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अमेरिकी, भारतीय और तिब्बती छात्र तथा शिक्षकों की परम पावन दलाई लामा से भेंट १/जून/२०१८

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थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - तीन अलग-अलग समूहों के अस्सी लोगों ने आज परम पावन दलाई लामा से भेंट की। उनमें एमोरी यूनिवर्सिटी, अटलांटा, जॉर्जिया, यूएसए के छात्र तथा संकाय सदस्यों के साथ-साथ तिब्बती संग्रहालय तथा अभिलेखागार, धर्मशाला के एमोरी-तिब्बत भागीदारी में भाग लेने वाले छात्र तथा फाउंडेशन फॉर युनिवर्सल रेसपांसिबिलिटी, नई दिल्ली के गुरुकुल कार्यक्रम से जुड़े छात्र भी शामिल थे।

परम पावन दलाई लामा अपने निवास पर छात्रों तथा शिक्षकों के साथ बैठक के पूर्व श्रोताओं का अभिनन्दन करते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, जून १, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

परम पावन ने धर्मशाला में उनका स्वागत किया, जिसे उन्होंने विगत ५९ वर्षों से अपने दूसरे घर के रूप में वर्णित किया।

उन्होंने अपनी चार मुख्य वचनबद्धताओं को रेखांकित किया, यह समझाते हुए कि पहला एकता की समझ को बढ़ावा देना है, जो आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों को एक करता है। उन्होंने न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था की अन्योन्याश्रितता का उल्लेख किया, पर साथ ही यह भी कि किस तरह हम सब जलवायु परिवर्तन जैसी आम समस्यायों से प्रभावित होते हैं।

"हम भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से समान हैं और हम चित्त की शांति प्राप्त करने के अपने अनुभव को साझा करके एक-दूसरे की सहायता कर सकते हैं।"

परम पावन दलाई लामा अपने निवास पर छात्रों तथा शिक्षकों के एक समूह को संबोधित करते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, जून १, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

यह टिप्पणी करते हुए कि सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराओं के आधारभूत संदेश में मैत्री का विकास, प्रेम, सहिष्णुता और आत्मानुशासन का महत्व शामिल है, परम पावन ने कहा कि वे अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। और धार्मिक संघर्ष का स्तर जो आज दिखाई पड़ रहा है उसके प्रति खेद व्यक्त किया।

उन्होंने कहा, "भारत को देखें," जहाँ धार्मिक सद्भाव हजारों सालों से फल फूल रहा है। स्वदेशी परम्पराओं के अतिरिक्त विभिन्न स्थानों से अन्य परम्पराएँ भी हैं। उदाहरण के लिए ज़ोरोस्ट्रियन के अनुयायी, मूल रूप से फारस और उनके समुदाय से आए थे, अब १००,००० से कम संख्या में, अधिकतर मुंबई में हैं। पर वे पूरी तरह से बिना भय के रहते हैं। यह भारतीय परम्परा है।

रोता परम पावन दलाई लामा को उनके निवास पर बैठक के दौरान सुनते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, जून १, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

"फिर, एक तिब्बती के रूप में, जिस पर ६ लाख तिब्बतियों ने अपना विश्वास बना रखा है, मेरे पास यथा संभव उनकी सहायता करने का एक नैतिक उत्तरदायित्व है। मैं २००१ में अपनी राजनैतिक भूमिका से अर्ध सेवानिवृत्त हुआ और २०११ में पूरी तरह से सेवानिवृत्त हुआ और निर्वाचित नेतृत्व को उन उत्तरदायित्वों को समर्पित कर दिया। अब मैं तिब्बत के नाजुक पर्यावरण की सुरक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध हूँ। इसमें छह लाख से अधिक तिब्बतियों का हित शामिल है क्योंकि जैसा, एक चीनी पारिस्थितिक विज्ञानी ने कहा है, वैश्विक जलवायु पर तिब्बत का प्रभाव उत्तरी और दक्षिण ध्रुवों के बराबर है। यही कारण है कि उन्होंने तिब्बती पठार को तीसरे ध्रुव के रूप में संदर्भित किया। एशिया भर में लगभग एक अरब लोग सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, सलवीन और मेकांग जैसे नदियों से पानी पर निर्भर करते हैं, जिनमें से सभी का उद्गम तिब्बत में है। यदि तिब्बत के पहाड़ों पर बर्फ गायब हो जाए, तो लाखों भारतीयों को उसका परिणाम झेलना होगा।"

परम पावन दलाई लामा अपने निवास पर छात्रों तथा शिक्षकों के साथ बैठक के दौरान श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, जून १, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

परम पावन ने तिब्बत की भाषा और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को जीवित रखने के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। उन्होंने समझाया कि किस तरह तिब्बत की बौद्ध परम्पराएँ भारत के नालंदा विश्वविद्यालय से ली गईं थीं जहाँ उनका पालन होता था। उनमें तर्क और परीक्षण पर एक सशक्त निर्भरता शामिल थी, जो एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मेल खाता है।

"विश्व भावनाओं के संकट का सामना कर रहा है। नालंदा परम्परा के तत्व, जो कि शमथ तथा विपश्यना के भारतीय अभ्यास के विकास की दीर्घकालीन परम्परा से लिए गए हैं, में हमें अपनी नकारात्मक भावनाओं से निपटने तथा चित्त की स्थायी शांति पैदा करने के बारे में बहुत कुछ बताया है। यही कारण है कि यह ज्ञान आज प्रासंगिक बना हुआ है, और यही कारण है कि मैं इसके प्रति सराहना को पुनर्जीवित करने के प्रयास को लेकर भी प्रतिबद्ध हूँ। मेरा मानना है कि यहाँ भारत में प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शिक्षा के साथ एकीकृत करना संभव है।"

परम पावन दलाई लामा अपने निवास पर छात्रों तथा शिक्षकों के साथ बैठक के समापन पर ली गई कई सामूहिक तस्वीरों में से एक के लिए पोज़ करते हुए, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, जून १, २०१८ चित्र/तेनज़िन छोजोर

परम पावन ने श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर दिए जो अधिक करुणाशील समाज का निर्माण करने, कठिनाइयों से निपटने, प्रौद्योगिकी का सकारात्मक उपयोग करने और मृत्यु को स्वीकार करने से संबंधित थे। उन्होंने कक्ष में बैठे बौद्धों को सलाह दी कि वे यह समझते हुए कि बुद्ध कौन थे और उन्होंने क्या शिक्षा दी, इसकी एक तर्कसंगत समझ विकसित कर अपनी आस्था को लेकर एक २१वीं शताब्दी का दृष्टिकोण अपनाएँ।

बैठक की समाप्ति विभिन्न समूहों के सदस्यों द्वारा परम पावन के साथ अपनी तस्वीरें लेने के लिए एकत्रित होकर जिसके उपरांत सभी मध्याह्न भोजन के लिए तितर बितर हो गए। 

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