परम पावन 14 वें दलाई लामा
मेन्यू
खोज
सामाजिक
भाषा
  • दलाई लामा
  • कार्यक्रम
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
हिंदी
परम पावन 14 वें दलाई लामा
  • ट्विटर
  • फ़ेसबुक
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब
सीधे वेब प्रसारण
  • होम
  • दलाई लामा
  • कार्यक्रम
  • समाचार
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
  • अधिक
सन्देश
  • करुणा
  • विश्व शांति
  • पर्यावरण
  • धार्मिक सद्भाव
  • बौद्ध धर्म
  • सेवानिवृत्ति और पुनर्जन्
  • प्रतिलिपि एवं साक्षात्कार
प्रवचन
  • भारत में प्रवचनों में भाग लेने के लिए व्यावहारिक सलाह
  • चित्त शोधन
  • सत्य के शब्द
  • कालचक्र शिक्षण का परिचय
कार्यालय
  • सार्वजनिक दर्शन
  • निजी/व्यक्तिगत दर्शन
  • मीडिया साक्षात्कार
  • निमंत्रण
  • सम्पर्क
  • दलाई लामा न्यास
पुस्तकें
  • अवलोकितेश्वर ग्रंथमाला 7 - आनन्द की ओर
  • अवलोकितेश्वर ग्रंथ माला 6 - आचार्य शांतिदेव कृत बोधिचर्यावतार
  • आज़ाद शरणार्थी
  • जीवन जीने की कला
  • दैनिक जीवन में ध्यान - साधना का विकास
  • क्रोधोपचार
सभी पुस्तकें देखें
  • समाचार

बोमडिला में प्रवचन , दीर्घायु अभिषेक , विहार की यात्रा शिक्षण, और एक व्याख्यान ५/अप्रैल/२०१७

शेयर

दिरंग, अरुणाचल प्रदेश, भारत, ५ अप्रैल २०१७ - आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा थुबछोग गछेल लिंग विहार के प्रांगण में आए, तो सर्वप्रथम उन्होंने युवा भिक्षुओं के एक समूह के साथ बात की और उन्हें शास्त्रार्थ करते हुए देखा। तत्पश्चात उन्होंने वयस्कों के एक आम समूह, जिन्होंने स्वयं के अध्ययन समूह का गठन किया है, से भी संक्षिप्त में बात की। उन्होंने उनके प्रयासों की सराहना की और उनसे इसे जारी रखने का आग्रह किया। प्रस्थान करने से पूर्व उन्होंने एक नूतन सभागार की नींव का अनावरण किया।

His Holiness the Dalai Lama saluting the crowd of 15,000 on his arrival at Buddha Park in Bomdila, AP, India on April 5, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन ने आगे पहाड़ी पर बोमदिला बुद्ध पार्क तक की छोटी दूरी गाड़ी से तय की। अनुमानतः १५,००० संख्या के जनामनस का अभिनन्दन करने के उपरांत उन्होंने सिंहासन पर आसन ग्रहण किया। यह समझाते हुए कि उन्हें श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक के लिए थोड़ा समय लगाना था, उन्होंने श्रोताओं से तारा मंत्रों का पाठ करने का अनुरोध किया।

"हम आज यहाँ आपके हेतु बुद्ध की एक शिक्षा सुनने के लिए एकत्रित हुए हैं," उन्होंने प्रारंभ किया। "बहुत समय पूर्व लोग सूर्य और चंद्रमा की पूजा करते थे, इस विश्वास के साथ कि वे उन्हें सुरक्षा प्रदान करते थे। बाद में धर्म उभरे जिन्होंने एक दार्शनिक दृष्टिकोण सम्मिलित किया। लगभग इन सभी धर्मों का आम उद्देश्य लोगों को बेहतर मानव बनने में सहायता करना है। वे सभी प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और क्षमा की शिक्षा देते हैं और उन्होंने दीर्घ काल से मानवता को लाभान्वित किया है।

"भारत में विश्व के सभी प्रमुख धर्म फलते फूलते हैं। इनमें इसी भूमि पर जन्मी सांख्य, मीमांसा और वेदांत परम्पराएँ, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म के साथ-साथ अन्य स्थानों पर जन्म लेने वाली परम्पराएँ भी शामिल हैं। वे यहां समन्वय भाव से रहती हैं। वे सभी प्यार और करुणा की शिक्षा देते हैं, जो कि आधारभूत मानव प्रकृति के साथ मेल खाता है और जिसकी मानवता को आवश्यकता है। हम सामाजिक प्राणी हैं और एक दूसरे के प्रति करुणा की भावना के बिना हम सुखी न होंगे। चाहे हम धार्मिक हों अथवा नहीं, विश्व में प्रेम और करुणा की आवश्यकता है।

Members of the crowd listening to His Holiness the Dalai Lama at Buddha Park in Bomdila, AP, India on April 5, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"मैं बुद्ध ने जो देशना दी उस पर बोलने जा रहा हूँ, जिसे अन्य परम्पराओं से उनके दार्शनिक दृष्टिकोणों के कारण अलग किया जा सकता है। कुछ परम्पराएँ एक सृजनकर्ता ईश्वर में विश्वास करती हैं, अन्य जैसे जैन धर्म, गैर-ईश्वरवाद सांख्य और बौद्ध धर्म किसी निर्माता पर बल नहीं लेते हैं, वे सिखाते हैं कि जिस भी पीड़ा और आनन्द का हम अनुभव करते हैं वह किसी ईश्वर से संबंधित नहीं, बल्कि उन कर्मों के फलस्वरूप हैं जो हमने किए हैं। जो बात बौद्ध धर्म को अलग करती है वह इसके नैरात्म्य का दावा है। यह किसी आत्म को नकारना नहीं है, आत्म का प्रकार्य है पर नैरात्म्य का अर्थ है कि हमारे शरीर और चित्त से अलग कोई स्वतंत्र, स्वायत्त, स्थायी अस्तित्व नहीं है।

"मैं एक बौद्ध हूं और मैंने बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया है, जिसका मैं प्रशंसक हूँ, पर मैं यह नहीं कह सकता कि यह सर्वश्रेष्ठ है, यह एक प्रश्न है कि किसी व्यक्ति को सबसे अधिक लाभ किससे होता है। यह ऐसा नहीं है कि हम कह सकें कि एक औषधि सभी अवसरों के लिए उपयुक्त है। और यद्यपि सभी खाद्य पौष्टिक होना चाहिए, पर यह कहने में कोई सार्थकता नहीं है कि यह सर्वश्रेष्ठ भोजन है। बुद्ध ने अपने श्रोताओं को उनके स्वभावानुसार अलग-अलग व्याख्याएँ दीं। 'ललितविस्तार' सूत्रानुसार उन्होंने स्वयं से कहा:

"गहन व शांतिमय, जटिलता से मुक्त,
असंस्कृत प्रभास्वरता-
मुझे अमृतसम धर्म की प्राप्ति हुई है
पर यदि मैं इसकी शिक्षा दूँ,
तो कोई समझ न पाएगा,
अतः मैं इस अरण्य में मौन रहूँगा।"

परम पावन ने व्याख्यायित किया कि उस समय बहुत कम नैरात्म्य के विचार को मानते, यद्यपि बुद्ध ने सोचा कि संभवतः उनके पाँच पुराने मित्र इसे स्वीकार कर सकते थे। उन्होंने उन्हें चार आर्य सत्य, दुःख, दुःख समुदय, निरोध व मार्ग की देशना दी। उन्होंने आगे प्रत्येक आर्य सत्य की चार आकारों का विस्तृत रूप दिया।

A view of the pavilion at Buddha Park, venue for His Holiness the Dalai Lama's teaching in Bomdila, AP, India on April 5, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

उदाहरण के लिए, दुःख का सत्य दुःख की अनित्यता, दुःखता, शून्यता और नैरात्म्य के संदर्भ में समझा जा सकता है। दुःख समुदय की आकारें हैं, हेतु, समुदय, प्रभव और प्रत्यय। निरोध सत्य को निरोध, शांत, प्रणीत, निःस्सरण (भवचक्र से) के संदर्भ में समझा जा सकता है जबकि मार्ग सत्य, मार्ग, जागरूकता, प्रतिपत्ति और नैर्याणिक रूप में संदर्भित होता है।

यह स्पष्ट करते हुए कि चार आर्य सत्य हेतु नियम को प्रकट करते हैं - दुःख उसके कारणों से उत्पन्न होता है, परन्तु मार्ग भी निरोध को जन्म देता है - परम पावन ने टिप्पणी की कि प्रथम दो आर्य सत्य स्पष्ट करते हैं कि दुःख किस तरह आता है, जबकि दूसरे दो दिखाते हैं कि किस तरह इन पर काबू पाकर भव चक्र से मुक्त हुआ जाए। उन्होंने बुद्ध को उद्धृत किया कि, 'दु:ख को जानना चाहिए, समुदय को प्रहाण करना चाहिए, िनरोध प्राप्त की जानी चाहिए तथा मार्ग का साधना किया जाना चाहिए।'

परम पावन ने स्पष्ट किया कि चार आर्य सत्य के साथ साथ बुद्ध ने बोधिपाक्षिक धर्म ३७ को समझाया, जिनमें ४ स्मृत्युपस्थान, ४ सम्यक प्रहाण, ४ ऋद्धियाँ, पञ्च बल, पञ्च इंद्रियाँ, ७ बोध्यांग और अष्टांगिक मार्ग शामिल हैं।
ये सब प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन से संबंधित हैं। उन्होंने आगे कहा कि द्वितीय धर्म चक्र प्रवर्तन के दौरान, बुद्ध ने प्रज्ञा पारमिता की शिक्षा दी।

His Holiness the Dalai Lama during the White Tara Long-Life Empowerment at Buddha Park in Bomdila, AP, India on April 5, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"निरोध को ठीक से समझने के लिए, आपको यह समझने की आवश्यकता है कि अज्ञान क्या है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है - यहीं पर शून्यता की समझ आती है। तृतीय धर्म चक्र प्रवर्तन का एक पक्ष वह है जो द्वितीय धर्म चक्र प्रवर्तन में समझाया गया था जो कि तीन प्रकृतियों के संबंध में है और उन्हें किस तरह परिभाषित किया जाता है: ज्ञापित प्रकृति का कोई आंतरिक अस्तित्व नहीं है; आश्रित प्रकृति स्वयं निर्मित नहीं है और परम प्रकृति का कोई परम स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। और गुप्त मंत्र या वज्रयान के संबंध में, 'तथागतगर्भ सूत्र' सिखाता है कि चित्त आदि रूप से विशुद्ध है। चित्त के सभी पक्ष विशुद्ध जागरूकता से व्याप्त होते हैं। जब हम अपने आप को एक देव के रूप में उभरता पाते हैं तो इस आदि चित्त का प्रयोग करते हैं और परिवर्तित करते हैं।"

जब वे श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक प्रदान करने लगे तो परम पावन ने पूछा कि बुद्ध सत्वों की किस तरह सहायता करते हैं और स्पष्ट किया कि अज्ञान को दूर करने के लिए वास्तविकता जैसी है उसकी शिक्षा देना। उन्होंने जीवन के चक्र का संदर्भ दिया और संकेत दिया कि केन्द्र में अज्ञान को एक सुअर के रूप में दर्शाया गया है जो कामना, मुर्गा और घृणा, सर्प को जन्म देता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बाहरी परिधि में प्रतीत्य समुत्पाद के द्वादशांग चित्रित किए गए हैं जो फिर से अज्ञान से प्रारंभ होते हैं जिसे एक वृद्ध अंधे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है।

दीर्घायु अभिषेक के दौरान परम पावन ने बोधिचित्तोत्पाद समारोह का नेतृत्व किया। अंत में उन्होंने हर उपस्थित व्यक्ति चाहे वे आम व्यक्ति हों अथवा भिक्षु से आग्रह किया कि वे यथासंभव अध्ययन करें।

His Holiness the Dalai Lama arriving at Gontse Rabgyeling Monastery in Bomdila, AP, India on April 5, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन गाड़ी से पास के गोनचे रबज्ञल लिंग विहार गए, जहाँ मार्ग का अंतिम भाग छोटे बालकों द्वारा पंक्तिबद्ध था, जो वहाँ के छात्र हैं। वहाँ उनका पारम्परिक रूप से स्वागत किया गया था और विभिन्न पवित्र मूर्तियों के समक्ष अपना सम्मान व्यक्त कर वे एक कुर्सी पर बैठ गए। उपाध्याय ने एक रिपोर्ट पढ़ी जिसमें कहा गया था कि विहार जिस रूप में तिब्बत में है उसका समय ५वें दलाई लामा के समय का है। इसे १९६५ में बोमदिला में पुन: स्थापित किया गया था और इसके डेपुंग लोसेललिंग महाविहार के साथ ऐतिहासिक संबंध के कारण, वहाँ से चार आचार्यों को शिक्षण के लिए आमंत्रित किया गया। इसने आधुनिक शिक्षा तथा विहारों के प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक स्कूल की स्थापना की है। उपाध्याय ने एक प्रार्थना के साथ समाप्त की कि परम पावन बार-बार पधारें और दिवंगत छोना रिनपोछे का अवतार बिना किसी त्रुटि के पाया जाए।

"विगत समय से पूर्व के छोना रिनपोछे," परम पावन ने उत्तर दिया, "लिंग रिनपोछे के समकालीन थे और संभवतः उन्होंने इसी शास्त्रार्थ के प्रांगण में भाग लिया हो। लिंग रिनपोछे ने मुझे बताया था कि वह विशेष रूप से विशिष्ट विद्वान नहीं थे जब तक वे विनय में नहीं आए, जिस पर उन्होंने उत्कृष्टता हासिल की थी। निर्वासन में, लिंग रिनपोछे, ठिजंग रिनपोछे और छोना रिनपोछे अभिन्न मित्र थे।

"दिवंगत छोना रिनपोछे युवा रूप में एक प्रतिभावान भिक्षु थे। वह चतुर और एक अच्छे विद्वान थे और उनकी असामयिक मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण थी। उन्होंने इस विहार का निर्माण प्रारंभ किया और यह श्रेय आपको जाता है कि आपने इसे पूरा कर लिया है। मुझे यह जानकर खुशी है कि आप अध्ययन के लिए अवसर प्रदान करने के प्रयास कर रहे हैं। कुछ समय के लिए अब मैंने अनुष्ठानिक भिक्षु विहारों और भिक्षुणी विहारों को प्रोत्साहित किया है कि वे ऐसे अवसरों को शामिल करें। परिणामस्वरूप हाल ही बीस भिक्षुणियों को गेशे-मा की उपाधि से सम्मानित किया गया।"

युवा भिक्षुओं के शास्त्रार्थ कौशल के प्रदर्शन को देखने के बाद, विहार ने परम पावन को मध्याह्न भोजन के लिए आमंत्रित किया।

His Holiness the Dalai Lama speaking at the High School Auditorium Bomdila, AP, India on April 5, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

मध्याह्न भोजन के बाद हाई स्कूल सभागार में, परम पावन ने बोमदिला के ३०० महान और अच्छे लोगों के समूह को संबंधित किया। उन्होंने उन्हें अपनी प्रतिबद्धताओं के बारे में बताया, कि वे जहाँ कहीं भी जाते हैं वह मानव मूल्यों की तत्काल आवश्यकता, मानवता की एकता की सराहना और दूसरों के कल्याण के प्रति चिंता की बात करते हैं। उन्होंने धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अपने समर्पण का भी उल्लेख किया। एक तिब्बती के रूप में, हर तरह के राजनीतिक उत्तरदायित्व से पूरी तरह से अवकाश ग्रहण करने के बावजूद, वह तिब्बती संस्कृति को जीवित रखने और तिब्बती पर्यावरण को बेहतर रूप से संरक्षित रखने को लेकर चिंतित हैं। अंत में, भारत में ५८ वर्ष रहने के बाद, वे आज भारतीयों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं कि वे प्राचीन भारतीय ज्ञान से विशेषकर चित्त और भावनाओं के कार्य की समझ के बारे में क्या सीख सकते हैं।

परम पावन से भोट भाषा में विराम चिह्नों के अभाव और बौद्ध जिन्हें सिखाया जाता है कि वे अन्य प्राणियों को हानि न पहुँचाएं क्या वे शाकाहारी हैं? से संबंधित प्रश्नों के उत्तर दिए। उन्होंने एक श्रीलंका के भिक्षु को उद्धृत किया जिन्होंने उन्हें बताया था, कि चूँकि वे अपनी आजीविका के लिए भिक्षाटन पर निर्भर हैं, बौद्ध भिक्षु न तो शाकाहारी हैं और न ही मांसाहारी होते हैं। शिक्षा में अधिक प्रभावी होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने सुझाव दिया कि केवल यांत्रिकी रूप से न होकर अपने विद्यार्थियों के प्रति स्नेहाभिव्यक्ति और उनके अध्ययन में सच्ची रुचि एक अच्छी शुरुआत है।

चुनौती पूर्वक स्वर में यह कहे जाने पर कि लोगों को क्यों धार्मिक होना चाहिए, जब धर्म में इतनी मुश्किलें पैदा करने की क्षमता है, परम पावन ने कहा कि पोप ने हाल ही में कहा था कि यह बेवकूफ ईसाई से कहीं बेहतर एक अच्छा इंसान बनना है और सहमति व्यक्त की कि एक मूर्ख बौद्ध की तुलना में अच्छा इंसान बनना बेहतर है। यह पूछे जाने पर कि एक शांतिपूर्ण मृत्यु के लिए किस तरह तैयार हुआ जाए, उन्होंने सुझाया कि पहला कदम यथार्थवादी होना चाहिए, यह स्वीकारें कि मृत्यु जीवन का अंग है और इस बारे में चिंता न करें।

बोमदिला से सड़क मार्ग से प्रस्थान कर परम पावन मोटर गाड़ी से दिरंग गए, जो कि काफी हद तक निचली घाटी में है। एक बार पुनः हर्षोल्लास से भरे लोग स्कार्फ और धूप लेकर मार्ग पर पंक्तिबद्ध थे। शहर के ऊपर एक पहाड़ी पर थुबसुंग दरज्ञेलिंग विहार पर पहुँचने पर उनका पारम्परिक रूप से स्वागत किया गया। उन्होंने स्वागत के रूप में फीता काटा तथा मंदिर के द्वार खोले और एक बार अंदर प्रवेश कर उसी से संबंधित एक पट्टिका का अनावरण किया।

कल, परम पावन प्रातः एक औपचारिक उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लेंगे और मध्याह्न में 'चित्त प्रशिक्षण के अष्ट पद’ पर प्रवचन देंगे और बाद में अवलोकितेश्वर की अनुज्ञा प्रदान करेंगे।

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब
  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

शेयर

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • ईमेल
कॉपी

भाषा चुनें

  • चीनी
  • भोट भाषा
  • अंग्रेज़ी
  • जापानी
  • Italiano
  • Deutsch
  • मंगोलियायी
  • रूसी
  • Français
  • Tiếng Việt
  • स्पेनिश

सामाजिक चैनल

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब

भाषा चुनें

  • चीनी
  • भोट भाषा
  • अंग्रेज़ी
  • जापानी
  • Deutsch
  • Italiano
  • मंगोलियायी
  • रूसी
  • Français
  • Tiếng Việt
  • स्पेनिश

वेब साइय खोजें

लोकप्रिय खोज

  • कार्यक्रम
  • जीवनी
  • पुरस्कार
  • होमपेज
  • दलाई लामा
    • संक्षिप्त जीवनी
      • परमपावन के जीवन की चार प्रमुख प्रतिबद्धताएं
      • एक संक्षिप्त जीवनी
      • जन्म से निर्वासन तक
      • अवकाश ग्रहण
        • परम पावन दलाई लामा का तिब्बती राष्ट्रीय क्रांति दिवस की ५२ वीं वर्षगांठ पर वक्तव्य
        • चौदहवीं सभा के सदस्यों के लिए
        • सेवानिवृत्ति टिप्पणी
      • पुनर्जन्म
      • नियमित दिनचर्या
      • प्रश्न और उत्तर
    • घटनाएँ एवं पुरस्कार
      • घटनाओं का कालक्रम
      • पुरस्कार एवं सम्मान २००० – वर्तमान तक
        • पुरस्कार एवं सम्मान १९५७ – १९९९
      • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट २०११ से वर्तमान तक
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट २००० – २००४
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट १९९० – १९९९
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट १९५४ – १९८९
        • यात्राएँ २०१० से वर्तमान तक
        • यात्राएँ २००० – २००९
        • यात्राएँ १९९० – १९९९
        • यात्राएँ १९८० - १९८९
        • यात्राएँ १९५९ - १९७९
  • कार्यक्रम
  • समाचार
    • 2025 पुरालेख
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2024 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2023 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2022 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2021 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2020 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2019 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2018 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2017 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2016 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2015 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2014 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2013 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2012 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2011 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2010 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2009 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2008 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2007 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2006 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2005 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
  • सन्देश
  • प्रवचन
    • भारत में प्रवचनों में भाग लेने के लिए व्यावहारिक सलाह
    • चित्त शोधन
      • चित्त शोधन पद १
      • चित्त शोधन पद २
      • चित्त शोधन पद ३
      • चित्त शोधन पद : ४
      • चित्त् शोधन पद ५ और ६
      • चित्त शोधन पद : ७
      • चित्त शोधन: पद ८
      • प्रबुद्धता के लिए चित्तोत्पाद
    • सत्य के शब्द
    • कालचक्र शिक्षण का परिचय
  • कार्यालय
    • सार्वजनिक दर्शन
    • निजी/व्यक्तिगत दर्शन
    • मीडिया साक्षात्कार
    • निमंत्रण
    • सम्पर्क
    • दलाई लामा न्यास
  • किताबें
  • सीधे वेब प्रसारण