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कालचक्र अभिषेक का दूसरे दिन - शिशु प्रवृत्ति के सात अभिषेक १२/जनवरी/२०१७

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बोधगया, बिहार - आज, परम पावन दलाई लामा ने पुनः अपना दिनारंभ उषा काल में किया। उन्होंने कालचक्र मंदिर में साढे छह बजे अभिषेक प्रदान करने की तैयारियाँ करने के लिए अपना आसन ग्रहण किया।

जनमानस का अभिनन्दन करने हेतु पुनः मंच पर आने से पूर्व उन्होंने मध्याह्न भोजन के लिए एक लघु अंतराल लिया। और जनमानस ने, जैसा होता आ रहा है, सहोत्साह करतल ध्वनि से अभिनन्दन का उत्तर दिया। सिंहासन की ओर जाते हुए परम पावन ने अपने आसपास बैठे लामाओं को प्रणाम किया।

थेरावादी भिक्षु पालि में मंगल सुत्त का सस्वर पाठ करने के लिए पुनः एक बार उपस्थित थे, जिसके बाद मंगोलिया के दर्जन भिक्षुओं ने अपनी भाषा में 'हृदय सूत्र' का पाठ किया। सदैव की तरह वंदना, शरण गमन तथा बोधिचित्तोत्पाद के छंदों को दोहराने के उपरांत परम पावन ने आरंभ किया।

"आज हम शिशु प्रवृत्ति के सात अभिषेक करेंगे और उसके पश्चात चूँकि यहाँ हमारे साथ तिब्बत की बौद्ध परम्पराओं के प्रमुख और वरिष्ठ लामा हैं, हम उच्च और बहुत उच्चतर अभिषेक साथ ही वज्राचार्य का अभिषेक भी करेंगे।

"पिछले कुछ दिनों से इस बात के संकेत मिल रहे थे है, कि मुझे ठंड लग गई थी और आज मेरे गले में खराश है। यह इतना अधिक नहीं है, तो मैं अपना पूरा प्रयास करूँगा। हम किसी भी निरोधक शक्तियों को रोकने के लिए एक आनुष्ठानिक रोटी के समर्पण से प्रारंभ करेंगे। आज प्रातः मैंने कालचक्र के सम्पूर्ण काय, वाक् तथा चित्त के मंडलों का आत्म-सर्जन कर लिया है, साथ ही चित्त मंडल का अग्रिम सर्जन भी। दस कलश प्रधान और क्रमसूचक दिशाओं तथा ऊपर और नीचे रखे गए हैं। मैंने भी सात अभिषेकों का आत्म - अभिषेक भी कर लिया है। कल, जब हम उच्च और बहुत उच्चतर अभिषेक करेंगे, तो मैं सातवें दलाई लामा द्वारा लिखित निर्देशिका का उपयोग करूँगा।

"सात अभिषेकों और उपांग के संबंध में, जिन वस्तुओं का उपयोग किया गया है उनका संबंध वायु ऊर्जा और बाईं व दाहिनी नाड़ी से है जो कि मुख्य देव और उनकी शक्ति में जनित किए जाते हैं। अभिषेक वायुओं और नाड़यों को कार्य के योग्य कर देगा।"

मंडल समर्पण अमदो के एक समूह द्वारा किया गया।

परम पावन ने समझाया कि किस तरह वस्तुएँ आकाश से प्रारंभ होती हैं, उसके बाद तत्व उभरते हैं। अंत में, सब कुछ वापस आकाश में विलीन हो जाती हैं। उन्होंने आकाश कण का संदर्भ दिया, जो एक सूक्ष्म कण है और उल्लेख किया कि आज वैज्ञानिक इंगित करते हैं कि बिग बैंग को किसी रूप में प्रारंभ होना था। वे सोचते हैं कि आकाश कण जो कालचक्र में वर्णित है, वह उस का आधार हो सकता है। जिस क्रम में बाह्य तत्व उभरते हैं, वे हैं: आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, जबकि आकाश में उभरने के लिए आंतरिक तत्व चेतना है।

तत्पश्चात परम पावन सात अभिषेक प्रदान करने के लिए तत्पर हुए। जलाभिषेक, जो एक माँ के अपने नवजात शिशु को धोने से मेल खाता है, वह पांच घटकों के क्लेशों को स्वच्छ करता है और उन्हें पञ्च माताओं की प्रकृति में रूपांतरित करता है। यह शिष्यों को मार्ग के दौरान पञ्च माताओं पर आलम्बित कार्य व गतिविधियों की प्राप्ति की अधिकारिता प्रदान करता है, और इसके फल के रूप में प्रथम भूमि प्राप्त करने के लिए शक्ति छोड़ देता है।

शिरो अभिषेक, जो एक शिशु के सिर के शीर्ष भाग में केश बांधने से मेल खाता है, पञ्च स्कंधों के क्लेशों का शुद्धीकरण करता है। यह शिष्यों को पञ्च बुद्धों के माध्यम से कार्यों की प्राप्ति के लिए अधिकृत करता है और उनकी चैतसिक संतति में पञ्च बुद्धों की क्षमता छोड़ता है। परिणामस्वरूप यह दूसरी भूमि को पाने की शक्ति देता है।

शीर्ष फीता या कर्ण लटकन अभिषेक एक बच्चे के कर्ण छेदन की और उन्हें अलंकृत करने से मेल खाता है। यह दस वायुओँ के क्लेशों को दूर करता है और उन्हें उपयोगी बनाता है। यह शिष्यों की चैतसिक संतति में दश पारमिताओं की क्षमता छोड़ता है और इसके परिणाम उन्हें तृतीय भूमि पाने की क्षमता देता है।

वज्र और घंटा अभिषेक, जो बच्चे के हास्य और बात करने से मेल खाता है, दाएँ व बाईं नाड़ियों के क्लेशों को साफ करता है। यह मध्य नाड़ी में दाईं और बाईं नाड़ियों की वायु को बांधने की क्षमता छोड़ता है और उदात्त चित्त, महा आनंद और उसके सभी रूपों में उदात्त वाणी का बीज स्थापित करता है। यह चतुर्थ भूमि प्राप्त करने हेतु आंतरिक सूर्य और चंद्र के शुद्धीकरण के लिए क्षमता प्रदान करता है।

आचाराभिषेक, बच्चे के कामलोक की पांच विशेषताओं का आनंद लेने से मेल खाता है। जिस तरह ऐन्द्रिक बलों की वस्तुओं को देवों में उत्पन्न और आशीर्वचित किया जाता है, शिष्यों को पुरुष और स्त्री बोधिसत्व के कार्यों को प्राप्त करने और उनके स्वभाव को समझते हुए, जो कि आनन्द व शून्यता है, काम लोक की विशिष्टताओं का आनन्द लेने के लिए अधिकृत किया जाता है। यह वज्र भावना शक्तियों और उनके स्रोतों को प्राप्त करने की क्षमता के साथ ही इसके परिणामस्व पांचवीं भूमि को प्राप्त करने की क्षमता देता है।

नाम अभिषेक, बच्चे के नामकरण से मेल खाती है। एक साधारण नाम का उपहार के समाशोधन द्वारा, दुर्गति के क्लशों को दूर करता है। यह कर्म की इंद्रियों और उनकी गतिविधियों को शुद्ध करता है और शिष्यों को पुरुष और स्त्री, रौद्र देवों के कार्यों को प्राप्त करने की अधिकारिता प्रदान करता है और चार अप्रमाणों की कामना में बाधाओं पर काबू पाने की क्षमता देता है और छटी भूमि को प्राप्त करने की क्षमता देता है।

परम पावन ने फिर चार उपांग प्रदान किए: मंत्र, चक्षु औषधि, दर्पण और धनुष और तीर और, मुख्य उपांग, आचार्य का अभिषेक। यह बाद का अनुज्ञा अभिषेक, पिता द्वारा बच्चे को पठन की शिक्षा इत्यादि से मेल खाता है। जिस प्रकार शिशु के जन्म के बाद विशुद्ध चेतना (आनन्द) की वायु का संचरण होता है, अनुज्ञा अभिषेक साथ ही उसके उपांग विशुद्ध चेतना के क्लेशों को दूर कर देता है। चैतसिक संतति में वज्रसत्व का बीजारोपण विशुद्ध चेतना के घटकों को साफ करता है और उसके फलस्वरूप में सातवें भूमि को पाने की क्षमता देता है।

जब परम पावन दिन के समापन अनुष्ठान कर रहे थे तो मंच पर स्थित भिक्षु, साथ ही श्रोताओं में से कइयों ने कालचक्र प्रणिधान प्रार्थना का सस्वर पाठ किया। इन अनुष्ठानों में यह अभिषेक किस समय दिए गए थे, की घोषणा थी और खेडुब-जे की गणना के आधार पर परम पावन ने घोषणा की कि २५९४ वर्ष बीत चुके हैं जब बुद्ध द्वारा कालचक्र अभिषेक प्रदान किया गया था।

परम पावन कल उच्च और उच्चतर अभिषेक प्रदान करेंगे । 

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