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विल्नियस में तिब्बत समर्थकों के साथ बैठक तथा सार्वजनिक व्याख्यान १४/जून/२०१८

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विल्नियस, लिथुआनिया, १४ जून २०१८, तिब्बत और तिब्बत समर्थकों के लिए लिथुआनियाई संसदीय समूह के सदस्यों के साथ बैठक में आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने उनसे कहा:

"हम तिब्बत में व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन के साथ एक कठिन अवधि से गुजर रहे हैं, पर मेरी मुख्य चिंता तिब्बत की अनूठी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए है। इसके मूल में चित्त की कार्यविधि की प्राचीन भारतीय समझ निहित है जिसके आधार पर हम चित्त की शांति प्राप्त कर सकते हैं तथा अपने क्लेशों से निपट सकते हैं। यह आज के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक है।

"हम आप जैसे मित्रों के समर्थन की सराहना करते हैं। तिब्बत के लोगों की भावना प्रबल बनी हुई है और जब आप अपनी सोच व्यक्त करते हैं तो यह न केवल उन्हें साहस प्रदान करता है, अपितु चीनी कट्टरपंथियों को एक स्पष्ट संदेश भी भेजता है कि तिब्बती मुद्दे को यथार्थवादी तरीके से निपटाया जाना चाहिए। अतः मैं आपको छह लाख तिब्बतियों की ओर से धन्यवाद देना चाहता हूँ।"

विभिन्न प्रकार के मानचित्रों के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, परम पावन ने टिप्पणी की:

"राजनीतिक सीमाएँ नौकरशाहों का निर्माण हैं, जो आवश्यक नहीं कि सांस्कृतिक सीमाओं को प्रतिबिंबित करें। ऐतिहासिक रूप से चीनी साम्राज्य की विशिष्टता राजनीतिक शक्ति, मंगोलियाई साम्राज्य की सैन्य शक्ति और तिब्बती साम्राज्य की आध्यात्मिक शक्ति थी। एक संक्षिप्त अवधि थी जब मंगोलिया ने सैन्य साधनों से तिब्बत और चीन दोनों पर प्रभुत्व बनाए रखा था। दूसरी तरफ, तिब्बत की आध्यात्मिक मामलों के साथ संबंध का मतलब था कि इसका प्रभाव पश्चिम में किर्गिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान, पूर्व में चीन के अधिकांश भाग तक, उत्तर में मंगोलिया में तथा दक्षिण में हिमालयी क्षेत्र और बर्मा सीमा के साथ तक था। अतः तिब्बती बौद्ध संस्कृति की सीमा को दर्शाते हुए एक मानचित्र, तिब्बत के राजनीतिक मानचित्र से काफी बड़ा होगा।"

तिब्बती ध्वज रखने वाले लोगों के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ करते हुए, परम पावन ने उन्हें एक कहानी सुनाई।

"जब मैं १९५४ -५५ में बीजिंग में था, तो मैंने कई बार अध्यक्ष माओ से मुलाकात की। हममें घनिष्ठ संबंध था - उनके मन में मेरे लिए बहुत दया थी - लगभग जैसे एक पिता की अपने पुत्र के लिए होती है। एक अवसर पर उन्होंने पूछा कि क्या हम तिब्बतियों का राष्ट्रीय झंडा था। कुछ संकोच के साथ मैंने उत्तर मैंने जवाब दिया, "हां"। उन्होंने स्वीकृति दे दी और मुझसे कहा कि हमें इसे लाल झंडा के साथ फहराना चाहिए। अतः यदि कोई इस ध्वज को प्रदर्शित करने के लिए आपकी आलोचना करे तो आप उनसे कह सकते हैं कि दलाई लामा को अध्यक्ष माओ ने ऐसा करने की अनुमति दी थी।"

१९९१ में सोवियत संघ के पतन के बाद स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद लिथुआनिया के राष्ट्रपति बने प्रोफेसर व्याटौटास लैंडसबर्गिस के साथ बैठक का स्मरण करते हुए परम पावन ने कहा, "१९९१ में जब आपने मुझे यहां आमंत्रित किया तो मैं बहुत खुश था। मैं लोगों की खुशी, उत्साह और दृढ़ संकल्प से बहुत प्रभावित हुआ। आपके बीच रहना मेरे लिए सम्मान की बात थी।"

सीमेंस एरिना में विल्नियस के मेयर, रेमिजिजस सिमासियस ने परम पावन का २५०० से अधिक लोगों से परम पावन का परिचय कराया। जब परम पावन ने महापौर को एक पारंपरिक श्वेत स्कार्फ प्रदान किया, परम पावन ने समझाया कि इसका क्या अर्थ है।

"श्वेत रंग, सौहार्दता, सच्चाई और ईमानदारी का प्रतिनिधित्व करता है। स्कार्फ की चिकनी बुनावट अहिंसक आचरण का प्रतिनिधित्व करती है - जब भी संभव हो आप दूसरों की सहायता करें और उनको हानि न पहुँचाएं। अंत में यहाँ भोट भाषा में लिखा है, 'जिन्होंने भी इसे दिया है वह रात और दिन खुश रहें। इस प्रकार का उपहार पहली बार भारत में प्रस्तुत किया गया और तिब्बत में अपनाया गया है। चूंकि स्कार्फ जो रेशम का बनता है चीन में प्रारंभ हुआ, तो उपहार भारत तिब्बत और चीन के बीच सद्भाव की भावना को दर्शाता है।"

जनमानस को भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित करते हुए, परम पावन ने आगे कहा, "यदि हम वास्तव में शेष मानवता को अपने भाइयों व बहनों के रूप में सोचें तो एक दूसरे को धमकाने और एक-दूसरे को धोखा देने का कोई स्थान न होगा। स्वयं को किसी विशिष्ट रूप में सोचना मात्र एकाकीपन की ओर ले जाता है, क्योंकि वास्तविकता यह है, कि हर मनुष्य का भविष्य अन्य मनुष्यों पर निर्भर करता है। निस्सन्देह यह स्वाभाविक है कि आप अपने हितों का ध्यान रखना चाहेंगे, पर यह आपको मूर्खतापूर्ण तरीके के बजाय बुद्धिमानी से करना होगा। इसका अर्थ है कि दूसरों को ध्यान में रखना और उनकी चिंताओं के साथ-साथ स्वयं की चिंताओं पर भी विचार करना। यदि आपके आस-पास के लोग खुश हैं तो स्पष्टतया आप भी खुश होंगे।"

जब श्रोताओं में से एक ने पूछा कि पारम्परिक और आधुनिक शिक्षण विधियों को किस तरह साथ लाया जाए, परम पावन ने सुझाया कि सबसे पहले माता-पिता को अपने बच्चों के प्रति अधितकम स्नेह दिखाना महत्वपूर्ण है। विद्यालय में यह एक शिक्षक का उत्तरदायित्व है कि वह अपने छात्रों को निर्देश प्रदान करने के साथ साथ उनके हित में स्नेहपूर्वक रुचि ले। उदाहरण के लिए, वह समझा सकती या सकता है कि किस तरह क्रोध हमारी चित्त की शांति को बाधित करता है, जबकि करुणा चित्त को सहज बनाती है तथा अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है।

"करुणा की मेरी प्रथम शिक्षिका मेरी मां थी। मेरे बौद्ध प्रशिक्षण के अंग के रूप में मैंने परोपकार के गुणों के बारे में बहुत पढ़ा, पर वह अभ्यास में इसे प्रदर्शित करने वाली पहली व्यक्ति थीं।"

अपने व्याख्यान के अंत में परम पावन ने श्रोताओं को उनकी रुचि के लिए और जागते रहने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने उनसे आग्रह किया कि उन्होंने जो कहा था उसके बारे में सोचें।

"चाहे आप कोई भी कार्य कर रहें हों यदि हममें से प्रत्येक प्रयास करें, तो हम एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर सकते हैं। मुझे यह भी विश्वास है कि छोटे राष्ट्र जैसे बाल्टिक राज्य कभी-कभी रचनात्मक होने के लिए स्वतंत्र होते हैं और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में इस प्रक्रिया में नेतृत्व कर सकते हैं।"

कल, परम पावन रीगा, लातविया की यात्रा करेंगे, जहाँ वे चोंखापा की 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' और 'वज्रच्छेदिका सूत्र' पर प्रवचन के साथ-साथ मंजुश्री अनुज्ञा भी प्रदान करेंगे।

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