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रूसी और बौद्ध विद्वानों के बीच संवाद - दूसरा दिन ४/मई/२०१८

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा चुगलगखंग पहुँचे, तो उन्होंने अपना सम्मान व्यक्त किया, विभिन्न रूसी वैज्ञानिकों का अभिनन्दन किया तथा अपना आसन ग्रहण किया। तेलो रिनपोछे ने तिब्बती चिकित्सा और खगोल विज्ञान संस्थान की डॉ. नमडोल ल्हामो, जिन्हें तिब्बती चिकित्सा परंपरा के संदर्भ में विश्व की समझ पर एक प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित किया गया था, का परिचय देने में कोई समय व्यर्थ नहीं किया।

डॉ. ल्हामो ने यह समझाते हुए प्रारंभ किया कि मनुष्य छह तत्वों का मिला रूप है: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। परम पावन ने सुझाया कि जो इस प्रणाली से अपरिचित हैं उनके लिए समझना बेहतर होगा यदि यह स्पष्ट कर दिया जाए कि इसमें वास्तविक अग्नि नहीं होती। अग्नि शब्द उष्णता का प्रतिनिधित्व करता है, जिस तरह वायु का अर्थ ऊर्जा व आंदोलन है। डॉ ल्हामो ने कहा कि छठा घटक चेतना है। कल परम पावन ने जो प्रश्न उठाया था उसे लेते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि शुक्राणु और अंडाशय की उपस्थिति भ्रूण के गर्भधारण के लिए पर्याप्त नहीं है; चेतना भी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कर्म भी है जो उन्हें एक साथ लाता है। यदि इनमें से एक घटक अनुपस्थित है तो गर्भधारण नहीं होगा, जैसा कि २०% मामलों में होता है।
 
डॉ ल्हामो ने मछली, कछुए और सुअर के भ्रूण के विकास की अवस्थाओं को स्पष्ट किया, जो ३८ सप्ताह के दौरान होता है। उन्होंने इंगित किया कि तिब्बती चिकित्सा स्पष्टीकरण में कंकाल संरचना शुक्राणु से आती है जबकि मांसपेशियों और अन्य मुलायम ऊतक अंडे से व्युत्पन्न होते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि २४वें सप्ताह में ठोस और पोत अंग पूरी तरह से विकसित होते हैं और भ्रूण आनंद तथा पीड़ा का अनुभव कर सकता है। २५वें सप्ताह तक यह सांस लेने में सक्षम हो जाता है और २६वें सप्ताह तक, स्पष्ट विचार में सक्षम, इसमें विगत जन्मों का स्मरण करने की भी क्षमता होती है।
 
डॉ ल्हामो ने कहा कि एक तिब्बती चिकित्सक तीन प्रमुख ऊर्जाओं का परीक्षण करता है: वायु जो प्रकाश के रूप में विशेषता रखती है, चलायमान ऊर्जा; पित्त, जो उष्णता और कफ के साथ जुड़ा हुआ है, जिसका स्वरूप ठंडा, नम और भारी है। जब इन ऊर्जायों में असंतुलन होता है तो रोगी अस्वस्थ होता है। श्याम व श्वेत महत्वपूर्ण नाड़ियों को पेश करते हुए, उन्होंने समझाया कि जहाँ श्याम श्रेणी में नसें, धमनियाँ, रक्त वाहिकाएँ इत्यादि शामिल हैं, श्वेत वर्ग मस्तिष्क और तंत्रिका प्रणाली को संदर्भित करता है।

समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति को एक अवांछित आहार और एक अवांछित जीवनशैली से बचने की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है क्योंकि अस्वस्थ होने की एक प्रवृत्ति सदैव रहती है जो गौण तत्वों के कारण अधिक सक्रिय होती है। उन्होंने मनुष्यों के चित्त तथा शरीर को एक समग्र दृष्टिकोण से देखने का सुझाव दिया।
डॉ ल्हामो के समाप्त करते ही संचालक प्रो अनोखिन जानना चाहते थे कि यह कैसे पता चला है कि भ्रूण अपने विकास के २६वें सप्ताह में विगत जीवन का स्मरण करता है। उन्होंने उनसे कहा कि उस बिंदु पर वायु ऊर्जा के पूर्ण विकास के कारण होता है। परम पावन ने सुझाव दिया कि ऐसा अर्थ निकाला जा सकता है वह यह है कि सामान्य रूप से स्मृति शक्ति उस बिंदु पर संलग्न होती है। उन्होंने आगे कहा कि बच्चे के एक बार जन्म लेने के उपरांत तो प्रारंभिक अवस्था में उसमें ऐसी स्मृतियाँ हो सकती हैं, पर ये गायब हो जाती हैं जब बच्चे के विकास के साथ उसका मस्तिष्क विकसित होता है।
 
चाय के एक लघु अंतराल के बाद, भारतीय और बौद्ध दर्शन में रूसी विशेषज्ञ प्रोफेसर विक्टोरिया लिसेन्को, जिनसे परम पावन पहले मिल चुके हैं, ने पूछा कि यदि यह सच है कि उन्हें लगता है कि बौद्ध विज्ञान का आधुनिक विज्ञान से सममेल है, पर बौद्ध दर्शन और ध्यान अभ्यास मात्र बौद्धों का विषय़ है।

"साधारणतया मैं बौद्ध विज्ञान और बौद्ध धार्मिक अभ्यास के बीच अंतर रखता हूँ" परम पावन ने उत्तर दिया। धार्मिक अभ्यास एक निजी मामला है, परन्तु बौद्ध विज्ञान की अंतर्दृष्टि हर किसी को उपलब्ध होनी चाहिए। नालंदा परम्परा में आया बौद्ध विज्ञान तार्किक जाँच का परिणाम है। उन्होंने धर्मकीर्ति की चार आर्य सत्यों पर व्याख्या प्रमाणवर्तिका के द्वितीय अध्याय का उल्लेख किया कि एक वैध अनुमान स्थापित करने के बाद भी अनुभव विकसित करना आवश्यक है।
 
"जैसा कि मैंने कल उल्लेख किया था, बुद्ध की शिक्षा यथार्थ की समझ पर आधारित है। नैरात्म्य का सिद्धांत तथा यह व्याख्या कि आत्मा शरीर और चित्त के आधार पर ज्ञापित की गई है, का अर्थ है कि यदि चित्त परिवर्तित होता है तो आत्म परिवर्तित होता है।
 
"नागार्जुन ने कहा कि बुद्ध ने जो सिखाया वह सत्य द्वय पर आधारित है, सांवृतिक सत्य तथा परमार्थिक सत्य। समझ के आधार पर मार्ग विकसित किया जाता है। मैं विज्ञान और बौद्ध धर्म के बीच संवाद की बात नहीं करता, बल्कि आधुनिक विज्ञान और बौद्ध विज्ञान के बीच संवाद की बात करता हूँ। हम उस पर चर्चा करते हैं जो हर किसी के लिए स्पष्ट है।

"बौद्ध धर्म के प्रादुर्भाव से पूर्व तर्क और वैध संज्ञान का प्रयोग था, यही कारण है कि मैं प्राचीन भारत से प्राप्त ज्ञान के रूप को संदर्भित करना पसंद करता हूँ। बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सांख्य की शाखा जैसी अनीश्वरवादी परम्पराएँ एक सृजनकर्ता को स्वीकार नहीं करती। उनकी मान्यता है कि भविष्य आपके स्वयं के कर्मों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है और फिर वह कर्म सकारात्मक है कि नकारात्मक, वह आपकी प्रेरणा पर निर्भर करता है। इसका अर्थ यह है कि हमें मनोविज्ञान को साथ लेकर चलना है। हम जागरूकता द्वारा अपने चित्त का रूपांतरण कर सकते हैं।"
 
नब्बे वर्षीय प्रोफेसर डेविड डबरोव्स्की, विज्ञान के दार्शनिक जिन्होंने विगत वर्ष भी रूसी और बौद्ध विद्वानों के बीच पहले संवाद में भाग लिया था, ने परम पावन से पूछा कि वे मस्तिष्क का अध्ययन करने वाले नेरो बैंड इमेजिंग के बारे में क्या सोचते हैं और तकनीकी के और निकट आने के बारे में क्या सोचते हैं। परम पावन ने उन्हें बताया कि उन्होंने कुछ वैज्ञानिकों से भेंट की है जो कल्पना करते हैं कि अंततः तकनीकी विकास के माध्यम से चेतना उत्पन्न करना संभव हो सकता है। दूसरे शब्दों में, कृत्रिम बुद्धि के साथ एक सत्व की तरह कुछ का निर्माण।

"मुझे संदेह है कि इस तरह का कारनामा संभव है," परम पावन ने स्पष्ट किया। अंततः तकनीक की उत्पत्ति मानव चित्त में है। परन्तु यदि बिना क्रोध के प्राणियों का सृजन संभव है तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए पर मुझे नहीं लगता ऐसा होगा।"

प्रोफेसर डबरोव्स्की ने उनसे कहा कि वे यह दिखाना चाहते हैं कि चेतना के अनुभव का बौद्ध विवरण विज्ञान के विपरीत नहीं है - वे एक आम वैचारिक मंच साझा करते हैं। परन्तु चेतना का एक व्यक्तिपरक पहलू है और व्यक्तिपरक वास्तविकता विज्ञान के लिए एक समस्या है। उन्होंने 'युनिवर्स इन ए सिंगल एटम' से परम पावन के सुझाव को उद्धृत किया कि वस्तुनिष्ठ जिए अनुभव को व्यक्तिपरक अनुभव के साथ को संयोजित करने का एक उपाय होना चाहिए। अपने विचारों को नियंत्रित करने की क्षमता हमारे मस्तिष्क को नियंत्रित करने की क्षमता प्रदान करती है।

डबरोव्स्की ने घोषणा की कि उन्हें इस दावे को लेकर शंकाकुल हैं कि मानव मस्तिष्क मूल रूप से विशुद्ध है, जिसमें निश्चित रूप से कोई नकारात्मक पक्ष शामिल नहीं है। परन्तु उन्होंने यह स्वीकार किया कि मानव मस्तिष्क को परिवर्तित करने के उपाय को सीखने की तत्काल आवश्यकता है और इस पर एक आशावादी दृष्टिकोण रखना महत्वपूर्ण है।

अपनी प्रतिक्रिया में परम पावन ने कहा, "सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं। निश्चित रूप से हर मनुष्य को सुखी जीवन जीने का अधिकार है। पर मानसिक स्तर पर सुख और भौतिक या ऐन्द्रिक स्तर पर सुख के बीच अंतर है। वर्तमान में हमारी शिक्षा प्रणालियाँ अपर्याप्त हैं क्योंकि वे मात्र भौतिक अथवा ऐन्द्रिक स्तर से संबंध रखती हैं। जो चीज़ मनुष्यों को जानवरों से अलग करती है वह हमारे मानसिक अनुभव हैं पर इस योग्यता का दुरुपयोग किया जा सकता है, बंदर आपस में लड़ सकते हैं, लेकिन वे लोगों की तरह हजारों लोगों को मारने के लिए इकट्ठा नहीं करते।

"इसलिए हमारी शिक्षा प्रणालियों को हमारे चित्त और भावनाओं के प्रकार्य के बारे में और अधिक शिक्षा देना चाहिए, और उन्हें ऐसा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के संदर्भ में करना चाहिए। लोगों की शांति से रहने की इच्छा उनके चित्त से संबंधित है। यही कारण है कि मैं प्राचीन भारत के मनोवैज्ञानिक ज्ञान को और अधिक उपलब्ध कराने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हूँ। मेरा मानना है कि भारत सर्व हित के लिए आधुनिक और प्राचीन ज्ञान को जोड़ सकता है।

"हमें सौहार्दता बढ़ाने के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जरूरत है। और हमें लोगों को क्रोध से निपटने की आवश्यकता पर लोगों को समझाने की आवश्यकता है। यह काम शीघ्र परिणाम नहीं ला सकता और संभवतः मैं उन्हें देखने के लिए जीवित न रहूँ पर जो अब ३० के दशक के हैं वे एक अधिक शांतिपूर्ण मानव जनसंख्या का उद्भव देख पाएँगे।

"और तो और जबकि प्रारंभिक दिनों में परमाणु हथियार के विकास ने कुछ वैज्ञानिकों को रोमांचित किया था, पर सच्ची शांति के लिए लोकप्रिय इच्छा के कारण, अब हमें उन्हें खत्म करने के उपायों को खोजने की आवश्यकता है। वैज्ञानिक निश्चित रूप से एक बेहतर तथा करुणाशील विश्व बनाने में योगदान दे सकते हैं और साधारणतया जो वे कहते हैं, लोग उस पर ध्यान देंगे।

"हमारी बैठकों में से यह दूसरी है - मुझे आशा है कि हम सब पुनः मिलेंगे और एक दिन ऐसी एक बैठक मास्को में हो सकती है।" इस उक्ति पर हुई करतल ध्वनि ने संकेत दिया कि यह आशा व्यापक रूप से मान्य है।

परम पावन मंदिर से अपने निवास के लिए रवाना हुए और उनके रूसी अतिथि मध्याह्न भोजन के लिए उनके साथ सम्मिलित हुए।

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