परम पावन 14 वें दलाई लामा
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मथो विहार की यात्रा २०/जुलाई/२०१७

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लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर - २० जुलाई २०१७, आज प्रातः जब दहकता सूरज बिखरे बादलों के बीच से निकला तो परम पावन दलाई लामा ने चोगलमसर की मुख्य सड़क से हट कर सिंधु नदी के ऊपर स्थानीय पुल को पार किया। जब उनकी गाड़ी छुछोट यकमा, छुछोट शामा और छुछोट गोंगमा के गांवों से होते हुए गुज़री तो स्कूली बच्चे उनका अभिनन्दन करने के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध थे। घाटी के किनारे के निकट के शुष्क रेतीले परिदृश्य से सामने हरे खेत थे जिसमें बीच बीच में विलो के वृक्ष थे जिसके चारों ओर दीवारें थीं। सड़क की चढ़ाई प्रारंभ हुई जो एक पहाड़ी के किनारे स्थित मथो विहार के प्रवेश द्वार तक पहुँची जहाँ से ठिकसे और शे का एक व्यापक दृश्य दिखाई पड़ रहा था।

विहार के भिक्षुओं द्वारा परम पावन का पारम्परिक ढंग से स्वागत किया गया जिन्होंने लाल टोपी पहन कर उनका सभागार तक अनुरक्षण किया। उस संकीर्ण रास्ते में स्त्रियाँ पंक्तिबद्ध थीं जो फिरोज़ युक्त अपने शिख की पारम्परिक पेरक में अलंकृत थीं और जिनके हाथों में रंग बिरंगे पुष्प थे। अपने अर्हतों से घिरे बुद्ध शाक्यमुनि की एक भव्य प्रतिमा के समक्ष परम पावन को एक नवनीत दीप प्रज्जवलन के लिए आमंत्रित किया गया। वे वंदन में नतमस्तक हुए। एक ओर खिड़की से वे बाहर टकटकी लगाकर हरियाली से भरे स्थानीय परिदृश्य को आत्मसात करने हेतु रुके।

एक बार जब परम पावन आसन ग्रहण कर चुके तो चाय और समारोहीय मीठे चावल परोसे गए जबकि सभा ने उनकी दीर्घायु के लिए प्रार्थना का पाठ किया जिसकी रचना उनके दो अध्यापकों द्वारा की गई थी। उनके प्रश्न के उत्तर में उन्हें बताया गया कि विहार की स्थापना १४१० में की गई थी और सक्या दगठी ने वहां कुछ समय व्यतीत किया था।

"मुझे गदेन ठिसूर रिनपोछे द्वारा निकट के उनके पारिवारिक घर में आने के लिए आमंत्रित किया गया है," परम पावन ने मंदिर में उनके साथ के लोगों को बताया "इसलिए मुझे लगा कि मैं यहाँ आपसे भी मिलता चलूँ। चूंकि मुझे चोपज्ञे ठि रिनपोछे से मार्ग और निष्पत्ति का संचरण प्राप्त हुआ है, मैं प्रतिदिन हेवज्र का अभ्यास करता हूँ। अतः सक्या परंपरा के छात्र के रूप में आज यहाँ होते हुए अच्छा अनुभव हो रहा है।"

मथो विहार अपने प्राचीन थंगका चित्रकला के संग्रह के लिए विख्यात है, जिनमें से कुछ विहार की स्थापना के समय के हैं। एक निकट के कक्ष में परम पावन को कार्य के उदाहरण दिखाए गए, जो विदेशियों की एक टीम ऐसे चित्रों को साफ और पुनर्स्थापित करने के लिए कर रही है।

विहार के बरामदे की सबसे ऊँची सीढ़ी पर बैठ कर परम पावन ने नीचे बरामदे में जनमानस को संबोधित किया।

"मेरे प्रिय धर्म भाई-बहनों, आज मुझे पहाड़ी के नीचे अपने पैतृक घर में गदेन ठिसूर रिनपोछे ने उनके साथ मध्याह्न के भोजन के लिए आमंत्रित किया है और मैंने आपके विहार में भी आने का निश्चय किया। मैं मानता हूँ कि यह महत्वपूर्ण है कि जब भी संभव हो आप सभी धार्मिक परम्पराओं को सम्मान दें इसलिए मैं इस सक्या विहार की यात्रा करते हुए बहुत खुश हूँ।

"तांत्रिक चीवर धारी तीन संस्थापकों से प्रारंभ होकर और पांच धर्माध्यक्षों के साथ चलती आई सक्या परम्परा में सूत्रों और तंत्र की शिक्षाओं के कई महान विद्वान तथा अभ्यासी सम्मिलित हैं। आज भी प्रमाण और तीन संवरों के विवेक की कृतियों और कश्मीरी पंडित शाक्य श्रीभद्र के साथ उनके अध्ययन के लिए हम विद्वान सक्या पंडित का स्मरण करते हैं।

"विगत कुछ दिनों से मैं जो हमारी बौद्ध परम्पराओं का पालन करते हैं, उनसे २१वीं शताब्दी के बौद्ध होने का आग्रह कर रहा हूँ। इसका क्या अर्थ है? महान भारतीय आचार्य वसुबन्धु के अनुसार बुद्ध की देशना को शास्त्रीय और अनुभवात्मक रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उनके संरक्षण और उन्हें जीवंत रखने के लिए हमें अभ्यास के माध्यम से समझाए गए अनुभवों का अध्ययन और विकास दोनों आवश्यक है। इसका अर्थ है कि हमें ग्रंथों के त्रिपिटक की सामग्री का अध्ययन करना चाहिए और शील, समाधि और प्रज्ञा की तीन अधिशिक्षाओं के अभ्यास से उन्हें व्यवहृत करना चाहिए, दूसरे शब्दों में अध्ययन और अभ्यास।

"अतीत में आम जनता बहुत अधिक अध्ययन नहीं करती थी। वे शास्त्रों का पाठ कर सके होंगे पर उन्होंने उनके अर्थ की जांच की आवश्यकता का अनुभव नहीं किया। अब हमें यही करना आवश्यक है, दर्शन और तर्क का अध्ययन करें और जो हम सीखते हैं उसे दिन-प्रतिदिन के जीवन में एकीकृत करें।

"अतीत में तिब्बत में कई विहार थे, परन्तु शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन मात्र उन्हीं में हुआ जिन्हें शिक्षण केंद्र के नाम से जाना जाता था। अध्ययन अब महाविद्यालयों तक सीमित नहीं होना चाहिए। हम सभी को सीखना चाहिए कि बौद्ध धर्म वास्तव में क्या है।

"विश्व की विभिन्न धार्मिक परंपराएँ प्रेम व करुणा, संतोष और आत्मानुशासन का एक आम संदेश सम्प्रेषित करती हैं। उन सभी में अच्छे लोगों को आकार देने की क्षमता है। हिंदू मत में विभिन्न परम्पराओं की एक सरणी है, ठीक उसी तरह जैसे बौद्ध धर्म में चार प्रमुख विचारधाराएँ हैं। इनसे परिचय आपके चित्त को खोल देगा। और यदि आप इन विभिन्न दृष्टिकोणों को पकड़ सकें तो आप जो बुद्ध की देशना की चुनौती को दूर कर सकते हैं और जिस मार्ग की देशना उन्होंने दी उसे समझा सकते हैं। वास्तव में, मैंने इन दिनों पाया है कि यहाँ तक वैज्ञानिक भी चित्त तथा भावनाओं के संबंध में जो बौद्ध धर्म कहता है, उसे लेकर कौतूहल रखते हैं।"

परम पावन ने उल्लेख किया कि इस महीने के अंत में वह सार्वजनिक प्रवचन देंगे पर अपने श्रोताओं से कहा कि वे उन्हें बुद्ध शाक्यमुनि, करुणा के प्रतिरूप अवलोकितेश्वर, प्रज्ञा के प्रकट रूप मंजुश्री तथा प्रबुद्ध गतिविधियों की अभिव्यक्ति, आर्य तारा के मंत्रों का संचरण देंगे।

जब परम पावन धीरे धीरे जनमानस के बीच से होते हुए अपनी गाड़ी तक लौटे तो सदैव की तरह वे कई लोगों से मिले। विहार से घुमावदार मार्ग पहाड़ी के नीचे मथो शाही परिवार का पैतृक घर था जहाँ गदेन ठिसूर रिनपोछे का जन्म हुआ था। द्वार पर रिनपोछे, उनकी बहन और परिवार के सदस्यों ने परम पावन से भेंट की और एक शानदार दोपहर के भोजन के लिए उन्हें ऊपर ले गए।

जब हर एक ने तृप्त होकर भोजन कर लिया, तो परम पावन ने परिवार के सदस्यों के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ किया। ठीक घर के बाहर उनका सामना एक चार या पांच साल की नन्हीं बच्ची से हुआ जिसने उनकी ओर देख कर पूछा, "क्या आप वास्तव में इच्छाएँ पूरी करते हैं?" जब परम पावन हँसे तो उसने पुनः उनकी आंखों में देखा और पूछा, "क्या आप ईश्वर हैं?" उसके प्रश्नों से मोहित हो और हँसना जारी रखते हुए, परम पावन झुके उसके गालों को थपथापाया और उससे कहा "नहीं, मैं वास्तव में एक मनुष्य हूँ।" फिर भी न रुकते हुए उसने ऊपर देखा और पूछा, "क्या आप स्मार्ट हैं?" और मुस्कुराते हुए परम पावन ने उत्तर दिया, "हाँ, कुछ लोग ऐसा सोचते हैं।"

परिवार और अतिथियों द्वारा विदा देने के उपरांत परम पावन गाड़ी द्वारा मथो गांव से रवाना हुए, उनके समक्ष नीचे लेह घाटी का व्यापक दृश्य विस्तृत रूप में था और वे शिवाछेल फोडंग लौट आए।

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