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पालेर्मो में मीडिया के साथ भेंट और सार्वजनिक व्याख्यान १८/सितम्बर/२०१७

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पालेर्मो, सिसिली, इटली, पालेर्मो में आज प्रातः परम पावन दलाई लामा का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम मीडिया के साथ भेंट थी। उनके साथ पालेर्मो के प्रख्यात महापौर प्रोफेसर लेआलुका ऑरलैंडो थे, जिन्होंने सिसिली में माफिया के विरुद्ध सफलतापूर्वक संघर्ष किया था। वह अब पालेर्मो के अंतर्राष्ट्रीय मानव सौदे चार्टर के लिए प्रचार कर रहे हैं। चार्टर शरणार्थियों और विस्थापित लोगों के साथ किए जा रहे व्यवहार में मौलिक परिवर्तन की मांग करता है। उन्होंने घोषणा की है, "मानव सौदे को एक अपरिहार्य अधिकार के रूप में पहचाना जाना चाहिए।"
 
अपनी ओर से परम पावन ने जनता को सूचित करने में मीडिया की भूमिका के महत्व को स्वीकार करते हुए प्रारंभ किया।
 
उन्होंने कहा, "हम सभी को सुख चाहिए।" "शांति व सुख हमारे मानसिक व्यवहार पर निर्भर करते हैं। करुणा चित्त की शांति का स्रोत है; क्रोध इसे नष्ट कर देता है। मनुष्य के रूप में, हम अपनी बुद्धि के आधार पर अपनी सौहार्दता की भावना का विस्तार दूसरों को शामिल करने के लिए कर सकते हैं, क्योंकि वे हम जैसे मनुष्य हैं। दूसरे शब्दों में हम शिक्षा के आधार पर अधिक करुणा जनित कर सकते हैं।

"मेरी प्रथम प्रतिबद्धता मानव सुख-करुणा के हेतु को बढ़ावा देना है। दूसरा धार्मिक सद्भाव को पोषित करना है। आप मीडिया के सदस्यों की लोगों को इन चीजों के बारे में सूचित करने में एक भूमिका है।"
 
मेयर लेआलुका ऑरलैंडो ने स्मरण किया कि पिछली बार १९९६ में परम पावन ने पालेर्मो की यात्रा की थी। तब से सिसिली में आने वाले शरणार्थियों और विस्थापित लोगों की संख्या में भारी वृद्धि ने उन्हें पालेर्मो के चार्टर को प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने कहा, "कोई भी बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को रेगिस्तान या समुद्र में मरने के लिए नहीं छोड़ सकता, केवल इसलिए कि उनका जन्म गरीब या युद्ध में उलझे देशों में हुआ है। व्यक्तियों के बीच एकता उन सभी के लिए आवश्यक मूल्य है, जो निरंतर मानवता से जुड़े रहना चाहते हैं। हमें उनके प्रति करुणा दिखाने की आवश्यकता है।"
 
परम पावन ने यह माना कि यूरोपीय देशों ने जिस प्रकार प्रवासियों और शरणार्थियों को स्वीकार किया है, उससे कार्य में करुणा स्पष्ट होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब हमें उनके नैराश्य में सहायता करनी चाहिए। पर अंततः वे स्वदेश लौटना चाहेंगे। यही हम तिब्बतियों के मन में सदैव है। सर्वप्रथम हमें देखना चाहिए कि शरणार्थियों ने जिन देशों से पलायन किया है उन देशों में शांति और विकास बहाल हुआ है, पर दीर्घ कालीन परिप्रेक्ष्य में उस देश में रहने की इच्छा स्वाभाविक है जहाँ आप का जन्म हुआ था।
 
"मेरा मानना है कि गैर-सरकारी संगठनों या छोटे राष्ट्रों या समुदायों के लिए शांति बहाल करने में एक भूमिका हो सकती है, जो संघर्ष के प्रमुख पात्रों तक पहुँच सकते हैं और विश्वास स्थापित कर सकते हैं।"
 
मानव विकास हेतु धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के महत्व के बारे में पूछे जाने पर, परम पावन ने उत्तर दिया कि समाधान गहन मानव मूल्यों को विकसित करना है। ऐसा करने के लिए वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार आवश्यक होगा और सकारात्मक भावनाओं को विकसित करने के उपाय अपनाने होंगे, साथ ही उन भावनाओं को कम करना होगा जो नकारात्मक हैं। संदर्भ हमारे जीवन का कल्याण है, यहाँ और इस क्षण।

"हमारे जन्म के बाद हम सभी अपनी मां के स्नेह से पोषित हुए हैं, जो हममें करुणा के बीज बोता है। परन्तु जब हम स्कूल जाते हैं तो इन आंतरिक मूल्यों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। इसके स्थान पर हमें धन, शक्ति और पदवी के लक्ष्य की शिक्षा दी जाती है। शिक्षा में सौहार्दता पर अधिक ध्यान देना सम्मिलित होना चाहिए। यह दिखाना महत्वपूर्ण है कि क्रोध करुणा के विपरीत है और इसका कोई लाभ नहीं है। इस संबंध में, २०वीं शताब्दी के प्रारंभ में युद्ध में जाने की सहमति और शताब्दी के उत्तरार्ध में युद्ध का व्यापक विरोध और बल प्रयोग के बीच स्पष्ट परिवर्तन बढ़ती मानव परिपक्वता का संकेत है।"
 
अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच तटस्थता के संबंध में, परम पावन ने सहमति व्यक्त की कि यह गंभीर है और यह आणविक शस्त्रों का मुद्दा है जो इसे ऐसा स्वरूप देता है। परन्तु उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि एकमात्र उपाय आगे बढ़कर संवाद द्वारा कुछ पारस्परिक समझ प्राप्त करना है। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा कि बल प्रयोग कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं करता, बल्कि क्रोध और घृणा को और अधिक उकसाता है।

 
जब उनके समक्ष यह प्रश्न रखा गया कि, "पलेर्मो के लिए आपका संदेश क्या है?" परम पावन ने उत्तर दिया कि पलेर्मो का चार्टर अच्छा है और वह इसका समर्थन करते हैं।
 
मुनि ज्ञान केंद्र के सदस्यों को अलग से संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जब वे यूरोप या अमेरिका में प्रवचन देते हैं तो इस बात को लेकर सावधानी बरतते हैं कि वे बौद्ध धर्म का प्रचार करने का प्रयास न करें। वह सदैव उन लोगों को जो उनकी शिक्षाओं में भाग लेते हैं सो कहते हैं कि अपने मूल धर्म से जुड़े रहना बेहतर है। फिर भी, उन्होंने माना कि तिब्बती बौद्ध धर्म में संरक्षित चित्त और भावनाओं की समझ आज मूल्य रखता है और प्रासंगिक है। अब कई लोग उन परम्पराओं के मूल्य की सराहना करते हैं जिसकी स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय के भिक्षु और विद्वान शांतरक्षित द्वारा ८वीं शताब्दी में तिब्बत में हुई।
 
महापौर ऑरलैंडो प्रसिद्ध मास्सिमो थियेटर के द्वार पर परम पावन का स्वागत करने के लिए खड़े थे जहाँ अनुमानित १४०० लोग उत्सुकता से परम पावन को सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जह वे दोनों मंच पर आए तो श्रोताओं ने उल्लास व्यक्त किया। अपने स्वागत परिचय में महापौर ने कुछ ऐसी घटनाओं का वर्णन किया, जो १९९६ में उनकी परम पावन की विगत यात्रा के बाद हुईं थीं, विशेषकर २०१५ में पलेर्मो के चार्टर का प्रारंभ। उन्होंने पालेर्मो की बुक ऑफ़ ऑनर पर हस्ताक्षर करने हेतु परम पावन को आमंत्रित किया। तत्पश्चात इओला डेले फेमिन और वेंटिमिलीया डाय सिकालिया के महापौरों द्वारा परम पावन को मानद नागरिकता प्रदान की गई - दोनों जो पालेर्मो के शहर हैं। इस पुरस्कार का पदक स्वेविया के फेडेरिको के तीन जानवरों को दर्शाता है जो शहर का प्रतीक है: वफादार कुत्ता, विवेकपूर्ण सांप और भव्य चील - जो शहर के प्रति प्रेम को प्रतिबिम्बित करता है। 

संचालक पाओला निकिता ने परम पावन को सभा को संबोधित करने हेतु आमंत्रित किया, जो उन्होंने किया, वे अंग्रेज़ी में बोले जिसका अनुवाद फैब्रिजियो पलोट्टी ने इतालवी में किया।
 
"सम्माननीय भाइयों और बहनों, मैं यहाँ पुनः एक बार आकर और आपके साथ अपने विचारों और अनुभवों को साझा करते हुए अत्यंत प्रसन्न हूँ।
 
"हम जन्म से सौहार्दता के बीज से लैस हैं, पर जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, इसे विकसित करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया जाता। हमारी धार्मिक परम्पराएँ इस ओर ध्यान देतीं थीं पर उनके प्रभाव का ह्रास हुआ है क्योंकि १ अरब लोग घोषित कर देते हैं कि उनकी किसी में आस्था नहीं है। कुछ भागों में, सौहार्दता को दुर्बलता का संकेत माना जाता है और आत्म-केंद्रितता को प्रबल माना जाता है - जब कि इसका विपरीत सच है। हमें जो करने की आवश्यकता है वह यह, कि सौहार्दता को हमारे अनूठी मानवीय बुद्धि के साथ जोड़ा जाए। 

"आप यहाँ विस्थापित लोगों को आश्रित करने के लिए जो कर रहे हैं मैं उसकी सराहना करता हूँ। आपका प्रयास इस तथ्य को दर्शाता है कि जीवित रहने के लिए हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। आश्रय और सुविधाएँ प्रदान करना एक बात है, आगे जो करने की आवश्यकता है कि जिन देशों से इन लोगों ने पलायन किया है वहाँ शांति और विकास बहाल किया जाए। मेरा मानना है कि यदि २१वीं शताब्दी को शांति का युग बनना है तो हमें संघर्षों और समस्याओं को सुलझाने के लिए संवाद व्यवहृत करना होगा।"

स्काई इटली के उपराष्ट्रपति द्वारा पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, परम पावन ने सोशल मीडिया द्वारा प्रदान किए गए अंतर्संबंध की प्रशंसा की। परन्तु उन्होंने बल देते हुए कहा कि यह हमारा उत्तरदायित्व है कि इसका उपयोग उचित रूप से किया जाए। यदि हम इसका उपयोग क्रोध को उकसाने के लिए तथा 'हम' और 'उन' के बीच के विभाजन को बढ़ाने के लिए करें तो परिणाम के लिए प्रौद्योगिकी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। 

एक पालेर्मो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जानना चाहते थे कि भविष्य को लेकर उलझे युवाओं के लिए परम पावन की क्या सलाह है। परम पावन ने उनसे बेहतर जानकारी रखने की आवश्यकता को दोहराया, जिसमें मीडिया का कुछ उत्तरदायित्व है। उन्होंने टिप्पणी की कि लोकतांत्रिक समाज में वास्तविक नेता जनता है, कुछ राजनेता नहीं। अतः युवा लोगों के लिए बेहतर होगा कि वे सकारात्मक सूचना के पक्ष में, सनसनीखेज कहानियों की उपेक्षा करें, जैसा कि वैज्ञानिक तर्क कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है।
 
प्रश्नों के उत्तर देने में कई बार, परम पावन ने संघर्षों और समस्याओं को सुलझाने के लिए बल प्रयोग को संदर्भित करते हुए उसे तारीख से बाहर बताया। उन्होंने भारी हथियार सौदों की आलोचना की जो निरंतर जारी है और दिशा परिवर्तन और एक विसैन्यीकरण विश्व को प्राप्त करने की दिशा की आवश्यकता पर बल दिया।
 
जैसे ही कार्यक्रम का समापन हुआ महापौर ने बहुत धन्यवाद दिया। परम पावन को कई उपहार भेंट दिए गए जिसमें एक लहलहाता बोधि वृक्ष था जिसे पलेर्मो विश्वविद्यालय के वनस्पति उद्यान में रोपित करना था, कई स्थानों से जैतून का तेल, एक बड़ी ब्रेड, एक बड़ी जंबु मणि की जप माला, सिसिली के संरक्षक संतों में से एक सेंट रोसालिया की गुफा से, पवित्र जल की बोतल शामिल थे।

जब वह मंच के समक्ष विदा लेने के लिए खड़े हुए, परम पावन ने श्रोताओं से कहा कि उनके पास मानव सुख लाने के लिए कई विचार और आकांक्षाएं हैं, पर केवल एक जोड़ी हाथ है। उन्होंने कहा कि वह हर उस व्यक्ति को जो उनकी कही बातों में रुचि लेता है, दूसरों के साथ साझा करता है और उस आधार पर कार्य करता है, एक अन्य हाथ के जोड़े के रूप में मानते हैं जो आम सफलता प्राप्त करने के लिए कार्य कर रहा है। परम पावन ने अपना धन्यवाद व्यक्त किया।
 
अंत में, जनमानस के बीच तिब्बती ध्वज को लहराते देख उन्होंने टिप्पणी की कि इन दिनों चीनी साम्यवादी पार्टी के कट्टरपंथी ध्वज को असंतोष का प्रतीक मानते हैं। परन्तु परम पावन ने स्मरण किया कि अध्यक्ष माओ ने १९५५ में पूछा था कि तिब्बतियों का अपना ध्वज है या नहीं, और जब कुछ झिझक के बाद उन्होंने उन्हें बताया कि उनका अपना ध्वज था तो माओ ने अपनी स्वीकृति दी और उसे लाल झंडे के बगल में फहराने की सलाह दी। परिणामस्वरूप, परम पावन ने घोषणा की कि उनका मानना है कि अध्यक्ष माओ ने उन्हें तिब्बत के हिम सिंह ध्वज फहराने की अनुमति दी थी।
 
महापौर तथा अन्य अतिथियों के साथ मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन ने फ्लोरेंस जाने के लिए पालेर्मो से विदा ली जहाँ वे कल प्रातः एक अंतर्धार्मिक बैठक में भाग लेंगे और मध्याह्न 'शिक्षा के माध्यम से शांति' पर व्याख्यान देंगे।

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