परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा ने तवांग में ५०,००० लोगों को बौद्ध प्रवचन दिया ८/अप्रैल/२०१७

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तवांग, अरुणाचल प्रदेश, भारत - आस-पास तूफान के पूर्वानुमान के बावजूद, आज प्रातः सूरज सुदूर पहाड़ियों पर चमक रहा था और तवांग के ऊपर का नभ नीले रंग से छितरा हुआ था। परम पावन दलाई लामा भी प्रसन्न चित्त दिखाई पड़ रहे थे जब वे १७वीं शताब्दी के तवांग विहार के मुख्य मंदिर दुखंग के ऊपर अपने कक्ष से निकले। वे अपनी गाड़ी की ओर जाते हुए, जो उन्हें पहाड़ी से नीचे यिगा छोजिन प्रवचन स्थल पर ले जाने वाली थी, शुभचिंतकों का अभिनन्दन करने के लिए कई स्थानों पर रुके। वहाँ पहुँचने पर उनका पहला कार्य मुख्यमंत्री पेमा खांडू के साथ, ज्ञलवा छंगयंग ज्ञाछो हाई आल्टीटिड खेल परिसर का उद्घाटन करने वाली एक पट्टिका का अनावरण करना और एक संभावित सरकारी डिग्री कॉलेज की आधारशिला रखना था।मंदिर मंडप के सामने रखे सिंहासन की ओर जाते हुए परम पावन ने अनुमानतः ५०,००० की संख्या वाले जनमानस का अभिनन्दन किया। उन्होंने सीधे बात करने के लिए बाड़ पर झुककर उन वरिष्ठ नागरिकों पर विशेष ध्यान दिया जिन्हें प्रथम पंक्ति में स्थान दिया गया था।

मुख्यमंत्री पहले बोले, उन्होंने मोनयुल के लोगों की ओर से न केवल एक बार फिर तवांग आने के लिए, बल्कि सड़क से लंबी यात्रा सहन करते हुए जिससे वे कई लोगों के घरों की दहलीज तक पहुँच सके, परम पावन को धन्यवाद दिया। उन्होंने स्मरण किया कि अप्रैल १९५९ के प्रारंभ में जब परम पावन ने केनजमानी पर सीमा पार की तो तवांग प्रथम भारतीय भूमि थी जिसे उनकी उपस्थिति का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उस समय तवांग विहार भी पहला स्थान था जहाँ उन्होंने बौद्ध प्रवचन दिया था। उन्होंने परम पावन की अहिंसा के एक दूत के रूप में प्रशंसा की, जो २१वीं सदी के लिए वही हैं, जो गांधीजी जी बीसवीं के लिए थे। यह टिप्पणी करते हुए कि तवांग छठवें दलाई लामा का जन्मस्थान था, मुख्यमंत्री ने कालचक्र अभिषेक देने पर विचार करने के लिए परम पावन से अनुरोध किया। उन्होंने परम पावन के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए प्रार्थना के साथ समाप्त किया।

Arunachal Chief Minister Pema Khandu thanking His Holiness the Dalai Lama  at the start of teachings at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 8, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन ने अपना संबोधन यह मानते हुए प्रारंभ किया कि वे मोनपा लोगों के व्यक्त किए हुए विश्वास और भक्ति से कितने द्रवित हुए थे। उन्होंने उन्हें बताया कि वह कितने प्रेम से १९५९ में इस क्षेत्र से होते हुए जाने का स्मरण करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वे एक नए शैक्षणिक संस्थान के लिए नींव का अनावरण करते हुए कितने प्रसन्न थे।

उन्होंने कहा, "मानव सुख स्नेह से उत्पन्न है।" "आपके बीच जितना अधिक प्रेम व करुणा भावना होगी आप उतना ही अधिक सुखी व संतुष्ट अनुभव करेंगे। जब आप में से कोई क्रोधित होता है तो उससे सब परेशान होते हैं। मेरा मानना है कि हम अधिक व्यापक रूप से करुणा का विकास कर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि २१वीं शताब्दी शांति का युग हो। मैं यहाँ हेलिकॉप्टर से पहुँचने वाला था, पर ऐसा हुआ कि मैं सड़क मार्ग से आया जिससे मुझे अतिरिक्त लाभ हुआ कि मैं रास्ते में और अधिक लोगों से मिल पाया। मैं आप में से हर एक को धन्यवाद देना चाहता हूँ जो मेरा स्वागत करने हेतु बाहर आए।

"१९५९ में, ल्हासा की स्थिति बेहद निराशाजनक थी और नियंत्रण से बाहर हो रही थी। मैंने स्थिति को हल करने का प्रयास किया, पर असफल रहा। १९५६ से पीएलए ने दोमे और दोखम में परिवर्तन लाने के लिए सैन्य बल का उपयोग किया था और हमारे पास उनको शांत करने के साधन समाप्त हो चुके थे। प्रधान मंत्री नेहरू ने उस बिंदु से सहायता प्रदान की जहाँ मैंने सीमा पार की थी। मैं उनसे पहले बीजिंग में मिला था और बाद में १९५६ में भारत मैंने तिब्बत की स्थिति के बारे में उनके साथ चर्चा की। १९५९ जब मुझे ल्हासा से पलायन करना पड़ा तो भारत में सीमा पार करने के पश्चात ही मैंने जोखिम और खतरे से मुक्त होने का अनुभव किया। स्थानीय लोगों ने मुझ पर सम्मान और भक्ति की बौछार कर दी और मेरे साथ आए कई तिब्बतियों के साथ अत्यंत दयालुता का व्यवहार किया।

Some of the more than 50,000 people attending His Holiness the Dalai Lama's teaching at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 8, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"मुख्यमंत्री ने मुझसे यहाँ कलचक्र अभिषेक देने का अनुरोध किया है। इस समय मैं कुछ भी वादा नहीं कर सकता, पर मैं इसे ध्यान में रखूंगा। आप सभी के लिए मुख्य उद्देश्य धर्म से परिचित होना होगा। इस समय मैं 'भावना क्रम' का पठन करने वाला हूँ जो आधार, मार्ग और परिणाम को व्याख्यायित करता है और साथ ही शमथ और विपश्यना की भी बात करता है।

"ञनगोन सुंगरब बौद्ध शिक्षाएँ जो सामान्य संरचना से संबंधित है और वे जो कुछ विशेष शिष्यों को ध्यान में रख कर संरचित हैं, के बीच एक अंतर करते हैं। चार आर्य सत्य और ३७ बोध्यांग जो हम पालि परम्परा और संस्कृत परम्परा में प्रज्ञा- पारमिता में पाते हैं, वे सामान्य संरचना से संबंधित हैं। चाहे बुद्ध ने एक भिक्षु की आड़ में दी हों अथवा वे मंडल के देवता के रूप में उभरी हों, तंत्र विशिष्ट शिष्यों के लिए तैयार की गई शिक्षाएँ हैं। तिब्बत में सामान्य संरचना की शिक्षाएँ दूर दूर तक फैलीं, सक्याओं के १८ ग्रंथ हैं और ञिङमाओं के १३ शास्त्रीय ग्रंथ हैं, परन्तु तांत्रिक निर्देशों में बहुत रुचि दिखाई दे रही है।

"चाहे आप कितना ही समय एकांतवास में क्यों न लगाएँ और चाहे आप कितने मंत्रों का पाठ क्यों न करें, यदि आपका चित्त परिवर्तित न हो तो अभ्यास से बहुत सहायता नहीं मिलती। परन्तु यदि आप प्रेम और करुणा के बारे में सोचते हैं और कई वर्षों तक शून्यता को समझने का प्रयास करते हैं, तो आप अपने आप में एक परिवर्तन देखेंगे। मैं स्वयं देव-योग अभ्यास करता हूँ, पर वास्तव जिसने मेरे चित्त में परिवर्तन लाने में सहायता दी वह शून्यता और प्रतीत्य समुत्पाद पर और साथ ही प्रेम और करुणा पर ध्यान है।

"ञिङमा परंपरा में नौ यान या वाहनों की चर्चा होती है, तीन बाह्य यान -श्रावक यान, प्रत्येक बुद्ध यान और बोधिसत्वयान, तीन आंतरिक वैदिक जैसे संन्यास यान - क्रिया, चर्या व योग तंत्र और शक्तिशाली रूपांतरण के तीन गुह्य वाहन- महा, अनु और अति योग।"

His Holiness the Dalai Lama during his teaching at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 8, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन ने समझाया कि 'भावना क्रम' की रचना ठिसोंग देचेन के अनुरोध पर तिब्बत में की गई थी, जबकि 'बोधिसत्व के ३७ अभ्यास' एक तिब्बती आचार्य ने लिखा था जो बोधिसत्व के रूप में प्रशंसित थे, जो ज्ञलसे - बोधिसत्व - थोगमे संगपो नाम से जाने जाते थे। यह बोधिचित्तोत्पाद की शिक्षा देता है। परम पावन ने अपने श्रोताओं को स्मरण कराया कि इन ग्रंथों को पढ़ने से पहले गुरु और शिष्य दोनों को अपने उद्देश्य की जांच करनी चाहिए।

उन्होंने बताया कि वे कितने प्रभावित हुए थे जब उन्होंने सेले रंगडोल नाम के एक लामा के बारे में पढ़ा जिन्होंने अपने शिक्षण को लेकर तीन प्रतिज्ञाएँ ली थीं; एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए जानवरों की सवारी नहीं करेंगे, केवल शाकाहारी भोजन करेंगे और अपने शिक्षण के लिए कोई धन राशि न लेंगे। सन्यासी गोछंगपा ने भी कहा कि लामा को भौतिक लाभ के लिए शिक्षा नहीं देनी चाहिए। परम पावन ने आगे कहा कि अनुयायियों में भी उचित प्रेरणा होनी चाहिए तथा अार्यदेव की 'चतुश्शतक' का उद्धरण देते हुए कहा, "अकुशल कर्मों से छुटकारा पाएँ, मिथ्या दृष्टि से छुटकारा पायें और वस्तुनिष्ठता के सभी विकृत विचारों से छुटकारा पाएँ।" परम पावन ने विनाशकारी भावनाओं के दोषों से मुक्त होने के लिए दृढ़ संकल्प और प्रबुद्धता के लिए बोधिसत्व आदर्श के ज्ञान को विकसित करने का सुझाव दिया।

यह उल्लेख करते हुए कि उनकी दूसरी प्रतिबद्धता धार्मिक सद्भाव के विकास को प्रोत्साहित करना है, परम पावन ने टिप्पणी की कि जैसे यह सुझाव देना बेतुका है कि सभी रोगों के निवारण हेतु एक सर्वोत्तम दवा है, यह सुझाव देने बेतुका है कि एक ही धर्म सभी के लिए श्रेष्ठ है।

जैसे ही उन्होंने कमलशील के 'भावनाक्रम' का पठन प्रारंभ किया परम पावन ने यह खुलासा किया कि उन्होंने इसे सक्या उपाध्याय संज्ञे तेनज़िन से प्राप्त किया था, जिसने इसे सम्ये में खम्पा लामा से प्राप्त किया था, जो संभवतः खेमपो शेनगा के शिष्य थे। उन्होंने त्वरित गति से पढ़ना प्रारंभ किया और चित्त क्या है, चित्त शोधन, करुणा और समता को विकसित करना, प्रेम व करुणा के मूल जैसे विषयों पर बात की। ग्रंथ शमथ के अभ्यास को भी संदर्भित करता है और विपश्यना को वास्तविक करता है, यह धारणा कि ऐसा नहीं है कि वस्तुओं का अस्तित्व नहीं हैं, पर मात्र इतना कि वे उस रूप में अस्तित्व नहीं रखतीं जिस रूप में वे दिखाई देती हैं।

Some of the more than 50,000 people listening to His Holiness the Dalai Lama's teaching at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 8, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन ने प्रेस के सदस्यों के साथ भेंट की। उन्होंने उन्हें मानव मूल्यों को बढ़ावा देने, मुख्य रूप से करुणा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बारे में बताना प्रारंभ किया। उन्होंने उनको बताया कि वैज्ञानिकों का निष्कर्ष कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा का एक संकेत है, वो नहीं होता यदि आधारभूत प्रकृति क्रोध की होती। उन्होंने दुःख जताया कि आधुनिक शिक्षा भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है और आंतरिक मूल्यों के प्रति पर्याप्त चिंता नहीं रखती। उन्होंने घोषणा की कि इस महीने के अंत में वे स्कूल और विश्वविद्यालय के छात्रों में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लागू करने के लिए एक पाठ्यक्रम के सह-संकलक के साथ भेंट करेंगे। उन्होंने धार्मिक सद्भाव के प्रति भी अपना समर्थन और भारत में जिस तरह यह दीर्घ काल से फली फूली है, उसके प्रति सराहना व्यक्त की। अंत में उन्होंने उल्लेख किया कि वे अपनी सभी राजनैतिक जिम्मेदारियों को एक निर्वाचित नेतृत्व में स्थानांतरित कर चुके हैं परन्तु तिब्बती पर्यावरण और तिब्बती संस्कृति और भाषा को जीवित रखने को लेकर चिंतित हैं।

उनके उत्तराधिकारी में रुचि के कारण परम पावन से सीधा प्रश्न रखा गया कि १५वें दलाई लामा का जन्म कहाँ होगा। उन्होंने उत्तर दिया, "कोई नहीं जानता मैं प्रार्थना करता हूँ कि मैं सत्वों की सेवा करने में सक्षम रहूँ, पर कभी-कभी मुझे संदेह होता है कि मैं १३वें दलाई लामा के पुनर्जन्म का रूप हूँ।" जब एक अन्य पत्रकार ने उल्लेख किया कि चीनी सरकार ने ज़ोर देकर कहा है कि उनके उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय करना उनका अधिकार है, परम पावन ने इसे बकवास कहा। उन्होंने यह माना कि अतीत में चीनी सम्राट ने दलाई लामा की मान्यता में रुचि ली थी, पर वह उस समय था जब सम्राट स्वयं को आध्यात्मिक शिष्य के रूप में देखते थे।

"यदि चीनी सरकार इसमें शामिल होना चाहती है तो सर्वप्रथम उन्हें अवतार के सिद्धांत की स्वीकृति की घोषणा करनी चाहिए। इसके बाद उन्हें किसी तरह की वैधता के लिए माओ-चे-दोंग और देंग जियाओपिंग के पुनर्जन्म को पहचानना चाहिए।

His Holiness the Dalai Lama speaking with members of the press at Yiga Choezin in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 8, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

जब यह सुझाव दिया गया कि तवांग के लोग चाहेंगे कि दलाई लामा उनके बीच में पुनः जन्म लें, परम पावन ने उत्तर दिया दिया कि लद्दाख में यहाँ तक कि यूरोप में भी ऐसे लोग हैं जो यही कहते हैं। उन्होंने दोहराया कि १९६९ में ही अपने मार्च १० के अपने बयान में, उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि एक और दलाई लामा हों अथवा नहीं यह तिब्बती लोगों पर निर्भर करता है। उन्होंने माना कि यदि वे यह स्वीकारते हैं कि यह ऐसी संस्था है जो अब प्रासंगिक नहीं तो यह समाप्त कर दी जाएगी। वे आशा करते हैं कि तिब्बती शरणार्थी, मंगोलियाई और हिमालय क्षेत्र लद्दाख से तवांग तक के लोग इस निर्णय में अपना मत दे सकेंगे।

उन्होंने उल्लेख किया कि इस साल के उत्तरार्ध में वे प्रमुख तिब्बती आध्यात्मिक नेताओं के साथ चर्चा प्रारंभ कर सकते हैं कि किस तरह आगे बढ़ा जाए। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर कि क्या भविष्य में दलाई लामा एक महिला हो सकती है, अपने ही प्रश्न के साथ दे दिया है "क्यों नहीं? पहले ही उच्च महिला पुनर्जन्म के उदाहरण हैं।"

उन्होंने एक प्रतिक्रिया को दोहराया जो उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व न्यूयार्क में दिया था, अपने चश्मे को निकालकर और अपने प्रश्नकर्ताओं को चुनौती देते हुए, "मेरे चेहरे को देखें। क्या आपको लगता है कि मेरे पुनर्जन्म की यह बात अत्यावश्यक है?"

अंत में, उनसे पूछा गया कि वह किस तरह इतने स्वस्थ रहते हैं और उन्होंने उत्तर दिया,

"मैं कभी-कभी इसका उत्तर देता हूँ, 'यह मेरा रहस्य है,' पर सच यह है कि ऐसा चित्त की शांति के कारण है। वह और लगातार नौ घंटे की नींद। मैं शाम को ६:३० तक सो जाता हूँ और दूसरे दिन प्रातः ३:३० उठकर ४-५ घंटे ध्यान करता हूँ। केवल अपनी आँखों को बंद कर और चित्त को शिथिल करते हुए ही नहीं अपितु गहन विश्लेषण करते हुए, उदाहरण के लिए, प्रतीत्य समुत्पाद और यह किस प्रकार वास्तविकता से संबंधित है।"

कल, परम पावन सहस्र बाहु और सहस्र चक्षु वाले अवलोकितेश्वर के संबंध में एक अभिषेक प्रदान करेंगे और छठवें दलाई लामा छंगयंग ज्ञाछो के जन्मस्थान उग्येन लिंग की यात्रा करेंगे।

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