परम पावन 14 वें दलाई लामा
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अहिंसा और तिब्बती प्रतिरोध १९/सितम्बर/२०१८

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डार्मस्टेड, जर्मनी, कल प्रातः तिब्बती और अन्य शुभचिंतक रॉटरडम से परम पावन दलाई लामा को विदा करने एकत्रित हुए। फ्रैंकफर्ट की उड़ान में मात्र एक घंटे लगे जिसके बाद वे गाड़ी से डर्मस्टेड गए। 'विज्ञान के शहर' में उनके होटल में उनका स्वागत करने के लिए गर्म धूप में एकत्रित तिब्बती, कार्यकर्ता और पत्रकार थे। परम पावन ने उन सभी के साथ बातचीत करने का समय लिया, विशेषकर बच्चों के साथ, कुछ के साथ हाथ मिलाकर, दूसरों से बात कर और यदा कदा प्रश्नों के उत्तर देते हुए। वे कई पुराने मित्रों से पुनः मिलकर प्रसन्न जान पड़े।

आज प्रातः जब भोर की सूर्य का प्रकाश अर्न्स्ट लुडविग प्लेस के आसपास की छतों पर बिखरा, तो परम पावन ब्लॉक का चक्कर लगाते डर्मस्टेडटियम कांग्रेस सभागार तक पहुंचे। सुबह के पैनल के सदस्यों ने उनका स्वागत किया, विशेष रूप से लेच वेल्सिया, तिब्बत पहल डी के वुल्फगैंग ग्रेडर, वित्त मंत्री हेसियन, थॉमस शैफर और लॉर्ड मेयर डार्मस्टेड, जोचेन पार्ट्सच। जैसे ही वे मंच पर आए उत्साहित करतल ध्वनि से उनका स्वागत हुआ।

वुल्फगैंग ग्रेडर ने एक संक्षिप्त परिचय दिया। थॉमस शैफर ने परम पावन को बताया, "आप हमारे लिए एक प्रेरणा रहे हैं; आपने दिखाया है कि अहिंसा प्रभावी है।" ग्रेडर ने समर्थन के लिए हेसे राज्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और डर्मस्टेडट के महापौर जोसेन पार्ट्सच, जो तिब्बत के एक प्रमुख समर्थक हैं, को बोलने के लिए आमंत्रित किया।

महापौर ने टिप्पणी की, "हमारे शहर के लिए यह एक महत्वपूर्ण घटना है कि हम तीन नोबेल शांति विजेताओं की मेजबानी कर रहे हैं। हम सम्मान का अनुभव कर रहे हैं। साथ ही मैं इस बात से अवगत हूं कि यद्यपि हम थोड़ा कूटनीतिक दबाव का अनुभव कर सकते हैं, पर तिब्बत के लिए हमारा समर्थन हमारे अपने जीवन को संकट में नहीं डालता जैसी तिब्बत में क्रांति लोगों के लिए करती है।" उन्होंने जर्मन आधारभूत कानून, जो कि जर्मन संविधान है और मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर की तुलना की और टिप्पणी की, कि आधारभूत कानून के पहले शब्द हैं, "मानव गरिमा अनुल्लघनीय होगी।"

ग्रैडर ने १९८९, जो परिवर्तन का वर्ष था, की बात करते हुए अपना परिचय समाप्त किया। यह बीजिंग में तियानानमेन नरसंहार का वर्ष था, जिस वर्ष बर्लिन दीवार गिरी और जिस वर्ष परम पावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने मानवाधिकारों और बुनियादी मानव गरिमा को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। अंत में उन्होंने घोषणा की कि तिब्बत पहल डी अपने सबसे प्रिय संस्थापक सदस्य, छेवंग नोर्बू के खोने का शोक कर रहा है, जिनका कुछ सप्ताह पूर्व अप्रत्याशित रूप से निधन हो गया था।

दिन की चर्चाओं के संचालक प्रतिष्ठित पत्रकार डुंजा हैयाली ने अपना परिचय दिया और समझाया कि हिंसा और अहिंसा वे विषय हैं जिनमें उनकी निकट की रुचि है, साथ ही सत्ता के दुरुपयोग को लेकर भी। यह बताते हुए कि वे परम पावन से मिलने के कितनी उत्साहित थीं उन्होंने पैनल के लिए एक सामान्य प्रश्न तैयार किया - अहिंसा किस तरह सहायता कर सकती है? हिंसा की समाप्ति का उचित उपाय क्या है?

हैयाली ने सर्वप्रथम बेलग्रेड के सर्ब सिनीसा सिकमन से सभा को संबोधित करने के लिए कहा। उन्होंने प्रारंभ किया "आप सब को टाशी देलेक, मैं सर्बिया से हूं और मेरे मित्रों ने और मैंने मिलोसेविक का अहिंसा के साथ विरोध किया। हमने साबित कर दिया कि यदि आपके पास एक स्पष्ट समझ है और आप इसे प्रभावी बनाने का प्रयास करते हैं, तो आप सफल हो सकते हैं। हमने सफलता के लिए तीन सिद्धांत निश्चित किए - स्पष्टता, योजना और अहिंसक अनुशासन। योजना का अर्थ है, आंकना कि आप क्या कर सकते हैं, यह नहीं कि आप क्या चाहते हैं और अहिंसक अनुशासन का मतलब उन बेवकूफों को रोकना है जो पथराव की प्रवृत्ति रख सकते हैं। एक और महत्वपूर्ण कारक विनोद भावना बनाए रखना है।"

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सूचना एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग के सचिव दडोन शर्लिंग ने समझाया कि १९४९ तक तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र रहा था जब इस पर साम्यवादी चीनी द्वारा हमला किया गया और यह सैन्य कब्जे के अधीन हुआ। १९५९ में परम पावन ने भारत पलायन किया जिसके बाद लोकतांत्रिक केंद्रीय तिब्बती प्रशासन स्थापित किया गया। उन्होंने कहा, चीन, तिब्बत पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है, जिसने १९५९ की क्रांति उकसाई और २००८ में क्रूर दमन हुआ।

शर्लिंग ने वर्णित किया कि किस तरह तिब्बतियों द्वारा पवित्र माने जाने वाले क्षेत्र में उत्खनन के विरोध में ३२ विरोधों के उदाहरण का हवाला देते हुए तिब्बतियों ने प्रतिरोध जारी रखा है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अहिंसक प्रतिरोध में कार्रवाई शामिल है; यह निष्क्रिय रवैया अपनाने के बारे में नहीं है। उनके निकट बैठे एक भिक्षु की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा, "यहां गोलोग जिग्मे ने हार नहीं मानी है, न ही हम मान सकते हैं। हमें उनके जैसे लोगों का समर्थन करने के लिए अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करना होगा। आइए परिवर्तन के लिए कार्य करें - हमसे जुड़ें।"

टिप्पणी करते हुए कि महात्मा गांधी ने कहा था कि अहिंसा शक्तिशाली लोगों का शस्त्र है, हैयाली ने परम पावन से अपने विचार रखने के लिए कहा।

"प्रिय भाइयों और बहनों," परम पावन बोले, "इस कार्यक्रम में भाग लेना एक महान सम्मान है। लोग हिंसा से परेशान हैं और हर वर्ष शांति की इच्छा बढ़ रही है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें वैज्ञानिक निष्कर्षों, कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, का ध्यान रखते हुए यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा। इतनी हिंसा के बाद, क्या सकारात्मक परिणाम निकला है - कुछ नहीं। केवल अधिक नफरत है। समस्याओं के समाधान के लिए हिंसा सही उपाय नहीं है।

"मैं प्रायः जिन लोगों से मिलता हूँ, उनसे कहता हूं कि मैं यूरोपीय संघ की भावना की बहुत सराहना करता हूं। मेरे भौतिकी शिक्षक कार्ल फ्रेडरिक वॉन वीज़स्कर ने मुझे बताया कि उन्होंने अपनी बाल्यवस्था में फ्रांसीसी और जर्मनों को केवल एक दूसरे को दुश्मन के रूप में व्यवहार करते हुए देखा था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, वह पूरी तरह से बदल गया। हिंसा तब होती है जब हम लोगों को 'हम' और 'उन' के रूप में विभाजित करते हैं, लेकिन यूरोपीय लोगों के संबंध में, आप सभी एक समुदाय से संबंधित हैं। जबसे यूरोपीय संघ की स्थापना हुई, यूरोप में दशकों से शांति बनी हुई है।

"२०वीं शताब्दी के प्रारंभ और अंत के बीच युद्ध और हिंसा के दृष्टिकोण में बहुत परिवर्तन हुआ है। अंत तक लोगों में परिपक्वता आई तथा हिंसा और बल के उपयोग के लिए उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया। इसे आगे ले जाकर हमें इस शताब्दी को संवाद का एक युग बनाना चाहिए; हमें उनसे बात करके अपनी समस्याओं का हल निकालना चाहिए। हमें एक वास्तविक लक्ष्य के रूप में विसैन्यीकरण को रखना चाहिए।

"दक्षिण अफ्रीका से रोम में स्थानांतरित नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं की एक बैठक में, हमने आणविक शस्त्रों को कम करने तथा उनके उन्मूलन पर चर्चा की। मैंने सुझाव दिया कि हम एक समय सारिणी निर्धारित करें और परमाणु शक्तियों को उसे मानने के लिए बाध्य करें, पर कुछ न हुआ। हमारा लक्ष्य एक विसैन्यीकृत परमाणु मुक्त विश्व होना चाहिए, यह ध्यान में रखते हुए कि बाहरी निरस्त्रीकरण आंतरिक निरस्त्रीकरण पर निर्भर करता है। मनुष्य के रूप में हम सभी उस समुदाय पर निर्भर करते हैं जिसमें हम रहते हैं। यूरोप बाकी दुनिया पर निर्भर करता है। शांतिपूर्ण संबंधों के लिए अहिंसा और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता महत्वपूर्ण है।

इराकी राष्ट्रीय ऑर्केस्ट्रा के पूर्व संचालक और कला फाउंडेशन के माध्यम से शांति की स्थापना करने वाले करीम वास्फी ने बमबारी और हिंसा के अन्य कृत्यों पर अपने सेलो बजाकर स्वयं के लिए नाम अर्जित किया है। यहां उन्होंने एक विशेष संगीत का अंतराल प्रदान किया।

हैयाली ने पैनल के सदस्यों का परिचय दिया रेबेका जॉनसन का, जो परमाणु हथियारों को समाप्त करने और अहिंसा के आजीवन प्रचारक है। वे परमाणु हथियारों के विरोध में अंतर्राष्ट्रीय अभियान की नेता हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जर्मन बुंडेस्टाग की उपराष्ट्रपति क्लाउडिया रोथ ने गठबंधन ९०/ग्रीन पार्टियों का प्रतिनिधित्व किया है। वह तिब्बत के मुद्दे की सशक्त समर्थक हैं और जलवायु परिवर्तन के विरोध के प्रचार में सक्रिय है। लेच वेल्सिया सॉलिडेरिटी आंदोलन के नेता थे और बाद में पोलैंड के राष्ट्रपति बने।

हैयाली ने स्मरण किया कि २१ सितंबर १९८७ को परम पावन दलाई लामा ने तिब्बत के लिए अपनी पांच बिंदु शांति योजना को प्रकट किया। उन्होंने परम पावन से पूछा कि पुनरावलोकन करने पर क्या वे अब भी महसूस करते हैं कि वह सही उपाय था। उन्होंने उत्तर दिया:

"वैश्विक स्तर पर हमने अत्यधिक पीड़ा देखी है। इराक के साथ दूसरे युद्ध के छिड़ने से पहले, दुनिया भर के लाखों लोगों ने बढ़ती हिंसा के विरोध में प्रदर्शन किया। मैं जर्मनी और जापान की प्रतिबद्धता से भी प्रभावित हुआ हूं, जो द्वितीय विश्व युद्ध की राख से शांति तक पहुंचे हैं।

"तिब्बत के मामले में - १७ बिंदु समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, १९५६ में पूर्वी तिब्बत में १९५७ में पूर्वोत्तर में और अंत में १९५८-५९ में देश भर में क्रांति छिड़ गई। मार्च १९५९ में ल्हासा की पूरी जनसंख्या क्रांति में उठ खड़ी हुई। चूंकि मेरे जीवन को लेकर संकट था, इसलिए मैं बच निकला, यह सोचकर कि दक्षिणी तिब्बत से चीन के साथ बातचीत कर सकूंगा। पर एक बार जब हम निकल गए, तो उन्होंने शहर पर बमबारी कर दी तो फिर कोई अवसर न बचा।

"पंडित नेहरू के विरोध पर हमने कई बार संयुक्त राष्ट्र में तिब्बत मुद्दे उठाया, पर कोई लाभ न हुआ। १९७४ के प्रारंभ में हमने स्वतंत्रता की मांग न करने का निश्चय किया और १९७८ में देंग ज़ियाओपिंग ने कहा कि स्वतंत्रता के अतिरिक्त सब कुछ चर्चा की जा सकती है। इस स्थिति में हमने एक मध्यम मार्ग दृष्टिकोण विकसित किया; पारस्परिक लाभ पर आधारित एक नीतिगत मंशा। चीनी बुद्धिजीवियों और चीनी बौद्धों द्वारा समर्थित इस दृष्टिकोण के मूल में अहिंसा निहित है।"

लेच वलेसा ने पूछा कि किन लोगों ने सोचा था यह असंभव था कि तिब्बत चीन से मुक्त हो जाएगा या सोवियत संघ की शक्ति का विनाश हो जाएगा। उनकी राय में, साधारणतया सोवियत संघ के पतन की बात सोची भी नहीं गई थी। पर फिर भी उन्हें स्मरण है कि एकता विरोध प्रदर्शन के बीच उन्होंने सक्षम जर्मन विदेश मंत्री हंस डायट्रिच जेन्शेर को सचेत किया था कि बर्लिन दीवार गिरने वाली है।

उन्होंने कहा, "वह युग समाप्त हो गया है," और जो पूंजीवादी व्यवस्था अब हमारे पास है वह गहन रूप से विषम है। पर उसी के साथ पोलैंड एक प्रतिनिधि रहित सरकार के साथ लदी हुई है। क्या किया जा सकता है? हमें अगले चुनाव की प्रतीक्षा करनी है।"

रेबेका जॉनसन ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए ७० के दशक में प्रदर्शन का स्मरण किया। बाद में, महिलाओं ने एकजुटता का समर्थन करने के लिए वे आगे बढ़ीं। उन्होंने तिब्बत का समर्थन करने के लिए मार्च किया। समय रहते उन्होंने परमाणु शस्त्रों की तैनाती का विरोध करने के लिए ग्रीनहम कॉमन जैसे शांति शिविर स्थापित किए।

उन्होंने कहा, "हम दृढ़ संकल्पित हैं तिब्बतियों की तरह। यदि हम तिब्बत को मुक्त कर सकें तो यह एक ज्वलंत उदाहरण के रूप में कार्य करेगा कि अहिंसा सफल होती है। अहिंसा निष्क्रिय नहीं है, यह सक्रिय है। यह सही कार्य करने के बारे में है और हमने इसे परमाणु हथियारों के निरंतर रखने का विरोध करने के लिए नियोजित किया है - हमें अभी भी उन देशों को त्यागने के लिए प्रेरित करना है जिनके पास ये हैं।"

क्लाउडिया रोथ ने सभा को बताया कि पेट्रा केली ने उनका परिचय परम पावन के साथ कराया था और उन्होंने सदैव मानवाधिकारों के संदर्भ में तिब्बत के मुद्दे पर सोचा था। उन्होंने कहा कि परम पावन ने शांति और अहिंसा नहीं छोड़ी है और इस बात पर जोर देकर कहा कि विश्व को शांति और मानवाधिकार स्थापित करने और हथियारों पर सैन्यीकरण और निर्भरता को समाप्त करने के लिए उन जैसे लोगों की आवश्यकता है।

"मैंने परम पावन से सीखा है प्रेम की शक्ति कितनी प्रभावी है। हमें घृणा को प्रेम से जीतने की आवश्यकता है; जहाँ सौहार्दता की कमी और एकाकीपन की भावना है वहां हमें सौहार्दता की आवश्यकता है।"

लेच वेलेसा ने आगे कहा कि कभी-कभी अपने प्रतिद्वंद्वी को प्रतिद्वंद्वी होने से रोकने के लिए उपहास करना आवश्यक है।

डुंजा हैयाली ने परम पावन से पूछा कि उनके भिक्षुओं तथा अन्य बौद्धों के विषय में क्या विचार थे जिन्होंने रोहिंग्या लोगों के साथ हिंसा पूर्ण व्यवहार किया था।
परम पावन ने उत्तर दिया "जब यह संकट पहली बार टूटा, तो मैं वाशिंगटन डीसी में था। टाइम पत्रिका ने मुख पृष्ठ पर बौद्ध भिक्षु की तस्वीर के साथ यह प्रश्न, बौद्ध आतंकवादी छापी? मैं चौंक उठा। मैंने अपना दृढ़ विश्वास स्पष्ट किया कि यदि वे वहां होते तो बुद्ध इन मुसलमान भाइयों और बहनों को सुरक्षा प्रदान करते। मैंने हमलों में शामिल बर्मा बौद्धों से बुद्ध के चेहरे का स्मरण करने के लिए कहा।

"मैं आंग सान सू की को जानता हूँ और जब हम मिले तो मैंने उनसे जो कुछ हो रहा था उसे रोकने का आग्रह किया। मैंने उन्हें लिखा भी। उन्होंने मुझे बताया कि स्थिति बहुत कठिन थी और आतंकवादी भिक्षुओं के सेना के साथ मजबूत संबंध थे। मुझे लगता है कि रोहिंग्या का दुःख फिलिस्तीनियों के समान है जो उन्होंने १९४८ से झेला है। इन समस्याओं का आधार दूसरों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखना है।"

हैयाली ने परम पावन से शरणार्थियों पर अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए कहा। उन्होंने उसे बताया कि जब लोग अपने ही देश में संकट से बचते हैं तो उनका ध्यान रखना उचित होता है।" क्या इस समय जर्मनी में दस लाख शरणार्थी नहीं हैं? क्या उनका ध्यान चांसलर मेर्केल की पहल पर नहीं रखा जाता?

"यहाँ आपकी अपनी संस्कृति, ज्ञान और जीवन शैली है और ये शरणार्थी एक विभिन्न संस्कृति, जलवायु और जीवन शैली से आते हैं। उन्हें आश्रय दें; उनके बच्चों को शिक्षा दें और उनके युवाओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण दें ताकि समय आने पर वे स्वयं के देशों के पुनर्निर्माण के लिए सक्षम हों। हम १५०,००० तिब्बती शरणार्थी हैं और दिल ही दिल में हम एक दिन अपने देश के पुनर्निर्माण के लिए लौटने की आशा करते हैं। तो, एक और कारक इन देशों में शांति बहाल करने में सहायता प्रदान करना है जहां से इन्होंने पलायन किया है। मैं आशा करता हूँ कि इस शताब्दी के अंत तक राष्ट्रीय सीमाएं इतनी महत्वपूर्ण नहीं प्रतीत होंगी।"

श्रोताओं की ओर से मात्र एक प्रश्न के लिए समय था - आपके पास हमारे लिए क्या सलाह है? परम पावन ने उत्तर दिया, "ईमानदार, सच्चे और परोपकारी बनें। यदि आप दूसरों की देखभाल करने की सोच रखें तो झूठ, धमकाने और धोखाधड़ी के लिए कोई स्थान न होगा। यदि आप सच्चे हैं तो आप पारदर्शी रूप से जी सकते हैं, जिससे आप विश्वास स्थापित कर सकते हैं जो मित्र बनाने का आधार है। हम सभी में स्व-हित से प्रेरित होने की प्रवृत्ति होती है; तरकीब है बुद्धिमानी से स्व-हित को आगे बढ़ाना, जो अन्य प्राणियों को ध्यान में रखती है।"

जब सभागार १५०० लोगों की प्रशंसा भरी तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा तो परम पावन ने वक्ताओं को एक श्वेत रेशमी स्कार्फ प्रदान कर उनके प्रति कृतज्ञता अपनी व्यक्त की। होटल लौटने से पहले उन्होंने और पैनल सदस्यों ने एक साथ मध्याह्न का भोजन किया।

कल, परम पावन ज़्यूरिख यात्रा करने से पहले हेडेलबर्ग के एक कार्यक्रम में भाग लेंगे।

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