गुवाहाटी, असम, भारत - कल धर्मशाला से दिल्ली तक की एक शांत उड़ान के पश्चात परम पावन दलाई लामा आज प्रातः देश के सुदूर स्थित प्रांत असम के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी उड़ान भरने हेतु एक और वायुयान में सवार हुए। गुवाहाटी उतरते समय साधारण किन्तु निरंतर वायुमंडल में हलचल, धरती के मौसम का संकेत था - मूसलाधार वर्षा हो रही थी जिसे स्थानीय लोग पूर्व मानसून के रूप में संदर्भित करते हैं। हवाई अड्डे पर लोगों का एक समूह, असमिया और तिब्बती जिनके बीच उत्सुक पत्रकार थे, उनके स्वागतार्थ एकत्रित हुए थे।
मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन असम ट्रिब्यून के प्लैटिनम जयंती समारोह के समापन समारोह और इसकी असमिया भाषा भगिनी समाचार पत्र दैनिक असम की स्वर्ण जयंती में भाग लेने के लिए आईटीए सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स गए। परम पावन का परिचय श्रोताओं से कराया गया तथा उपहारों से उनका स्वागत किया गया जिनमें फूलों का गुलदस्ता, एक पारम्परिक चौडी असमिया टोपी, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि वर्षा में काम आएगी, कामाख्या मंदिर की एक नक्काशीदार प्रतिकृति और राज्य के पशु की मूर्ति, एक सींग वाला गेंडा शामिल थे। इस अवसर के उद्घाटन में उन्हें राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री श्री सरबानंद सोनोवाल के साथ सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया गया।
असम ट्रिब्यून ग्रुप की निदेशिका सुश्रा बबीता राजकोहवा ने घोषित किया कि सालगिरह समारोह में परम पावन का स्वागत करना उनके लिए सम्मान की बात थी। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने उत्तर-पूर्व भारत में प्रवेश किया तो उनके निर्वासन का जीवन प्रारंभ हुआ और यह असम ट्रिब्यून था जिसने पहले पहल उनके आगमन की घोषणा की थी। उन्होंने परम पावन को दो पुस्तकों का विमोचन करने के लिए आमंत्रित किया, एक असम ट्रिब्यून के विवरण की एक कॉफी टेबल पुस्तक और दूसरा प्रथम संपादक तथा उल्लेखनीय असमिया लेखक लक्ष्मीनाथ फूकन की आत्मकथा थे।
अपने स्वागत भाषण में मुख्यमंत्री श्रीमान सरबानंद सोनोवाल ने इस अवसर पर परम पावन द्वारा लाई गई दिव्य भावना और मानवीय मूल्यों की बात की। उन्होंने श्रोताओं को स्मरण कराया कि उन्होंने असम के लोगों से अच्छे प्रशासन का वादा किया था, जो गुणवत्ता और अच्छे मूल्यों की भावना बनाए रखते हुए दक्षता पर निर्भर करता है। उन्होंने परम पावन को शांति, सामंजस्य और मानवीय मूल्यों के दूत के रूप में वर्णित कर, बल देते हुए कहा कि परम पावन की उपस्थिति ने उन्हें इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की शक्ति दी है। अंत में, चूँकि अधिकतर श्रोता असम ट्रिब्यून ग्रुप के समाचार पत्रों से संबंधित थे, उन्होंने सरकार, विधानमंडल और न्यायपालिका के साथ-साथ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर संकेत किया।
राज्यपाल ने विनोदपूर्वक प्रातः की चाय के साथ असम ट्रिब्यून को पढ़ने की अपनी आदत के विषय में बताया और घोषणा की कि यह एक अनोखा समाचार पत्र है। इसके बाद हिंदी में बोलते हुए उन्होंने नागपुर के दैनिक समाचार पत्र हितवाद के संपादन के अपने अनुभवों को स्मरण किया और नैतिकता के उच्च स्तर को बनाए रखने की आवश्यकता पर बात की।
परम पावन ने अपना संबोधन यह समझाते हुए प्रारंभ किया कि वे जिस किसी को भी संबोधित कर रहे हों सदैव भाइयों और बहनों कहकर अभिनन्दन करते हुए प्रारंभ करते हैं क्योंकि उनकी मुख्य प्रतिबद्धताओं में से प्रमुख एक सभी ७ अरब मानवों की एकता की भावना को बढ़ावा देना है।
"आज के विश्व में हम जिन कई समस्याओं का सामना करते हैं उनके लिए हम मनुष्य स्वयं उत्तरदायी हैं। उनमें एक ओर निरंतर हिंसा और हत्याएँ शामिल हैं और दूसरी तरफ अकाल के कारण बच्चे भुखमरी से मर रहे हैं। एक मनुष्य के रूप में हम इस ओर किस तरह उदासीन रह सकते हैं? चूंकि इनमें से अधिकतर समस्याएँ अपनी निर्मित की हुई हैं तो तार्किक रूप से देखा जाए तो हमें उन्हें सुधारने में सक्षम होना चाहिए।
"अच्छी खबर यह है कि अपने शोध के फलस्वरूप वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यह आशा का संकेत है। यदि यह अन्यथा होता और मानव स्वभाव क्रोधित होने का होता तो स्थिति निराशाजनक होती। अतः मैं लोगों से कहता हूँ कि इंसान के रूप में हम सब एक समान हैं। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। यहाँ राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों ने माँ से जन्म लिया है और जब वे विदा लेंगे तो एक ही तरह से जाएँगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब जबकि हम जीवित हैं, हमें कठिनाइयाँ नहीं उत्पन्न करनी चाहिए, अपितु यह पहचानते हुए कि अन्य लोग हमारी तरह इंसान हैं, उनके कल्याणार्थ चिंता उत्पन्न करनी चाहिए। अगर हम ऐसा कर सकें तो धोखाधड़ी, धमकाने अथवा अन्य लोगों की हत्या करने का कोई आधार न होगा।
"हमें अपनी प्राकृतिक करुणा को बढ़ाने का प्रयास करना है, मात्र प्रार्थना अथवा अच्छे शब्दों के निर्माण द्वारा नहीं, अपितु अपनी बुद्धि के सदुपयोग द्वारा। इसी तरह हम एक सुखी परिवार, एक सुखी समुदाय और एक खुशहाल विश्व में रहते हुए स्वयं में सुखी हो सकेंगे। एक चीज जो हमें मनुष्य के रूप में अलग करती है, वह अन्य मनुष्यों और अंततः समूचे मानवता तक अपनी स्वाभाविक करुणा का विस्तार करने की हमारी क्षमता है।"
परम पावन ने टिप्पणी की, कि उनका परिचय कराते हुए उन्हें अवलोकितेश्वर तथा १३वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में संदर्भित किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात को लेकर संदेह है, पर जो वे जानते हैं वह यह कि उन्होंने जो तिब्बती बौद्ध प्रशिक्षण का अभ्यास किया उसने उनकी बुद्धि को पूर्ण रूप से उपयोग में लाने के लिए लैस किया था। इसमें सोचना तथा प्रश्न करना शामिल है, मात्र हाँ में हाँ मिलाना नहीं, पर पूछना कि क्यों? और कैसे? उन्होंने कहा कि यह नालंदा परम्परा का दृष्टिकोण था, संस्कृत बौद्ध धर्म का चरम रूप।
असम ट्रिब्यून के संबंध में, उन्होंने श्रोताओं से कहा कि आज की विशेष परिशिष्ट के चित्रों ने उन्हें १९५९ में तेजपुर होते हुए जाने का स्मरण कराया, जब उन्होंने तिब्बत से पलायन किया था। अपनी मां और बड़ी बहन की एक तस्वीर ने भी उन्हें भावुक कर दिया।
"मार्च १९५९ में, चीनी कब्जे के खिलाफ ल्हासा में एक विशाल प्रदर्शन के बाद मैंने एक सप्ताह तक बातों को शांत करने का प्रयास किया। पर जब मैं ऐसा कर रहा था तो चीनी सैन्य संकट में मात्र बढ़त ही हुई। १७ मार्च तक जोखिम और संकटों के बावजूद पलायन के अतिरिक्त कोई विकल्प न बचा था। हमें आशा थी कि एक बार हम दक्षिणी तिब्बत तक पहुँच गए तो चीन के साथ बातचीत करने के लिए कुछ अवसर मिल पाएगा, पर २० मार्च से उन्होंने ल्हासा पर बमबारी शुरू कर दी।
"मैंने भारत और भूटान में प्रतिनिधियों को यह पता लगाने के लिए भेजा कि क्या हम उनके क्षेत्र में प्रवेश करने में सक्षम होंगे। एक दूत ने लौट कर मुझे सूचित किया कि भारत हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। सीमा पार करने के बाद बहुत बड़ा आश्वासन मिला कि मेरे पुराने संपर्क अधिकारी श्री मेनन और मेरे दुभाषिया सोनम तोपज्ञल काजी हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। मुझे वे क्षण स्वतंत्रता के मेरे प्रथम वास्तविक भावना के रूप में स्मरण है। लोगों ने सौहार्दता से मेरा स्वागत किया और मेरे जीवन का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ।
"तिब्बत से निकले अन्य शरणार्थियों को मिसामरी शिविरों में इकट्ठा किया गया, जो अप्रैल में अत्यंत गर्म था। उस समय प्राथमिकता थी कि उन्हें ठंडे स्थानों पर स्थानांतरित किया जाए, पर इसके बावजूद प्रारंभ से ही हमने अपने ज्ञान और संस्कृति को संरक्षित करने का प्रयास किया। प्रधान मंत्री नेहरू की सहायता और समर्थन के साथ हमने उनके लिए अन्य स्थानों पर आवास स्थलों की स्थापना की।
परम पावन ने टिप्पणी की , कि जब १९७३ में उन्होंने यूरोप की अपनी पहली यात्रा की तो उन्होंने यह जाना कि भौतिक विकास का उच्च स्तर आवश्यक रूप से सुख नहीं लाता। वे कई लोगों से मिले जो सम्पन्न थे, परन्तु तनाव, चिंता और शंका से त्रस्त थे। उन्होंने अनुभव किया कि यह सलाह कि सुख दूसरों के कल्याणार्थ चिंता रखने पर निर्भर है, आज की दुनिया में भी प्रासंगिक है। उन्होंने भारत के दीर्घकालीन धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के मूल्य की सराहना की, जिसमें सभी धार्मिक परम्पराओं के लिए एक निष्पक्ष सम्मान है। और जहाँ भौतिक विकास शारीरिक आराम में योगदान देता है, चित्त की शांति करुणा पर निर्भर है, जो कि अहिंसा के रूप में व्यक्त होती है। परम पावन ने घोषित किया कि यह मूल्यवान है और आज के ७ अरब मनुष्यों के लिए प्रासंगिक है।
उन्होंने अपने जैसे लोगों और राज्यपाल जो २०वीं शताब्दी से संबंधित हैं, एक युग जो बीत चुका है और वे जो २१वीं सदी से संबंधित हैं, के बीच अंतर व्यक्त किया। बाद के लोग जो आज की युवा पीढ़ी है पर इस सदी को शांति का युग बनाने का उत्तरदायित्व है। इसमें भावनाओं से निपटने और अधिक करुणाशील चित्त को विकसित करने की शिक्षा शामिल है। इसके लिए 'हम' और 'उन' जैसे भेदों से मुँह मोड़ना होगा। परम पावन ने कहा कि शस्त्रों के बजाय संवाद के माध्यम से समस्याओं और विवादों को हल करने की एक तत्कालिक आवश्यकता है। चित्त और भावनाओं के कार्य की प्राचीन भारत की समझ इस ओर महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर देने से पूर्व, परम पावन ने समापन करते हुए कहाः
"मैं पहली बार १९५६ बुद्ध जयंती समारोह में भाग लेने आया था और १९५९ में शरणार्थी के रूप में भारत लौटा। अब ५८ वर्षों के बाद मैं भारत सरकार का सबसे दीर्घकालीन अतिथि बन गया हूँ। मैं राज्यपाल और मुख्यमंत्री, दोनों ने मानव मूल्यों की जरूरत के बारे में जो कहा है उससे सहमति रखता हूँ। वे बिलकुल ठीक कहते हैं और जिस तरह से आज उस समय से जब मैं विमान से बाहर निकला मेरा स्वागत किया गया है उसके लिए अपनी सराहना व्यक्त करना चाहूँगा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।"
कल प्रातः वे गुवाहाटी विश्वविद्यालय में एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे और मध्याह्न में नमामि ब्रह्मपुत्र समारोह में भाग लेंगे।