परम पावन 14 वें दलाई लामा
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नीउवे केर्क में करुणा और प्रौद्योगिकी तथा बुद्ध का जीवन १५/सितम्बर/२०१८

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एम्स्टर्डम, नीदरलैंड, कल प्रातः चमकीले नीले नभ के नीचे, परम पावन दलाई लामा ने माल्मो से रॉटरडैम के लिए उड़ान भरी। हवाई अड्डे पर दलाई लामा फाउंडेशन के सदस्यों ने उनका स्वागत किया, जिन्होंने उनकी नेदरलैंड की यात्रा का आयोजन किया था और वे रॉटरडैम शहर गए। लगभग २०० तिब्बती, उनमें से कई बच्चे और अन्य शुभचिंतक होटल के सामने एकत्रित थे ताकि उनके आगमन पर वह उनका अभिनन्दन कर सकें। परम पावन ने उन बाड़ों की पूरी दूरी तय की जिस पर वे उनका अभिनन्दन करने के लिए झुके थे। तिब्बती नर्तकों ने होटल के समक्ष कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उन्हें होटल के द्वार के निकट पारम्परिक तिब्बती स्वागत प्रस्तुत किया गया। लॉबी के अंदर और अधिक लोग एकत्रित हुए थे।

एक बार जब परम पावन कमरे में पहुँचे तो नेदरलैंड के भारतीय राजदूत महामहिम वेणु राजामणि और उनकी पत्नी उनसे मिलने आए। परम पावन ने अन्य चार लोगों से भी भेंट की, जो १२ कथित पीड़ितों के एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जिनका कहना था कि तिब्बती बौद्ध शिक्षकों ने शारीरिक या मनोवैज्ञानिक रूप से उनका शोषण किया था। उन्होंने उन्हें लिखित रूप से बताया कि उनके साथ क्या हुआ था और उनसे समस्या से निपटने का आग्रह किया।

आज प्रातः तड़के ही परम पावन ने रॉटरडैम से एम्स्टर्डम तक की ८० किमी से अधिक की दूरी तय की, जहां नीउवे केर्क में निदेशक कैथेलिज ब्रोर्स ने उनका स्वागत किया। वे परम पावन को ४५० लोगों के समूह के समक्ष ६०० वर्ष प्राचीन भवन में ले गईं। अपने स्वागत भाषण में उसने उल्लेख किया कि चर्च में राज परिवार सहित जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग थे और कार्यक्रम के सीधे वेब प्रसारण के माध्यम से विश्व भर के कई अन्य लोग उनसे जुड़े थे। उन्होंने कहा, "चलिए करुणा और प्रौद्योगिकी के माध्यम से जुड़ें और बुद्ध के जीवन को प्राचीन तथा आधुनिक कलाकृतियों द्वारा मनाएं, जिसमें एई वेई वेई 'वृक्ष' शामिल है, जिसके नीचे आप बैठे हैं। हमने आपके साथ चर्चा करने के लिए युवाओं और वैज्ञानिकों को एकत्रित किया है।"

संचालक क्रिस्टा मेइंडर्समा ने समझाया कि ४० मिनट की दो पैनल चर्चाएं होगी - पहला 'रोबोटिक्स एंड टेलीप्रेसेंस' पर केंद्रित होगा, जबकि दूसरा 'रोग, जरा और मृत्यु' से संबंधित होगा।

'रोबोटिक्स एंड टेलीप्रेसेंस' पर एक संक्षिप्त वीडियो के बाद, उन्होंने ब्रिटेन की एक लड़की टिली लॉकी का परिचय कराया जो १५ महीने की आयु में मेनिंगजाइटिस के कारण अपने हाथ खो बैठी थी। उसकी मृत्यु की संभावना थी, पर वह बच गई। टिली ने परम पावन को बताया, "मैंने अपने हाथ इतनी छोटी उम्र में खो दिए थे कि मुझे उनकी कोई याद नहीं है, पर मैं इन बायोनिक अंगों को विकसित करने वाले तकनीशियनों के साथ काम कर रही हूँ। मुझे अपने अलग दिखने से कोई अंतर नहीं पड़ता और मुझे पता है कि अन्य लोग अचानक अपने अंग खो देते हैं और आज हम जो काम कर रहे हैं वह उनके लिए सहायक हो सकता है।"

टिली ने परम पावन से पूछा कि तकनीक और करुणा विश्व भर के लोगों के लिए किस तरह सहायक हो सकती है। उन्होंने उत्तर दिया,

"मशीनें बहुत महत्वपूर्ण हैं, परन्तु वे मनुष्यों द्वारा नियंत्रित होती हैं। हम मनुष्य न केवल भौतिक अस्तित्व रखते हैं, हमारे चित्त भी हैं। जब हम सकारात्मक भावनाओं से प्रेरित होते हैं तो हमारे शारीरिक कार्य रचनात्मक होंगे। आधुनिक मनोविज्ञान ऐन्द्रिक चेतनाओं के बारे में जानता है, पर उन्हें मानसिक चेतना से स्पष्ट रूप से अलग नहीं करता, जिसमें क्रोध जैसी भावनाएं शामिल होती हैं। मैं तकनीक द्वारा प्रदान करने वाले आराम और राहत की बहुत सराहना करता हूं, पर मैं इसके विकसित प्रभाव को अल्प विकसित देशों में क्रियान्वित होता देखना चाहूंगा जहां अभी भी बहुत दुःख है।"

क्रिस्टा मेइंडर्समा ने सिंगुल्युलेरिटी विश्वविद्यालय में रोबोटिक्स के अध्यक्ष विद्वान प्रोफेसर मार्टिन स्टीनबक और विश्व के पहले टेलीप्रेसेंस रोबोट एवी १ के का विकास करने वाले करेन डॉल्वा का परिचय दिया। एक संक्षिप्त वीडियो ने ब्रिटेन के जेड का परिचय दिया जो पुराने रोग से पीड़ित है और जो उन्हें लम्बे समय के लिए घर से बाहर रहने के लिए बाधित करती है। टेलीप्रेसेंस रोबोट, जिसमें चलनशील सर व कंधे होते हैं, उसे स्कूल में कक्षाओं में सम्मिलित होने में सक्षम करती है, फिर भले ही वह स्वयं न जा सके और उसे अपने दोस्तों के संम्पर्क में रहने में सहायता करती है। इसमें दो स्तरीय ऑडियो कनेक्शन हैं, पर केवल ऑपरेटर जेड के पास वीडियो फीड तक की पहुँच है। परम पावन के लिए उनका प्रश्न यह था कि क्या महिला दलाई लामा रही हैं और यदि नहीं, तो क्या भविष्य में कोई हो सकती हैं?

परम पावन ने कहा कि विगत वर्षों में उनसे बार बार यह पूछा गया था और उन्होंने उत्तर दिया कि यदि स्त्री शरीर अधिक उपयोगी है तो क्यों नहीं? उन्होंने आगे यह जोड़ा कि भविष्य में दलाई लामा का होना जारी रहेगा अथवा नहीं, इसका निर्णय तिब्बती, मंगोलियाई और हिमालयी क्षेत्र के लोग करेंगे।

जब क्रिस्टा मेइंडर्समा ने जेड से पूछा कि उसके लिए एवी १ क्या मायने रखता है तो उसका स्पष्ट उत्तर था कि यह उसे स्कूल में होने की तथा अपने मित्रों से संपर्क बनाए रखने की स्वतंत्रता देता है। करेन डॉल्वा ने इसमें जोड़ते हुए कहा कि टेलीप्रेसेंस रोबोट, जो अल्जाइमर सिंड्रोम से पीड़ित वयोवृद्धों लोगों के लिए भी सहायक हो सकता है, मानव संपर्क को प्रतिस्थापित नहीं करता अपितु इसे बढ़ाता है और जीवित रखता है।

"परिष्कृत मशीन," परम पावन ने रोबोट की ओर झुकते हुए पूछा, "क्या आप मेरा दिमाग पढ़ सकते हैं? यह तकनीक अद्भुत है, पर मैं नहीं मानता कि यह मानव चित्त को पुन: उत्पन्न कर सकता है। पर फिर भी, आप अभी भी मुझे गलत प्रमाणित कर सकते हैं।"

मार्टिन स्टीनबक अपने साथ एक खिलौना रोबोट लाए थे और एक छोटे बच्चे की डायनासोर के माप का था।

"ये मशीनें भौतिक उपकरण हैं," परम पावन ने कहा, "पर हमें चेतना के बारे में भी सोचना होगा। हमारी जाग्रत चेतना हमारे चित्त तथा ऐन्द्रिक अंगों पर निर्भर करती है और अपेक्षाकृत स्थूल है। जब हम स्वप्न देखते हैं तो इंद्रियां शांत होती हैं। गहन निद्रा में चेतना अधिक सूक्ष्म होती है जैसे कि जब हम बेहोश होते हैं इत्यादि, पर मृत्यु के समय सूक्षतम, सबसे गहन चेतना मृत्यु के समय प्रकट होती है। अभ्यासियों के उदाहरण हैं, जैसे कि मेरे अपने शिक्षक, जिसका शरीर नैदानिक मृत्यु के तेरह दिनों तक ताजा रहा - हृदय की धड़कन का बन्द हो गई और दिमाग की मृत्यु --- क्योंकि वह सूक्ष्म चेतना बनी रही।"

परम पावन ने समझाया कि विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक रिची डेविडसन ने इसके परीक्षण के लिए एक परियोजना प्रारंभ की है कि क्या हो रहा है। उन्होंने इंगित किया कि जहां तकनीक आंख और कान चेतना में सुधार ला सकती है, पर इसका मानसिक चेतना पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है, जिसे असीम रूप से बढ़ाया जा सकता है। आंतरिक मूल्यों में चित्त शामिल है तथा शमथ और विपश्यना के विकास के अभ्यास के कारण प्राचीन भारतीय चित्त के प्रकार्य में समृद्ध था। बुद्ध की प्राप्ति ऐसी अभ्यासों का एक परिणाम था।

स्व -शिक्षण रोबोट के बारे में बात करने के लिए कहे जाने पर और क्या वे सहानुभूति विकसित कर सकते हैं, मार्टिन स्टीनबक ने समझाया कि वे मानव व्यवहार के बारे में तेजी से सीख सकते हैं और तीव्र बुद्धि विकसित कर सकते हैं। परम पावन ने पूछा कि क्या वे किसी ऐसे व्यक्ति को सांत्वना दे सकते हैं जो उदास और निराश हो और उसने घोषित किया कि वे कुछ हद तक हो सकते हैं जो परम पावन के लिए कुछ आश्चर्यपूर्ण था। जैसे ही पहला पैनल समाप्त हुआ, परम पावन ने जेड को अपने एवी १ टेलीप्रेसेंस रोबोट के माध्यम से चुंबन दिया।

'रोग, जरा तथा मृत्यु' की दूसरी चर्चा के लिए संचालक ने पैनल के सदस्यों का परिचय दिया: एक चिकित्सक तथा चिकित्सा अनुसंधानकर्ता, विद्वान क्रिस वेरबर्ग, अभ्यासी लिज़ पेरिश, बायोविवा साइंसेज के सीईओ विद्वान जीनटाइन लुनशोफ, एक दार्शनिक और जैव-नैतिकतावादी एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय के एक धार्मिक छात्रा और आईएमसी वीकेंड स्कूल के पूर्व छात्रा, युवा सेल्मा बोल्माल्फ। चुनौतीपूर्ण प्रश्न उठाया गया, "क्या आप १००० वर्षों तक जीना चाहते हैं?"

परम पावन ने प्रत्युत्तर दिया कि यथार्थवादी होना आवश्यक है और सवाल अवास्तविक सोच का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय साधु और अन्य लोगों ने योग और श्वास नियंत्रण द्वारा इस तरह के एक लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया है, पर कोई भी २०० से अधिक वर्षों तक जीवित नहीं रहा है। हमारी धरती अंततः अदृश्य हो जाएगी, हमारा सूर्य गायब हो जाएगा, यहां तक कि हमारी आकाशगंगा भी अंततः अदृश्य हो जाएगी, अतः यह सोचना अवास्तविक है कि हम मृत्यु से बचेंगे।" वेरबर्ग इस पर सहमत हुए कि १२० वर्षों से अधिक जीवित रहने की संभावना कम थी, पर हाल ही में चूहों के साथ कार्य ने उनके नए होते रूप को देखा है।

परम पावन ने अनुमान लगाया कि विश्व की मानव जनसंख्या के १० अरब से अधिक होने की संभावना है, जो किसी भी तरह प्राकृतिक संसाधनों के लिए बहुत बड़ी होगी। उन्होंने श्रोताओं को हँसी से भर दिया जब उन्होंने सुझाव दिया कि जनसंख्या नियंत्रण की एक अहिंसक विधि अधिक लोगों के भिक्षु और भिक्षुणी बनने की होगी।

सेल्मा बोल्मल्फ ने घोषणा की कि वे १५० वर्षों से अधिक रहना नहीं चाहतीं, जो सीमित जीवन के चयन को समाप्त कर देती है। उन्होंने कहा, "और तो और एक मुसलमान के रूप में, मैं इस अस्थायी दुनिया में क्यों रहना चाहूंगी?" उन्होंने परम पावन से पूछा कि क्या रोग की जीवन में कोई सार्थक भूमिका है। परम पावन ने उन्हें बताया कि वे सोचते थे कि दर्द और कठिनाई का सामना करते हुए आस्तिकों को ईश्वर तथा उनके धार्मिक मार्ग का स्मरण होता है। उन्होंने आगे कहा कि उनकी उम्र में वह आलसी छात्र थे, पर जैसे मुसलमान धर्म की पुस्तकों को याद करते हैं, तिब्बती बौद्ध अपने आगमों को कंठस्थ करते हैं और शब्दशः उनका अध्ययन करते हैं। उन्होंने ज्ञान के तीन स्तरों को समझाया: सुन कर प्राप्त की हुई आधारभूत समझ, आलोचनात्मक चिंतन से प्राप्त दृढ़ विश्वास और ध्यान में गहन परिचय से उत्पन्न अनुभव।

लिज़ पेरिश ने समझाया कि आवश्यक नहीं है कि जीन उपचार जीवन को लंबा करे, पर बीमारी की प्रवृत्तियों पर काबू पाने से इसकी गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। जेनटाइन लुनशोफ जानना चाहते थे कि मनुष्य लंबे समय तक क्यों जीना चाहते हैं। परम पावन ने उन्हें बताया कि जानवर भी जीवन से प्रेम करते हैं और इसकी रक्षा के लिए आगे बढ़ते हैं। "हम सभी स्वाभाविक रूप से जीवन से प्रेम करते हैं और मृत्यु इसका अंत करती है। हममें मृत्यु से भय की प्रवृत्ति होती है क्योंकि यह एक रहस्य है, परन्तु प्रशिक्षण से हम आगामी जीवन में आत्मविश्वास विकसित कर सकते हैं।"

क्रिस्टा मेइंडर्समा ने घोषणा की, कि चर्चा निर्धारित समय से बाहर जा रही है। परम पावन ने इस अवसर पर २०वीं शताब्दी और विभिन्न युद्धों में हुई घोर हिंसा की बात की। उन्होंने टिप्पणी की कि "यद्यपि शताब्दी के अंत में ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों के व्यवहार में परिवर्तन हुआ है जैसे कि उन्होंने अधिक हिंसा और उससे उत्पन्न पीड़ा के विरोध में प्रदर्शन किया है। यदि हम इस प्रवृत्ति को २१वीं शताब्दी तक बढ़ाएँ तो भविष्य की आशा है। हमें मानवता की एकता और धार्मिक सद्भाव को बनाए रखने की भावना पर केंद्रित होने की आवश्यकता है, जिसका भारत स्पष्ट रूप से उदाहरण है। यदि धार्मिक सद्भाव वहां पोषित हो सकता है, तो कहीं और क्यों नहीं?"

सिंगुल्युलेरिटी विश्वविद्यालय के डाइडेरिक क्रोएज़ ने पैनल के सदस्यों, चर्च के कर्मचारियों, ऑर्गन वादक और हर वह व्यक्ति जिसने प्रातः के उत्साहपूर्ण कार्यक्रम में योगदान दिया था के प्रति धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत किए। जैसी कि तिब्बती परम्परा है परम पावन ने विभिन्न प्रतिभागियों को श्वेत रेशमी स्कार्फ प्रदान किया।
इसके तुरंत बाद मीडिया के सदस्यों के साथ एक बैठक के दौरान परम पावन ने टिप्पणी की, कि शारीरिक तनाव को कम करने में प्रौद्योगिकी स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, परन्तु चित्त की शांति और नैतिक सिद्धांतों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने टिप्पणी की, कि वर्तमान शिक्षा भौतिक लक्ष्यों को निर्धारित करती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक भौतिकवादी जीवन की आकांक्षाएं जन्म लेती हैं और आंतरिक मूल्यों पर कम ध्यान दिया जाता है।

उन्होंने स्वीकार किया कि यौन व्यवहार के बारे में बुद्ध की कठोर आलोचना विहारवासी समुदाय के सदस्यों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि आम लोगों से भी संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने सिफारिश की थी कि नवंबर में धार्मिक नेताओं के एक सम्मेलन में निन्दनीय बौद्ध शिक्षकों का प्रश्न उठाया जाए।

उन्होंने दमनकारी निगरानी के लिए तकनीक के उपयोग को लेकर अस्वीकृति व्यक्त की, पर टिप्पणी की, कि समस्या दोषी की प्रेरणा और जिस तरह से तकनीक का उपयोग किया जाता है, पर निर्भर है, बजाए तकनीक के। उन्होंने दोहराया कि नैतिक सिद्धांत व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों के लिए एक सुखी जीवन जीने का आधार रखते हैं।

यह कहने के लिए बाध्य किए जाने पर कि, जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक उष्णीकरण के बावजूद हम उड़ना जारी रखते हैं, उन्होंने सुझाया कि जलवायु परिवर्तन के बारे में शिक्षा आवश्यक है। उन्होंने पेरिस के समझौते को लेकर अमेरिका की निकासी को लेकर भी खेद व्यक्त किया। यह स्वीकार करते हुए कि विमान उड़ान प्रदूषण का एक कारण है, उन्होंने सुझाया दिया कि पूरी तरह से उड़ान पर प्रतिबंध लगाने या सभी कारों पर प्रतिबंध लगाना अति होगी। इसके बजाय उन्होंने एक अधिक संतुलित, व्यापक और दूरदर्शी समाधान अपनाने की सिफारिश की।

परम पावन ने कला के विभिन्न कार्यों, अधिकतर मूर्तियों और चित्रों की समीक्षा की, जिसमें 'बुद्ध के जीवन' को प्रदर्शित किया गया था। उन्होंने उपवास में लीन बुद्ध की प्रतिमा और बुद्ध के जीवन के बारह कृत्यों की एक थंगका चित्र में विशेष रूचि ली। अंत में एक छोटे से कुंज में, उनकी पुराने मित्र एरिका टेरस्ट्रा ने उन्हें बुद्ध के जीवन के बारे में अपने बच्चों की किताब की प्रतिलिपि प्रस्तुत की, जिसके लिए उन्होंने प्रस्तावना लिखी थी। जब उन्होंने परम पावन से अपनी प्रतिलिपि पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया तो उन्होंने इस शर्त पर ऐसा किया कि एरिका टेरस्ट्रा उस प्रतिलिपि पर हस्ताक्षर करे जो उसने उन्हें दिया था।

उसके बाद उन्हें पुराने मित्रों और तिब्बत के समर्थकों के साथ मध्याह्न के भोजन के लिए ले जाया गया। अंत में चर्च से उज्ज्वल धूप में बाहर निकलते हुए उन्होंने ऊपर ३०० तिब्बतियों और अन्य मित्रों को देखा जो उन्हें देखने की प्रतीक्षा में थे। उनमें कई बच्चे शामिल थे और परम पावन ने गाड़ी में चढ़ने से पहले जितना उनसे बन पड़ा उतनों के साथ हाथ मिलाया, गालों को थपथपाया और उनके साथ हँसे।

कल, वे तिब्बतियों से मिलेंगे तथा "हमारे संकट भरे विश्व में करुणा क्यों आवश्यक है" पर व्याख्यान देंगे।

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