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परम पावन दलाई लामा द्वारा ३४वें कालचक्र अभिषेक का प्रारंभ २/जनवरी/२०१७

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बोधगया, बिहार, भारत - आज की प्रातः ठंडी और धुंध से भरी हुई थी, जब ७ बजे से ठीक पहले परम पावन दलाई लामा नमज्ञल विहार से गाड़ी में रवाना हुए। सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे, निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष खेनपो सोनम तेनफेल और धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री श्रद्धेय कर्मा गेलेग हाथ में औपचारिक धूप लिए उनकी गाड़ी के आगे चलते हुए पास के कालचक्र स्थल तक पहुँचे। परम पावन ने कालचक्र मंदिर में एकत्रित लोगों का अभिनन्दन किया और मंडल मंडप के समक्ष कालचक्र अभिषेक के प्रारंभिक अनुष्ठान को प्रारंभ करने के लिए बैठ गए। नमज्ञल विहार के भिक्षुओं ने उन्हें सहयोग दिया।

"आज, मैंने लगभग एक घंटे में प्रारंभिक अनुष्ठान समाप्त कर दिए हैं," परम पावन ने जनमानस के समक्ष सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण करते हुए कहा। बुद्ध वन्दना के छंदों और 'हृदय सूत्र' का पाठ हुआ और परम पावन ने सभी से कालचक्र मंत्र दोहराने के लिए कहा जब वे इस प्रक्रिया के अगले चरण की तैयारी कर रहे थे ।

"हम यहाँ इस पवित्र स्थल पर हैं, जहाँ २५०० से अधिक वर्षों पूर्व बुद्ध शाक्यमुनि ने प्रबुद्धता प्राप्त की। महान भारतीय आचार्य जैसे नागार्जुन और ८४ सिद्धों में से कइयों ने भी यहाँ अभ्यास किया है। कई लोकचक्षु, जो शिक्षाओं की खोज करते हुए तिब्बत से आए, ने भी इस स्थल की यात्रा की। इस अवसर पर, मैं यहाँ कालचक्र अभिषेक देने जा रहा हूँ और यह ३४वीं बार है जब मैंने ऐसा किया होगा।

"७वें दलाई लामा के समय से, जिन्होंने ग्रंथ की रचना की, जिसका हम शालू और जोनंग परम्पराओं के आधार पर अनुपालन करते हैं, फेनदे लेगशे या नमज्ञल विहार के भिक्षुओं ने कालचक्र का अभ्यास किया है।

" १९७० में धर्मशाला, भारत में पहली बार अभिषेक प्रदान करने के बाद हमने समापन पर मंडल को नष्ट कर दिया था जब मुझे एक स्वप्न आया। मैंने स्वप्न देखा कि मैं मंडल के केंद्र में था और मेरे चारों ओर भिक्षु थे। हम भूमि को आशीर्वचित कर रहे थे और देव का आह्वान करते हुए सस्वर पाठ कर रहे थे। मैंने इसका संकेत इस रूप में लिया कि मैं अभिषेक बार बार दूँगा। जब से मैंने पहली बार ल्हासा में १९५४ में इसे प्रदान किया था, तबसे मुझसे कई लोगों ने इसे प्राप्त किया है, लेकिन मैं नहीं जानता कि कितने वास्तव में अभ्यास कर रहे हैं।"

परम पावन यह पूछने के लिए रुके कि जो वे कह रहे थे क्या उसका अनुवाद और प्रसारण एफएम पर स्पष्ट रूप से किया जा रहा है। उन्हें आश्वस्त कराया गया कि ऐसा हो रहा था और यह कि हिन्दी, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, कोरियाई, मंगोलियाई, जापानी, इतालवी, वियतनामी, फ्रेंच, स्पेनिश, पुर्तगाली, थाई, नेपाली, लद्दाखी, भूटानी, साथ ही अमदो और खमपा बोलियों में भी साथ साथ अनुवाद हो रहे थे।

"आप सब यहाँ धर्म को सुनने के लिए बड़े उत्साह के साथ आए हैं। चलिए, हम इसे अभ्यास करने के अवसर के रूप में परिवर्तित कर दें। आप जिस भी धार्मिक परम्परा का पालन करें, जो वास्तव में महत्वपूर्ण है, वह यह कि इसके प्रति ईमानदारी बरती जाए। हमारी सभी विभिन्न परम्पराओं का मुख्य अभ्यास परोपकारिता - प्रेम और करुणा की भावना का विकास है। यह एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है। हममें से जो संस्कृत बौद्ध परम्परा का पालन करते हैं उन्हें करुणा के विकास की आवश्यकता है यदि हम महायानी अभ्यासी कहलाना चाहें। यदि हम हृदय से बस स्वार्थी हों तो हमारा अभ्यास महायान का न होगा। और यदि आप अभ्यास न करें तो अभिषेक से भी आशीर्वाद स्वरूप कुछ अधिक प्राप्त न होगा।

"हमें जो करने की आवश्यकता है वह अपने दृष्टिकोण को परिवर्तन कर और दूसरों के हित पर केंद्रित करना है। चूँकि आपने यहाँ आने का प्रयास और आर्थिक श्रम उठाया है तो आप जब यहाँ हैं, कुछ आंतरिक परिवर्तन लाने का प्रयास करें। यह वह स्थान भी है जहाँ मैं खुनु लामा रिनपोछे से 'बोधिसत्वचर्यावतार' का पठन संचरण प्राप्त किया जिसका मुझ पर एक महान प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप मैंने अपने आप में कुछ परिवर्तन किया है। आप इसे मात्र प्रार्थना के माध्यम से नहीं कर सकते, आप को अपने चित्त का उपयोग कर इसे परिवर्तित करना होगा। जिस रूप में हम पाँच मार्गों से होते हुए विकास करते हैं, वह 'हृदय सूत्र' की धारणी से इंगित होता है - गते, गते, पारगते, पारसंगते, बोधि स्वाहा"

परम पावन ने सलाह दी है कि आंतरिक परिवर्तन कुछ ऐसा नहीं, जो एक या दो दिनों में होता हो। उन्होंने कहा कि जैसे किसी पुष्प को बढ़ने और पुष्पित होने में समय लगता है, हमारे चित्त को भी परिवर्तित होने के लिए समय लगेगा। परन्तु जैसा मैत्रेय ने कहा, चित्त की प्रकृति स्पष्ट है और इसके क्लेश आकस्मिक हैं। प्रबुद्धता के लक्ष्य को ध्यान में रखना अनैतिक आचरण से बचने, सद्गुणों को अपनाने और चित्त को परिवर्तित करने के लिए एक प्रोत्साहन है।

"परोपकारिता का अभ्यास एक अच्छा जीवन जीने का एक मार्ग है," परम पावन ने सुझाया, "और यदि आप ऐसा करेंगे तो आपकी एक अच्छी सद्गति होगी। शिक्षाओं को समझने का प्रयास करें, उन्हें सुनते हुए, उन पर चिन्तन करते हुए और उन्हें अपने जीवन में एकीकृत करते हुए।

"मैं कमलशील की 'भावनाक्रम’, जिसे उन्होंने ८वीं सदी में तिब्बती सम्राट ठिसोंग देचेन के अनुरोध पर तिब्बत में लिखा था, के दूसरे खंड पर भी प्रवचन दूँगा। यह उनके शिक्षक शांतरक्षित थे जिन्होंने तिब्बत को नालंदा परम्परा से परिचित कराया, विहारीय प्रव्रज्या की स्थापना की और बौद्ध साहित्य के भोट भाषा में अनुवाद को उत्प्रेरित किया, जबकि गुरु पद्मसंभव तंत्राभ्यास के प्रवर्तक थे।

"आज मैं शिष्यों की देखभाल करने की विधियों पर बोलूँगा। रेत मंडल के निर्माण में कई दिन लग जाएँगे तो आज की विधियाँ शिष्यों की अभिषेक ग्रहण करने के मार्ग में आने वाली रुकावटों से सुरक्षा से संबंधित हैं। इस में संभावित हस्तक्षेप करने वाली शक्तियों को आनुष्ठानिक रोटियों के समर्पण करने हेतु उन्हें बनाना और स्थान की सुरक्षा के लिए एक वज्र बाड़ स्थापित करना शामिल है।"

परम पावन ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण, कि ब्रह्मांड का उद्भव एक बड़े धमाके के साथ और बौद्ध दृष्टिकोण कि चित्त का कोई आदि नहीं है, पर बात की। उन्होंने कहा कि चित्त का आधारभूत कारण उसी की प्रकृति का होना चाहिए - जो कि चित्त है। उन्होंने कहा कि अब तक, चूँकि हमने नकारात्मक भावनाओं का दोष नहीं देखा है, हमने उनके लिए किसी प्रतिकारक का व्यवहार नहीं किया है। चूँकि नकारात्मक भावनाओं का मुख्य स्रोत अज्ञान है, तो शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा सबसे प्रभावी प्रतिकारक है। इसीलिए परम पावन ने तीन अधिशीलों, शील, समाधि और प्रज्ञा के प्रशिक्षण के अभ्यास की सराहना की।

कालचक्र समारोह के मेजबान की ओर से, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे ने परम पावन को एक मंडल तथा बुद्ध के काय, वाक् और चित्त के प्रतीक प्रस्तुत किए। कुछ समय के बाद उन्हें श्रोताओं की ओर से छड़ी फेंकने हेतु आमंत्रित किया गया, यह पता लगाने के लिए कि वे किस तरह की उपलब्धि प्राप्त करेंगे। खेनपो सोनम तेनफेल ने भिक्षु समुदाय की ओर से ऐसा ही किया।

परम पावन ने सिफारिश की कि शिष्य सुरक्षा के लिए संक्षिप्त अथवा सम्पूर्ण कालचक्र मंत्रों पर निर्भर रहें और यहाँ तक कि खरीदारी करते समय भी उनका जाप करें। उन्होंने घोषणा की कि इसके साथ शिष्यों की सुरक्षा की प्रक्रिया पूरी हो गई है और चूँकि वे आगामी दो दिनों तक प्रवचनों का प्रारंभ नहीं करेंगे तो राजगीर, नालंदा और महाकाल गुफाओं में तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए समय है। परम पावन की अंतिम सलाह थी कि सभी अपने स्वास्थ्य की देखभाल करें। 

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