परम पावन 14 वें दलाई लामा
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कालचक्र अभिषेक के लिए शिष्यों की तैयारी १०/जनवरी/२०१७

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बोधगया, बिहार, भारत - बोधगया में रात्रि की वर्षा ने धूल शांत कर दी, रास्तों को गीला और दलदला बना दिया किन्तु छाता विक्रेताओं की बेचने की संभावनाओं को सुधार दिया। कालचक्र मंदिर के लिए निकलने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने नेशनल ज्योग्राफिक टेलीविजन के लिए ऑस्ट्रेलियाई के पूर्व युद्ध संवाददाता मिशेल वेयर को एक साक्षात्कार दिया। उन्होंने उसे सहज करते हुए प्रारंभ किया:

"कृपया मुझे केवल एक मानव के रूप में देखें। मैं नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका के साथ काफी परिचित हूँ। जब मैं बच्चा था ते मैंने १३वें दलाई लामा के कक्ष में दो या तीन प्रतियां पाईं, उस कक्ष में जहाँ उनका देहावसान हुआ था।"

वेयर ने उन्हें हेनरिक हेरेर द्वारा १९५० के दशक में पत्रिका के लिए लिखा हुआ एक लेख दिखाया और परम पावन ने उन्हें बताया:

"वे ही थे जिन्होंने सबसे पहले मुझे यूरोप के बारे में बताया। बाद में, वे तिब्बत के सबसे विश्वसनीय समर्थकों में से एक बन गए।"

वेयर ने परम पावन बताया को बताया कि इराक और अन्य स्थानों के युद्ध के उनके अनुभवों ने उनके अंदर एक युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। वेयर ने पूछा कि वह क्या करे। परम पावन ने उत्तर दिया कि बच्चों के रूप में हम उन्मुक्त हृदय लिए आनन्द से भरे होते हैं। जो भी हमारे प्रति स्नेह प्रदर्शित करता है हम उसकी सराहना करते हैं, बिना कोई प्रश्न किए कि वे कहाँ से हैं, उनकी क्या आस्था है या फिर वे कितने धनवान या अच्छी पदवी पर हैं। बाद में पर्यावरण और शिक्षा प्रणाली के परिणामस्वरूप, हम स्नेह और करुणा के अपने आंतरिक मूल्यों की उपेक्षा करने लगते हैं। उन्होंने कहा,

"यदि आप आंतरिक मूल्यों पर चिन्तन पर कुछ समय लगाएँ तो यह आपकी व्याकुलता को शांत करेगा। हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है, तो यद्यपि मानव प्रकृति को करुणाशील बताया गया है, हम सत्ता और बल प्रयोग के संदर्भ में सोचते हैं। सर्वप्रथम तो, हमें जो करना है वह यह स्मरण रखना है कि अन्य लोग भी मनुष्य हैं। मेरा विश्वास है कि जिस व्यक्ति ने चित्त की शांति पा ली है वह अधिक सुखी होगा और उनके परिवार वाले भी अधिक सुखी होंगे।"

जब उन्हें इस विषय में कहने के लिए चुनौती दी गई कि मनुष्य अच्छे थे या बर्बर, परम पावन ने २० शताब्दी के दौरान लोकप्रिय दृष्टिकोणों में हुए परिवर्तन की ओर ध्यान आकर्षित किया। पहले प्रथम विश्व युद्ध और यहाँ तक कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय में, जब राष्ट्र युद्ध की घोषणा करते थे, तो उनके नागरिक गर्व के साथ और बिना कोई प्रश्न किए सम्मिलित हो गए थे। परन्तु वियतनाम युद्ध के समय तक हज़ारों ने मसौदे का विरोध किया और जब इराक संकट हुआ तो विश्व भर के लाखों लोगों ने प्रदर्शन यह दिखाने के लिए किया कि वे हिंसा से तंग आ चुके थे और एक और युद्ध का समर्थन नहीं करना चाहते थे। इसी तरह, परम पावन ने कहा कि जब वे पहली बार १९७३ में यूरोप गए और १९७९ में संयुक्त राज्य अमरीका गए तो वैश्विक उत्तरदायित्व के संबंध में उन्हें जो कहना था उसे लेकर कम रुचि थी पर आज उसमें बहुत वृद्धि हुई है।

इस प्रश्न पर कि क्या बुराई है, परम पावन ने टिप्पणी की कि वैज्ञानिक निष्कर्ष बताते हैं कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। उन्होंने कहा कि हिंसा भय, शंका और क्रोध से उत्पन्न होती है। चूँकि सामान्य बुद्धि के लिए कोई स्थान नहीं है तो एक बार क्रोध फूट पड़ा, तो अपने प्रतिद्वंद्वी के भय और शंका को पहले से शांत करने के लिए उपाय ढूँढना बेहतर होगा।

परम पावन के कई उत्तरों पर वेयर ने दीर्घ श्वास भरी और कहा, "काश मैं आपका विश्वास कर पाता।"

चूंकि परम पावन ने समझाया था कि ६० वर्षों के गहन आध्यात्मिक अभ्यास के कारण उन्होंने लगभग अपने क्रोध व मोह की भावना पर काबू पा लिया था, वेयर ने पूछा, "और अपनी मातृभूमि के विषय में। क्या आपका उसके साथ लगाव नहीं है?" परम पावन ने उत्तर दिया, "मैं ६ लाख तिब्बतियों के हित को लेकर अधिक चिंतित हूँ।" उन्होंने इस सुझाव का विरोध किया कि "तिब्बत जा चुका है", विशेष रूप से लोगों और एक जीवन शैली को लेकर। परम पावन ने इंगित किया कि भोट भाषा, उचित रूप से बौद्ध दर्शन की चर्चा के लिए सवर्श्रेष्ठ माध्यम है, अतः इसका संरक्षण केवल ६ लाख तिब्बतियों के नहीं, अपितु १ अरब बौद्धों के हित में भी है।

वेयर इस बात का आग्रह करता रहा कि राजनीतिक रूप और यथार्थ दृष्टिकोण से "तिब्बत जा चुका है।" परम पावन ने उन्हें स्मरण कराया कि विगत ६० वर्षों में चीन में एक ही कम्युनिस्ट पार्टी ने शासन किया था पर फिर भी विशिष्ट अवधियाँ देखी जा सकती हैं, जैसे माओ युग, देंग जियाओपिंग युग, हू जिंताओ युग और अब एक शी जिनपिंग युग। उस समय के दौरान बड़े परिवर्तन हुए हैं और ऐसा सोचने का कोई कारण नहीं कि परिवर्तन जारी नहीं रहेगा।

जब परम पावन ने उन्हें सूचित किया कि उन्हें जाना था, तो वेयर और उसकी कैमरा टीम उनके पीछे गई और कालचक्र प्रवचन स्थल पर उनकी गतिविधियों को रिकार्ड किया, जो ८ बजे के पहले से ही लोगों से भरने लगा था। परम पावन ने दिन की प्रक्रियाओं के प्रारंभ से पहले आवश्यक अनुष्ठान करने के लिए मंदिर में अपना आसन ग्रहण किया। मध्याह्न भोजन के बाद, वे मंदिर के मंच पर घोषित समय से पूर्व ही आ गए और परिचित चेहरों को देखने हेतु और सराहना करते जनमानस का हाथ हिलाकर अभिनन्दन करने के लिए मंच की ओर तक आए।

'हृदय सूत्र' का पाठ पहले नेपाली में और फिर रूसी में हुआ जिसके पश्चात 'अभिसमयालंकार' से वन्दना का पाठ हुआ:

मैं बुद्ध और संघ की उदात्त माँ को साष्टांग करता हूँ
श्रावकों और बोधिसत्व
जो आधारों के ज्ञाता के माध्यम से श्रावकों
को पूर्ण निर्वाण तक ले जाता है
जो मार्गों के ज्ञाता होते हुए
भव के सत्वों को लाभान्वित करते हैं
भव के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए;
और जो (सर्वज्ञ चित्त) के माध्यम से
बुद्ध सभी पक्षों की विभिन्नताओं को रखते हैं

आज, भगवान श्री कालचक्र अभिषेक की तैयारी प्रक्रियाओं से गुजरेगा।" परम पावन ने प्रारंभ किया। "कल, मंडल में प्रवेश के उपरांत हम देखेंगे कि बाल्यावस्था के रूप में सात अभिषेकों में से हम कितने कर सकते हैं। उसके पश्चात उच्चतर अभिषेक होंगे। कालचक्र इस सीमा तक गुह्य है कि सर्वप्रथम इसे न तो सार्वजनिक रूप से, न ही लोगों की एक बड़ी संख्या को दिया गया। यह राजा और शम्भाला के नागरिकों के अनुरोध पर दिया गया था। अभिषेक को बड़े समूहों को प्रदान करने की एक प्रथा है। मैंने अभिषेक अपने उपाध्याय लिंग रिनपोछे से प्राप्त किया था जिन्होंने इसे खंगसर दोर्जे छंग और सेरकोङ दोर्जे छंग से प्राप्त किया था।

"ऐसा कहा जाता है कि इस अभिषेक की प्राप्ति के फलस्वरूप हमारा जन्म शम्भाला में हो सकता है, पर हम नहीं जानते कि वह कहाँ है। उसे इस धरती पर होना चाहिए, पर प्रतीत होता है कि वह केवल विशुद्ध पुण्यवानों को प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि पलदेन येशे, ६वें पंचेन रिनपोछे, वहाँ गए हैं और उन्होंने एक मार्गदर्शक ग्रंथ की रचना की, पर हमें अब भी नहीं पता कि वह कहाँ है।"

परम पावन ने उल्लेख किया कि बाह्य और आंतरिक कालचक्र हैं, जो यह संदर्भित करते हैं कि किसका शुद्धीकरण किया जाना चाहिए और अन्य कालचक्र जो उनके शुद्धीकरण के उपायों को संदर्भित करते हैं। उन्होंने यह भी टिप्पणी की, कि शून्य रूप और अचल आनंद का संयोजन उपाय तथा प्रज्ञा के युग्म का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शिष्यों की तैयारी का प्रथम चरण परम पावन द्वारा उपासक/उपासिका साधारण लोगों के संवर प्रदान करने का था। तत्पश्चात पहले बोधिचित्तोत्पाद के विकास और बोधिसत्व संवर प्रदान करने के संक्षिप्त समारोह हुए। संवर प्रदान करने से पूर्व परम पावन ने टिप्पणी की कि ऐसा करने से शिष्य और आध्यात्मिक गुरु के बीच एक बंधन का निर्माण होता है।

"बहुत अधिक शोध करने के बाद," उन्होंने घोषणा की, "मुझे पता चला कि दोलज्ञल का जन्म विकृत प्रार्थनाओं के कारण हुआ था। पञ्चम दलाई लामा ने उसे द्रोही के रूप में वर्णित किया और कहा कि यह धर्म और सत्वों को हानि पहुँचाता है। यदि आप दोलज्ञल को तुष्ट करना चाहते हैं, तो यह आप पर निर्भर है। पर यदि आप मेरे साथ संबंध बनाना अथवा रखना चाहते हैं, तो कृपया दोलज्ञल के साथ भी संबंध न बनाएँ रखें।"

अगली प्रक्रिया नीम छड़ी को छोड़ने और आशीर्वचित जल का वितरण था। तिब्बती संसद के अध्यक्ष, खेनपो सोनम तेनफेल ने भिक्षुओं की ओर से प्रतिनिधित्व किया और सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे ने आम लोगों का प्रतिनिधित्व किया। तत्पश्चात लम्बे और छोटे कुश घास और रक्षा डोरियों का वितरण किया गया, जिसके साथ स्वप्नों की ओर ध्यान देने के निर्देश दिए गए। उसके बाद जो करने की आवश्यकता है और जो किया जा चुका है, उसकी घोषणा करते हुए परम पावन ने जनमानस को लौटने की सलाह दी जबकि उन्होंने अनुष्ठानों व जाप को पूरा किया।

कल वास्तविक अभिषेक प्रदान होगा। 

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