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समन्वयात्मक सहअस्तित्व के विचार: जेएनयू में भारत के धर्म और दर्शन २८/दिसम्बर/२०१७

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नई दिल्ली, भारत, परम पावन दलाई लामा आज प्रातः शीतकालीन धूप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के व्यापक परिसर में एक अंतर्धार्मिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में भाग लेने के लिए गाड़ी से गए। यह बैठक कुतुबी जुबली छात्रवृत्ति कार्यक्रम और जेएनयू के अरबी और अफ्रीकी अध्ययन केंद्र की पहल पर हुई थी।

परम पावन के आगमन पर स्येदना ताहिर फखरुद्दीन साहब ने उनका स्वागत किया और उन्हें विश्वविद्यालय के परिसर में उनका अनुरक्षण किया। 

जब परम पावन और अन्य जाने माने आध्यात्मिक नेताओं ने मंच पर आसन ग्रहण कर लिया तो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जगदीश कुमार ने एक संक्षिप्त स्वागत परिचय दिया। उन्होंने आंतरिक शांति के पोषण के महत्व पर बल दिया तथा सुझाया कि जब हमारे अंदर चित्त की शांति होती है तभी हम सम्पूर्ण रूप से अपने आसपास के विश्व में सद्भाव की सराहना कर सकेंगे।

कुतुबी जुबली छात्रवृत्ति कार्यक्रम के सह-निदेशक के रूप में प्रोफेसर ताहेरा कुतुबुद्दीन ने अपने परिचय में बताया कि वर्तमान बैठक कोलकाता में प्रारंभ हुई एक तकरीब सम्मेलन श्रृंखला का अंग थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि 'तक़रीब' का मतलब करीब लाना है। उन्होंने टिप्पणी की कि पैगंबर मुहम्मद, बुद्ध और कई अन्य धार्मिक शिक्षकों ने सद्भाव के प्रसार में दया और शिक्षा के महत्व पर ज़ोर दिया।
 
स्येदना ताहिर फखरुद्दीन साहब ने सभी का एक परिवार के सदस्यों के रूप में स्वागत किया, क्योंकि उनके अनुसार यह सम्मेलन इस भावना को लेकर हो रहा था। इस प्रश्न पर कि इस तरह की बैठकें क्यों बुलाई जा रही हैं, उन्होंने कहा कि इस समय में हिंसा चारों ओर फैली है। "चूंकि संघर्ष के पश्चात लोग नियमित रूप से संवाद में प्रारंभ करते हैं तो कितना बेहतर होगा यदि वे पहले ही एक-दूसरे से संवाद करें। सभी धर्म सिखाते हैं कि लोगों को अपनी स्वतंत्र इच्छा से विश्वास करना चाहिए, जिसमें कोई ज़ोर न दिया जाए।" उन्होंने अधिक हित के लिए काम करने हेतु लोगों को एक साथ लाने में अपने पिता की भूमिका स्पष्ट की। 

जैन नेता आचार्य लोकेश मुनि ने शांति और सामंजस्य के बारे में हिंदी में बात की। उनके पश्चात श्री गौरगोपाल दास ने कहा कि हमारी सभी अलग-अलग धार्मिक परम्पराओं में शांति और सामंजस्य का आम संदेश है। उन्होंने सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व को सुधारने के लिए कार्य की आवश्यकता को एक कहानी से स्पष्ट किया जिसमें कबूतर अपने रहने की जगहों - फिर वह चाहे मंदिरों, मस्जिद या चर्च की छतों पर हों साझा करने के लिए तैयार थे क्योंकि वे मात्र कबूतर थे। एक छोटे कबूतर को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो लोग इन भवनों में रहते थे वे कम उदार थे और मनुष्य के मुकाबले इस बात को लेकर अधिक चिंतित थे कि वे हिंदु, मुसलमान या ईसाई हैं। श्री गौरगोपाल दास ने बताया कि जो लोग ईश्वर का अनुभव करते हैं वे सद्भाव अनुभव करते हैं क्योंकि वे सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मानते हैं और इसमें रहने वालों को भाई-बहनों के रूप में।
 
रब्बाई एजेकिल आइजैक मालेकर ने घोषणा की कि वह पहले एक भारतीय हैं और बाद में यहूदी हैं क्योंकि भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसमें यहूदियों के खिलाफ भेदभाव नहीं किया गया है। उन्होंने सुझाया कि मानवता के प्रति सोच एकमात्र वास्तविक धर्म है और अहिंसा को 'प्रेम' के रूप में अनुवाद करना बेहतर होगा।

सरदार मनजीत सिंह ने कहा कि प्रत्येक धर्म एक दूसरे के लिए समानता और प्रेम की शिक्षा देते हैं। उन्होंने सिख संस्थापक गुरु नानक के प्रयासों का उदाहरण दिया जो एक दूसरे के पूजा स्थलों की यात्रा कर उनके साथ संवाद में संलग्न हुए। उन्होंने अपने समुदाय के प्रयासों के बारे बताया जो विस्थापित रोहिंगों की सेवा और उन लोगों को खाना और आश्रय प्रदान कर रहे हैं जो गुरुद्वारा बंगला साहिब के निकट जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने आते हैं।
 
बहाई आस्था के प्रतिनिधि के रूप में बोलते हुए डॉ अली के मर्चेंट ने मानवता की एकता को पहचानने की आवश्यकता पर बल दिया। आर्चबिशप अनिल जोसेफ थॉमस कूटो ने यीशु मसीह के बारे में बताया जो उनके अनुसार प्रेम, क्षमा और सेवा के तरीकों की शिक्षा देने हेतु आए थे। उसने ईसा मसीह द्वारा चेले के पैरों को धोने और अच्छे परोपकारी का उदाहरण दिया, जिसने किसी अन्य इंसान की सहायता करने के लिए एक आधारभूत उत्तरदायित्व से काम किया। इस तरह, उन्होंने कहा, हमें एक बेहतर विश्व बनाने के लिए हाथों को जोड़ने की आवश्यकता है। 

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अहमदी ने टिप्पणी की कि विश्व के सभी धर्मों के लोग भारत में एक साथ रहते हैं। सहिष्णुता शब्द के उपयोग के बारे में अनिच्छा व्यक्त करते हुए, जिसमें यह ध्वनित होता है कि, "मुझे आप अच्छे नहीं लगते, पर मैं आपको बर्दाश्त करूंगा", उन्होंने सुझाया कि इसके बदले हमें सक्रिय रूप से एक दूसरे को गले लगाने और समायोजित करने की आवश्यकता है। वे परम पावन दलाई लामा को दाऊदी बोहरा लोगों के नेता ५३ वर्षीय दाई अल-मुतलक की स्मृति में, स्येदना कुतुबुद्दीन समन्वय पुरस्कार प्रदान करते हुए बहुत प्रसन्न थे। इसके बाद स्येदना ताहिर फखरुद्दीन साहेब ने तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता, शांतिपूर्ण, अहिंसक सह अस्तित्व के समर्थक परम पावन को एक पट्टिका प्रदान की।
 
"आदरणीय भाइयों और बहनों, मेरे लिए इन अद्भुत वक्ताओं को सुनना एक बड़ा सम्मान का विषय है," परम पावन ने उत्तर दिया "मेरे लिए अब कहने को बहुत कुछ नहीं है। हम मानव कुछ अर्थों में अद्भुत हैं, पर कहीं और गड़बड़ी फैलाते हैं। चूँकि हम हिंसा और बल के प्रयोग पर भरोसा करते हैं, हम शक्तिशाली, जटिल शस्त्रों के विकास पर धन खर्च करते हैं। परमाणु हथियारों को नष्ट करने के बारे में बात करने के बावजूद और यह जानते हुए कि यदि उनका प्रयोग किया गया तो वे विश्व का विनाश कर सकते हैं, कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अगर हम इसी तरह बने रहें तो क्या होगा?

"हमारी विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ हमें विनाशकारी भावनाओं से निपटने के उपाय देती हैं जो हमारे बुद्धि के दुरुपयोग को रेखांकित करते हैं। विनाशकारी भावनाओं को कम करने का एक उपाय सक्रिय रूप से प्रेम, संतोष, सहिष्णुता और क्षमा जैसे सकारात्मक भावनाओं को विकसित करना है - हमारे सभी धर्म उनके बारे में बात करते हैं। प्रश्न यह है कि हम अपनी आस्था को गंभीरता से लेते हैं अथवा नहीं। यदि मैं बौद्ध भिक्षु के रूप में वस्त्र धारण करूँ, पर मेरे चित्त में कोई परिवर्तन न हो तो मेरे अभ्यास के रूप में दिखाने के लिए मेरे पास बहुत कुछ नहीं है।
 
"सभी धार्मिक परंपराओं में सौहार्दपूर्ण लोगों को जन्म देने की क्षमता होती है, पर जब तक हम सच्चे नहीं होते, तब तक धर्म के लिए 'हम' और 'उन' के संदर्भ में सोचने के लिए आगे के आधार बनाना अत्यंत सरल है।  
"वैज्ञानिक हमें प्रमाण देते हैं कि मानव प्रकृति करुणाशील है। वे यह भी देखते हैं कि निरंतर क्रोध, भय और घृणा हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करती हैं अतः हमारे स्वास्थ्य के लिए बुरी हैं। यही कारण है कि शारीरिक स्वच्छता के अतिरिक्त हमें भावनात्मक स्वच्छता के विकास की आवश्यकता है, चित्त की शांति प्राप्त करने पर ध्यान देना। सामाजिक प्राणी के रूप में हमें मित्रों की आवश्यकता है, पर हम भय व क्रोध से मित्र नहीं बनाते। दूसरों के हित के प्रति सच्ची सोच रखते हुए ही हम उनका विश्वास प्राप्त करते हैं और विश्वास मैत्री की आधार है। 

"महिलाएँ स्वयं को अधिक सुंदर बनाने के लिए सौंदर्य प्रसाधनों पर समय और प्रयास लगाती हैं, पर अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक सौंदर्य का विकास है - मुस्कुराने की क्षमता और दूसरों के प्रति विश्वास और चिंता दिखाना। चूंकि हम एक दूसरे पर इतने अधिक निर्भर हैं, अतः हमें एक साथ रहना होगा और इसका अर्थ है कि मानवता की एकता को स्वीकार किया जाए। यही कारण है कि मैं यूरोपीय संघ की भावना की प्रशंसा करता हूँ, युद्ध और संघर्ष के इतिहास के उपरांत संकीर्ण स्थानीय समुदायों के आगे व्यापक समुदाय के हित का विचार। यूरोपीय संघ की स्थापना के बाद से यूरोप में शांति बनी रही। भारत भी लोगों, भाषाओं और संस्कृतियों की विविधता के संघ का प्रतिनिधित्व करता है।"

अंत में, परम पावन ने भारत के चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य की निधि की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने सुझाया दिया कि यह गहन मनोविज्ञान आज प्रासंगिक है जब विनाशकारी भावनाओं का सामना करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि चित्त की शांति प्राप्त करना विश्व में शांति स्थापित करने का आधार है। और भारत एक ऐसा देश है जिसमें विश्व के व्यापक हितार्थ अपने प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शिक्षा के साथ संयोजित करने की क्षमता है।
 
कल, परम पावन सारनाथ, वाराणसी की यात्रा करेंगे।

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