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तोङलेन संस्था के छात्रों, कर्मचारियों और सामुदायिक प्रतिनिधियों से मुलाकात ७/जुलाई/२०१९

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थेगछेन छोएलिङ, धर्मशाला, हि. प्र, भारत - कल रात की बारिश के बाद आज सुबह मौसम सुहावना था जब परमपावन दलाई लामा ने तोङलेन संस्था के छात्रों, कर्मचारियों और सामुदायिक प्रतिनिधियों से मुलाकात की । तोङलेन एक ऐसी संस्था है जो धर्मशाला में रह रहे विस्थापित भारतीय समुदाय के निराश्रित लोगों को बुनियादी मानवाधिकार के लाभ पहुंचाने तथा शिक्षा के माध्यम से गरीबी को दूर करने में प्रयासरत है । अब तक यह संस्था अपना एक विद्यालय और छात्रावास का निर्माण कर चुका है जहां पर ऐसे छात्रों को रहने की व्यवस्था है जो अत्यन्त गरीब हैं ।

परमपावन ने सभाकक्ष में प्रवेश करते ही दो दर्जन दर्शनार्थियों का अभिवादन किया । उन्होंने कहा, “जब तक मुझे याद है, तोङलेन एक ऐसे तिब्बती भिक्षु जामयाङ की पहल है जो यहां धर्मशाला में ध्यान साधना करने और प्रवचन सुनने आये थे । उन्होंने यहां झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वालों के बच्चों को भीख मांगते, कचरा बीनते तथा शिक्षा से वंचित देखकर उनके लिये कुछ करने का निर्णय लिया ।”

परमपावन ने कहा, “हम मनुष्यों के पास एक अद्भूत मस्तिष्क है और यदि हमें उसका ठीक से विकास करना है, तो हमें शिक्षित होने की आवश्यकता है । हालांकि, कभी-कभी शिक्षा स्वार्थ, क्रोध और भय से प्रेरित होती है जो केवल समस्या उत्पन्न करता है । यह स्पष्ट है कि केवल मस्तिष्क को शिक्षित करने से यह ज़रूरी नहीं कि हमें मन की शांति प्राप्त हो । शिक्षा को आत्मीयता, ईमानदारी और करुणामयी भावना से जोड़ना चाहिए । जब बुद्धिमत्ता और आत्मीयता एक साथ जुड़ जाते हैं तो व्यक्ति सुख-शांति का अनुभव करने लगता है और वह जहां भी रहता है इससे उसके परिवार और समाज को भी लाभ मिलता है ।”

“कल, मुझे जन्मदिन का एक बड़ा केक दिया गया था और आज मैं इसे आपके साथ बांटना चाहता हूँ ।”

“मैं देख रहा हूँ कि एक ऑस्ट्रेलियाई समर्थक के अलावा आप सभी भारतीय हैं । मैं प्रायः कहता हूँ कि प्राचीन मिस्र सभ्यता, चीनी सभ्यता, सिन्धु घाटी सभ्यताओं में सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्तर्गत अत्यंत ही समृद्ध ज्ञान का विकास हुआ है जिसमें मन और भावनाओं पर विशेष कार्य किया गया है । जिसके फलस्वरूप अहिंसा और करुणा का अभ्यास अस्तित्व में आया । शाक्यमुनि बुद्ध इसी साधना परम्परा के उपज हैं जिन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दार्शनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया ।”

“हालांकि, मैं कभी भी यह नहीं कहता कि बौद्धधर्म सबसे उत्तम आध्यात्मिक या फिर दार्शनिक परम्परा है क्योंकि हम कभी भी यह नहीं कह सकते कि यह दवा सभी बिमारियों के लिए सबसे अच्छी है - यह इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी को क्या चाहिए – ऐसा ही हमारे विभिन्न आध्यात्मिक और दार्शनिक परम्पराओं के बीच है । जो चीज़ एक व्यक्ति की मानसिक अवस्था के अनुकूल होगा, वो शायद किसी अन्य के लिए नहीं हो सकता है । यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे कौन सी चीज़ अधिक सहायक पाते हैं । जैसा भी हो, यह सच है कि आचार्य नागार्जुन, आर्यअसंग, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, बुद्धपालित और चन्द्रकीर्ति आदि सभी भारतीय आचार्य थे - इसलिए, भारतीय मस्तिष्क में कुछ तो विशेष है ।”

“मेरे मित्र राजा रमण जो एक परमाणु भौतिक विज्ञानी थे उन्होंने मुझे बताया कि क्वांटम भौतिकी पश्चिम में अपेक्षाकृत नया है, लेकिन 2000 वर्ष पूर्व भारत में इन विचारों का अनुमान लगाया गया था । इसके कुंजी दो आर्यसत्य हैं – संवृत्ति सत्य और परमार्थ सत्य तथा यह विचार कि जो हमें आभासित होता है वह यथार्थ में वास्तविकता के अनुरूप नहीं है । आप युवा भारतीयों को इस पर गर्व होना चाहिए।”

परमपावन ने उन्हें बताया, कि ऐसा लग रहा है कि आधुनिक भारत पाश्चात्य एवं भौतिक रास्तों को अपना रहा है जबकि प्राचीन भारत का ध्यान चित्त और भावनाओं के सूक्ष्म ज्ञान को लेकर था तथा तत्कालीन आचार्यगण युक्तियों एवं हेतुओं द्वारा सत्य की स्पष्ट अवधारणा स्थापित करते थे । तथागत गौतम बुद्ध की उक्ति - ‘हे भिक्षुओं अथवा विद्वानों ! जिस प्रकार स्वर्ण को तपाकर, काटकर तथा रगड़कर उसकी परीक्षा की जाती है उसी प्रकार मेरे वचनों को भी श्रद्धा मात्र से नहीं बल्कि भलीभांति परीक्षण करने के पश्चात् ही स्वीकार करना चाहिए ।’, का अनुसरण कर आचार्य नागार्जुन, आचार्य दिग्नाग और धर्मकीर्ति ने स्वयं बुद्ध वचनों का गहन परीक्षण किया । उनकी परीक्षण करने की यह पद्धति वैज्ञानिक था ।

परमपावन ने पिछले 40 वर्षों में आधुनिक वैज्ञानिकों और उनके साथ हुयी परिचर्चाओं का उल्लेख किया । परमपावन ने कहा कि उन्होंने सुना है कि चीनी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर धर्मशाला में तैयार किये गये बौद्ध वाङ्मय में निहित विज्ञान और दर्शन से सम्बन्धित पुस्तकों की सामग्री से प्रभावित हैं । प्राचीन भारत में मन को शांत रखने और सत्य का अवबोधन के लिए ‘शमथ’ और ‘विपश्यना’ की साधना की जाती थी जिसकी आधुनिक भारत में उपेक्षा की गयी है । यही कारण है कि परमपावन इस प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और भारतीयों को धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के आधार पर प्राचीन और आधुनिक कौशल के संयोजन के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं । यह सभी के लिए प्रासंगिक हैं - आखिरकार, मन की शांति पूरी मानवता से जुड़ी हुयी है ।

“भारत में विश्वशांति स्थापित करने की बहुत क्षमता है । महात्मा गांधी ने दिखाया कि एक व्यावहारिक अहिंसा कैसे हो सकती है । मुझे विश्वास है कि अहिंसा और क्वांटम भौतिकी का संयुक्त ज्ञान विश्वशांति की स्थापना में योगदान दे सकती है । यह एक सुअवसर है, कृपया इसके बारे में विचार करें ।”

“जैसा कि आप शायद जानते हैं, ‘तोङलेन’ का शाब्दिक अर्थ - देना और लेना है । मन में ऐसी कल्पना करना कि जो भी अपने सकारात्मक गुण हैं उन्हें दूसरों के दर्द और पीड़ा के साथ अदला-बदली कर रहे हैं । मुझे यह बहुत उपयोगी लगता है । सन् 2008 में हमें समाचार मिली कि ल्हासा में प्रदर्शन हो रहे हैं । मैं आशंकित था कि अब सन् 1959 में हुये हिंसक प्रतिशोध को दोहराया जायेगा, लेकिन मैं असहाय था । मैं कुछ नहीं कर सकता था । मैंने ‘तोङलेन’ का अभ्यास किया । मैंने चीनी अधिकारियों के क्रोध और प्रतिशोध के विचार को उनसे लेने और उसके बदले में उन्हें धैर्य और करुणा देने की कल्पना की । इस अभ्यास का ज़मीनी स्तर पर कोई व्यावहारिक प्रभाव नहीं था, लेकिन इससे मेरे मन की शांति को बल मिला ।”

“इसी तरह एक अन्य अवसर पर मैं बोधगया में बीमार पड़ा और इलाज के लिए सड़क के रास्ते पटना गया । शहर के बाहरी इलाके में मैंने एक बीमार बूढ़े व्यक्ति को देखा, वह बिना किसी सहयोगी के एक साधारण सा बिस्तर पर लेटा हुआ था जिसे कोई देखने वाला नहीं था । मैं उस व्यक्ति को व्यावहारिक रूप से मदद करने में असमर्थ था, लेकिन बाद में अपने कमरे में जब मैं दर्द में था तो मैंने उसकी कठिनाई और अकेलेपन को लेने और उसे सांत्वना देने की कल्पना की, जिससे मुझे बहुत मदद मिली ।”

तोङलेन के छात्रों ने परमपावन को  “नमस्ते, टाशी देलेक और जन्मदिन मुबारक” कहकर बधाई दी । उन्होंने परमपावन के लिए हिन्दी में एक भारतीय प्रार्थना का पाठ किया तथा तिब्बती भाषा में बौद्ध प्रार्थना का भी पाठ किया जिसके अन्तिम वाक्य इस प्रकार थे – “आप इस संसार की अन्त तक स्थिर रहें, आप इस संसार की अन्त तक स्थिर रहें ।”

परमपावन ने आगे कहा, “चूंकि मैं तिब्बत में पैदा हुआ हूँ इसलिए मैं शारीरिक रूप से तिब्बती हूँ, लेकिन मेरे मस्तिष्क का प्रत्येक कण भारतीय विचारों से भरा है, इसलिए मानसिक रूप से मैं भारतीय ही हूँ । मैं अहिंसा और करुणा को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा हूँ, जो कि मुझे विश्वास है कि आज की दुनिया में यह अत्यन्त प्रासंगिक है । मन की शांति को बनाये रखने का मतलब है कि आप शांत और अविचलित रहेंगे । इसी आधार पर मैं प्राचीन भारत के ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ और आप मुझे ऐसा करने में मदद कर सकते हैं ।”

“अब मैं 84 साल का हो गया हूँ और मैं 94 या फिर 100 साल तक जीवित रह सकता हूँ । लेकिन मैं अब वृद्ध हो गया हूँ जबकि आप युवा हैं । आप सब इक्कीसवीं सदी के हैं, मेरे इन विचारों को अगली पीढ़ी और उसके बाद की पीढ़ियों को बतायें जिससे आप बाईसवीं और तेईसवीं सदी के लिए कुछ सौंप सकें । बुद्ध का परिनिर्वाण हुये 2000 से भी अधिक वर्ष बीत चुका है लेकिन उनकी शिक्षाएँ आज भी जीवित हैं । हम तिब्बतियों ने भारतीय नालन्दा परम्परा को जीवित रखा है । गहन अध्ययन और अभ्यास के माध्यम से ही बुद्ध के विचार संरक्षित हैं ।”

“यदि दुनिया में लोग दयालु होंगे तो यह विश्व असैन्यीकृत क्षेत्र भी बन सकता है । यह लोगों की व्यक्तिगत आन्तरिक अशस्त्रीकरण के विकास पर निर्भर करता है । ऐसे होने पर करुणा और आत्मीयता का भाव जाग जाता है और उसके परिणामस्वरूप बाहरी अशस्त्रीकरण सम्भव होता है । यही सच्ची ‘अहिंसा’ है । धन्यवाद ।”

तोङलेन संस्था के एक वरिष्ठ छात्र प्रतिनिधि ने परमपावन को भेंट करने के लिए लिखे गये प्रशस्ति-पत्र का वाचन इस प्रकार किया -

“परमपावन, हम तोङलेन के छात्र, कर्मचारी एवं झुग्गी-झोंपड़ी समुदाय के प्रतिनिधि हैं । हम यहां आपके जन्मदिन के अवसर पर आपके द्वारा हमें प्राप्त जीवन दर्शन और समर्थन के लिए आभार व्यक्त करने तथा आपकी दीर्घायु कामना के लिए आये हैं ।”

“हम झुग्गियों में पैदा हुए थे । हमारे पास कोई बुनियादी संसाधन नहीं थे, कोई अधिकार नहीं था और न कोई सम्मान था । हमारे पास अत्यन्त अल्प भोजन या कोई भोजन ही नहीं था । हम में से कुछ तो मौत के बहुत करीब थे । हमारे कुछ दोस्त साधारण सी बीमारी और चिकित्सकीय देखभाल के अभाव में गुज़र गये । आज भी हमारे मित्र और परिवार इन कठिनाइयों के साथ जी रहे हैं ।”

“दया और करुणा के आपके जीवन दर्शन ने एक भिक्षु को तोङलेन जैसी संस्था बनाने के लिए प्रेरित किया । आपके और दलाई लामा ट्रस्ट द्वारा समर्थित तोङलेन संस्था ने हमें बचाया है । हमें इस संस्था ने स्वास्थ्य देखभाल, भोजन, आश्रय और शिक्षा इत्यादि देकर हमारा बखूबी ख्याल रखा है । आपके सतत समर्थन के कारण ही आज इस संस्था में 333 बच्चे अपने जीवन में बदलाव ला रहे हैं ।”

“हम भीख माँगते थे, कचरा बीनते थे, लेकिन आपके समर्थन तथा तोङलेन संस्था के माध्यम से हमने आज तृतीयक डिग्री को हासिल किया है । हम आपके दया, करुणा, प्रेरणा और जीवन दृष्टि के लिए आभारी हैं । हम तोङलेन संस्था की भी आभारी हैं जिन्होंने हमारे ज़रूरतों को जाना और हमें जीवन में नयी आशा और भविष्य दिया । हम बदलाव के उदाहरण हैं ।”

“परमपावन, आपके धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के दृष्टिकोण ने हमारे सोचने के तरीके को बदल दिया है और हमें अच्छे इंसान बनने के लिए प्रेरित किया है । धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के अध्ययन से हमें सार्वभौम मानवता को जानने तथा सभी का सम्मान करना कितना आवश्यक है इसे समझने में मदद मिली । तोङलेन परिवार एक विविध लोगों का समूह है और हमारे यहां जाति, धर्म और लिंग आधारित बिना किसी भेदभाव के सभी का समान रूप से आदर किया जाता है । इस अवधारणा ने हमें सशक्त बनाया है । हमारे पास आत्म-स्वीकृति, भावनात्मक परिपक्वता, सहनशीलता तथा सर ऊंचा कर जीने की हिम्मत है । तोङलेन के बच्चों का एक सकारात्मक भविष्य है और इसलिए आपको हार्दिक धन्यवाद करते हैं ।”

“एक वैश्विक समुदाय का आपका दृष्टिकोण हमारी पीढ़ी के लिए एक उपहार है और आपके इन अवधारणाओं और दर्शन को हम पूरे समुदाय में प्रसारित करने का दायित्व महसूस करते हैं । दलाई लामा ट्रस्ट के सहयोग के अन्तर्गत हम हमारे समुदाय में शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से एक नैतिक समाज विकसित करने के लिए कार्य कर रहे हैं । हमारे संस्था द्वारा चलाये जा रहे दयालु-परियोजनाओं के माध्यम से हम धर्मशाला को एक दयालु शहर बनाने की आशा रखते हैं । इसी तरह हम अन्य मलिन बस्तियों में जाकर स्वच्छता, शिक्षा और आश्रय देने में भी मदद कर रहे हैं । तोङलेन के छात्रगण सार्वभौमिक जिम्मेदारियों को लेने और सामाजिक समस्याओं को दूर करने के आपके सिद्धांत पर जीने के लिए प्रतिबद्ध हैं ।”

“आपके जन्मदिन के अवसर पर कांगड़ा घाटी के झुग्गी-झोंपड़ी समुदाय, तोङलेन संस्था के छात्र एवं कर्मचारियों की ओर से आपको यह स्मृति-चिह्न भेंट कर विश्व को शांतिमय और बेहतर बनाने की आपकी प्रेरणा तथा अविचल प्रतिबद्धता के लिए आभार व्यक्त करते हैं । परमपावन, आपने हमें इस गरीबी के कुचक्र को तोड़कर जीवन में नयी आशा प्रदान की है । हम आपकी दीर्घायु की कामना करते हैं, जिससे दुनिया से गरीबी समाप्त हो और मानव मात्र के लिए स्वास्थ्य एवं आनन्द भरा जीवन सम्भव हो तथा आपके द्वारा सुपरिकल्पित विश्वशांति और करुणामय समाज प्रतिफलित हो ।” 

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