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महाकारुणिक आर्यअवलोकितेश्वर अभिषेक १७/अगस्त/२०१९

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मनाली, हिमाचल प्रदेश, भारत – आज लगातार हो रही बारिश के बावजूद करीब 8000 श्रद्धालुओं ने परमपावन द्वारा प्रदत्त महाकारुणिक आर्यअवलोकितेश्वर अभिषेक में भाग लिया । लोगों के लिए बनाये गये पंडाल में क्षमता से अधिक संख्या में लोग सम्मिलत होने के कारण तकरीबन 500 लोगों ने बाहर ही सड़क पर बैठकर अभिषेक प्राप्त किया ।

“आज का अभिषेक पांचवे दलाई लामा के ‘साङवा ग्याछेन’ (गुह्यमुद्रा दृष्टि) के संकलन से है । पोताला राजमहल में आर्यअवलोकितेश्वर साधना के दौरान नेछुङ ओरेकल से परामर्श करने के बाद पांचवे दलाई लामा को दिव्य दृश्य दिखायी दिया था जिसमें राजा सोङच़ेन गाम्पो आर्यअवलोकितेश्वर के हृदय से निकलकर उन्हें मण्डल में प्रवेश करवाया जहां पर उन्होंने नौ देव अभिषेक प्राप्त किया । जब मैं युवा था तब तागडाग रिन्पोछे ने इन 25 प्रकार के दिव्य-दृश्य अभिषेक संकलनों को मुझे प्रदान किया । मैंने ठ्रुल्शिक रिन्पोछे से इस दीर्घायु अभिषेक को प्राप्त किया । मैंने इसके लिए तथा दूसरी साधनाओं के लिए एकांतवास साधनाएं की है । जब मुझे इनका अभिषेक दिया जा रहा था तब मुझे प्रत्येक रात अगले दिन दिये जाने वाले अभिषेक के प्रत्यके ईष्टदेवों का स्वप्न आते थे । निर्वासन में आने के बाद एक रात मुझे पाचवें दलाई लामा को निरूपित करते हुये एक थांका का स्वप्न आया जिसमें वे मुझे एक लम्बा सा खाताक प्रदान कर रहे थे । इसलिए, मैं समझता हूँ कि मेरा उनसे बहुत ही गहरा सम्बन्ध है ।

“जो लोग यहां नहीं पहूंच पाये हैं, उन्होंने पूछा है कि उन्हें क्या इस अभिषेक के सीधा प्रसारण के दर्शन द्वारा अभिषेक प्राप्त हो सकता है । मैंने उन्हें कहा कि यह सम्भव है । इस सन्दर्भ में भगवान बुद्ध के जीवन से एक दृष्टांत मिलता है । भगवान बुद्ध के समय जब लोग भिक्षु बनने के लिए उपसम्पदा लेना चाहते थे लेकिन वे बुद्ध से साक्षात् मिलने में असमर्थ थे, ऐसे में उन्हें दूर से ही सन्देश भेजकर उपसम्पदा दी जाती थी । इसी प्रकार से ताईवान और दूसरे जगहों से जिनका आर्यअवलोकितेश्वर में अतीव श्रद्धा है और अभिषेक लेने के इच्छुक हैं, तो वे जहां भी हों इस प्रकार कर सकते हैं ।”

“हम दैनिक जीवन में पांच इन्द्रीयों पर आश्रित होकर कार्य करते हैं, लेकिन जब हम नींद में चले जाते हैं तब, हालांकि, हमारे बाहरी इन्द्रीय ग्रहणबोध नहीं होता है फिर भी हमारे मानसिक चेतना निरन्तर कार्य करता है । अनुत्तर योगतन्त्र में ऐसी विधियां हैं जिनके माध्यम से स्वप्न अवस्था को योग साधना में प्रवृत्त कर सकते हैं । इस अवस्था में मन की स्वाभाविक प्रभास्वरता से साक्षात्कार करने का अवसर होता है । यह अवसर घायल अवस्था और मृत्यु के समय भी आता है । ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब कोई अनुभवी ध्यानी का रक्त परिसंचरण और दिमाग काम करना बंद करता और डॉक्टर्स उसे मृत घोषित करते हैं, फिर भी उन साधकों का सूक्ष्म चित्त शरीर में निवास करता है ।”

“अनुत्तर योगतन्त्र की विधियों द्वारा मन की स्वाभाविक प्रभास्वरता से साक्षात्कार किया जाता है और उसे साधक प्रज्ञापारमिता में प्रतिपादित शून्यता के बोध से संयोजित करता है । ञीङमा परम्परा में नौ यानों का उल्लेख किया गया है, जिनमें सबसे उत्कृष्ट आन्तरिक तन्त्र हैं- महा, अनु एवं अति योग । अतियोग में साधक सामान्य चित्त का प्रयोग नहीं करते हैं बल्कि मौलिक बोध का प्रयोग करते हैं । साधक ‘अभिसमयालंकार’ ग्रन्थ का अनुसर करते हुये बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करता है जबकि तन्त्र एक विशेष साधना पद्धति है ।”

परमपावन ने श्रद्धालुओं से कहा कि आज इस अभिषेक का ईष्टदेव महाकारुणिक आर्यअवलोकितेश्वर हैं जो स्पष्ट रूप से चन्दन से बनी मूर्ति ‘वाती ज़ाङपो’ द्वारा निरूपित होता है । तिब्बत में यह मूर्ति ज़ोङकार छोएदे मठ के भिक्षुओं का है लेकिन यह यहां धर्मशाला में परमपावन के देखरेख में है । परमपावन ने उनके एक स्वप्न का स्मरण करते हुये कहा कि एक बार वे सपने में इस मूर्ति के साथ संवाद कर रहे थे जिसमें परमपावन ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें शून्यता का बोध हुआ है, तो मूर्ति ने उत्तर दिया “हाँ” । परमपावन ने फिर से पूछा साक्षात् रूप से, मूर्ति ने जवाब दिया “हाँ” ।

अभिषेक की आद्य साधना के रूप में बोधिचित्त उत्पन्न करने के लिए परमपावन द्वारा जब बोधिचित्त संवर देने का समय आया तब उन्होंने कहा – “बोधिचित्त में दो भावनाएं हैं, दूसरों का कल्याण करने और उनके लिए बुद्धत्व प्राप्ति की भावना । यही मेरी साधना है । मैं सुबह उठते ही बोधिचित्त उत्पन्न करता हूँ । मैं छः प्रहर गुरुयोग की साधना करता हूँ जिसमें बोधिचित्त उत्पन्न करता हूँ ।”

परमपावन ने अपने दैनिक जीवन में विपश्यना साधना के प्रक्रिया को समझाते हुये कहा जब भी वे इस साधना को करते हैं तब आचार्य नागार्जुन के मूलमध्यमककारिका के इस श्लोक पर विचार करते हैं-

न स्कन्ध हैं, और न ही स्कन्धों से पृथक हैं,
स्कन्ध उनमें नहीं हैं, और न ही वे स्कन्धों में हैं,
तथागत इन स्कन्धों के अधिकारी नहीं हैं,
तथागत क्या है?

परमपावन ने कहा वे साधना में इस श्लोक को स्वयं को सन्दर्भित करते हैं जो अत्यन्त प्रभावी है-

न स्कन्ध हैं, और न ही स्कन्धों से पृथक हैं,
स्कन्ध मुझमें नहीं हैं, और न ही मैं स्कन्धों में हूँ,
मैं इन स्कन्धों का अधिकारी नहीं हूँ,
मैं क्या हूँ?

अभिषेक की समाप्ति पर परमपावन मंच के सामने आये और उन्होंने कुछ दिशाओं में हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन किया । उसके पश्चात् वे ञीङमा मठ में पधारे और वहां पर बुद्ध एवं गुरु पद्मसंभव के समक्ष श्रद्धा अर्पण कर दोपहर भोजन के लिए चले गये । होन ङारी मठ में लौटने से पहले उन्होंन ञीङमा मठ के सदस्यों के साथ चित्र खिंचवाया ।

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