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ईरानी समूह के सदस्यों के साथ सम्मेलन ७/जून/२०१९

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थेगछेन छोएलिङ, धर्मशाला, हि. प्र. - आज सुबह परमपावन दलाई लामा ने अपने आवास पर लघु और मध्यम उद्यमों के 58 ईरानी सीईओ से मुलाकात की जिन्होंने स्वयं को एक शांतिदूत के रूप में वर्णन किया ।  परमपावन के सभाकक्ष में प्रवेश करते ही उन्होंने गर्मजोशी के साथ तालियां बजाकर उनका अभिवादन किया ।

परमपावन ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा, “मैं ईरान के लोगों से मिलकर बहुत खुश हूँ । कुछ लोग ईरानियों को लकेर आशंकित है, लेकिन मुझे याद आ रहा है कि 7वीं शताब्दी में राजा सोङच़ेन गाम्पो के समय तिब्बत और फारस के बीच सम्बन्ध था । तिब्बत में जहां फारसियों को अमीर के रूप में वर्णित किया जाता था तो वहीं पर मंगोलियाई लोगों को युद्ध-पसन्द लोग के रूप में जाना जाता था।”

“मेरी कुछ प्रतिबद्धताएँ हैं । सभी लोग एक खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं, मैं भी उन 7 अरब लोगों में से एक हूँ और लोगों को यह समझने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ कि प्रेम और करुणा पर आधारित शांत और आनन्दित चित्त द्वारा खुशहाल जीवन जिया जा सकता है । साधारण सी बात है कि यदि हम करुणामय और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करेंगे तो हम सुखी होंगे ।”

“दूसरा, एक बौद्ध भिक्षु होने के नाते अन्तर-धार्मिक सद्भावना को बढ़ावा देना मैं अपना एक नैतिक दायित्व समझता हूँ । दार्शनिक स्तर पर धार्मिक परम्पराओं के मध्य अनेक प्रकार के मतभेद हैं, लेकिन सभी धर्म सामान्य रूप से प्रेम का सन्देश देते हैं ।  मैं आश्वस्त हूँ कि धार्मिक सौहार्द सम्भव है । भारत को ही देखें, जहां हज़ारों वर्षों से विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ एक साथ रहती हैं । चूँकि मैं धार्मिक सद्भाव को महत्त्व देता हूँ इसलिए मुझे अन्य धर्मों के सदस्यों से मिलकर खुशी मिलती है । आज आप सभी शिया भाइयों और बहनों से मिलना मेरे लिए एक वास्तविक सम्मान है।”

“यह अकल्पनीय है कि आज दुनियां में, जैसे- मिस्र, बर्मा या अफगानिस्तान आदि में लोग धर्म के नाम पर एक-दूसरे से लड़ मर रहे हैं । अगले सप्ताह मैं भारतीय मुसलमानों के बीच विविधता का उत्सव मनाने हेतु दिल्ली में एक बैठक में भाग लूंगा । मैंने आज तक भारत में सुन्नियों और शियाओं के बीच संघर्ष की कोई खबर नहीं सुना है, इसलिए मैंने लद्दाख में अपने मित्रों को प्रोत्साहित किया कि वे विभिन्न मुस्लिम सम्प्रदायों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए और अधिक सक्रिय कदम उठाएँ ।”

“जब मैं विभिन्न आध्यात्मिक परम्पराओं के लोगों से मिलता हूँ तब मुझमें यह स्मरण रहता है कि मौलिक स्तर पर हम सभी मनुष्य के रूप में एक समान हैं । तिब्बत के जिस क्षेत्र में मेरा जन्म हुआ था वहां हमारे मुस्लिम पड़ोसी थे और उनके बच्चों के साथ हम बिना किसी भेदभाव के आनन्दपूर्वक खेलते थे । जब मैं राजधानी ल्हासा पहुँचा तब वहां पर भी मैंने एक छोटा सा मुस्लिम समुदाय को पाया ।  वे वहां पर 5वें दलाई लामा के समय से थे जिन्होंने उन्हें मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन दी थी । स्थानीय बौद्धों और इन मुसलमानों के बीच किसी भी प्रकार का कोई संघर्ष नहीं था । वे शांतिप्रिय एवं स्वादिष्ट भोजन पकाते थे और शुद्ध मध्य-तिब्बती बोली बोलते थे । मैं आने वाले सम्मेलन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ और आशा करता हूँ कि विभिन्न मुस्लिम देशों के दूतावासों के प्रतिनिधि भी इसमें भाग लेंगे ।  मैं समझता हूँ कि यह धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने का सुनहरा अवसर है ।”

उनसे पूछे गए प्रश्नों में से एक प्रश्न था कि क्या बौद्ध भगवान में विश्वास नहीं करते हैं, वे सृष्टि के रचनाकार किसे मानते हैं ?  परमपावन ने अपने उत्तर में कहा कि जैनों की तरह बौद्ध भी जीवन को अनादिकाल मानता है तथा पुनर्जन्म में विश्वास रखता है । हम अभी सुखी हैं या दुःखी यह हमारे पूर्व के कर्मों पर निर्भर करता है । दूसरों के प्रति दयालु और करुणावान होना तथा उन्हें हानि न पहुँचाना इत्यादि भविष्य में एक सुखी जीवन के कारण हैं । सबसे आवश्यक है जीवन को सार्थक बनाना - परमपावन ने उल्लेख किया कि सभी प्राणियों को एक दयालु ईश्वर के बच्चों के रूप में समझने का विचार इस जीवन को सार्थक बनाने में सहायता प्रदान करती है ।

एक दूसरे प्रश्न में परमपावन से पूछा गया कि बर्मा में मुसलमानों के साथ हो रहे उत्पीड़न पर उनकी क्या प्रतिक्रिया है । उन्होंने जवाब दिया कि जब उन्होंने पहली बार इसके बारे में सुना तो वे वाशिंगटन डी.सी में थे । तब वहां जो कुछ हो रहा था उस पर उन्होंने दुख व्यक्त किया और बर्मी बौद्धों से अपील की कि वे न केवल बुद्ध को याद करें, बल्कि इस पर भी विचार करें कि यदि तथागत बुद्ध वहां होते तो वे इन मुसलमानों की रक्षा करते ।  परमपावन ने आगे कहा कि उन्होंने आंग सान सूकी को पत्र लिखकर इस बारे में दुःख प्रकट किया था तथा उन्होंने जवाब दिया कि स्थिति बहुत कठिन थी और उनके पास ऐसा कुछ नहीं था जो वह कर सकती थी । परमपावन ने आगे कहा कि इन विस्थापितों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिए उन्होंने गादेन फोडाङ फॉउंडेशन को निर्देश दिया कि संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के माध्यम से शरणार्थियों के लिए राहत और पुनर्वास हेतु दान करें । ईरानियों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अपनी प्रसन्नता व्यक्त की ।

इस अवसर के समाप्त होने से पहले आगंतुकगण छोटे समूहों में परमपावन के चारों ओर एकत्रित हुये और उनके संग तस्वीर लेकर वे अत्यन्त ही प्रसन्न दिखाई दे रहे थे ।

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