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ज़ांस्कर में तीन दिन १९/जुलाई/२०१७

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लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर- जुलाई १९, २०१७, रविवार, १६ जुलाई को नुबरा घाटी से सड़क मार्ग से लौटने के उपरांत परम पावन दलाई लामा ने हेलिकॉप्टर द्वारा लेह से ज़ांस्कर की राजधानी पदुम के लिए उड़ान भरी। आगमन पर स्थानीय अधिकारियों और समिति के सदस्यों, जिन्होंने यात्रा का आयोजन किया था, ने उनका स्वागत किया।

ज़ांस्कर स्वास्थ्य केन्द्र तथा सोवा रिगपा अनुसंधान संस्थान में जिसे, दलाई लामा ट्रस्ट से धन राशि सहायता प्राप्त हुई है, परम पावन ने एक पट्टिका का अनावरण किया और मंगल छंद का पाठ किया और इस तरह संस्थान के उद्घाटन को चिह्नित किया। चाय और मीठे चावल परोसे गए। अध्यक्ष श्रद्धेय छोफेल ज़ोपा ने इस अवसर का परिचय दिया। सम्मिलित हुए ३००० लोगों को संबोधित करते हुए परम पावन ने विदेश से आए स्वयंसेवकों, जिनमें अधिकांश अमेरिका के डॉक्टर और नर्स और इटली से दंत चिकित्सक, जो स्थानीय लोगों का इलाज कर रहे थे, के प्रति श्रद्धा व्यक्त की। उन्होंने इस दूरस्थ और कम विकसित क्षेत्र जहाँ इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, स्वास्थ्य संबंधी चिकित्सा प्रदान करने के लिए उनके समर्पण की सराहना की।

पुराने फोडंग में, लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के ज़ांस्कर प्रतिनिधि ने मंडल तथा बुद्ध के काय, वाक् और चित्त के तीन संकेत प्रस्तुत किए। पुनः परम्परागत चाय और मीठे वितरित किए गए। परम पावन ने टिप्पणी की, "मैं विश्व में जहाँ भी जाता हूँ, बार-बार, मैं धार्मिक सद्भाव के महत्व के बारे में बात करता हूँ। हमारे सभी धर्म प्रेम और करुणा का एक आम संदेश सम्प्रेषित करते हैं। अतः मुझे विभिन्न आस्था के समुदायों के सदस्यों के बीच विवाद का समाचार बहुत दुखी करता है। सामाजिक सद्भाव और मैत्री महत्वपूर्ण हैं। एक व्यापक समुदाय और हम सभी किस तरह मानवता की एकता में भाग लेते हैं, के बारे में सोचने का प्रयास करें।"

सोमवार, १७ जुलाई को अपने प्रवचनों में सम्मिलित होने वाले लगभग १०,००० लोगों से बात करते हुए, परम पावन ने पुनः धार्मिक सद्भाव के विकास करने में प्रयास करने के महत्व की बात की। उन्होंने आगे कहा कि बौद्धाभ्यास में जाति के आधार पर भेदभाव करने का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कहा था कि जब धर्म के पालन की बात हो तो वहाँ जाति और परिवार की पृष्ठभूमि की कोई प्रासंगिकता न थी।

उन्होंने कहा, "लोगों को अध्ययन का अवसर लेना चाहिए - मात्र अंध विश्वास पर निर्भर रहना अब पर्याप्त नहीं है।" "चालीस वर्षों से अधिक समय से मैं भिक्षु विहारों और भिक्षुणी विहारों, जो अधिकतर अनुष्ठानों को करने में केन्द्रित थे, को प्रोत्साहित कर रहा हूँ कि वे अध्ययन के कार्यक्रम विकसित करें। एक स्पष्ट परिणाम यह है कि विगत वर्ष हम उनकी शैक्षिक उपलब्धियों को मान्यता देते हुए प्रथम बीस भिक्षुणियों को गेशे मा की उपाधि देने में सक्षम हुए। जब प्रथम बार मैंने भिक्षुणियों से शिक्षित होने का आग्रह किया तो विरोध में कुछ स्वर उठे और मैंने पलटकर कर कहा कि यदि बुद्ध ने स्त्रियों को पूर्ण प्रव्रज्या दी थी तो शिक्षा को लेकर भी उन्हें क्योंकर लाभान्वित नहीं होना चाहिए?"

जब चाय देने की बारी आई तो यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए गए कि सम्पूर्ण समुदाय के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए और उन लोगों के बीच में से जो पहले स्वयं को छूटा हुआ महसूस कर रहे थे, उनमें से कुछ को परम पावन की सेवा का अवसर मिला।

"तिब्बती और लद्दाखी ऐसे लोग हैं जिनका अवलोकितेश्वर के साथ एक विशिष्ट जुड़ाव है," परम पावन ने श्रोताओं से कहा, "अतः मैंने सोचा कि इस बार अवलोकितेश्वर दीक्षा देना तथा मित्रयोगी के तीन आवश्यक बिन्दु, जिनका संबंध इससे है कि इस जीवन में, मरणासन्न अवस्था में और अंतराभव अवस्था में अवलोकितेश्वर के संबंध किस तरह अभ्यास किया जाए, की व्याख्या करना अच्छा होगा।"

दीक्षा प्रक्रिया के अंग के रूप में, परम पावन ने बोधिसत्व संवर प्रदान किए - यह समझाते हुए कि यह उन्हें नूतन रूप से पुनः लेने का या उन संवरों के पालन में कोई भी चूक हो गई हो तो उन्हें पुनर्स्थापित करने का अवसर था।

मंगलवार, १८ जुलाई को अपना प्रवचन प्रारंभ करने हेतु परम पावन ने विशेष रूप से विद्यालय के बच्चों के लिए 'मंजुश्री स्तुति' का संचरण दिया, जो तिब्बती में 'गंगलोमा' के रूप में जाना जाता है। उन्होंने उनसे कहा कि उनके अनुभव में दिन में तीन बार इस प्रार्थना को करने से चित्त की तीक्ष्णता पर प्रभाव पड़ता है।

"कल, आपको अवलोकितेश्वर आशीर्वाद प्राप्त हुआ जो करुणा के अभ्यास से संबंधित है और आज यह मंजुश्री स्तुति प्रज्ञा के अभ्यास से संबंधित है। आपको बुद्धत्व तक पहुँचने के लिए प्रज्ञा व करुणा दोनों की आवश्यकता है।"

भैषज्य बुद्ध की अनुज्ञा देने में, परम पावन ने अच्छे स्वास्थ्य के महत्व और उसमें चित्त की शांति के विकास की निर्णायक भूमिका की बात की। उन्होंने 'मित्रयोगी के तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं' का अपना पठन पूरा किया और इसके पूर्व कि उनके लिए एक दीर्घायु समारोह समर्पित किया जाता, उन्होंने समझाया कि इस तरह गुरु और शिष्य के भेंट का उद्देश्य शिक्षकों को उनके अनुयायियों की सहायता करने की एक सही भावना प्राप्त कराना है कि प्रज्ञा और सौहार्दता दोनों का विकास कितना आवश्यक है। "मैं यही करने का प्रयास करता हूँ और मैं इसे आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। अब आपका काम जो मैंने कहा उस पर ध्यान देना और अभ्यास को जारी रखना है - इसी तरह आप भी अनुभव प्राप्त करेंगे।"

मध्याह्न में, परम पावन स्थानीय मुसलमान स्कूल में अंजुमन मोइन-उल-इस्लाम के मेहमान थे। अपनी टिप्पणी में परम पावन ने धार्मिक सद्भाव बनाए रखने के महत्व को दोहराया और अपने दोस्तों से कहा कि उन्होंने बौद्ध समुदाय के लिए भी वैसा ही कहा था। उन्होंने दोनों समुदायों को मित्रवत होने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि वे एक दूसरे को अपने विभिन्न त्यौहारों और समारोहों में आमंत्रित करना जारी रखें। आँखों में शरारत भरी चमक के साथ, परम पावन ने अपने मेजबानों को बताया कि वे उनके लज़ीज़ नाश्ते का कितना मज़ा लेते थे।

आज प्रातः बुधवार, १९ जुलाई, परम पावन तड़के ही हेलिकॉप्टर द्वारा ज़ांस्कर और लिंगशेड घाटी जाकर लेह वापस लौटे। आगमन पर उनसे हवाई अड्डे के निकट स्थापित एक नई श्मशान सुविधा को देखने का अनुरोध किया गया। अपने परिचय में, केन्द्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान के निदेशक ने बताया कि लद्दाख में अंतिम संस्कार की सुविधाओं का इस्तेमाल अक्सर उन विशिष्ट इलाके के निवासियों तक ही सीमित होता है जिसमें वे रहते हैं। परिणामस्वरूप बाहर के लोगों को कभी-कभी उनके मृतकों के अंतिम संस्कार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह नई सुविधा बौद्धों के लिए खुली होगी फिर चाहे वे कहीं के भी हों, साथ ही भारत के अन्य हिस्सों और विदेशी आगंतुकों के लिए खुली रहेगी। निदेशक ने उल्लेख किया कि हम सभी की मृत्यु निश्चित है और हवाई अड्डे के आसपास के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में यह अनित्यता के प्रत्यक्ष अनुस्मारक का रूप होगा।

परम पावन ने स्थल को आशीर्वचित करने हेतु संक्षिप्त प्रार्थना की और शिवाछेल फोडंग में अपने आवास लौटने से पहले उस पर स्थित अमिताभ की एक मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की।

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