परम पावन 14 वें दलाई लामा
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कृष्णकांत हंदिकुइ स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी और लॉयर्स बुक स्टाल और नमामि ब्रह्मपुत्र महोत्सव के अतिथि २/अप्रैल/२०१७

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गुवाहाटी, असम, भारत - आकाश में बादल छाए हुए थे पर आज प्रातः वर्षा थम गई थी जब परम पावन दलाई लामा गुवाहाटी विश्वविद्यालय सभागार की ओर गाड़ी से निकले। उनके मेजबान कृष्ण कांत हंदिकुइ स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी (केकेएचएसयूयू), एक प्रांतीय विश्वविद्यालय जिसकी स्थापना २००५ की गई थी, जिसका आदर्श वाक्य था - सीमाओं से परे शिक्षा और लॉयर्स बुक स्टाल शामिल थे, जो स्थानीय छात्रों में ७५ वर्षों से लोकप्रिय था। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ हितेश देका ने पारंपरिक अभिनन्दन प्रस्तुत किया जिसमें एक स्कार्फ, दुशाला और फूलों का गुलदस्ता शामिल थे। परम पावन को 'शांति का प्रतीक' बताते हुए उन्होंने उन्हें एक खचित स्तुति, एक पुस्तक और बुद्ध के जीवन का एक चित्र, जिसमें उन्होंने एक मतवाले हाथी को शांत किया था, भी भेंट किया। गुवाहाटी विश्वविद्यालय, जिन्होंने इस अवसर के लिए परिसर मुहैया कराया था, के डॉ एस के नाथ ने इस अवसर पर अपनी ओर से अभिनन्दन प्रस्तुत किया।

इस अवसर का एक संक्षिप्त परिचय देते हुए भास्कर दत्ता-बरुआ ने परम पावन के वहाँ आने के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने टिप्पणी की, कि तिब्बत पर आए दुर्भाग्य के परिणामस्वरूप विश्व भर में कई अन्य लोग लाभान्वित हुए, जो नालंदा परम्परा के प्रतिनिधियों के साथ परिचित होकर समृद्ध हुए। उन्होंने परम पावन का स्वागत पहले कामरूप कहलाए जाने वाले स्थान पर किया, एक क्षेत्र जो तांत्रिक आचार्य नरोपा और लुइपा साथ ही विद्वान अतीश के साथ भी जुड़ा था।

His Holiness the Dalai Lama unveiling the new Assamese translation of his memoir "My Land and My People" before his talk at Guwahati University Auditorium in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

दत्ता-बरुआ ने परम पावन से अपनी बहुत पहले की पुस्तक, उनके संस्मरण, 'माई लैंड एंड माइ पीपुल', के एक नूतन असमिया अनुवाद का विमोचन करने का अनुरोध किया। यह पुस्तक न केवल परम पावन की प्रारंभिक जिंदगी की कहानी बताती है, अपितु तिब्बत में जो कुछ हुआ उसे उस बिंदु तक व्यक्त करती है जब उन्हें पलायन करने के लिए बाध्य होना पड़ा। परम पावन का अनुवादक इंद्राणी लस्कर से भी परिचय कराया गया।

१५०० की संख्या के श्रोताओं को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने सदैव की तरह प्रारंभ किया। उन्होंने समझाया कि वह अपने श्रोताओं को भाइयों और बहनों के रूप में अभिनन्दित करते हैं क्योंकि उन्हें सभी गणमान्य व्यक्तियों के नाम याद नहीं रहते, पर साथ ही यह भी, कि वह मानवता की एकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता के प्रति आश्वस्त हैं और यह विचार कि आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य भाई और बहनों के समान हैं।

"हम सभी में एक सुखी जीवन जीने और दुःख से मुक्त होने की इच्छा है। परन्तु हम कई समस्याओं का भी सामना भी करते हैं, जिनमें से अधिकांश हमारे स्वयं के निर्मित हैं। उनमें से कई हमारे क्लेशों के अधीन हो जाने के कारण जन्म लेते हैं। हमारा व्यवहार चाहे आत्म-केंद्रित हो कि नहीं, करुणा से प्रेरित होना अच्छा है क्योंकि यह आत्मविश्वास, कम भय और अधिक विश्वास की ओर ले जाता है। जब हम नकारात्मक या परेशान करने वाली भावनाओं से प्रेरित होते हैं तो यह अविश्वास और शंका की ओर जाता है।

"क्रोध ऊर्जा का स्रोत प्रतीत हो सकता है, पर यह अंधा है। यह हमारा संयम खोने का कारण बनता है। यह साहस जगा सकता है, पर फिर भी यह अंधा साहस है। नकारात्मक भावनाएं, जो प्रायः एक सहज आवेग से उत्पन्न होती हैं, उनका तर्क के आधार पर औचित्य नहीं ठहराया जा सकता, जबकि सकारात्मक भावनाओं का हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि निरंतर क्रोध और घृणी हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल कर देते हैं। करुणा, आंतरिक शक्ति लाना, हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।"

His Holiness the Dalai Lama speaking on Ancient Indian Knowledge in Modern Times at Guwahati University Auditorium in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन ने संज्ञानात्मक चिकित्सक हारून बेक के साथ हुए अपने वार्तालापों का स्मरण किया, जिसका कार्य लोगों की क्रोध से संबंधित समस्याओं से निपटने पर केंद्रित था। बेक ने उन्हें बताया था कि जब हम क्रोध में होते हैं तो हमारे क्रोध की वस्तु पूर्ण रूप से नकारात्मक प्रतीत होती है, पर उसमें से ९०% मात्र मानसिक प्रक्षेपण है। परम पावन उन पत्राचारों से प्रभावित थे जो नागार्जुन ने दो हज़ार वर्षों पूर्व सिखाया था। चूँकि हम सामाजिक प्राणी हैं, न कि गेंडा जैसे एकांत प्राणी, हमारा अस्तित्व दूसरों पर निर्भर है। इसलिए करुणा तर्क और कारण के माध्यम से उचित ठहरी जा सकती है।

"आज," परम पावन ने आगे कहा, "विश्व के विभिन्न भाग परस्पर आश्रित हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था भारी रूप से आश्रित है। इस बीच, जलवायु परिवर्तन से ऐसे संकट लाती है जो हमें सब के लिए एक तरह की धमकी का रूप है। धनवानों और निर्धनों की बीच की बढ़ती खाई और जाति व्यवस्था जैसी असमानताएँ, जो आज की तारीख से बाहर हैं, ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें हम साथ मिलकर ही निपटा सकते हैं। इसी कारण आस्था, जाति या राष्ट्रीयता जैसे गौण अंतर पर ध्यान देने की बजाय हमें स्मरण रखने की आवश्यकता है कि मानव होने के नाते हम समान हैं। यह भी एक कारण है कि मैं स्वयं को ७ अरब मनुष्यों में से एक मानता हूँ, क्योंकि दलाई लामा होने के बारे में सोचते रहना अपने आप को दूसरों से अलग करना है।

"हम नालंदा परम्परा में इस तरह की सोच पाते हैं। इन दिनों मैं युवा भारतीयों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता हूँ कि वे अधिक ध्यान दें कि प्राचीन भारत का ज्ञान हमें क्या बता सकता है जो आज उपयोगी हो। हम सीख सकते हैं कि किस तरह अपनी भावनाओं से निपटें। हम अहिंसा को आचरण के रूप में अपना सकते हैं, भय से नहीं अपितु करुणा की भावना से। अहिंसा तब होती है जब हमारे पास अहित करने का अवसर होता है पर ऐसा करने से हम स्वयं को रोकते हैं।

"अहिंसा और करुणा भारतीय निधि हैं, जैसा कि धार्मिक सद्भाव की परम्परा है। जैसा कि मैंने कल कहा था कि मैं भारत सरकार का सबसे लंबे समय तक रहने वाला अतिथि हूँ और मैं इन महान परम्पराओं का दूत बनकर आतिथ्य को चुकाने का प्रयास करता हूँ।"

A young member of the audience asking His Holiness the Dalai Lama a question during his talk at Guwahati University Auditorium in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने समझाया कि वे भविष्य को लेकर आशावान हैं क्योंकि वैज्ञानिकों ने यह स्थापित किया है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यद्यपि सभी प्रमुख धर्म प्रेम और करुणा के गुणों की शिक्षा देते हैं, पर यह एक ऐसा समय है जब हमें सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित नैतिकता की आवश्यकता है।

उन्हें यह समझाने के लिए चुनौती दी गई कि वे ऐसा क्यों कहते हैं कि जिस तरह शिक्षा ला सकती है उस तरह प्रार्थना और धार्मिक अनुष्ठान परिवर्तन नहीं ला सकते। उन्होंने कहा कि जहाँ तक निजी अभ्यास का प्रश्न है तब तक प्रार्थना ठीक तथा अच्छी है, पर जब विश्व में परिवर्तन की बात आती है तो लोग शताब्दियों से प्रार्थना कर रहे हैं जिसका प्रभाव न के बराबर है। जो परिवर्तन लाएगा वह शिक्षा है। इस संबंध में उन्होंने सहमति व्यक्त की कि विपश्यना ध्यान, जिसमें विश्लेषण होता है, एक सकारात्मक योगदान दे सकता है।

उन्होंने दोहराया कि वह स्वयं को भारत का पुत्र मानते हैं क्योंकि उनके मस्तिष्क में ज्ञान का छोटे से छोटा अंग भी नालंदा परम्परा से उत्पन्न हुआ है, जो पूरी तरह से भारतीय परम्परा है। इसी के साथ, उन्होंने कहा, दशकों से उनका शरीर भारतीय चावल, दाल और रोटियों द्वारा पोषित हुआ है। उन्होंने १५वीं शताब्दी के तिब्बती विद्वान-आचार्य की बातों को दोहराकर समाप्त किया - भले ही तिब्बत हिम भूमि के रूप में उज्जवल रहा हो, पर वह भारत से आए ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होने तक अंधकार में रहा।

शिलोंग, इटानगर और उत्तर-पूर्व के अन्य भागों के लगभग ४०० तिब्बतियों से बात करते हुए परम पावन ने कहा:

His Holiness the Dalai Lama meeting with members of the Tibetan community from Northeast India in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"हम तिब्बतियों की हमारे अतीत की प्रार्थनाओं के कारण कार्मिक संबंध हैं, पर हमारे देश पर दुर्भाग्य की गाज़ गिरी जिसके परिणामस्वरूप हमें तिब्बत छोड़ना पड़ा। वहाँ रहने वाले लोग अभी भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, पर उनका आत्मिक साहस प्रबल है। जब हम १९५९ में यहाँ पहुंचे तो जिनको लेकर हम सुनिश्चित थे वह ऊपर आकाश और नीचे पृथ्वी थी। भारत के अत्यधिक गर्म मौसम में हमें कुछ न सूझता था। हमने सहायतार्थ संयुक्त राष्ट्र से अपील की, पर नेहरू ने आगाह कर दिया था कि संयुक्त राज्य अमरीका चीन के साथ युद्ध नहीं करेगा।

"विश्व तक अपनी बात पहुँचाने के पूर्व के एक प्रयास में १३वीं दलाई लामा ने आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन के रगबी स्कूल में कुछ तिब्बती बच्चों को भेजा। विगत वर्ष स्कूल के प्रतिनिधि उनके आगमन की शताब्दी के अवसर पर मुझसे मिलने आए थे। यदि वह परियोजना आगे बढ़ी होती तो परिस्थिति अलग हो सकती थी। हमने व्यापक विश्व के साथ संबंध स्थापित किया होता।"

परम पावन ने कहा कि चीन में परिवर्तन हो रहा है। उन्होंने अपने श्रोताओं को आत्मविश्वास और सुखी रहने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके समक्ष के छोटे बच्चे भोट भाषा सीखें, के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि एक बार पुनः सूर्योदय होगा।

मध्याह्न में, परम पावन नमामि ब्रह्मपुत्र महोत्सव में मुख्य अतिथि थे। सर्वप्रथम वे नदी के तट पर गए जहाँ एक बार पुनः राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने उनका स्वागत किया। साथ में एक विशेष रूप से निर्मित किए गए गुंबद में, उन्होंने एक वीडियो प्रदर्शन देखा जिसमें भौतिक तरीकों से दर्शाया गया था कि किस तरह ब्रह्मपुत्र इस क्षेत्र के लिए एक वास्तविक जीवनरेखा है और इसके रहस्यमय रूप शक्ति के स्रोत हैं। बाहर ताजा हवा में, नदी की ओर निहारते हुए, परम पावन ने बल देकर कहा कि चूँकि यह इस तरह की भूमिका निभाता है, लोगों को इसकी सराहना और देखभाल करना सीखना चाहिए। उन्होंने इस ओर योगदान करने में त्योहार की भूमिका को स्वीकार किया।

His Holiness the Dalai Lama and special guests watching a video display in a specially fashioned dome at the Namami Brahmaputra Festival in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

आईटीए सभागार के अंदर, कार्यक्रम का उद्घाटन तिब्बती भिक्षुओं के उच्च स्वर में मंत्र पाठ से हुआ। राज्यपाल, मुख्यमंत्री और असम राइफल्स के महानिदेशक ने परम पावन का पारम्परिक रूप से स्वागत किया। उनका परिचय एक पुराने सैनिक से करवाया गया, जो उस सेना का अंग था, जिसने ५८ वर्ष पूर्व उनका सीमा से नीचे अनुरक्षण किया था और परम पावन ने उसके लिए फोटो पर हस्ताक्षर किए।

वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने असमिया में एक विस्तृत स्वागत भाषण प्रारंभ किया। फिर अंग्रेजी में बोलते हुए उन्होंने ऐतिहासिक रूप से असम और तिब्बत के बीच के व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित किया। उन्होंने वृंदावनी वस्त्र के नाम से विख्यात चित्रित रेशमी पर्दों की बात की जिस पर भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण होता था जिसे तिब्बत भेजा गया था, जहाँ से उन्हें ब्रिटेन ले जाया गया जो अब विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय और ब्रिटिश संग्रहालय में हैं।

अपने भाषण में, मुख्यमंत्री श्री सरबानंद सोनोवाल ने नमामि ब्रह्मपुत्र महोत्सव को संदर्भित किया और देश के लिए नदी के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने ब्रह्मपुत्र को असम की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जीवन रेखा होने की घोषणा की। उन्होंने दोहराया जो कवि कीट्स ने कहा था कि सौंदर्य की एक वस्तु सदैव आनन्द देती है। उन्होंने परम पावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की, जिनकी उपस्थिति मानव मूल्यों और शांति और सद्भाव में रहने की गुणवत्ता के संबंध में प्रेरणा का एक स्रोत थी। उन्होंने उनसे आशीर्वाद का अनुरोध किया कि असम के लोग प्रेम, करुणा और पारस्परिक सम्मान के साथ रहें।

राज्यपाल श्री बनवारीलाल पुरोहित ने आगामी आस्था उत्सव के लिए एक ब्रोशर जारी किया और हिंदी में मनोरंजक रूप से बात रखी।

Assam Chief Minister Shri Sarbananda Sonowal addressing the audience at the Namami Brahmaputra Festival in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

अपने संबोधन में, परम पावन ने कहा कि उन्होंने अपने दो दिवसीय यात्रा का बहुत आनंद लिया था। जो सौहार्दपूर्ण स्वागत उन्हें मिला था उसकी उन्होंने सराहना की। उन्होंने पुनः उल्लेख किया कि इतने लंबे समय के बाद असम राइफल्स के एक अनुरक्षक से मिल कर उन्हें कितनी प्रसन्नता मिली थी। उन्होंने स्वयं यह भी बताया कि वे लोगों के साथ अपने कुछ विचार साझा करने का अवसर प्राप्त कर पाने के कारण कितने खुश थे और कहा कि उनकी बातें अत्यंत ध्यानपूर्वक बातें सुनी गईं थीं। उन्होंने कहा कि उनकी शिकायत केवल तूफानी मौसम को लेकर थी, पर यह स्वीकारा कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी उसे नियंत्रित नहीं कर सकते।

इसने उन्हें पटना में एक अवसर का स्मरण कराया जहाँ मुख्यमंत्री ने बुद्ध स्मारक उद्यान की स्थापना की थी, जिसका उद्घाटन वे परम पावन से करवाना चाहते थे।

"अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की कि बुद्ध के आशीर्वाद के फलस्वरूप बिहार का विकास और समृद्धि होगी। जब मेरे बोलने के लिए बारी आई तो मैंने कहा कि अगर वह बिहार की समृद्धि का स्रोत था तो यह बहुत पहले ही होना चाहिए था क्योंकि बुद्ध का आशीर्वाद २५०० से अधिक वर्षों से मौजूद था। मैंने उनसे कहा कि वास्तव में अंतर उस समय आएगा यदि ये आशीर्वाद एक सक्षम मुख्यमंत्री के हाथों से होकर निकलें। और मैं वही आज यहाँ मुख्यमंत्री की उपस्थिति में दोहराता हूँ जो एक बहुत ही व्यावहारिक व्यक्ति प्रतीत होते हैं।

His Holiness the Dalai Lama speaking at the Namami Brahmaputra Festival in Guwahati, Assam, India on April 2, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"सफल विकास की कुंजी शिक्षा है। हम सम्पर्क में रहेंगे और जब बालवाड़ी से विश्वविद्यालय तक धर्मनिरपेक्ष नैतिक शिक्षा देने के लिए हम जो पाठ्यक्रम मसौदा तैयार कर रहे हैं, वह पूरा हो जाएगा तो मैं आपको एक प्रति भेजूँगा। आप उसे व्यवहार में लाने का प्रयास कर सकते हैं कि वह कैसे काम करता है।"

श्रोताओं के प्रश्नों के अपने उत्तर में, परम पावन ने विस्तृत रूप से यह स्पष्ट किया कि वे एक धर्म से दूसरे में बदलने के लिए लोगों को प्रलोभन देने का अनुमोदन नहीं करते। उन्होंने कहा कि यह लोगों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे विभिन्न धर्मों में जो सिखाया जा रहा है उसकी अधिक सराहना करें और यह उतना ही महत्वपूर्ण है कि लोगों को स्वतंत्रता मिले कि वे अपनी आस्थानुसार चयन कर सकें। पर सामान्य तौर पर उनकी सलाह यह है कि आपका जिस परम्परा में जन्म हुआ हो, उसके साथ बने रहें।

परिवहन मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने इस कार्यक्रम का अंत धन्यवाद के व्यापक शब्दों के साथ किया जिसके पश्चात समापन के रूप में राष्ट्रगान हुआ। परम पावन अपने होटल लौटे। कल वे आधुनिक शिक्षा में नैतिकता के बारे में बोलने के लिए दिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय की यात्रा करेंगे।

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