परम पावन 14 वें दलाई लामा
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'बोधिसत्वचर्यावतार' का तीसरा दिन तथा दीर्घायु अभिषेक ३०/जुलाई/२०१७

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लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर - ३० जुलाई २०१७, कल शाम हुई बहुत अधिक बारिश के कारण शिवाछेल प्रवचन स्थल पर जमा हुए पानी के कारण भी भक्तों का परम पावन दलाई लामा के लेह में तीसरे और अंतिम दिन के सार्वजनिक प्रवचन में सम्मिलित होने का उत्साह कम न हुआ। आयोजक लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (एलबीए) ने अनुमान लगाया कि ६०,००० लोग उपस्थित थे।

जैसे ही जनमानस का अभिनन्दन कर परम पावन ने आसन ग्रहण किया, उन्हें एक पुस्तक के विमोचन के लिए आमंत्रित किया गया जिसमें ससपोल के छेरिंग सोनम ने उनकी विगत ५० वर्षों में लद्दाख की यात्राओं को लेखीकृत किया था।

उन्होंने घोषित किया कि, "आज हमारी सार्वजनिक प्रवचनों का तीसरा और समापन दिवस है। सर्वप्रथम मैं 'बोधिसत्वचर्यावतार' के अध्याय ६ का पाठ पूरा करूँगा। तत्पश्चात मैं श्वेत तारा का दीर्घायु अभिषेक प्रदान करूँगा जिसके बाद मेरे लिए एक दीर्घायु समर्पण होगा। इस मामले में, शिष्यों को प्रार्थना करनी चाहिए और लामा भी प्रार्थना करेंगे। दोनों के बीच आध्यात्मिक बंधन के कारण, जिस तरह, बच्चों और माता-पिता के बीच होता है कुछ, कदम्प गेशे पोतोवा ने कहा कि प्रार्थना के प्रभावी होने की संभावना है।

"बाद में जम्मू और कश्मीर के माननीय मुख्यमंत्री, श्रीमती महबूबा मुफ्ती सईद हमारे साथ जुड़ेंगीं। अब, जब मैं तैयारी कर रहा हूँ तो कृपया प्रार्थना करें।"

शांतिदेव के ग्रंथ का पाठ जारी रखते हुए, परम पावन ने टिप्पणी की कि चाहें हम अष्ट लौकिक धर्मों का पीछा करें पर वे हमारे लिए बहुत लाभकर नहीं हैं। प्रबुद्धता की हमारी खोज में सबसे महत्वपूर्ण कारक, करुणा का विकास है। इसमें सबसे बड़ी बाधा क्रोध है, परन्तु इस अध्याय का विषय क्षांति उसके प्रतिकारक बल के रूप में कार्य करता है।

जिन श्लोकों को उन्होंने पढ़ा, उनने यह स्पष्ट किया कि जब प्रबुद्धता के हेतुओं की बात आती है, जहाँ आधे के हेतु बुद्ध हो सकते हैं, अन्य आधे का संबंध सत्वों से है। यदि अगर हम बुद्धों का सम्मान करते हैं तो क्या हमें उसी तरह सत्वों का भी सम्मान नहीं करना चाहिए?

परम पावन ने थोड़ा रुककर तपती धूप में बैठे लोगों को सलाह दी, विशेषकर भिक्षुओं को, कि वे अपने सर ढांक लें। एक बार पुनः उन्होंने एसओएस टिब्बटेन चिल्डर्न्स विलेज और लद्दाख पब्लिक स्कूल के कक्षा ६, ७, ८ के छात्र, जो प्रवचन के पूर्व उत्साहपूर्वक शास्त्रार्थ कर रहे थे, को सिंहासन के चारों ओर बैठने के लिए बुलाया।

ग्रंथ की ओर लौटते हुए उन्होंने पूछा कि बुद्ध और बोधिसत्व क्या सोचेंगे, चूँकि वे सत्वों के कल्याणार्थ समर्पित हैं, यदि हम उन्हीं मनुष्यों की उपेक्षा और बुरा करें। रचनाकार का उत्तर प्रतिज्ञा करना है - आज से, तथागत को आनन्दित करने के लिए, मैं ब्रह्मांड की सेवा करूँगा और निश्चित रूप से (उनका अहित) बंद कर दूँगा।

"चित्त का मस्तिष्क से संबंध है, परन्तु इसकी प्रकृति जानने का अनुभव है - स्पष्टता और जागरूकता को," परम पावन ने जारी रखा। "बुद्ध के सर्वज्ञ प्रज्ञा का मूल कारण स्पष्टता और जागरूकता का चित्त है जो हम में से प्रत्येक के भीतर है। यह प्रकट होता है जब हम ज्ञान की बाधाओं को दूर करते हैं। चित्त की यह प्रभास्वरता जिसे बुद्ध-प्रकृति के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो बुद्धत्व तक निरंतर रहती है।

"अपने सामान्य जाग्रतावस्था में हम अपनी इंद्रियों से संबंधित ऐन्द्रिक चेतनाओं विचलित होते है। जब हमारी मृत्यु हो जाती है तो हृदय रुक जाता है और उसके साथ रक्त का बहाव, और इस कारण मस्तिष्क की भी मृत्यु हो जाती है। परन्तु ऐसे लोगों के मामले हैं जो समापत्ति समाधि में रहते हैं, जिनके शरीर, इस नैदानिक मृत्यु के बाद भी ताजा रहते हैं। इस घटना की जाँच करने वाले न्यूरोसाइंटिस्ट हैं। हम कहते हैं कि सूक्ष्म चित्त अभी भी शरीर में है। स्थूल चित्त समाप्त हो चुका, पर सूक्ष्म चित्त बना रहता है जो शरीर पर निर्भर नहीं है, लेकिन अभी भी वहाँ है। यह वही सूक्ष्म चित्त है जो एक जीवन से दूसरे तक जाता है। यह बुद्धत्व का मूलभूत कारण है, जिस तक हम पहुँचते हैं जब हम चित्त की शून्यता पर ध्यान करते हैं।"

अध्याय के अंतिम श्लोकों की पंक्तियों

'मेरे आगामी बुद्धत्व की प्राप्ति,
तथा इसी जीवन में महिमा, यश और सुख
सब सत्वों को सुखी करने से आते हैं

ने परम पावन को गांधीजी का स्मरण कराया। क्योंकि वह भारत के लोगों के लिए समर्पित थे, निर्धनों की तरह वस्त्र पहनने के बावजूद, लाखों उनके प्रति समर्पित थे।

"मैं इस वर्ष यहीं रोकूँगा," परम पावन ने कहा। "यदि मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा तो मैं पुनः अगले वर्ष आऊँगा, हम यहाँ से जारी रखेंगे।"

परम पावन ने ग्रंथ नीचे रखा और वे सीधे श्वेत तारा से संबंधित दीर्घायु के अभ्यास की अनुज्ञा हेतु प्रक्रियाओं की ओर उन्मुख हुए। उपासक और उपासिका संवर लेने के इच्छुक लोगों के लिए अवसर प्रदान करते हुए उन्होंने एक 'केंद्रीय क्षेत्र' के वर्गीकरण में चार तरह के संघ के सदस्यों की भूमिका की व्याख्या की। एक परिभाषा भौगोलिक है; एक अन्य का संबंध भिक्षु तथा भिक्षुणियों से है, पूर्ण प्रव्रजित साथ ही संवर धारण किए उपासक और उपासिकाएँ। परम पावन ने कहा कि भिक्षुणी प्रव्रज्या की परम्परा का प्रसार तिब्बत में नहीं हुआ था यद्यपि यह चीन में प्रसरित थी।

समारोह के अंग के रूप में उन्होंने बोधिसत्व संवर भी प्रदान किए। अभिषेक के अंत में उन्होंने बुद्ध बोधिसत्व अवलोकितेश्वर, जिनका तिब्बत के लोगों और हिमालयी क्षेत्र के साथ निकट का संबंध है, मंजुश्री और आर्य तारा के मंत्रों का भी संचरण किया। हयग्रीव मंत्र देने के दौरान, उन्होंने टिप्पणी की कि यह उन लोगों के लिए सहायक होगा जो स्वयं को किसी आत्मा के आधिपत्य के परिणामस्वरूप तन्मयावस्था में पाते हैं।

भिक्षुओं ने परम पावन के लिए दीर्घायु समारोह का समर्पण पूर्ण किया। एलबीए के समर्थक मूर्तियों, धार्मिक प्रतीकों, ग्रंथों, अनाज के बोरे और रेशमी वस्त्रों के थान लिए शोभा यात्रा में सम्मिलित हुए। स्थानीय श्रृंग वाद्य वादकों और ढोलकियों वे वादन किया। जैसे ही वे परम पावन के समक्ष होते हुए निकले पुरुष और स्त्रियों मे अपनी टोपी उतार दी। इससे पहले कि अनुष्ठान समाप्त हो जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री श्रीमती महबूबा मुफ्ती सईद पहुँची। उन्होंने परम पावन को एक पारम्परिक दुशाला प्रस्तुत किया और परम पावन ने बदले में उन्हें एक श्वेत रेशमी स्कार्फ दिया।

सभा को संबोधित करते हुए, एलबीए अध्यक्ष छेवंग ठिनले ने अपने परम पावन, ठिकसे रिनपोछे और थूकसे रिनपोछे के प्रति सम्मान व्यक्त किया और माननीय मुख्यमंत्री का स्वागत किया। उन्होंने टिप्पणी की कि ऐसे समय जब अन्य स्थानों पर असहिष्णुता और धार्मिक उग्रवाद पनप रहा है और लोग शांति के लिए तरस रहे हैं, लद्दाख के लोग भाग्यशाली हैं कि परम पावन प्रत्येक वर्ष लद्दाख की यात्रा करते हैं। उन्होंने बल देते हुए कहा कि उनके बौद्ध प्रवचनों के अतिरिक्त लोग यहाँ उनकी सलाह को कितना मूल्यवान मानते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की और प्रार्थना की कि आगामी वर्षों में परम पावन पुनः लौटेंगे।

परम पावन और अन्य मेहमानों का अभिनन्दन करते हुए, मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सईद ने सभी उपस्थित लोगों को "जुले" कहा।

"मैं यहाँ आकर गौरवान्वित हूँ," उन्होंने आगे कहा। "हम जम्मू और कश्मीर और साथ ही लद्दाख के लोग खुश हैं कि आप यहाँ आते हैं और हम पर आपका आशीर्वाद न्योछारते हैं। मैं आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ ताकि आप हमसे मिलने के लिए आते रहें। आप जहाँ भी जाते हैं शांति लेकर जाते हैं। मुसलमानों को आतंकवादियों से अलग करने तथा इस्लाम को शांति का धर्म मानने की आपकी टिप्पणियों ने मेरे मर्म को स्पर्श किया है। यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हों तो मैं आपको कश्मीर घाटी के लोगों को अपने शांति प्रदान करने वाले आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करना चाहूँगी - धन्यवाद।

मंच से ही बोलते हुए, परम पावन ने उत्तर दिया:

"आज की कई समस्याएँ हमारी अपनी निर्मित की हुई हैं। हमें एक व्यापक परिप्रेक्ष्य लेने की आवश्यकता है, न की संकीर्णता और अल्प कालीन आश्रय लें। यदि, उदाहरण के लिए, हमने मानवता की एकता का गहन अर्थ विकसित किया तो हमारी कई समस्याओं का समाधान निकल जाएगा।

"इस देश में यहां धार्मिक सद्भाव दीर्घ काल से पोषित हुआ है। भारत को विश्व को दिखाना के लिए एक उदाहरण रखना चाहिए कि धार्मिक परम्पराएँ पारस्परिक सम्मान से साथ साथ रह सकती हैं। मैं जहाँ भी जाता हूँ लोगों को इसके बारे में बताने के लिए अपना पूरा प्रयास करता हूँ। बस मुझे यही कहना है। मैं नुबरा तथा जांस्कर गया हूँ, साथ ही यहाँ लेह में मेरा समय बहुत अच्छी तरह बीता है। मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हूँ।" मुख्यमंत्री के मंच से जाने के उपरांत परम पावन शिवाछेल फोडंग लौट गए और जनमानस में से कई तितर बितर हो गए। अन्य बड़े छतरियों की छाया में पिकनिक मनाने के लिए बने रहे। 

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