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वैशाख पूर्णिमा के अवसर पर परमपावन दलाई लामा का सन्देश ७/मई/२०२०

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आज मुझे आप सब भाईयों एवं बहनों को बुद्ध पूर्णिमा के इस पुनीत अवसर पर बधाई देते हुये अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है।

आज से 2600 वर्ष पूर्व तथागत गौतम बुद्ध लुम्बिनी में पैदा हुये, बोधगया में बुद्धत्व की प्राप्ति की तथा कुशीनगर में महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुये थे, लेकिन उनका सर्वहितकारी ज्ञान आज भी सार्वभौमिक एवं प्रासंगिक है। ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त प्राणियों के कल्याण की उत्कृष्ट भावना से उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक सन्यासी के रूप में व्यतीत किया तथा उनके संसर्ग में आने वाले सभी लोगों से अपना अनुभव साझा करते रहे। उनकी शिक्षाओं में प्रतीत्यसमुत्पाद और दूसरों को कष्ट न पहुंचाने एवं अपने सामर्थ्य अनुसार दूसरों का अधिक से अधिक सहायता करने का सन्देश उनके अहिंसा के सिद्धांत को संपुष्ट करता है। करुणा से प्रेरित ये भावनाएं आज अहिंसा और विश्वशांति के लिए प्रबल साधन हैं जिसमें समस्त प्राणियों का कल्याण निहित है।

आज हम सब एक-दूसरे पर पूर्ण रूप से आश्रित हैं जिस कारण हमारा हित और सुख अन्य बहुत सारे लोगों पर निर्भर है। आज हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं ये हमें इस वास्तविकता से अवगत कराते हैं कि मानवीय एकता की भावना ही एकमात्र समाधान है। बौद्ध साधनाओं के एक अंग में ध्यान द्वारा हमारे मन को सुधारना सम्मिलित है। मन को सुधारने के क्रम में सदगुणों के विकास के लिए दया, करुणा, त्याग और क्षमा की साधना की जाती है तथा इन गुणों को और अधिक प्रबल बनाने के लिए हमें इन्हें अपने दैनिक जीवन में उतारना चाहिए।

हाल के कुछ वर्षो तक, विश्व के विविध बौद्ध समुदायों के मध्य एक-दूसरे के अस्तित्व को समझने में काफी खाई थी तथा सामूहिक मूल्यों को समझने का कोई अवसर भी नहीं था। लेकिन, आज विश्व के विभिन्न प्रांतो में विकसित सम्पूर्ण बौद्ध परम्पराओं को समझना सभी लोगों के लिए सुगम हो गया है। इसके अतिरिक्त, हममें से जो बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं और उनकी उदार शिक्षाओं पर उपदेश देते हैं, हम सभी के लिए एक मंच पर सम्मिलित होकर एक-दूसरे से सीखने-समझने के अनेक आयाम प्रारम्भ हो चुके हैं।

एक तिब्बती बौद्ध भिक्षु होने के नाते मैं स्वयं को नालन्दा परम्परा का अनुयायी समझता हूँ। तर्क और हेतुओं पर आधारित नालन्दा विश्वविद्यालय की शिक्षा पद्धति तत्कालीन भारत के उत्कृष्ट विकास को प्रदर्शित करती है। एक ईक्कीसवीं सदी के बौद्ध बनने के लिए हमें केवल श्रद्धा मात्र तक सीमित न होकर बुद्ध की शिक्षाओं का गहन अध्ययन और विश्लेषण करना चाहिए।

तथागत बुद्ध काल के बाद आज दुनिया में वस्तुगत अनेक परिवर्तन हुये हैं। आधुनिक विज्ञान ने भौतिक क्षेत्र में परिष्कृत ज्ञान द्वारा उन्नति किया है। दूसरी ओर बौद्ध विज्ञान ने मन और भावनाओं की कार्यविधियों को सुविस्तृत रूप से समझने में सफलता प्राप्त की है, जो आज भी आधुनिक विज्ञान के लिए एक नयी चीज़ है। इसलिए आधुनिक विज्ञान और बौद्ध विज्ञान दोनों के पास बहुत ही मार्मिक ज्ञान निधि है जो दोनों के लिए अनुपूरक का कार्य करते हैं। मुझे विश्वास है कि इन दोनों शिक्षा पद्धतियों को संयुक्त करने पर शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक हित के लिए नये-नये अविष्कारों की खोज किया जा सकता है।

बौद्ध अनुयायी ही तथागत बुद्ध की शिक्षाओं का संरक्षण करते हैं तथा समाज के साथ बृहत् संवाद द्वारा ही उनका सन्देश प्रासंगिक बनता है। हमें अन्तर्धार्मिक समझ को विकसित करने की ज़रुरत है, क्योंकि सभी धर्म लोगो के सुख साधने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आज विश्व के सामने खड़ी इस गम्भीर संकट के समय, जब हम अपने स्वास्थ्य को लेकर भयभीत हैं तथा अपने परिवार के सदस्यों एवं मित्रों को खोने से दुःखी है, हमें उन बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो हमें एक परिवार के सदस्य के रूप में एकजुट करते हों। तदनुसार, हमें आपस में करुणापूर्वक व्यवहार करना चाहिए। एक समन्वित तथा वैश्वविक प्रतिक्रिया द्वारा हम इस अभूतपूर्व विशाल चुनौती का सामना करने में निश्चित रूप से संक्षम होंगे।

-दलाई लामा

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