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साउथ एशिया हब ऑफ द दलाई लामा सेंटर फॉर द एथिक्स का भूभंजक समारोह और सार्वजनिक व्याख्यान १२/फरवरी/२०१७

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हैदराबाद, तेलंगाना, भारत - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा हैदराबाद में एक तेज गति की मोटर गाड़ी की यात्रा के बाद हिटेक्स रोड, माधापुर पहुँचे, जहाँ दलाई लामा सेंटर फॉर द एथिक्स को साउथ एशिया हब का निर्माण होना है। यह एक सहकारी उद्यम होगा  जिसे एमआईटी स्थित थिंक टैंक और तेलंगाना राज्य सरकार द्वारा समर्थन दिया जाएगा।

His Holiness the Dalai Lama and Governor of Telangana State HE ESL Narasimhan unveiling the foundation stone for the South Asia Hub of The Dalai Lama Center for Ethics in Hyderabad, Telangana, India on February 12, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन और तेलंगाना के राज्यपाल महामहिम ईएसएल नरसिंहन ने एक साथ नींव के पत्थर का अनावरण किया और फिर प्रतीकात्मक पौधा रोपण में भाग लिया, जो परिसर में बड़ा होगा। इनमें उप मुख्यमंत्री मोहम्मद महमूद अली और उद्योग मंत्री एमए और यूडी और आईटी कलवनकुटला तारक रामा राव सम्मिलित हुए। राज्यपाल ने टिप्पणी की कि हिंदू अनुष्ठानों में साधारणतया शांति उद्बोधित की जाती है। परम पावन सहमत हुए और सुझाया कि प्रार्थना को भी कार्य द्वारा संवर्धित करने की आवश्यकता है जैसे कि चित्त प्रशिक्षण।
निकट के हिटेक्स ओपन एरीना में द दलाई लामा सेंटर फॉर द एथिक्स एंड ट्रेंसफोर्मेटिव वेल्यूस के संस्थापक श्रद्धेय तेनजिन प्रियदर्शी ने शामियाने में १००० से अधिक की संख्या और १५,००० ऑनलाइन श्रोताओं का अभिनन्दन किया। उन्होंने उप मुख्यमंत्री मोहम्मद महमूद अली से औपचारिक रूप से परम पावन स्वागत करने का अनुरोध किया और तत्पश्चात उनके परिचयार्थ के टी रामा राव को आमंत्रित किया। परम पावन ने सदैव की तरह अपना संबोधन प्रारंभ किया।

"मैं सदैव भाइयों और बहनों के रूप में श्रोताओं का अभिनन्दन कर प्रारंभ करता हूँ, क्योंकि मैं स्वयं को मात्र ७ अरब मनुष्य में से एक मानता हूँ जिन्हें मैं भाइयों और बहनों के रूप में देखता हूँ। जिस तरह से हम जन्म लेते हैं तथा जिस तरह से हम मरते हैं वह समान है, फिर चाहे हम राजा, रानी हो अथवा आध्यात्मिक नेता या भिखारी हों। इसी कारण से मानवता की एकता की भावना महत्वपूर्ण है। मैं जहाँ भी जाता हूँ और जिनसे भी बात करता हूँ मैं अपने बीच की दीवार को तोड़ने के प्रयास में इस विचार को बढ़ावा देने का प्रयास करता हूँ। जब भी संभव है मैं मुस्कुराता हूँ, जो अधिकांश रूप से प्रत्युत्तर में अन्य लोगों को मुस्कुराने के लिए प्रेरित करती है और इस तरह हम दोनों को खुश करती है।

"यद्यपि हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक जैसे हैं, परन्तु हममें अंतर भी है। मैं तिब्बती हूँ, मैं बौद्ध हूँ और मैं दलाई लामा हूँ, पर यदि मैं इन भेदों पर जोर दूँ तो यह मुझे अलग खड़ा करता है और अन्य लोगों के साथ बाधाएँ खड़ी करता है। हमें जो करने की आवश्यकता है वह उन बातों पर ध्यान देना है जिस अर्थ में हम दूसरे लोगों के साथ समानता रखते हैं।

"अधिकांश समस्याएँ जिनका सामना हम करते हैं, वे राष्ट्रीयता, धार्मिक आस्था इत्यादि गौण भेदों पर बल देने के कारण हमारी अपनी बनाई हुई हैं। कितने दुख की बात है कि आज धर्म संघर्ष और हिंसा का एक कारण बनता जा रहा है। जब विश्व के अन्य भागों में लोग मारे जा रहे हैं, हम आत्मतुष्टि से भरे बैठे नहीं रह सकते, हमें इन पीड़ित लोगों के सुख को सुनिश्चित करने विषय में सोचना होगा।

His Holiness the Dalai Lama speaking at the HITEX Open Arena in Hyderabad, Telangana, India on February 12, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"राष्ट्रीयता और विचारधारा के जो अंतर २०वीं सदी में महत्वपूर्ण थे, आज कम प्रबल प्रतीत होते हैं। यूरोप में पीढ़ियों से लड़ने और एक दूसरे की हत्या करने के उपरांत, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय संघ बनाया गया। मेरे भौतिकी शिक्षक वॉन वीज़सेकेर ने मुझे बताया कि जब वे युवा थे तो हर फ्रेंच और जर्मन की नजरों में दूसरा दुश्मन था। परन्तु १९९० के दशक से, उन्होंने कहा कि, सब परिवर्तित हो गया। यह समझते हुए कि युद्ध के विनाश से कुछ अच्छा नहीं होता, लोगों ने अनुभूत किया कि साथ मिलकर रहना बेहतर है। यूरोपीय संघ की इस भावना की मैं प्रशंसा करता हूँ और इसे हमें विश्व के अन्य भागों अफ्रीका, लैटिन अमेरिका में अपनाने की आवश्यकता है।

"दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में, मैं एक वैश्विक संघ और एक विसैन्यीकरण विश्व की आशा करता हूँ। जब तक मनुष्य हैं कुछ समस्याएँ होंगी, पर हमें बिना बल प्रयोग के सहारे के संवाद के माध्यम से उन के साथ निपटना सीखना होगा। इसके लिए नैतिक सिद्धांतों का विकास आवश्यक होगा क्योंकि यह अविश्वास और ईर्ष्या के आधार पर प्राप्त नहीं किया जा सकेगा।"

परम पावन ने कहा कि अहिंसा दीर्घ काल से भारतीय परम्परा है, जो भय पर नहीं, अपितु आत्मविश्वास और करुणा पर आधारित है। एक उदाहरण है कि किस तरह धार्मिक सद्भाव यहाँ पनपा है। इस धरा के धर्म जैसे हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म फल फूल रहे हैं पर उनके साथ साथ अन्य स्थानों से आए धर्म का फलना फूलना सच्ची सहनशीलता तथा पारस्परिक सम्मान इंगित करता है। पारसी धर्म फारस से आया। बंबई में उनके समुदाय में मुश्किल से १००,००० पारसी हैं पर फिर भी वे बिना भय के रह रहे हैं - यह भारत है, उन्होंने कहा। इसी तरह, यहूदी आए और उन्होंने कोचीन में अपना समुदाय बनाया। इसाई और मुसलमान भी आए। अब, भारतीय मुसलमान विश्व में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के हैं, यहाँ तक कि पाकिस्तान की तुलना में भी अधिक। परम पावन ने टिप्पणी की कि निस्सन्देह कभी कभी समस्याएँ उभरती हैं, पर अन्यथा भारत विश्व का एकमात्र देश है जहाँ सभी प्रमुख धर्म आपसी सद्भाव से साथ साथ रहते हैं।

मिस्र, चीन और सिंधु घाटी की प्राचीन सभ्यताओं की तुलना करते हुए, परम पावन ने सुझाया कि सिंधु घाटी ने अंततः विचारकों और चिन्तन के विभिन्न सम्प्रदायओं, जिसमें बौद्ध धर्म शामिल है, की सबसे बड़ी संख्या को जन्म दिया। चित्त के प्रकार्य और भावनाओं की गहन समझ लिए प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान के पास आज हमें सिखाने के लिए काफी कुछ है।

Members of the audience listening to His Holiness the Dalai Lama at the HITEX Open Arena in Hyderabad, Telangana, India on February 12, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"३० से अधिक वर्षों पहले मैंने आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ चर्चा प्रारंभ की, जिसने न केवल बौद्धों और चिन्तकों को भौतिक विश्व के बारे में अधिक जानने में, पर साथ ही वैज्ञानिकों को भी चित्त तथा भावनाओं के बारे में जानने की अनुमति दी। विनाशकारी भावनाओं से निपटने का एक तरीका करुणा से प्रेरित अहिंसा है। १००० से अधिक वर्षों से हम तिब्बतियों ने इन परम्पराओं को, जो नालंदा में फलती फूलती थी, जीवित रखा है। आज आधुनिक भारतीयों के पास आधुनिक शिक्षा के साथ इस प्राचीन भारतीय विरासत के मूल्यों तथा अंतर्दृष्टि के साथ जोड़ने का एक विशेष अवसर है। कई युवा पहले से ही ऐसा कर रहे हैं। अपने विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों के साथ नैतिकता का यह केंद्र इस दिशा में एक योगदान दे रहा है। मैं यहाँ अपने मित्र और राज्य सरकार द्वारा दिए जा रहे समर्थन की सराहना करता हूँ।

"केंद्र, दलाई लामा के नाम पर है, पर मैं नालंदा परम्परा का मात्र एक छात्र, नागार्जुन का छात्र हूँ। फिर भी, जब मैं दूसरे देशों की यात्रा करता हूँ तो जिन लोगों से मैं मिलता हूँ, उनसे प्रायः कहता हूँ कि मैं प्राचीन भारतीय ज्ञान का एक दूत हूँ - भारत का एक पुत्र। मैं इसे न्यायोचित ठहराता हूँ, क्योंकि मेरा चित्त नालंदा विचारों से परिपूरित है, जबकि मेरी काया ५८ वर्षों से भारतीय चावल, दाल और चपाती द्वारा पोषित हुई है।"

श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने समझाया, क्योंकि विश्व की जनसंख्या का अधिकतम हिस्सा गरीबी में जी रहा है, हमें भौतिक विकास को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। हालांकि यह प्रयास आंतरिक या मानसिक विकास के साथ मिलकर किए जाने की जरूरत है। उन्होंने सूचित किया कि न केवल वैज्ञानिकों ने यह स्थापित किया है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, पर उन्होंने पाया है कि निरंतर क्रोध तथा भय हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है जबकि एक करुणाशील चित्त का विकास इसे सशक्त करता है। उन्होंने घोषणा की कि जब लोगों की एक महत्वपूर्ण संख्या की धर्म में कोई रुचि नहीं है, तो सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के प्रयास को एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाना होगा।

एक प्रश्नकर्ता, जिसने आंतरिक मूल्यों को पोषित करने में शिक्षा की भूमिका का उल्लेख किया, ने माता-पिता की भूमिका पर प्रश्न किया। परम पावन ने उन्हें बताया कि विज्ञान ने माँ और बच्चे के बीच सरल शारीरिक संपर्क के सकारात्मक प्रभाव को दिखाया है, लेकिन इसके अतिरिक्त जो महत्वपूर्ण है वह यह कि माता-पिता अपने बच्चों पर स्नेह बरसाएँ।

जब उनसे पूछा गया कि मृत्यु के लिए किस प्रकार तैयारी की जाए, परम पावन ने उत्तर दिया कि कुछ सीमा तक यह आपके विश्वास पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि यदि आप एक प्रेम भरे ईश्वर में विश्वास करते हैं, उसके विषय में सोच रहे हैं तो उसका प्रेम और करुणा आपकी मृत्यु के समय सहायक होगा। एक बौद्ध के लिए चित्त में बुद्ध की करुणा का मुख्य संदेश और स्वतंत्र सत्ता के अभाव की भावना को रखना उपयोगी होगा। उन्होंने आगे कहा कि इसके साथ मृत्यु की प्रक्रिया की कल्पना के उपाय भी हैं जिसमें विघटन के आठ चरण शामिल हैं ताकि जब मृत्यु आए तो आप तैयार रहें, जिसका अंत चित्त की प्रभास्वरता के साथ होता है।

His Holiness the Dalai Lama answering questions from the audience during his talk at the HITEX Open Arena in Hyderabad, Telangana, India on February 12, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"मृत्यु के लिए अच्छी तैयारी," परम पावन ने जारी रखा, "जिस तरह से आप जीते हैं उस पर निर्भर करता है, दूसरों का अहित करने से बचना और जहाँ भी संभव हो उनकी सहायता करना। यदि आप ऐसा करें तो बिना किसी अफसोस की भावना के मरने में सक्षम हो सकेंगे। तो एक शांतिपूर्ण मृत्यु बहुत कुछ इस पर निर्भर करती है कि आपने किस तरह अपना जीवन जिया है।"

एक और युवती जानना चाहती थीं कि चित्त को प्रशिक्षित करने का, ध्यान के विकास या विपश्यना, सबसे अधिक प्रभावी तरीका क्या है। परम पावन विश्लेषण के संबंध में अपनी प्रशंसा को लेकर स्पष्टवादी थे। वे जिस तरह से स्वयं करते हैं, उसे उन्होंने बताया। वे अपने शरीर, चित्त और भावनाओं का विश्लेषण करते हैं। वे अनित्यता और क्षणिक परिवर्तन पर चिंतन करते हैं। वे समझते हैं कि किस तरह अतीत, वर्तमान और भविष्य लगातार बदलते हैं। अतीत और भविष्य मात्र वर्तमान के संदर्भ में अस्तित्व रखते हैं परन्तु वर्तमान को पकड़ पाना स्पष्ट रूप से असंभव है। उन्होंने उल्लेख किया कि वह अपने शरीर पर चिन्तन करते हैं और यह कि इसके भाग हैं - सिर, हाथ, पैर और धड़ और स्वयं से पूछते हैं कि क्या कोई भी भाग अपने आप में उनका शरीर हैं।

अंत में, संचालक ने परम पावन से यह बताने के लिए पूछा कि वह किस तरह इतने युवा दिखने में सक्षम हुए हैं। परम पावन ने प्रतिवाद किया, "यह मेरा रहस्य है," पर उसके बाद बताया कि वह किस तरह रात में लगातार नौ घंटे सोते हैं। जब वे जागते हैं तो वह ध्यान में ४ घंटे संलग्न होते हैं, जो उनकी चित्त शांति में सहायक है। "यदि आप चाहें तो आप भी ऐसा कर सकते हैं।"

श्रद्धेय तेनजिन प्रियदर्शी ने आभार प्रदर्शन के साथ सत्र का समापन किया। सर्वप्रथम उन्होंने परम पावन को आने के लिए धन्यवाद दिया और तत्पश्चात उन सभी लोगों के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया जिन्होंने इस उद्घाटन सत्र को सफल बनाया था, उनकी टीम और विशेष रूप से तेलंगाना सरकार के सदस्य।

परम पावन ने उप मुख्यमंत्री के अतिथि के रूप में एक शानदार आधिकारिक मध्याह्न भोज में भाग लिया, जिसके बाद वे अमृतसर उड़ान भरने के लिए राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे गए, जहाँ से वे कल प्रातः धर्मशाला गाड़ी से जाएँगे।

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