परम पावन 14 वें दलाई लामा
मेन्यू
खोज
सामाजिक
भाषा
  • दलाई लामा
  • कार्यक्रम
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
हिंदी
परम पावन 14 वें दलाई लामा
  • ट्विटर
  • फ़ेसबुक
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब
सीधे वेब प्रसारण
  • होम
  • दलाई लामा
  • कार्यक्रम
  • समाचार
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
  • अधिक
सन्देश
  • करुणा
  • विश्व शांति
  • पर्यावरण
  • धार्मिक सद्भाव
  • बौद्ध धर्म
  • सेवानिवृत्ति और पुनर्जन्
  • प्रतिलिपि एवं साक्षात्कार
प्रवचन
  • भारत में प्रवचनों में भाग लेने के लिए व्यावहारिक सलाह
  • चित्त शोधन
  • सत्य के शब्द
  • कालचक्र शिक्षण का परिचय
कार्यालय
  • सार्वजनिक दर्शन
  • निजी/व्यक्तिगत दर्शन
  • मीडिया साक्षात्कार
  • निमंत्रण
  • सम्पर्क
  • दलाई लामा न्यास
पुस्तकें
  • अवलोकितेश्वर ग्रंथमाला 7 - आनन्द की ओर
  • अवलोकितेश्वर ग्रंथ माला 6 - आचार्य शांतिदेव कृत बोधिचर्यावतार
  • आज़ाद शरणार्थी
  • जीवन जीने की कला
  • दैनिक जीवन में ध्यान - साधना का विकास
  • क्रोधोपचार
सभी पुस्तकें देखें
  • समाचार

कालचक्र पर प्रथम विद्वत संगोष्ठी का उद्घाटन ५/मई/२०१९

शेयर

थेगछेन छोएलिङ, धर्मशाला, हि. प्र –आज सुबह ठंडी, साफ हवा में, जैसे ही सूरज नीले आकाश में पहाड़ों पर उगने लगा, परमपावन दलाई लामा अपने निवास स्थान से कालचक्र मन्दिर पहुँचे । परमपावन जब उद्यान से होकर चल रहे थे तो कई मुस्कुराते हुए चेहरे, जिनमें अधिकतर रूस से थे, ने उनका अभिवादन किया । उन्होंने कालचक्र मन्दिर में प्रवेश करने और आसन ग्रहण करने से पूर्व मुख्य मंदिर में स्थापित बुद्ध की प्रतिमा को नमन किया । नामग्याल मठ के सचिव ने सभी तिब्बती परम्पराओं के विद्वानों के लिए आयोजित कालचक्र पर प्रथम संगोष्ठी में पधारे प्रतिभागियों का स्वागत किया । कतारबद्ध पंक्तियों में बैठे मठ के भिक्षुओं ने मंगलाचरण करते हुये पहले बुद्ध और उसके पश्चात् नालंदा के 17 महापण्डितों की स्तुति की ।

“कितने विद्वान अन्य स्थानों से आये हैं?” परमपावन जानना चाहते थे । जवाब था बीस । “मैं काफी अस्वस्थ रहा हूँ, मैं 8 अप्रैल को दिल्ली से वापस आकर स्वस्थ महसूस कर रहा था, लेकिन 9 तारीख को अस्वस्थ हो गया, इसलिए मैं उपचार के लिए दिल्ली लौट गया । जांच में यह पता चला कि मेरी बीमारी इतनी गम्भीर नहीं थी, लेकिन मेरे लिए वह इलाज थकाऊ था । अब मैं फिर से अच्छा हो गया हूँ, लेकिन मुझे आराम करने की आवश्यकता है । मेरे कर्मचारी मुझे बताते हैं कि मुझे अपने कार्यक्रमों को कम करने की आवश्यकता है, इसलिए आमतौर पर मैं हर दूसरे दिन ही लोगों से मिल रहा हूँ ।”

नामग्याल मठ के मठाधीश थोमटोग रिन्पोछे, जो नामग्याल मठ शिक्षा समिति के अध्यक्ष भी हैं, ने इस अवसर पर विषय प्रस्तावना की । उन्होंने कालचक्र पर प्रथम विद्वत संगोष्ठी के अवसर पर मंचासीन परमपावन और समदोङ् रिनपोछे का स्वागत किया । उन्होंने स्पष्ट किया कि श्री कालचक्र नाम का तात्पर्य आनंद और शून्यता का युगनद्ध स्वरूप से है जिसका देव के रूप में उदय होता है । शाक्यमुनि बुद्ध ने सबसे पहले कालचक्र के रूप में इसके बारे में प्रवचन दिया था । फिर इसे शम्भला ले जाया गया ।

उन्होंने आगे बताया “सभी तिब्बती बौद्ध परम्परा, ञीङमा, साक्या, काग्यू, गेलुक, जोनांग और बुतोन के विद्वानों ने कालचक्र के बारे में विस्तार से लिखा है । यह परम्परा जीवित है । जे-च़ोङखापा ने कालचक्र को एक प्रामाणिक परम्परा माना और छह योगों का अभ्यास किया । डेपुङ मठ के संस्थापक जामयाङ छोजे ने लिखा है कि जे-रिन्पोछे ने कालचक्र का दर्शन किया था । बाद में, 7वें दलाई लामा, ग्यालवा कलसांग ज्ञाछ़ो ने एक व्यापक साधना की रचना की और नामग्याल मठ में अपना अभ्यास प्रारम्भ किया । परमपावन दलाई लामा ने दुनिया भर के सैंकड़ों हज़ारों लोगों को कालचक्र अभिषेक प्रदान किया है जिसका परिणामस्वरूप सम्पूर्ण अभ्यास आज भी अक्षुण्ण है । जे-रिन्पोछे के अनुयायी होने के नाते यह हमारा परम कर्तव्य है कि हम बुद्ध के उपदेशों का पालन करें । हम इस संगोष्ठि को अभ्यास-अर्पण स्वरूप समझते हैं ।”

अन्त में उन्होंने प्रार्थना करते हुये कहा “मैं यह कामना करता हूँ कि परमपावन दीर्घायु रहें और उनकी सभी आकाक्षाएँ सिद्ध हों तथा तिब्बती जनता का पुनर्मिलन हो । सभी को कालचक्र की स्थिति प्राप्त हो ।”

परमपावन ने इस संगोष्ठी में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुये कहा “मैं नियमित रूप से कहता हूँ कि 21वीं सदी के बौद्ध बनना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है । अतीत में तिब्बत के तीनों प्रांतों के लोग बौद्ध थे । यहां तक कि बोन धर्मावलम्बी के लोग भी बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन करते थे । बौद्धधर्म पूरे देश में फैल गया और लोगों का प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों में अत्यंत विश्वास था । लेकिन बुद्ध की शिक्षाओं की सही विशेषताएँ क्या हैं ? भारत में शमथ और विपश्यना के अभ्यास किये जाते थे, इसके अतिरिक्त बुद्ध ने हेतु-फल और प्रतीत्यसमुत्पाद की देशना की । उन्होंने आनन्दित मन के लिए मन को अनुशासित कर शांत करने तथा एक अनियंत्रित मन का दुःखी रहने के बारे में बताया ।”

“चार आर्यसत्य की व्याख्या तथा उनकी 16 विशेषताएँ और 37 बोधिपाक्षिक धर्म पाली परम्परावादी और महायानियों में एक समान हैं । प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन में तथागत बुद्ध ने इनके बारे में उपदेश दिया तथा दूसरे धर्मचक्र प्रवर्तन में इनका विस्तारपूर्वक देशना की है ।”

“कल, मैं कुछ भारतीय विद्वानों से मिला जिन्होंने हमारी बातचीत के दौरान पूछा कि ऐसा क्यों है कि धूम्रपान के हानिकारक प्रभाव अच्छी तरह से स्थापित हैं, फिर भी कुछ लोग इसका निरंतर सेवन करने में लगे हैं । मैंने सुझाव दिया कि यह इसलिए है क्योंकि हमारे समझने के विभिन्न स्तर हैं । आरम्भ में किसी चीज़ के बारे में सुन या पढ़ सकते हैं, लेकिन आप वास्तव में इसे तभी समझना शुरू करेंगे जब आप इसके बारे में चिंतन करने लगेंगे । चिंतन एक गहरी समझ उत्पन्न करता है, लेकिन आपने जिसे समझा है केवल उसी पर मन को केन्द्रित रखने पर ही आपके भीतर दृढ़ निश्चय उत्पन्न होता है । उस समय आप अपने अनुभवजन्य समझ के आधार पर दूसरों को समझाने में सक्षम होंगे । यही कारण है कि बौद्ध अभ्यास के संदर्भ में हम अध्ययन, तुलनात्मक चिंतन और ध्यान पर बल देते हैं ।”

“हम बुद्ध के यथार्थ अर्थ को जाने बिना ही बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में जाते हैं । हमें इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि सत्यसिद्ध की गलत धारणा का निराकरण कर दो सत्यों के आधार पर बुद्धत्व कैसे प्राप्त होता है । सभी धार्मिक परम्पराएँ अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रेम और करुणा को बताते हैं, लेकिन बुद्ध ने हमें इसी को आधारित कर हेतु का उपयोग करने तथा प्रतीत्यसमुत्पाद के बारे में चिंतन करने को कहा है । इस तरह हम दुःख के हेतुओं का उन्मूलन करते हैं । जितना अधिक हम हेतुओं का उपयोग करेंगे, उतना ही अधिक हम समझ पाएंगे और हमारे विचारों में दृढ़ता आयेगी । आचार्य नागार्जुन ने यही किया है जिसके फलस्वरूप उन्होंने जो लिखा है उससे आज के वैज्ञानिक अभिभूत होकर उनकी प्रशंसा कर रहे हैं ।”

परमपावन ने उल्लेख किया कि “यहाँ गुरु की शुद्ध दृष्टि को यथावत् बनाए रखने की प्रथा है, लेकिन जे-रिन्पोछे ने कहा है कि यदि गुरु कुछ ऐसे सीख देते हैं जो शास्त्रीय ग्रंथों के विरुद्ध हो, तो आपको उसे चुनौती देनी चाहिए । नालन्दा परम्परा के अनुसार बुद्ध के शब्द भी विश्लेषण के अधीन हैं । उदाहरण के लिए, बुद्ध ने कहा है- पञ्च स्कन्ध बोझ है और उसे ही पुद्गल कहते हैं । यदि हम इसका शब्दशः अर्थ लेते हैं तो बुद्ध के अनात्मवाद के साथ विरोधाभास दिखाई देता है । इसलिए हमें चिंतन करना चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा होगा । बुद्ध ने स्वयं कहा है- हे भिक्षुओं अथवा विद्वानों ! जिस प्रकार स्वर्ण को तपाकर, काटकर तथा रगड़कर उसकी परीक्षा की जाती है उसी प्रकार मेरे वचनों को भी श्रद्धा मात्र से नहीं बल्कि भलीभांति परीक्षण करने के पश्चात् ही स्वीकार करना चाहिए ।”

“जब मैं किसी को बुद्ध की मूर्ति भेंट करता हूँ तो मैं बुद्ध को प्राचीन भारत के एक विचारक और वैज्ञानिक के रूप में वर्णन करता हूँ, जिनके शिक्षाओं को जांच और परीक्षण कर तर्क-वितर्क के माध्यम से समझा जा सकता है तथा अनुभवजन्य है ।”

“निर्वासन में आने के बाद मैंने भिक्षुणियों को अध्ययन करने और उच्चतम योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया । इससे मठों में रहने वाले कुछ पुराने भिक्षुओं को आश्चर्य हुआ । हालाँकि, मैंने उन्हें यह याद दिलाया कि बुद्ध ने भिक्षुओं और भिक्षुणियों सभी को समान रूप से पूर्ण प्रव्रजित होने का संवर प्रदान किया था । इसलिए उन्हें भी उसी स्तर पर अध्ययन क्यों नहीं करना चाहिए? फलस्वरूप अब हमारे पास गेशे-मा हैं और यहां तक कि सामान्य लोग भी अध्ययन में रुचि दिखा रहे हैं ।”

“जहां तक कालचक्र का प्रश्न है- एक प्रश्न जो पूछा जाना है,” परमपावन ने हंसते हुए कहा, “शम्भला कहां है? ऐसा लगता है कि यह इस दुनिया में नहीं हो सकता है, लेकिन हमें ग्रंथों को ध्यान से पढ़ना होगा । मुझे कभी-कभी लगता है कि जातक कथाओं में जो लिखा है उन पर विश्वास करना कठिन है । शायद उनमें से कुछ अतिशयोक्ति किये गये हों । हालाँकि, हृदय सूत्र में जो हैं उसको लेकर मुझे कोई सन्देह नहीं है- रूप खाली है, लेकिन शून्यता रूप है । शून्यता रूपों के अलावा अन्य नहीं है और रूप शून्यता के अलावा अन्य नहीं हैं ।”

“क्वांटम भौतिक विज्ञानी अवलोकनकर्त्ता के प्रभाव के बारे में बताते हैं - कि किसी पदार्थ का अवलोकन करने मात्र से ही उस पदार्थ की धारणा को बदल देता है और यह ज्ञात होता है की सभी पदार्थ अन्ततः आरोपित मात्र हैं । चित्तमात्र सिद्धांतवादी कहते हैं कि सभी पदार्थ मात्र चित्त द्वारा निर्मित हैं । माध्यमिक सिद्धांतवादी कहते हैं कि कोई पदार्थ विश्लेषण करने के पश्चात् प्राप्त नहीं हुआ है- इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अस्तित्व में ही नहीं है, वह सांवृत्तिक रूप से अस्तित्व में हो सकता है ।”

“हमें अशांत करने वाली भावनाएँ, सत्यग्राह की अतिश्योक्तिपूर्ण भ्रामक दृष्टिकोण से उत्पन्न होती हैं । यदि हम बुद्ध की शिक्षाओं को वास्तविक धरातल और बुद्धत्व मार्ग में प्रशस्त होने के संदर्भ में लोगों को समझा सकें तो यह बुद्ध शासन सदियों तक जीवित रहेगा ।”

“जहां तक कालचक्र परम्परा का सवाल है, जोनांग मठ के भिक्षु और बुतोन रिन्पोछे के अनुयायी इस परम्परा के मुख्य धारक हैं । हमें निरन्तर अध्ययन करना चाहिए और जिस विषय को हमने समझा है उसे अभ्यास में उतारकर देखना चाहिए कि क्या हममें वास्तविक अनुभव उत्पन्न हो रहे हैं यहा नहीं । जहां तक कालचक्र के छह अंगीय अभ्यास का सवाल है, जोनांग परम्परावादी आज भी दिन और रात के अभ्यास को जारी रखे हुये हैं ।”

अंत में, परमपावन ने कहा कि “कुछ लोग यह मानते हैं कि मंदिरों और मठों के निर्माण से बुद्धशासन की चिरस्थिति होगी लेकिन इस सन्दर्भ में आचार्य वसुबन्धु का मत स्पष्ट है कि बुद्धशासन का अस्तित्व अध्ययन और अभ्यास पर निर्भर करता है । शास्त्रों का अध्ययन कर उन्हें अपने भीतर बोध द्वारा संवर्धित करना अत्यावश्यक है । बुद्ध के उपदेशों को संरक्षित करने का एकमात्र उपाय यही है । आप जो कर रहे हैं उसे बनाए रखें और दूसरों को भी इसे समझाएँ ।”

नामग्याल मठ के मठाधीश और अनुशासनकर्ता ने परमपावन को मन्दिर के निचले तल तक पहुँचाया जहां से परमपावन कार में सवार होकर अपने निवास स्थान के लिए पधार गये ।

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब
  • सभी सामग्री सर्वाधिकार © परम पावन दलाई लामा के कार्यालय

शेयर

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • ईमेल
कॉपी

भाषा चुनें

  • चीनी
  • भोट भाषा
  • अंग्रेज़ी
  • जापानी
  • Italiano
  • Deutsch
  • मंगोलियायी
  • रूसी
  • Français
  • Tiếng Việt
  • स्पेनिश

सामाजिक चैनल

  • फ़ेसबुक
  • ट्विटर
  • इंस्टाग्राम
  • यूट्यूब

भाषा चुनें

  • चीनी
  • भोट भाषा
  • अंग्रेज़ी
  • जापानी
  • Deutsch
  • Italiano
  • मंगोलियायी
  • रूसी
  • Français
  • Tiếng Việt
  • स्पेनिश

वेब साइय खोजें

लोकप्रिय खोज

  • कार्यक्रम
  • जीवनी
  • पुरस्कार
  • होमपेज
  • दलाई लामा
    • संक्षिप्त जीवनी
      • परमपावन के जीवन की चार प्रमुख प्रतिबद्धताएं
      • एक संक्षिप्त जीवनी
      • जन्म से निर्वासन तक
      • अवकाश ग्रहण
        • परम पावन दलाई लामा का तिब्बती राष्ट्रीय क्रांति दिवस की ५२ वीं वर्षगांठ पर वक्तव्य
        • चौदहवीं सभा के सदस्यों के लिए
        • सेवानिवृत्ति टिप्पणी
      • पुनर्जन्म
      • नियमित दिनचर्या
      • प्रश्न और उत्तर
    • घटनाएँ एवं पुरस्कार
      • घटनाओं का कालक्रम
      • पुरस्कार एवं सम्मान २००० – वर्तमान तक
        • पुरस्कार एवं सम्मान १९५७ – १९९९
      • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट २०११ से वर्तमान तक
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट २००० – २००४
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट १९९० – १९९९
        • गणमान्य व्यक्तियों से भेंट १९५४ – १९८९
        • यात्राएँ २०१० से वर्तमान तक
        • यात्राएँ २००० – २००९
        • यात्राएँ १९९० – १९९९
        • यात्राएँ १९८० - १९८९
        • यात्राएँ १९५९ - १९७९
  • कार्यक्रम
  • समाचार
    • 2025 पुरालेख
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2024 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2023 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2022 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2021 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2020 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2019 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2018 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2017 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2016 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2015 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2014 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2013 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2012 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2011 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2010 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2009 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2008 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2007 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2006 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
    • 2005 पुरालेख
      • December
      • November
      • October
      • September
      • August
      • July
      • June
      • May
      • April
      • March
      • February
      • January
  • तस्वीरों में
  • वीडियो
  • सन्देश
  • प्रवचन
    • भारत में प्रवचनों में भाग लेने के लिए व्यावहारिक सलाह
    • चित्त शोधन
      • चित्त शोधन पद १
      • चित्त शोधन पद २
      • चित्त शोधन पद ३
      • चित्त शोधन पद : ४
      • चित्त् शोधन पद ५ और ६
      • चित्त शोधन पद : ७
      • चित्त शोधन: पद ८
      • प्रबुद्धता के लिए चित्तोत्पाद
    • सत्य के शब्द
    • कालचक्र शिक्षण का परिचय
  • कार्यालय
    • सार्वजनिक दर्शन
    • निजी/व्यक्तिगत दर्शन
    • मीडिया साक्षात्कार
    • निमंत्रण
    • सम्पर्क
    • दलाई लामा न्यास
  • किताबें
  • सीधे वेब प्रसारण