परम पावन 14 वें दलाई लामा
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तिब्बती और हिमालय क्षेत्र के लोगों के साथ बैठक २५/दिसम्बर/२०१७

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बेंगलुरु, कर्नाटक, भारत, आज प्रातः परम पावन दलाई लामा के बाहर निकलने से पूर्व फिल्म निर्माता भरत सुब्बाराव और उनकी पत्नी सौम्या ने उनका परिचय 'मंडल' से कराया जो एक नया निकाला गया एप है, जो बौद्ध प्रज्ञा तथा मनोविज्ञान की सर्वोत्तम अंतर्दृष्टि को स्पष्ट तथा सुलभ तरीके से लाने के लिए समर्पित है ताकि लोग अपने रोजमर्रा के जीवन में उन्हें लागू कर सकें। एप को एक पूर्व बौद्ध भिक्षु, थुबतेन जिनपा ने पेश किया और निर्देशित किया, जिन्होंने गदेन महाविहार में अपना गेशे ल्हरम्पा का प्रशिक्षण पूरा किया तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शन में बी ए तथा धार्मिक अध्ययन में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे १९८५ से एक अनुवादक के रूप में व्यापक रूप से परम पावन से जुड़े हैं और उन्होंने परम पावन की कई पुस्तकों का अनुवाद और सम्पादन किया है। 

यह एप, जो इस समय अंग्रेजी, फ्रांसीसी, स्पैनिश, रूसी और चीनी में उपलब्ध है, व्याख्यान तथा वार्तालाप प्रदान करता है जो बौद्ध ज्ञान और वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि को लर्न शीर्षक के तहत एक साथ लाता है। जाने माने प्रसिद्ध वैज्ञानिक और लेखक जैसे डैनियल गोलमैन का इसमें योगदान है। शीर्षक लाइव के तहत, निर्देशित ध्यान अभ्यासों की एक श्रृंखला है, और साथ ही एक्सप्लोर शीर्षक के अंतर्गत प्रमुख बौद्ध अवधारणाओं की खोज और उनकी गहराइयों में जाने का एक विकल्प भी है।
 
परम पावन यह देखकर प्रसन्न थे कि लोगों को चित्त की शांति प्राप्त करने और सौहार्दता विकसित करने के दिशानिर्देश उन्हें सरलता व स्पष्ट रूप से उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
 
एक छोटी सी ड्राइव के बाद वे पैलेस ग्राउंड के किंग्स कोर्ट अनुभाग पहुँचे। २५०० से अधिक का एक मंत्रमुग्ध जनमानस, अधिकांशतः युवा तिब्बती छात्र, साथ ही ३०० भूटानी छात्र और हिमालय क्षेत्र से अन्य लोग भी उन्हें सुनने के लिए प्रतीक्षारत थे। इस आयोजन के सभी खर्चों का उत्तरदायित्व गदेन जंगचे महाविहार द्वारा उठाया गया। 

द्वार पर मुख्य प्रतिनिधि छोफेल थुबतेन ने परम पावन का पारम्परिक रूप से स्वागत किया। सभागार के अंदर गायकों और संगीतकारों के एक समूह ने उनके लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उनके वादन के दौरान परम पावन आनन्द से भरे हुए थे। छोफेल थुबतेन ने भविष्य के लिए उपलब्धियों और आकांक्षाओं की एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की, तदुपरांत उन्होंने परम पावन से सभा को संबोधित करने का अनुरोध किया।

"मैं यहां कर्नाटक में आवासों की यात्रा करते हुए व्यस्त रहा हूँ।" उन्होंने कहा, "मुझे ठंड लग गई जिससे मैं थकान का अनुभव कर रहा था, पर अब मैं बेंगलुरु में हूँ और आप सभी से मिलकर बहुत खुश हूँ।
 
"तिब्बतियों ने अपने ही देश में अत्यंत कठिनाइयों का सामना किया। हमने जितना अधिक उठती समस्याओं का सामना करने के लिए स्वयं को समायोजित करने का प्रयास किया, हम अंततः हमारे समक्ष के संघर्षों का सामना करने में असमर्थ रहे और अंततः हमने निर्वासन में पलायन किया। भारतीय प्रधान मंत्री नेहरू ने तिब्बतियों की सहायता के लिए बड़ा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व लिया। १९५९ में निर्वासन में आने से पूर्व मैं उनसे सर्वप्रथम १९५४ में पेकिंग में मिला, फिर पुनः १९५६ में भारत में मिला। उनके कहने पर भारत सरकार ने हमारी सहायता के लिए जो भी बन पड़ा, वह किया। यहाँ कर्नाटक में, मुख्यमंत्री निजलिंगप्पा ने हमें समर्थन देने के लिए अपनी क्षमता से अधिक किया। 

"तिब्बत के तिब्बतियों की भावना अविचलित है और अपने धर्म और संस्कृति के प्रति एक अटल आस्था है। हम विश्व में जहाँ भी पहुँचे, चाहे वह भारत, यूरोप, अमरीका, कनाडा या ऑस्ट्रेलिया हो, हम यह नहीं भूले कि हम तिब्बती हैं। यह हमारे रक्त में है। १५०,००० तिब्बती, जो स्वतंत्र रूप से निर्वासन में रहते हैं तिब्बत में अपने भाइयों और बहनों के लिए आशा का एक स्रोत हैं। हम अपनी धरोहर को जीवित रखने में सफल रहे हैं। जब से हम निर्वासन में आए, कई लोग जो पहले इस से अपरिचित थे उन्होंने हमारे धर्म और संस्कृति में रुचि ली है। विशेष रूप से वैज्ञानिकों में इस विषय को लेकर बढ़ती रुचि है कि हम चित्त के विषय में क्या जानते हैं।

"अतीत में, दर्शन और तर्क के अध्ययन, साथ ही चित्त के विषय में सीखना व्यापक स्तर पर शिक्षा के केंद्रों में भिक्षुओं का विषय होता था। यह कुछ ऐसा नहीं था जिस पर आनुष्ठानिक विहार के भिक्षुओं और भिक्षुणी विहारों में भिक्षुणियाँ ध्यान देतीं थीं। परन्तु निर्वासन में उन विहारों में भिक्षु तथा भिक्षुणियों तर्कशास्त्र और दर्शन का अध्ययन करती हैं। हिमालय क्षेत्र में लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक लोग भी बौद्ध धर्म के बारे में पढ़ कर २१वीं शताब्दी के बौद्ध बन रहे हैं।
 
"आप में से कितने स्मृति से 'हृदय सूत्र' का पाठ कर सकते हैं? प्रवचन का मुख्य बिन्दु शून्यता है। यह स्पष्ट करता है कि वस्तुएँ अन्य कारकों पर निर्भर होकर अस्तित्व रखती हैं, अतः उनकी अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। क्वांटम भौतिकी के विशेषज्ञों ने मुझे बताया है कि आज जो उनके लिए नूतन अंतर्दृष्टि है, वह बहुत समय पूर्व नागार्जुन ने जो प्रतीत्य समुत्पाद के संबध में लिखा था उसमें प्रतिध्वनित होता है।
 
"आधुनिक विज्ञान हमारे लिए नया है। तिब्बत में इसके साथ हमारा कोई परिचय नहीं था। ३० से अधिक वर्ष पूर्व अपनी जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए मैंने वैज्ञानिकों के साथ चर्चा प्रारंभ की। मैंने जो कुछ सीखा, उसने मुझे यह विश्वास करने के लिए प्रेरित किया कि जो हम पहले से ही जानते हैं, विज्ञान इसका पूरक हो सकता है। कुछ पुराने उपाध्याय इसे लेकर आसानी से आश्वस्त नहीं हुए, पर अंततः वे सहमत हो गए। मैंने समझाया कि मुझे ज्ञान के दो दृष्टिकोणों के संयोजन में कोई विरोधाभास नहीं प्रतीत होता।"

परम पावन ने समझाया कि जहाँ तक राजनीतिक मामलों का प्रश्न है, वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं। २००१ में नेतृत्व चुनाव के बाद वे अर्ध-सेवानिवृत्त हुए और २०११ के चुनाव के बाद पूरी तरह से सेवानिवृत्त हुए।
 
उन्होंने नेहरू की सलाह का स्मरण किया कि तिब्बत के मुद्दे को लेकर अमरीका चीन से युद्ध करने के लिए कभी नहीं जाएगा। तत्पश्चात १९७४ में यह निर्णय लिया गया कि तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग न की जाएगी और न ही संयुक्त राष्ट्र से और अपील की जाएगी। नेहरू ने बल देकर कहा कि कभी न कभी हमें चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत करना होगा। चीनी संविधान में तिब्बत की स्वायत्तता का प्रवधान है जिसे कार्यान्वित किया जाना चाहिए। मध्य तिब्बत, खम और अमदो में तिब्बतियों को अपनी पहचान और संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। परम पावन ने बताया कि एक बार देंग जियाओपिंग ने प्रतिबंधों को कम करना प्रारंभ कर दिया तथा बातचीत की इच्छा व्यक्त की तो मध्यमक दृष्टिकोण विकसित हआ। 'सांस्कृतिक क्रांति' के उन्माद के बाद, उन्होंने आशा की थी कि लोगों को समझ आएगी। 

परम पावन ने टिप्पणी की, कि तिब्बत में तिब्बतियों की अविचिल तथा दृढ़ भावना और निर्वासित लोगों के प्रयासों ने यह सुनिश्चित किया है कि तिब्बत का मुद्दा भुलाया न जाए। उन्होंने तिब्बती संस्कृति और भाषा को जीवित रखने की आवश्यकता को दोहराया।

परम पावन ने विगत शताब्दी के दौरान युद्ध में हुई भारी क्षति पर दुःख जताया और यह कि हिंसा अभी भी चल रही है। उन्होंने कहा कि जब महात्मा गांधी अहिंसा में सलंग्न हुए तो उनके विरोधियों ने उसे दुर्बलता का संकेत माना। पर फिर भी अंत में वे सफल हुए।
 
परम पावन ने विद्यार्थियों से कहा कि वे इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि यदि चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य के प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ा जा सके तो यह विश्व में शांति के लिए महत्वपूर्ण योगदान देगा।
 
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने सलाह दी कि मृत्यु एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। उस क्षण में जो सहायता कर सकती है वह चित्त की शांति और सौहार्दता है। उन्होंने कहा कि महिलाएँ धार्मिक नेता बन सकती हैं और शुगसेब जेचुन और समधिंग दोरजे फगमो के उदाहरणों का उल्लेख किया। उन्होंने आगे कहा कि अध्ययन के एक श्रमसाध्य कार्यक्रम के पश्चात विगत वर्ष २० भिक्षुणियों को प्रथम गेशे-मा उपाधि प्रदान की गई।

लद्दाख से एक लड़की ने पूछा कि परम पावन सदैव स्वयं को एक साधारण बौद्ध भिक्षु के रूप में संदर्भित करते हैं परन्तु तिब्बती और हिमालय क्षेत्र के लोग उन्हें अवलोकितेश्वर  (चेनेरेज़िंग) के रूप में मानते हैं। उसने पूछा कि क्या वे इस पर कुछ कहना चाहेंगे। 

"इस वर्ष लद्दाख में एक युवती ने मुझसे सीधा प्रश्न किया था, 'क्या आप ईश्वर हैं?' और मैंने उससे कहा 'नहीं," परम पावन ने हँसते हुए टिप्पणी की "प्रथम दलाई लामा गेदुन डुब को अवलोकेतिश्वेर और तारा के दर्शन प्राप्त हुए थे। मेरा जन्म अमदो के कुबुम विहार के निकट एक बहुत ही दूरदराज गांव में हुआ था। रिजेंट को ल्हामो लाछो झील की सतह पर देखे गए एक स्वप्न के परिणामस्वरूप वहाँ खोज पार्टी भेजी गयी, एक झील जो गेदुन ज्ञाछो द्वारा सक्रिय की गई है, अतः आप यह कह सकते हैं कि दलाई लामा को पलदेन ल्हमो ने मान्यता दी थी। मेरा पूर्व दलाई लामाओं के साथ एक सशक्त संबंध है, अतः वे मेरी सहायता करती हैं। 

"मैंने कई स्वप्न देखे हैं जो अतीत के संकेत हैं। एक में मुझे प्राचीन मिस्र में एक कैदी के रूप में रखा गया था और बाद में फारोह के आदेश पर मुक्त किया गया। मेरे स्वप्नों में भारतीय सिद्ध कृष्णाचार्य और डेपुंग महाविहार के संस्थापक जमयंग छोजे के संस्थापक के साथ निकट संबंध के भी संकेत शामिल हैं। 

"जो भी हो, हम में से हर एक का पिछला परजन्म हुआ है। महत्वपूर्ण बात यहाँ और अभी एक सार्थक जीवन जीने की है।"
 
परम पावन ने बुद्ध शाक्यमुनि, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री और आर्य तारा के मंत्रों के साथ ही, बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेने और बोधिचित्तोत्पाद के चार छंदों का संचरण किया। अंतिम सलाह के रूप में उन्होंने युवा लोगों से कहा कि यदि वे कर सकें तो दूसरों की सहायता करें पर यदि वे ऐसा न कर सकें तो उनका किसी तरह अहित न करने के लिए कहा।

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