परम पावन 14 वें दलाई लामा
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सुख तथा उत्तरदायित्व २०/सितम्बर/२०१८

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ज़्यूरिख, स्विट्जरलैंड, आज प्रातः, डार्मस्टेड की शांति से निकलकर, जहां साइकिल परिवहन का एक प्रिय तरीका है, परम पावन दलाई लामा को शीघ्र ही हेडलबर्ग ले जाया गया। नेकर नदी पर इस सुरम्य नगर तक पहुंचने पर उन्हें सीधे सिटी हॉल ले जाया गया जहां महापौर ने उनका स्वागत किया। फुटपाथ पर एकत्रित शुभचिंतकों का अभिनन्दन करने के बाद परम पावन आसपास के खिड़कियों से देख रहे लोगों का अभिनन्दन करने के लिए मुड़े।

सिटी हॉल के अंदर परम पावन का औपचारिक रूप से स्वागत किया गया और उन्हें शहर में आए सम्मानित आगंतुकों द्वारा लिखित सुवर्ण पुस्तक पर हस्ताक्षर करने के लिए आमंत्रित किया गया। इसके बाद उपहारों का आदान-प्रदान हुआ। जैसे ही परम पावन ने सभागार में प्रवेश किया, मंच पर आए १५०० की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने हर्ष व उल्लास के साथ करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया।

अपने स्वागत भाषण में, महापौर डॉ. एकार्ट वुर्जनर ने हेडलबर्ग के खूबसूरत नगर के गुणों की प्रशंसा की। हेडलबर्ग विश्वविद्यालय खुले दिमागी छात्र निकाय को आकर्षित करता है और विश्व के ५० शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक है। १६० देशों के लोग इस शहर में रहते हैं, जो विविधता को संकट के रूप में नहीं बल्कि एक सम्पदा के रूप में देखते हैं। महापौर ने टिप्पणी की, कि यह सीखना संभव है कि किस तरह सुख का विकास करें और प्राप्त करें और उन्हें यह सूचित करते हुए प्रसन्नता थी कि शहर में कम से कम एक अग्रणी स्कूल यह सिखा रहा है।

एक छोटे से संगीत के अंतराल के दौरान एक वायु और तार वाले क्विंटेट ने मोजार्ट की एक मधुर धुन का वादन किया।

जर्मन अमेरिकन इंस्टीट्यूट के निदेशक, जैकोब कोल्लहोफर ने परम पावन को बताया कि उनके लिए हेडलबर्ग में परम पावन का स्वागत करना एक महान सम्मान था, और उन्होंने उन्हें शांति और करुणा के अनुस्मारक के रूप में वर्णित किया, जो अपनी मैत्री पूर्ण मुस्कान के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कहा कि परम पावन ६० वर्षों तक शरणार्थी रहे हैं, जिस दौरान उनकी उपस्थिति और आचरण एक से बने रहे हैं। विज्ञान उत्सव में उनका स्वागत करते हुए, जो विज्ञान के शहर के रूप में भी जाना जाने लगा है, कोल्लहोफर ने सुख और उत्तरदायित्व के बारे में अपने विचार साझा करने के लिए परम पावन को आमंत्रित किया।

"सुप्रभात, प्रिय भाइयों और बहनों। मैं यह स्पष्ट करने का एक बिंदु बना लेता हूं कि आज इस ग्रह पर रहने वाले ७ अरब मनुष्य भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं तथा दुख नहीं चाहते। हमारा एक अद्भुत मस्तिष्क है जो उस समय बहुत सहायक है जब यथार्थ के विश्लेषण और परीक्षण की बात आती है। हमारी बुद्धि हमारे लिए चित्त की शांति ला सकती है, या इसे नष्ट कर सकती है। नैतिक सिद्धांतों को समझने के लिए हमारी बुद्धि का उपयोग कर हम सौहार्दता और अनंत परोपकार जनित करना सीख सकते हैं।

"जैसा वैज्ञानिकों ने पाया है, आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। हमारी मां ने हमें जन्म दिया, फिर अत्यधिक स्नेह के साथ देखभाल की। इसके स्थान पर यदि वह हमारी उपेक्षा करती तो संभवतः हमारी मृत्यु हो जाती।

"क्रोध और भय हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करते हैं, जबकि सौहार्दता चित्त की शांति लाती है। इसलिए, जिस तरह हम अपने स्वास्थ्य के लिए बच्चों को शारीरिक स्वच्छता का पालन करने की शिक्षा देते हैं, हमें उन्हें भावनाओं की स्वच्छता के बारे में भी सलाह देना चाहिए। यदि वे शारीरिक और मानसिक रूप दोनों से स्वस्थ हैं, तो उन्हें नकारात्मक भावनाओं से निपटने तथा चित्त की शांति को बनाए रखने के बारे में जानने की आवश्यकता है। और भावनाओं से निपटने के लिए भावनाओं के नक्शे, चित्त का नक्शा जैसा कुछ होना उपयोगी होता है।

"यह कुछ ऐसा है जिसे हम प्राचीन भारत में शोध किए गए ध्यानाभ्यास शमथ और विपश्यना को विकसित कर सीख सकते हैं। बुद्ध ने दोनों का अभ्यास किया और यद्यपि इन अभ्यासों को धार्मिक साहित्य में वर्णित किया गया है, पर शैक्षणिक स्तर पर इनकी जांच की जा सकती है और इसे व्यवहृत किया जा सकता है।

"मैं इस तरह के प्राचीन भारतीय ज्ञान का छात्र हूं, जो नालंदा परम्परा में संरक्षित है, जो कारण और तर्क पर निर्भर करता है। महान नालंदा विद्वान शांतरक्षित, जिन्हें ८वीं शताब्दी में सम्राट द्वारा तिब्बत में आमंत्रित किया गया, ने बौद्ध प्रशिक्षण और अभ्यास की एक विधि की स्थापना की जिसके कारण व तर्क एक अभिन्न अंग हैं।

"जब मैं भारत आया तो मुझे वैज्ञानिकों के साथ मिलने और चर्चा करने का अवसर मिला। मैं बुद्ध कथन से प्रेरित था कि उन्होंने जो शिक्षा दी उसे मात्र विश्वास के आधार पर स्वीकार न किया जाए पर कारण द्वारा परीक्षण और जांच की जाए। परिणामस्वरूप मैं तीस वर्षों से अधिक समय से वैज्ञानिकों के साथ जिस संवाद में संलग्न हूँ वह पारस्परिक रूप से लाभकारी रहा है।"

कोल्लहोफर ने आज प्रातः परम पावन के साथ चर्चा में भाग लेने के लिए तीन वैज्ञानिकों का परिचय दिया - न्यूरोबायोलॉजिस्ट डॉ हन्ना मोनियर, जीरोन्टोलॉजिस्ट डॉ एंड्रियास क्रूस, और खगोलशास्त्री डॉ मथियास बार्टेलमैन।

डॉ मोनियर ने ऐसी बात उठाई जिसे वे एक समस्या के रूप में देखती हैं। "आप जोर देते हैं कि हम सामाजिक प्राणी हैं और हम हैं, पर हम चूहों से बहुत अलग नहीं हैं। उनके जैसे मनुष्य स्वाभाविक रूप से दूसरों के बजाए अपने निकट के परिवार के सदस्यों की सहायता करना पसंद करते हैं।"

"हम बुद्धिमान हैं," परम पावन ने उत्तर दिया, "हममें जन्म से ही करुणा का बीज है। तर्क व बुद्धि का उपयोग करते हुए हम अपनी करुणा की भावना को बढ़ा सकते हैं और समझ सकते हैं कि इसका विपरीत, क्रोध, हानिकारक है। हमारी जैविक करुणात्मक प्रवृत्तियां मोह के कारण प्रभावित होती हैं। इस तरह का पक्षपात महान करुणा में परिवर्तित नहीं हो सकता। यही कारण है कि हम सर्वप्रथम समानता विकसित करते हैं। हम मैत्री करुणा की भावना को पूरी मानवता तक विकसित करना सीख सकते हैं।

"एक बात जिसे स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है वह यह कि, करुणा और क्रोध दोनों चेतना का अंग हैं। कुछ चेतनाएं हमारी ऐन्द्रिक अंगो पर निर्भर होती हैं। स्वप्नावस्था में ऐन्द्रिक अंग निष्क्रिय होते हैं। गहन निद्रा में चेतना सूक्ष्मतर होती है, जबकि सूक्ष्मतम चेतना मृत्यु के समय प्रकट होती है, जिसका मस्तिष्क से कोई संबंध नहीं होता।"

डॉ मोनियर की प्रतिक्रिया थी, "यह एक द्वैतवादी दृष्टिकोण है।"

परम पावन ने सूचित किया कि "२०वीं शताब्दी के प्रारंभ में वैज्ञानिकों ने माना कि चेतना पूरी तरह से मस्तिष्क पर निर्भर थी।" शताब्दी के अंत तक, न्यूरोप्लास्टिसिटी ने दिखाया कि मस्तिष्क में परिवर्तन का कारण चेतना में परिवर्तन हो सकता है।"

डॉ मथियास बार्टेलमैन ने पूछा कि क्या विज्ञान के अध्ययन में नम्रता महत्वपूर्ण थी। परम पावन ने उत्तर में "हां" कहा, और आगे चर्चा की कि किस तरह हम सभी दूसरों पर निर्भर हैं; जिस समुदाय में रहते हैं उस पर निर्भर होते हैं।

जीरोन्टोलॉजिस्ट डॉ एंड्रियास क्रूस ने परम पावन को बताया कि परम पावन के लिए उनके तीन प्रश्न थे। "क्या आपको लगता है कि सुख और उत्तरदायित्व के बीच की कड़ी अर्थ है। परम पावन ने तुरन्त उत्तर दिया कि यह दार्शनिक प्रश्न की तरह प्रतीत हो रहा है, जैसे 'हम यहां क्यों हैं?' उन्होंने कहा कि धार्मिक उत्तर या तो होगा क्योंकि यह ईश्वर की इच्छा है या कर्म के कारण।

डॉ क्रुज़ ने ऐसी खोजों की सूचना दी कि वयोवृद्ध परिवार के युवा सदस्यों की देखभाल करने की सक्षमता से सार्थकता ग्रहण करते हैं। परन्तु, जब वे डिमेंशिया जैसी बिगड़ती स्थितियों का सामना करते हैं तो उन्हें ऐसी गतिविधियों से बाहर रखा जाता है और युवा लोगों में उनकी देखभाल करने के उत्तरदायित्व की अनुभूति होती है। डॉ क्रुज़ ने 'सीमा परिस्थितियों' की धारणा उठाई, जिसे पहली बार हेडलबर्ग में शिक्षा प्राप्त जर्मन-स्विस मनोचिकित्सक और दार्शनिक ने सामने रखा।

परम पावन ने पुनः उत्तर दिया कि यह एक जटिल दार्शनिक अवलोकन प्रतीत होता है। सब कुछ सापेक्ष है; किसी का भी स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। उन्होंने समय का उदाहरण दिया। "क्या समय का अस्तित्व है? वर्तमान कहां है जब यह सदैव गतिशील है?"

लोगों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बात की कि २१वीं शताब्दी २०वीं शताब्दी के अनुभव को न दोहराए, जो हिंसा से भरी हुई थी। २१वीं शताब्दी को संवाद का युग होना चाहिए। समस्याओं का समाधान बल प्रयोग द्वारा नहीं अपितु उन पर बातचीत के द्वारा होना चाहिए।

यह कहने के लिए बाध्य किए जाने पर कि उन्होंने बर्मा में रोहिंग्या संकट में हस्तक्षेप क्यों नहीं किया, उन्होंने उत्तर दिया कि वह उस संघर्ष के लिए बाहरी व्यक्ति हैं। उन्होंने ऑंग सान सू की से बात करने और उन्हें लिखने की सूचना दी, जो अधिक कर सकती थीं। उन्होंने बर्मी बौद्धों से क्रोध के आवेश में आने पर बुद्ध के मुख का स्मरण करने की सलाह दी।

कोल्लहोफर ने यह कहते हुए सत्र का अंत किया कि परम पावन ने जो उनसे कहा उससे हर कोई सुनने वाला प्रेरित था। उन्होंने हेडलबर्ग आने के लिए पुनः एक बार उनका धन्यवाद किया। परम पावन ने उत्तर दिया, "एक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण विश्व लाने के लिए, हमें व्यक्तिगत स्तर पर शुरुआत करनी है। परिवर्तन व्यक्तियों के साथ आरंभ होता है और समुदाय में फैलता है।"

परम पावन को सिटी हॉल के गुंबददार फॉयर में मध्याह्न भोजन के लिए आमंत्रित किया गया, जिसके अंत में वे गाड़ी से मैनहेम पहुंचे, जहां से उन्होंने ज़्यूरिख के लिए उड़ान भरी। तिब्बतियों ने होटल के बाहर उनका पारम्परिक स्वागत किया, जिसके ड्राइववे पर तिब्बती ध्वज सुसज्जित थे। वहाँ टाशी शोपा नर्तक उपस्थित थे और तिब्बती युवा 'छेमा छंगफू' प्रस्तुत कर रहे थे। परम पावन ने उन सभी के साथ बातचीत की जो उनका अभिनन्दन करने आए थे और उनके बीच कई पुराने मित्रों को पाया। लॉबी में उपाध्याय, अध्यक्ष और तिब्बत संस्थान रिकॉन के निदेशक के साथ-साथ अन्य भिक्षुओं और लामाओं ने भी उनका अभिनन्दन किया।

कल, वह तिब्बत संस्थान रिकॉन में समारोह में सम्मिलित होंगे।

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