परम पावन 14 वें दलाई लामा
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ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ का समापन समारोह १०/जुलाई/२०१७

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दिसकित, नुबरा घाटी, जम्मू और कश्मीर - जुलाई १०, २०१७, परम पावन दलाई लामा ने आज प्रातः लेह से हेलिकॉप्टर द्वारा लद्दाख के उत्तर में नुबरा घाटी में उड़ान भरी। आकाश नील मंडित था। आगमन पर ठिकसे रिनपोछे, खेलखंग रिनपोछे, लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी पार्षद डॉ सोनम दावा, स्थानीय विधायक और लद्दाख मामलों के मंत्री छेरिंग दोर्जे और स्थानीय अधिकारियों ने उनका स्वागत किया।

स्थानीय लोग, पुरुष, महिलाएँ और बच्चे अपने उत्तम वस्त्रों में, भिक्षु और भिक्षुणियां और मुस्लिम समुदाय के सदस्य में अपने हाथों में श्वेत स्कार्फ लिए हवाई अड्डे के मार्ग पर पंक्तिबद्ध थे। जब परम पावन दिसकित विहार पहुँचे तो ठिकसे रिनपोछे और गदेन ठिसूर रिजोंग रिनपोछे ने पुनः उनका स्वागत किया। लघु विश्राम के उपरांत वे मध्याह्न भोजनार्थ स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों के साथ सम्मिलित हुए।

प्रवचन स्थल पर परम पावन को नूतन मंदिर ले जाया गया जहाँ उन्होंने दिन के कार्यक्रम को प्रारंभ करने हेतु एक नवनीत दीपक प्रज्ज्वलित किया और एक संक्षिप्त प्राण प्रतिष्ठा की। लामाओं और अन्य अतिथियों का अभिनन्दन करने के बाद उन्होंने हाथ हिलाकर जनमानस का अभिनन्दन किया और अपना आसन ग्रहण किया। गेशे थरछिन ने कार्यक्रम को प्रारंभ करते हुए बताया कि परम पावन की दया के कारण ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ का प्रारंभ किया गया था और नुबरा, चोगलमसर, लिकिर, स्पितुक, ठिकसे और अब यहाँ दिसकित में आयोजित किया गया था। विभिन्न संस्थानों से भिक्षु तथा भिक्षुणियों को आमंत्रित किया गया था, जबकि मुसलमान भाइयों और बहनों ने भी रुचि दिखाई थी। उन्होंने कृतज्ञता व्यक्त की कि परम पावन ने अपनी उपस्थिति से समापन समारोह को अनुग्रहित करने पर सहमति व्यक्त की थी।

ठिकसे रिनपोछे ने प्रथागत तीन गुना मंडल का समर्पण किया और लमडोन विद्यालय के बच्चों ने भारतीय और तिब्बती राष्ट्रीय गान के गायन में सभा का नेतृत्व किया। कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में ठिकसे रिनपोठे ने परम पावन को मैत्रेय की सुगंधित चंदन की प्रतिमा भेंट की।

दिसकित के उपाध्याय ने सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं की गहन समझ के लिए प्रवचन तथा अभिषेक देने के लिए परम पावन के प्रयासों की सराहना की। परिणामस्वरूप, लोगों ने सीखा कि बौद्ध धर्म अंधविश्वास नहीं है, क्योंकि यह कारण व तर्क पर आधारित है। उन्होंने सभी को स्मरण कराया कि दिसकित विहार की स्थापना पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जंगसेम शेरब संगपो द्वारा हुई, जो चोंखापा के प्रत्यक्ष शिष्य थे।आज लगभग १८० भिक्षुओं में से ५७, दिसकित में हैं, जबकि कई अन्य दक्षिण भारतीय के टाशी ल्हुन्पो और डेपुंग गोमंग महाविहारों में अध्ययनरत हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि इस वर्ष १८ विभिन्न विहारीय संस्थानों से १८० भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ में भाग लिया था। समापन में उन्होंने प्रार्थना की कि परम पावन दीर्घायु हों।

शिक्षण के महान पीठों के भिक्षुओं ने सर्वप्रथम परम पावन के समक्ष शास्त्रार्थ किया। उन्होंने थोगमे संगपो के बोधिसत्व के ३७ अभ्यास के विषयों पर एक जोरदार चर्चा की। अंत में परम पावन ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें बुलाया।

लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी पार्षद डॉ सोनम दावा ने लद्दाख के लोगों के सौभाग्य की बात की, कि न केवल परम पावन विश्व के अन्य भागों की तुलना में उनके क्षेत्र की अधिक नियमित यात्रा करते हैं, पर वे लंबे समय तक वहाँ ठहरते भी हैं। उन्होंने सलाह दी कि मात्र शुभेच्छा देना महत्वपूर्ण नहीं बल्कि उन्हें प्रभावी बनाना भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी लोगों से परम पावन की सलाह पर ध्यान देने का आग्रह किया।

दिसकित विहार के युवा छात्रों ने अपने शास्त्रार्थ के कौशल की एक प्रस्तुति की जिसमें उन्होंने 'एकत्र किए गए विषयों' पर चर्चा की।

लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के अध्यक्ष छेवंग ठिनले ने ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ हेतु उनकी सहायता व और समर्थन के लिए नुबरा के लोगों को धन्यवाद दिया। उन्होंने अपने श्रोताओं से यह स्मरण रखने का आग्रह किया कि "परम पावन हमारे लिए उच्च आशाओं के साथ आते हैं; हम उन्हें निराश न करें"। उन्होंने टिप्पणी की कि यह आवश्यक नहीं कि शास्त्रार्थ का लाभ विहारीय समुदाय के सदस्यों तक ही सीमित रहे। स्थानीय समुदाय की ओर से उन्होंने वचन दिया कि वे अपनी ओर से धार्मिक सद्भाव बनाए रखने का पूरा प्रयास करेंगे।

लमडोन विद्यालय के बच्चों ने रंगों के विषय पर एक शास्त्रार्थ प्रस्तुत किया।

सामान्य तौर पर लद्दाख और विशिष्ट रूप से नुबरा के मुस्लिम समुदाय की ओर से गुलाम मोहम्मद ने हाल ही में परम पावन के जन्मदिन के लिए उनको बधाई दी। "हम इस बात की सराहना करते हैं कि किस तरह आप न केवल बौद्धों को बल्कि सभी धर्मों के लोगों को अच्छी सलाह देते हैं। धार्मिक सद्भाव हमारे सभी के हित में है और हम आपका आपके इस योगदान के लिए धन्यवाद करते हैं। हम उन सभी को बधाई देते हैं जिन्होंने ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ में भाग लिया और अगली बार हम इसमें भाग लेने और जिस रूप में हो, उसका समर्थन करने के लिए तत्पर हैं।"

लद्दाख के सांसद थुबतेन छेवांग ने जनमानस को दूसरों के प्रति स्पष्ट सम्मान बनाए रखते हुए अपने स्वयं के धर्म की समझ की शिक्षा के लिए परम पावन की सलाह का स्मरण कराया। उन्होंने आगे कहा, "परम पावन हमारे प्रति अत्यंत दयालु हैं, हमें अपनी परम्पराओं और मूल्यों को जीवित रखने की सलाह देते हैं, कि हमें तिब्बत के लोगों द्वारा सामना कर रही कठिनाइयों को नहीं भूलना चाहिए।" उन्होंने प्रार्थना की कि परम पावन बार-बार लद्दाख आएँ।

पूर्व गदेन पीठाधिपति रिजोंग रिनपोछे ने उल्लेख किया कि इतिहास में बौद्ध धर्म को उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है, पर आज परम पावन की दया के कारण, इसके बारे में जागरूकता सम्पूर्ण विश्व में फैल गई है। जहाँ दलाई लामा बौद्ध धर्म और गेलुग परंपरा के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं, रिनपोछे ने क्यब्जे फबोंगखा को उद्धृत किया जो उन्होंने ठिजंग रिनपोछे, जो परम पावन के कनिष्ठ शिक्षक बनने वाले थे, से कहा था, कि "यह दलाई लामा वंशावली में अभूतपूर्व होगा और उनका योगदान कुल मिलाकर सभी विगत दलाई लामाओं के बराबर होगा"।

स्वप्न के संबंध में जिस संदर्भ में परम पावन ने संकेतित किया है कि वे ११३ वर्ष की आयु तक जीवित रह सकते हैं, रिज़ोंग रिनपोछे ने बल देते हुए कहा, "यह भविष्यवाणी इस बात पर निर्भर है कि क्या हम उनकी सलाह मानते हैं और उसका पालन करते हैं।"

नुबरा के लोगों ने परम पावन से ठिकसे रिनपोछे, जिनकी लद्दाख के बौद्ध शिक्षकों में उनके वरिष्ठ पद के अतिरिक्त दिसकित विहार की देखरेख में एक भूमिका है, को उनकी सराहना का एक प्रमाण पत्र देने का अनुरोध किया।

उनके समक्ष अनुमानित ७००० लोग, जिनमें से कई चिलचिलाती धूप से अपने को बचाने के लिए छातों के नीचे थे, को संबोधित करते हुए प्रारंभ में परम पावन ने गदेन ठिसूर रिनपोछे, जिनके लिए उन्होंने कहा कि उन्हें उनसे कई शिक्षाएँ मिली थीं, ठिकसे रिनपोछे और अन्य गणमान्य व्यक्तियों का अभिनन्दन किया। उन्होंने पांचवें ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ को आयोजित करने में लगे कार्य की सराहना की। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि शिक्षा में धर्म की तुलना में ऐसी बैठकों का संबंध कहीं अधिक था।

"पांच या दस प्रमुख विद्या स्थानों में संस्कृत या भाषा - विज्ञान, चिकित्सा, कला और आंतरिक विज्ञान, जो आंतरिक शांति से संबंधित है, शामिल हैं। एक शैक्षणिक दृष्टिकोण से भी, आंतरिक विद्या चित्त की शांति विकसित करने और विश्व में इसे बढ़ावा देने के बारे में हो सकता है। इसी तरह धर्मनिरपेक्ष नैतिकता भी आंतरिक विज्ञान से संबंधित है। मुझे यह सुनकर खुशी हुई कि मुस्लिम प्रतिनिधि कहते हैं कि उनके भाई और बहन हमारे शास्त्रार्थ में भाग लेने में रुचि रखते हैं।

"इन निर्देशों को अच्छी तरह से समझने के लिए एक तीन गुना दृष्टिकोण की आवश्यकता है। किसी विषय के बारे में सुनना या पढ़ना, उस पर मनन करना और ध्यान द्वारा एक दृढ़ समझ तक पहुँचना। किसी वस्तु के बारे में सुनकर या पढ़कर प्रारंभिक परिचय प्राप्त करना रूपांतरण के लिए पर्याप्त नहीं है। आप जो भी सुनते हैं अथवा पढ़ते हैं, उसे समझने के लिए आपको चौगुनी तर्क को व्यवहृत करना होगा। आप किसी विषय के संबंध में पूछ सकते हैं - 'क्या यह कण है? या क्या यह कण नहीं है? क्या यह एक कण है और कण नहीं है? या यह न तो कण है और न ही कण नहीं है?'

"जब से हम निर्वासन में आए, शास्त्रार्थ और विश्लेषणात्मक अध्ययन भिक्षुओं तक ही सीमित नहीं रहा है, पर साधारण लोगों के साथ- साथ विद्यालयों और महाविद्यालयों के छात्रों के लिए भी उपलब्ध कराया गया है। कारण और तर्क का यह प्रयोग हमारी परम्परा में अद्वितीय है। इनमें प्रशिक्षण ने मुझे ३० वर्षों से अधिक वैज्ञानिकों के साथ चर्चाओं के दौरान उनके सिद्धांतों और प्रस्तुतियों में विसंगतियों की पहचान करने में सक्षम किया है। दक्षिण भारत में आयोजित एक माइंड एंड लाइफ सम्मेलन के दौरान वहाँ भिक्षुओं को शास्त्रार्थ करते देखते हुए वे प्रभावित हुए और यह जानना चाहते थे कि क्या इस विधि को अन्य विषयों पर लागू किया जा सकता है। मैंने उनसे कहा कि हाँ, और यह शास्त्रार्थ निश्चित रूप से उनकी बुद्धि को तीक्ष्ण और अभ्यास करने में सहायता करता है।

"बुद्ध ने अपने अनुयायियों को सलाह दी,

हे भिक्षुओं और विद्वानों,

जिस तरह स्वर्ण को जला कर काट कर और रगड़ कर परखा जाता है,

मेरे शब्दों को अच्छी तरह से जांचे

और तभी उन्हें स्वीकार करें - मात्र मेरे प्रति सम्मान के कारण नहीं।

"परिणामस्वरूप नालंदा के पंडितों ने शास्त्रों की जांच की और निष्कर्ष निकाला कि जहाँ कुछ को शब्दशः ग्रहण किया जा सकता है, अन्य को सांवृतिक अथवा व्याख्या की आवश्यकता है।

"बस मुझे यही सब कहना है - हम आगामी दिनों में पुनः मिलेंगे।"

धन्यवाद के शब्दों में, परम पावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के अतिरिक्त भिक्षु लोबसंग तेनज़िन ने उन विद्वानों का भी धन्यवाद किया, जो ग्रीष्मकालीन महाशास्त्रार्थ सम्मिलित होने आए थे, जो विद्यालयों में बौद्ध धर्म के परिचय के अंतर्गत चार आर्य सत्य समझाने गए।

कल, परम पावन कमलशील के भावनाक्रम के मध्य भाग और थोगमे संगपो के बोधिसत्व के ३७ अभ्यास पर प्रवचन देंगे।

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