परम पावन 14 वें दलाई लामा
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परम पावन दलाई लामा का राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधन ११/फरवरी/२०१७

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हैदराबाद, तेलंगाना, भारत - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने विजयवाड़ा से हैदराबाद के लिए एक अपेक्षाकृत छोटी और शांत उड़ान भरी, जहाँ सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के प्रतिनिधियों ने उनका स्वागत किया। वे गाड़ी से अकादमी गए जहाँ अकादमी की निदेशिका सुश्री अरुणा बहुगुणा, जो इस महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत प्रथम महिला अधिकारी हैं, ने राजस्थान भवन गेस्ट हाउस में उनका स्वागत किया। राजस्थान भवन एक पहाड़ी पर स्थित है जहाँ से हरा भरा लॉन और दूर स्थित हैदराबाद का मीर आलम टैंक दिखाई देता है।


मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन परिसर के शहीद स्मारक, एक विद्युत संचालित गोल्फ मोटर से गए जहाँ श्वेत वर्दीधारी पुलिस बैंड ने वादन प्रस्तुत किया और उन्होंने पुष्पांजलि अर्पित की। बेसिक पाठ्यक्रम प्रशिक्षण परिसर के पीछे उन्होंने एक पौधारोपण किया जो उनकी इस यात्रा का स्मारक होगा। केन्द्रीय सभागार में पहुँचकर जहाँ २०० की संख्या में श्रोता, जिनमें भूटान, मालदीव और नेपाल से १३९ भारतीय पुलिस सेवा परिवीक्षाधीन अधिकारी और प्रशिक्षु अधिकारी उन्हें सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्होंने मंच पर आसन ग्रहण किया। एक युवती प्रशिक्षु ने उनका परिचय दिया और उन्हें संबोधन के लिए आमंत्रित किया।

"साधारणतया जब मैं सार्वजनिक रूप से बोलता हूँ तो मुझे खड़े होना अच्छा लगता है," उन्होंने प्रारंभ किया, "परन्तु कल की व्यस्तता के बाद, मुझे थोड़ी थकावट का अनुभव हो रहा है। परसों भी जब मैं विजयवाड़ा पहुँचा तो मैं नागार्जुनकोंडा के पास एक बौद्ध क्षेत्र अमरावती की यात्रा की सोच रहा था पर जहाँ अपने मन में मैं जाने के लिए उत्सुक था, पर मेरे शरीर ने मुझे बताया कि वह थक गया था। तो क्या मुझे बैठ कर बोलने के लिए आपकी अनुमति मिल सकती है?"

प्रश्न के उत्तर में एक समवेत स्वर गूंजा "हाँ सर।"

"प्रिय भाइयों और बहनों कहकर ही मैं सदैव श्रोताओं को संबोधित करता हूँ, क्योंकि मनुष्य रूप में पर सब एक ही हैं। इन दिनों कई समस्याएँ जिनका सामना हम कर रहे हैं वे हमारी अपनी निर्मित हैं, चूँकि हम इस तथ्य की उपेक्षा करते हैं कि आधारभूत स्तर पर हम सभी एक समान हैं। जिस तरह से हमारा जन्म होता है और जिस तरह से हम चले जाते हैं, वह एक जैसा है। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं।

"हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और हम सभी को ऐसा करने का अधिकार है, यदि हम वास्तव में इसकी पहचान कर लें तो शोषण, बदमाशी या अन्य लोगों की हत्या के लिए कोई स्थान न रह जाएगा। यही कारण है कि हमें मानवता की एकता की सराहना करने के प्रयास की आवश्यकता है। मैं यहाँ इस अकादमी, जिसका नाम सरदार पटेल के नाम पर है जिनकी दूरदर्शिता और दृढ़ चरित्र के कारण मैं उनका प्रशंसक हूँ, में पुनः एक बार आकर बहुत खुश हूँ। आप भी भाग्यशाली हैं कि यहाँ इस तरह के एक सुखद स्थान में हैं जो मुझे एक एकांत वास स्थान का स्मरण कराता है। जब मैं निदेशक से बात कर रहा था, तो मैंने पूछा, कि शूटिंग रेंज कहाँ था। उन्होंने मुझे बताया कि वह दूसरी ओर है।


"१९५६ में जब मैं पहली बार भारत आया था तो मैंने अपने अंगरक्षक की जैकेट के नीचे एक उभार देखा और उससे पूछा कि वह क्या था। उसने यह कहते हुए अपनी बंदूक दिखाई 'यह पाप का एक साधन है।' परन्तु मुझे लगता है कि हमें स्पष्ट होना चाहिए कि एक मानव का कार्य 'पाप' है या नहीं, प्रेरणा और उसके लक्ष्य पर निर्भर करता है। आपके संबंध में भारतीय पुलिस सेवा के सदस्यों के रूप में आपके काम का एक भाग सबसे अधिक जनसंख्या वाले इस लोकतंत्र की संस्थाओं की सुरक्षा करना है। मुझे लगता है कि यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत के विभिन्न पड़ोसियों के बीच, यह देश उल्लेखनीय रूप से स्थिर और शांतिपूर्ण है। आप एक बंदूक रख सकते है, पर यह एक सुरक्षात्मक उद्देश्य के लिए है।

"३००० वर्षों से भी अधिक समय से यहाँ अहिंसा पोषित हुई है। अहिंसा करुणा से संबंधित है। पर आप वास्तव में उसी समय अहिंसा में संलग्न होते हैं जब आपके पास किसी पर हिंसक रूप से मारने का अवसर होता है, पर उसके बावजूद आप अपने आप को काबू में रखते हैं। अहिंसा को प्रभावी होने के लिए आप को करुणा से प्रेरित होने की आवश्यकता है।"

परम पावन ने उल्लेख किया कि प्राचीन मिस्र, चीनी और सिंधु घाटी सभ्यताओं के बीच, सिंधु घाटी समुदायों ने विचारकों और उन्नत विचारों की परम्परा को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि वे मानते हैं कि नागार्जुन, आर्यदेव और चन्द्रकीर्ति जैसे आचार्यों ने जो कहा, उसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ हुए ३० वर्षों से अधिक विचार विमर्श का उल्लेख किया, जो अब प्राचीन भारतीय ज्ञान में एक गहन रुचि दिखाते हैं।

"८वीं शताब्दी में," उन्होंने समझाया, "चीन के साथ संबंध होने के बावजूद तिब्बती सम्राट ने भारत को बौद्ध शिक्षकों की खोज के लिए चुना। नालंदा १०,००० से अधिक छात्र लिए अग्रणी संस्था थी। नालंदा के शीर्ष विद्वान शांतरक्षित को तिब्बत आने के लिए आमंत्रित किया गया। वे आए और उन्होंने वहाँ बौद्ध धर्म की स्थापना की और दर्शन के अध्ययन के लिए एक रूप रेखा दी, जो न केवल आस्था के आधार पर अपितु कारण और तर्क के प्रकाश पर आधारित थी। इस नालंदा परंपरा में कुछ अनूठा है, जो हम तिब्बतियों ने उस समय से बरकरार रखा है। आज वैज्ञानिक यह सीखने में रुचि दिखा रहे हैं कि चित्त और भावनाओं के कार्य के संबंध में प्राचीन भारतीय परम्परा क्या कहती है। इस बीच, मैं भारत के युवाओं से आधुनिक शिक्षा को प्राचीन भारत के मूल्यों और अंतर्दृष्टि, जो कि उनकी विरासत का अंग है, से जोड़ने का आग्रह कर रहा हूँ।"


रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने अनुष्ठान करने पर निर्भर न रहते हुए अध्ययन करने की आवश्यकता को दोहराया। आधुनिक विश्व में जहाँ धन की खोज आंतरिक मूल्यों के विकास की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, उन्होंने सुझाया कि शिक्षा व्यवस्था में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता या सार्वभौमिक मूल्यों को शामिल करने के एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

प्रशिक्षु पुलिस अधिकारियों की आवश्यकताओं को सीधी तरह से संबोधित करते हुए परम पावन ने उन्हें करुणाशील, सच्चे व ईमानदार होने की सलाह दी। उन्होंने उल्लेख किया कि कुछ देशों में लोग पुलिस से डरते हैं।

"भारत में, जहाँ लोकतंत्र के संरक्षण में पुलिस की एक भूमिका है, यदि आप ईमानदार हों तो आपका कार्य पारदर्शी होगा। आपके अधीनस्थ अधिकारी आप पर विश्वास करेंगे। पर यदि आप स्वयं एक बात कहें परन्तु अलग तरह से कार्य करें तो कोई विश्वास और कोई मैत्री न होगी। इसलिए, पुलिस अधिकारियों के लिए यह आवश्यक है कि वे ईमानदार, सच्चे और पारदर्शी हों।"

जब एक युवती ने आसन्न परीक्षा के तनाव से निपटने के संबंध में पूछा तो परम पावन ने सलाह दी है कि कभी कभी इस तरह का तनाव बेहतर अध्ययन करने के लिए आपको प्रोत्साहित कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह उनका अपना अनुभव था एक बार जब उन्होंने अपनी अंतिम परीक्षा लेने का निर्णय ले लिया।

परम पावन ने शिक्षा व्यवस्था में आंतरिक मूल्य, जिन्हें वे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के रूप में संदर्भित करते हैं, को शामिल करने के महत्व को दोहराया। चूंकि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, उन्होंने कहा, सौहार्दता की भावना के विस्तार के लिए अपनी बुद्धि के प्रयोग की आवश्यकता है। उन्होंने जारी रखते हुए कहा कि शिक्षा का उद्देश्य एक अधिक सुखी समाज का निर्माण करना है, तो आज जिसकी आवश्यकता है वह है एक अधिक समग्र दृष्टिकोण जो प्रेम और करुणा के अभ्यास को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि यदि हम आगे देखें, योजना बनाएँ और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के अभ्यास को प्रोत्साहित करने का प्रयास करें, तो इस सदी के अंत तक हम एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व निर्मित कर पाएँगे।

"मैं धन्यवाद देता हूँ कि आपने मुझे आप के साथ विचारों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया," परम पावन ने समापन किया। "और मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहूँगा कि जब से १९५९ से मैं भारत आया, भारतीय पुलिस मुझे अपना संरक्षण देने में पूरी ईमानदारी बरती है। धन्यवाद।"

निदेशिका सुश्री अरुणा बहुगुणा ने परम पावन को उनकी यात्रा पर एक फ्रेम स्मृति चिन्ह प्रस्तुत किया। एक भूटानी प्रशिक्षु ने आभार प्रदर्शन व्यक्त किया और परम पावन को एसवीपीएनपीए के सदस्यों से बात करने के लिए धन्यवाद दिया। सभागार के बाहर, प्रशिक्षु अधिकारी परम पावन के साथ एक सामूहिक तस्वीर के लिए पोज़ करते हुए एकत्रित हुए, जिसके पश्चात परम पावन ने विदा ली। कल वे हिटेक्स ओपन एरीना में एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे।

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