परम पावन 14 वें दलाई लामा
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मिनियापोलिस में तिब्बतियों से भेंट और बोस्टन की यात्रा २४/जून/२०१७

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रातः का नभ नीली आभा से मंडित था जब परम पावन दलाई लामा मिनेसोटा के तिब्बती समुदाय के सदस्यों से मिलने के लिए मिनेयापोलिस कन्वेंशन सेंटर पहुँचे। तिब्बती अमेरिकी फाउंडेशन ऑफ मिनेसोटा (टीएएफएम) के अध्यक्ष सोनम दोनडुब ने उनका स्वागत किया, जिन्होंने उनका स्टेट सीनेटर कैरोलिन लेन, मिनेयापोलिस के महापौर बैत्सी होड्जेस और कांग्रेस महिला बेटि मैककुलम से परिचय कराया। परम पावन ने उनके, अन्य महापौरों और सरकारी प्रतिनिधियों के साथ भेंट की, जिसके पश्चात वे सभी मंच पर आ गए।

सोनम दोनडुब ने सार्वजनिक रूप से कांग्रेस महिला बेट्टी मॅककुलम का परिचय कराया, जिन्होंने परम पावन को स्मरण कराया कि वह एक महीने पहले धर्मशाला में नैन्सी पलोसी के द्विदलीय कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल के साथ थीं। "मिनेसोटा में तिब्बतियों के लिए हमारे प्रबल समर्थन को स्वीकार करें," उन्होंने परम पावन से कहा। "मैं २०१५ में तिब्बत में थी। मैंने पर्वतों को देखा, अपने फेफड़ों में शुद्ध हवा भरी और तिब्बती लोगों की सौहार्दता अपने समक्ष देखी - पर वे स्वतंत्र नहीं हैं। चीन के लिए समय आ चुका है कि वह धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध उठाए और मानवाधिकारों का उल्लंघन समाप्त करे। मुझे चीनी वाणिज्य दूतावास से एक पत्र मिला जिसमें मुझ पर दबाव डाला गया था कि परम पावन मैं आपसे भेंट न करूँ। मैं कांग्रेस और अमेरिका के लोगों से आग्रह करती हूँ कि वे तिब्बती लोगों के साथ खड़े रहें। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन एक शक्तिशाली देश है, पर अमेरिका भी बहुत शक्तिशाली है और स्वतंत्र है।"
 
मिनाओपोलिस के महापौर बेट्सी होड्ज्स ने मिनेसोटा में परम पावन का स्वागत करते हुए कहा, "आपको यहाँ पाकर हम गौरवान्वित हैं।" महापौर होड्ज्स ने आज, २४ जून को मिनेयापोलिस में 'परम पावन दलाई लामा के शांति और करुणा दिवस' की घोषणा की है। सेंट पॉल के महापौर क्रिस कोलमेन ने भी आज अपने शहर को 'परम पावन दलाई लामा दिवस' के रूप में घोषित किया है। परम पावन ने कल जो करुणा के विषय में कहा, उसके प्रति उन्होंने सराहना व्यक्त की। कोलंबिया हाइट्स, जहाँ तिब्बतियों का सबसे बड़ा तिब्बती आवास है, के महापौर डोना श्मिट ने परम पावन को प्रार्थना की एक पुस्तक तथा उस शहर के लोगों द्वारा समर्पित शुभकामनाएँ प्रस्तुत कीं।  
तिब्बत के एक पुराने मित्र स्टेट सीनेटर कैरोलिन लेन ने कहा, "यहाँ होना एक सम्मान है। हम सदैव परम पावन को अपने बीच पाकर खुश होते हैं।" कई स्थानीय कौंसिल के सदस्यों ने भी अपनी शुभकामनाएं जोड़ी। मिनेसोटा के गवर्नर मार्क डेटन, जो एक प्रबल समर्थक और तिब्बतियों के लम्बे समय के मित्र, साथ ही कांग्रेसी केथ एलिसन आज बैठक में भाग लेने में असमर्थ रहे, पर उन्होंने अपने स्थान पर अपने प्रतिनिधि भेजे। परम पावन ने उन सभी को उनकी शुभकामनाएँ, मैत्री तथा समर्थन के लिए धन्यवाद किया।

सिंहासन से, भोट भाषा में बोलते हुए, परम पावन ने सभा को संबोधित किया:
 
"भाइयों और बहनों, हमें एक दूसरे को इस प्रकार देखने की आवश्यकता है आज, हम विश्व के कई भागों में समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिनमें से कई हमारी स्व निर्मित हैं। जब हमारा जन्म होता है और हम बड़े होते हैं तो हम राष्ट्रीयता, रंग या आस्था के किसी विभेद पर ध्यान नहीं देते। पर जब हम और बड़े होते हैं तो हम एक दूसरे को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखना सीखते हैं। मेरी पहली प्रतिबद्धता मानवता की एकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। मेरा दूसरा धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है, जिसका भारत एक जीवंत उदाहरण है।

"मेरी तीसरी प्रतिबद्धता, एक तिब्बती होने के नाते तथा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिस पर तिब्बत के अंदर और बाहर के तिब्बतियों ने अपनी आस्था जताई है, उन के प्रति है। २०११ के बाद से मैं राजनीतिक उत्तरदायित्व से पूर्ण रूप से अवकाश ग्रहण कर चुका हूँ, जो अब निर्वाचित नेतृत्व के हाथों में है। पर जिसके प्रति मैं अब भी उत्तरदायित्व की भावना की अनभूति करता हूँ, वह तिब्बत का प्राकृतिक वातावरण है। चूंकि एशिया की प्रमुख नदियों का उद्गम तिब्बती पठार से होता है और १ करोड़ से अधिक लोग उस जल पर निर्भर हैं, तो तिब्बत पारिस्थितिकी के साथ जो होता है, उसका व्यापक प्रभाव पड़ता है।
 
"मुझे बौद्ध परम्पराओं के भविष्य को लेकर भी चिंता है, जो तिब्बत में भारत के नालंदा से आया था। प्रारंभिक बौद्ध संपर्क ७वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ जब सोङ्चेन गम्पो ने एक चीनी और एक नेपाली राजकुमारी से विवाह किया। चीन के साथ वैवाहिक संबंधों के बावजूद, आने वाली शताब्दी में ठिसोङ् देचेन ने तिब्बत में बौद्ध धर्म स्थापित करने के लिए भारत से शांतरक्षित तथा पद्मसंभव को आमंत्रित किया। हम उन्हें उपाध्याय, आचार्य व धर्मराज के रूप में स्मरण करते हैं। शांतरक्ष्ति एक महान दार्शनिक और तर्कशास्त्री थे, जिन्होंने तिब्बत में नालंदा परंपरा का नेतृत्व किया था।

"तब से हमने श्रमसाध्य अध्ययन और ध्यान के संयुक्त रूप से इस परम्परा को बनाए रखा है। निर्वासन में, अपनी परम्पराओं को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है। हमने धर्मनिरपेक्ष विद्यालयों की स्थापना की और हम वैज्ञानिकों के साथ संवाद में संलग्न हुए। चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य का प्राचीन भारतीय ज्ञान हम तिब्बतियों के बीच आज जीवंत है। शांतरक्षित ने भोट भाषा में बौद्ध धर्म के अनुवाद को भी प्रोत्साहित किया और कहा जाता है कि इस ७० वर्षीय व्यक्ति ने स्वयं भाषा सीखी है। बौद्ध धर्म के प्रारंभ में जो विरोध आया उसका सामना गुरुपद्मसंभव ने किया।  
"हम उनकी शिक्षाओं के संबंध में कारण और तर्क को व्यवहृत करने के लिए बुद्ध की ही सलाह का अनुपालन करते हैं। उन्होंने कहा,

हे भिक्षुओं और विद्वानों,
जिस तरह स्वर्ण का परीक्षण जलाकर, काटकर और रगड़कर किया जाता है,
मेरे शब्दों का अच्छी तरह से परीक्षण करें और उसके पश्चात ही उन्हें स्वीकारें - मात्र गौरव से नहीं।

जहाँ थाई बौद्ध भिक्षु शास्त्रों के अधिकार के आधार पर चार आर्य सत्य और उनके सोलह आकारों की शिक्षा देते हैं, हम कारण व तर्क पर निर्भर रहते हैं।
 
"सम्पूर्ण विश्व की धार्मिक परम्पराएं प्रेम और करुणा का एक आम संदेश देती हैं, परन्तु विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणों के माध्यम से इसे बढ़ावा देती हैं। बुद्ध की शिक्षा कार्य कारण नियम पर केंद्रित है कि कुशल कर्म का प्रभाव सुख और अकुशल कर्म दुख को जन्म देता है। इस संदर्भ में बुद्ध अकुशल कर्म को जल से नहीं धोते, न ही सत्वों के दुःख को अपने हाथों से हटाते हैं। वे अपना अधिगम दूसरों में स्थान्तरित नहीं करते। वे धर्मता सत्य देशना को प्रकट कर सत्वों को मुक्त करते हैं।

"जब बुद्ध को सर्वप्रथम बुद्धत्व प्राप्त हुई तो उन्होंने चिंतन किया कि उन्हें एक गहन, अमृत सम समझ प्राप्त हुई थी, पर यदि वे उसकी शिक्षा देते तो कोई उसे समझ न पाता। पर फिर भी, उन्होंने चार आर्य सत्य की देशना दी और प्रथम दुःख आर्य सत्य को समझाते हुए, उन्होंने स्पष्ट किया कि इसे अनित्य, दुःख की प्रकृति के रूप में, शून्यता व नैरात्म्य के रूप में समझा जा सकता है। अतः उन्होंने अपनी प्रथम देशना में ही नैरात्म्य का विचार प्रकट किया, जो गहन और शांत, प्रपञ्चहीन और प्रभास्वरता लिए है। तृतीय आर्य सत्य, निरोध का सत्य नैरात्म्य से जुड़ा है और दूसरे धर्म चक्र प्रवर्तन में व्याख्यायित हुआ। तृतीय धर्म चक्र प्रवर्तन में तथागत गर्भ और चित्त की प्रभास्वरता का प्रकटीकरण हुआ। बाद में, बुद्ध ने तंत्र की गुह्य शिक्षाएं दीं।"
 
परम पावन ने समझाया कि मैत्रेय बुद्ध को एक चिकित्सक के रूप में संदर्भित करते हैं, उनकी शिक्षा औषधि की तरह है और संघ साथी परिचारक की तरह हैं। उन्होंने घोषित किया कि मुक्ति वह अवस्था है जब हमने सभी नकारात्मक भावनाओं और उनकी वासनाओं पर काबू पा लिया है।
 
उन्होंने स्पष्ट किया कि हम जो अनुभूत करते हैं वह हमारे कर्मों के परिणामस्वरूप आता है। हमारे कर्म नकारात्मक भावनाओं के उत्पाद हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि संज्ञानात्मक चिकित्सक हारून बेक का यह अवलोकन कि हमारे क्रोध या मोह की भावना ९०% मानसिक प्रक्षेपण न केवल सहायक है, अपितु यह नागार्जुन की सलाह के साथ भी मेल खाता है।
 
कर्म और क्लेशों के क्षय में मोक्ष है;
कर्म और क्लेश विकल्प से आते हैं,
विकल्प मानसिक प्रपञ्च से आते हैं,
शून्यता में प्रपञ्च का अंत होता है।

परम पावन ने आगे कहा कि नागार्जुन ने जो सिखाया था, इस पर कई दशकों के चिन्तन के पश्चात वे देख सकते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने मैत्रेय के सत्य द्वय, चार आर्य सत्य, विशेष रूप से निरोध व मार्ग के सत्य और त्रिरत्न का परिचय देते हुए उनके शिक्षा के ढंग की सराहना की। उन्होंने कहा कि बुद्ध के एक विद्यार्थी के रूप में ८२ वर्ष की उम्र में भी, उनका नागार्जुन की शिक्षाओं का पठन और अध्ययन बना हुआ है। उन्होंने अपने श्रोताओं से आग्रह किया कि जो कुछ बुद्ध ने सिखाया है उसे आशीर्वाद की प्रकृति न मानें, पर इस रूप में देखें कि वह अध्ययन के लिए है, ऐसा कुछ जिसमें आपको अपनी बुद्धि का प्रयोग करना है।

परम पावन ने श्रोताओं के हेतु बोधिचित्तोत्पाद के एक संक्षिप्त समारोह का नेतृत्व किया और समझाया कि जीवन का उद्देश्य दूसरों की सेवा करना है। तत्पश्चात उन्होंने मंजुश्री स्तुति और उनके मंत्र का संचरण दिया।
 
मंच छोड़ने से पूर्व परम पावन ने बताया कि विगत वर्ष के उपचार के बाद वे हाल ही पूरी तरह से जांच के लिए मेयो क्लिनिक गए थे। उन्होंने सूचित किया कि उनके डॉक्टर संतुष्ट थे।  
तिब्बत के मुद्दे के संबंध में, उन्होंने यह स्पष्टीकरण दिया:
 
"हम यह नहीं कह रहे कि अतीत में तिब्बत एक स्वतंत्र देश नहीं था। हम जो कह रहे हैं, वह यह कि हम इस समय स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे। हम मध्यम मार्ग दृष्टिकोण ले रहे हैं। कई चीनी जो मुझसे मिलते हैं वे प्रारंभ में आशंकित होते हैं पर जब वे समझते हैं कि हम जो चाहते हैं वह वास्तविक स्वायत्तता है, तो वे सहज हो जाते हैं। हमारा मध्यम मार्ग दृष्टिकोण संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विश्व भर की कई सरकारों द्वारा स्वीकृत और समर्थित है।"

परम पावन मिनियापोलिस कन्वेंशन सेंटर से सीधे हवाई अड्डे तक गए जहाँ से उन्होंने बोस्टन के लिए उड़ान भरी। आगमन पर स्थानीय तिब्बती समुदाय के सदस्यों ने उनका उत्साहपूर्वक अभिनन्दन किया और एक समग्र पारम्परिक स्वागत प्रस्तुत किया।

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