा कि वे उस समय की आशा कर रहे थे जब चिल्डर्न इन क्रासफायर की कोई आवश्यकता न होगी पर इस बीच इसका उद्देश्य पीड़ा को कम करना है ताकि बच्चों को स्वयं के लिए अपने जीवन को बेहतर बनाने का अवसर मिल सके। उन्होंने उनकी मैत्री और सहयोग के लिए परम पावन के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

 परम पावन ने सम्मेलन में भाग लेने के लिए मिलेनियम फोरम जाने से पहले कई पत्रकारों के साथ हाथ मिलाया। कार्यक्रम का परिचय देते हुए रिचर्ड मूर ने बताया कि क्रॉसफ़ायर की बीसवीं वर्षगांठ पर बच्चों के समारोह की योजना कुछ समय से चली आ रही थी। तंजानिया और इथियोपिया में अपने दस वर्ष की भागीदारी में, इसने विद्यालय से पूर्व की शिक्षा और बेहतर प्रशिक्षित शिक्षकों के महत्व की आवश्यकता का अनुभव किया है।

 अपने संबोधन में, परम पावन ने स्मरण किया कि अपने जन्म के समय से ही उन्होंने निरंतर हिंसा का चक्र देखा है, चीन-जापान के संघर्ष के प्रारंभ से, द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर हाल के इराक और अफगानिस्तान के संकट तक।

 उन्होंने कहा "सम्प्रति विश्व के बारे में चिन्तन करते हुए, यद्यपि आधारभूत प्रकृति करुणाशील है फिर भी हमारे इतने अधिक दुःख हैं जो हमारी अपनी निर्मिति हैं। क्यूं? क्योंकि मानवीय मूल्यों की ओर उचित ध्यान देने में हमारी शिक्षा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। जब हम मोह व क्रोध के बहाव में होते हैं तो हम व्याकुल होते हैं और अपनी बुद्धि का उचित प्रयोग करने में असमर्थ होते हैं। अतः हमें अपने चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य के स्पष्ट समझ की आवश्यकता है।

 "अब तक, एशिया ने पश्चिम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विषय में सीखा है, पर अब पश्चिम को भी एशिया से चित्त के विषय में सीखने की संभावना है। जो स्पष्ट है वह यह कि मात्र तकनीकी विकास चित्त की शांति सुनिश्चित करने में विफल है। अतः हमें आधुनिक शिक्षा को और अधिक समग्र बनाना चाहिए।

 "विगत शताब्दी, अपनी सभी उपलब्धियों के बावजूद हिंसा से भरी थी। जैसा कि मैंने अभी प्रेस से कहा, हमारा उद्देश्य एक विसैन्यीकृत विश्व होना चाहिए पर फिर भी हम अतिरिक्त शस्त्र का उत्पादन करते हैं और उन्हें बेचते हैं। मध्य पूर्व और कोरियाई प्रायद्वीप में संघर्ष भावनाओं और एक ऐसे विचार में उलझा हुआ है कि मात्र बल प्रयोग से समस्याओं का समाधान निकल सकता है। हमारा यह उत्तरदायित्व बनता है कि आज जो युवा हैं, जो भविष्य की पीढ़ी है, उन्हें सूचित करें कि यह पुरानी सोच तारीख से परे है। परन्तु यदि वे इस समय अभी एक अलग दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास करें तो भविष्य में एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व उभर सकता है। मुझे यह देखने की आशा नहीं है, पर फिर भी मैं उन पर दृष्टि रखूँगा।"

 सभा से प्रश्न आमंत्रित किए गए थे और पहले प्रश्न में यह सुझाव भी दिया गया कि कि जिस तरह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि गणित अनिवार्य हो, 'हृदय को शिक्षित करना' भी अनिवार्य होना चाहिए। परम पावन ने तीन से पांच वर्ष के बच्चों के लिए प्रस्तावित पाठ्यक्रम को स्वीकार किया और इस तरह की पहल के अधिक समन्वय की आवश्यकता का उल्लेख किया।

 यह पूछे जाने पर कि किस तरह पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों को चित्त व भावनाओं के प्रकार्य की प्राचीन भारतीय समझ से परिचित कराया जाए, परम पावन ने विगत ३० वर्षों से माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए कार्य का उल्लेख किया, जो बौद्ध विवेचन के छह मुख्य चित्त तथा ५१ चैतसिक तत्वों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने भारत के नालंदा विश्वविद्यालय की परम्पराओं के आधार पर तिब्बती भिक्षु विहारों तथा भिक्षुणी विहारों में भी किए जा रहे श्रमसाध्य अध्ययनों का उल्लेख किया।

 करुणा में प्रशिक्षण के बारे में पूछे जाने पर, परम पावन ने स्पष्ट रूप से कहा कि मानव बुद्धि का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सिफारिश की, कि शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण के कार्यक्रम वैज्ञानिक निष्कर्ष, सामान्य ज्ञान और आम मानव अनुभव पर आधारित हों।

 लैंगिक समानता के शिक्षण के संबंध में परम पावन ने मानव विकास पर अपने दृष्टिकोण और नेतृत्व की आवश्यकता के ऐतिहासिक उद्भव के बारे में समझाया, जिसकी कसौटी शारीरिक शक्ति थी। इसी कारण पुरुष प्रभुत्व हुआ। शिक्षा की उपलब्धता ने समानता की भावना पुनर्स्थापित की है और अब एक ऐसा समय आया है जब हमें स्त्रियाँ, जो दूसरों के दुःख के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, के नेतृत्व की आवश्यकता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि अगर विश्व में लगभग २०० देशों में स्त्रियों का नेतृत्व हो तो विश्व एक अधिक शांतिपूर्ण स्थान होगा।

 अंत में, परम पावन ने टिप्पणी की कि बहुत सी समस्याएँ जिनका हम सामना करते हैं इस कारण उत्पन्न होती हैं क्योंकि हम अपने बीच के गौण भेदों में उलझ जाते हैं। उन्होंने इसके स्थान पर मानवता की एकता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

 सुबह के कार्यक्रम का समापन हुआ जब तंजानिया की मैरी कबाती ने चिल्डर्न इन क्रासफायर की ओर से परम पावन को एक उपहार प्रस्तुत किया। मंच से प्रस्थान करते समय सदैव की तरह, परम पावन ने सम्मेलन के कई प्रतिभागियों के साथ हाथ मिलाया और सीधे बातचीत की।

 मध्याह्न भोजनोपरांत तिब्बतियों और तिब्बती मुद्दे के समर्थकों के साथ बैठक में, परम पावन ने लगभग ५८ वर्षों के निर्वासन में उपलब्धियों की समीक्षा की। उन्होंने राजा ठिसोंग देचेन द्वारा विद्वान शांतरक्षित को तिब्बत में नालंदा परम्परा की मूल स्थापना के लिए हिम भूमि में आने के आमंत्रण का भी स्मरण किया। उन्होंने अपने श्रोताओं को सदैव तिब्बती होने पर गौरवान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया और जब भी अवसर मिले अन्य लोगों के तिब्बत के बारे में बताने के लिए कहा। उन्होंने सबको आश्वस्त किया कि विगत वर्ष चिकित्सा उपचार के बाद वे ठीक हैं और उनका स्वास्थ्य अच्छा है। उन्होंने माना किया कि उनके घुटने उन्हें कुछ परेशानी देते हैं, पर यह जानने का उल्लेख किया कि यह कुछ ऐसा है जो वे पञ्चम दलाई लामा के साथ साझा करते हैं।

 जब तिब्बती और उनके मित्र उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने के लिए एकत्रित हुए तो परम पावन ने उन्हें पुनः भोट भाषा के अध्ययन और उसके प्रयोग को जीवंत रखने के लिए प्रोत्साहित किया।

 जब परम पावन अपने होटल लौटे तो सूरज चमक रहा था। कल वह फ्रैंकफर्ट, जर्मनी उड़ान भरने के लिए डेरी से प्रस्थान करेंगे।

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