परम पावन 14 वें दलाई लामा
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धर्म बदलने के संकट

विश्व में कई विभिन्न धर्म और संस्कृतियाँ हैं और प्रत्येक उनके लोगों के अनुरूप विकसित हुआ है। इसी कारण, मैं सदैव सुझाता हूँ कि उसी धर्म में बने रहें कि जिसमें आप का जन्म हुआ था। पश्चिम में अधिकांश लोग ईसाई हैं, यद्यपि कुछ यहूदी और कुछ मुसलमान भी हैं। उनके लिए, अथवा किसी के लिए भी धर्मांतरण सरल नहीं है और कभी-कभी यह केवल भ्रम पैदा करता है।

परम पावन दलाई लामा तोंग लेन छात्रावास के उद्घाटन के दौरान छोटे बच्चों के साथ, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, नवंबर १९, २०११   चित्र/तेनज़िन छोजोर/ओएचएचडीएल

एक उदाहरण है जिसका उल्लेख मैं सदैव करता हूँ। १९६० दशक के पूर्वार्ध में, हम तिब्बतियों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। उस समय, कई ईसाई संगठन हमारी सहायता करने आए। एक तिब्बती महिला थी, जिसके कई छोटे बच्चे थे और उसे एक अत्यंत कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ा। फिर एक ईसाई मिशनरी आए और उन्होंने एक ईसाई मिशनरी स्कूल जाने के लिए उनके बच्चों को स्वीकार कर लिया। एक दिन वह मेरे पास आई और मुझसे कहा कि वह इस जीवन में एक ईसाई होने जा रही है, परन्तु अपने आगामी जीवन में वह बौद्ध बनेगी। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि धर्म को लेकर उसमें कुछ भ्रम था।

इसके अतिरिक्त एक पोलिश वयोवृद्ध महिला भी थी, मैं उन्हें १९५६ से जानता था। १९५९ के बाद से, उन्होंने शिक्षा में गंभीर रूचि ली और कई तिब्बती छात्रों को छात्रवृत्ति दी। उन्हें बौद्ध धर्म में रुचि हुई पर उससे पूर्व वह मद्रास में थियोसोफिस्ट थीं। अतः पहले से ही उनका दृष्टिकोण एक तरह से गैर-पंथीय था पर उन्होंने बौद्ध धर्म को अपने व्यक्तिगत धर्म के रूप में स्वीकार किया। अपने जीवन के अंत में ईश्वर की अवधारणा उसके चित्त के निकट थी और यह भी उलझन का संकेत इंगित करता है। अतः अपने धर्म में बने रहना सर्वोत्तम है।
परन्तु लाखों लोगों में, कुछ स्वाभाविक रूप से पूर्वीय धर्मों में रुचि रखते हैं, विशेषकर बौद्ध धर्म में। इन लोगों को ध्यान से सोचने की आवश्यकता है। यदि वे बौद्ध धर्म को अपने स्वयं की प्रकृति के अधिक उपयुक्त पाते हैं तो ठीक है, यह उचित है। जैसे कि तिब्बतियों के बीच, हममें से ९९% बौद्ध हैं। पर विगत चार शताब्दियों में, तिब्बत में रहने वाले कुछ लद्दाखी मुस्लिम हैं, जिन्होंने तिब्बतियों से विवाह किया और उनके बच्चे मुसलमान बन गए हैं। इसके अतिरिक्त अमदो क्षेत्र में कुछ ईसाई भी हैं। तो, ठीक है, उन दोनों के साथ, कोई समस्या नहीं है।

इसके अतिरिक्त मुझे यह उलेल्ख करना चाहिए कि जब कोई नया धर्म अपनाता है, तो उन्हें अपनी मूल परम्परा के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण से बचना चाहिए, जो प्रायः मानव प्रकृति के अंग के रूप में सामने आती है। फिर चाहे आपको लगता है कि आपकी पुरानी परम्परा आपके लिए बहुत सहायक नहीं है तो यह साधारणतया यह नहीं दर्शाता कि यह बहुत उपयोगी नहीं है। सभी धर्म मानवता को सहायता देते हैं। विशेषकर जब कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तो सभी धर्म आशा प्रदान करते हैं। अतः हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।
 
एक दूसरे के धर्म से सीखना

इसके अतिरिक्त आज की वास्तविकता अतीत की वास्तविकता से थोड़ी भिन्न है। अतीत में, विभिन्न परम्पराओं के लोग लगभग अलग रहते थे। बौद्ध एशिया में बने रहे; मध्य पूर्व में और एशिया के कुछ भागों में मुसलमान; और पश्चिम में अधिकांश रूप से ईसाई थे। तो आपसी संपर्क बहुत कम था। पर अब समय अलग है। प्रवास की कई नई लहरें हैं; आर्थिक वैश्वीकरण है और साथ ही बढ़ता पर्यटन उद्योग है। अब इतनी अधिक जानकारी उपलब्ध है, जिसमें बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी भी शामिल है। इन विभिन्न कारकों के कारण, हमारा विश्व समुदाय एक इकाई की तरह बन गया है: एक बहु-सांस्कृतिक, बहु-धार्मिक एकल घटक।

परम पावन दलाई लामा ऑस्ट्रिया के विएना के सेंट स्टीफन के कैथेड्रल की अपनी यात्रा के दौरान चिंतन का एक क्षण लेते हुए, विएना, ऑस्ट्रिया, मई २७, २०१२  चित्र/तेनज़िन छोजोर/ओएचएचडीएल

तो यहाँ दो संभावनाएँ हैं कि क्या हो सकता है। प्रथम यह है कि विभिन्न परम्पराओं के बीच घनिष्ठ सम्पर्क के कारण, यदा कदा हमारी अपनी परम्परा को लेकर असुरक्षा का एक छोटा अंश है। दूसरी परम्परा हमारे अधिक संपर्क में आती है, इसलिए हम थोड़ा असहज अनुभव करते हैं। यह एक नकारात्मक संभावना है। दूसरी संभावना यह है कि अधिक संचार के इस वास्तविकता के कारण, परम्पराओं के बीच सच्चे सामंजस्य विकसित करने के अवसरों में वृद्धि हुई है। यह एक अधिक सकारात्मक संभावना है और अब हमें सच्चे सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास करना चाहिए। यदि हम ऐसे धर्मों को छोड़ दें जिनका कोई दार्शनिक आधार नहीं है, पर मात्र सूरज या चाँद या इस तरह की वस्तु की पूजा करने में आस्था रखते हैं, यदि हम उनको परे कर दें और प्रमुख विश्व धर्मों को देखें - ईसाई धर्म, यहूदी धर्म, इस्लाम, विभिन्न हिंदू और बौद्ध परम्पराएं, जैन धर्म, दाओ धर्म, कन्फ्यूशीवाद इत्यादि - इनमें से प्रत्येक का अपना वैशिष्ट्य है। अतः निकट संपर्क द्वारा हम एक दूसरे से नई चीजें सीख सकते हैं; हम अपनी परम्पराओं को समृद्ध कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए हम तिब्बती बौद्ध, हिमालय पर्वतों के पीछे एकाकी बने रहे; हमें नहीं पता था कि बाहर के विश्व में क्या हो रहा था। पर अब स्थिति पूरी तरह से परिवर्तित हो गई है। अब, लगभग ५० वर्षों से बेघर शरणार्थियों के रूप में, हमें नए घर मिले हैं और अन्य देशों की अन्य परम्पराओं से सीखने के कई अवसर मिले हैं। यह अत्यंत लाभकारी रहा है। अतीत में, हमने यहाँ भारत में आदान प्रदान कार्यक्रम की स्थापना कीः ईसाई भाई और बहनें हमसे सीखने के लिए भारत आए और हमारे कुछ तिब्बती भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ पश्चिम में गई और ईसाई धर्म का अनुभव प्राप्त किया, अधिकांश रूप से कैथोलिक मठों में। इस तरह के निकट संपर्क के साथ, यदि हम अपने मस्तिष्क को बंद नहीं रखते, पर खोलते हैं तो हम एक दूसरे से कुछ सीख सकते हैं। इस तरह, हम पारस्परिक समझ और सम्मान विकसित कर सकते हैं। और वैसे भी, एक नूतन यथार्थ है। अतः मुझे लगता है कि विभिन्न धर्मों के बीच आपसी सद्भाव का विकास बहुत महत्वपूर्ण है। धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना यह मेरी मृत्यु पर्यन्त मेरी प्रतिबद्धताओं में से एक है। यह बहुत सहायक है।

तो जब मैं पश्चिम में श्रोताओं के लिए बौद्ध धर्म पर व्याख्यान देता हूँ, जो कि अधिकांश रूप से अन्य धर्मों के अनुयायी हैं, तो उद्देश्य इन लोगों को बौद्ध धर्म की कुछ समझ को विकसित करने में सहायता करना है। वह सहिष्णुता के विकास के लिए सहायक हो सकता है। फिर, संभवतः वर्तमान पोप की तरह जो आस्था और कारण दोनों पर साथ साथ बल देते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। बिना कारण के कभी-कभी आस्था किंचित अप्रासंगिक होती है। पर कारण के साथ, आस्था जीवन का एक अंग बन सकता है जो अत्यधिक प्रासंगिक है। उदाहरण के लिए, ईश्वर में आस्था अत्यंत सहायक हो सकती है, जैसे जब कोई व्यक्ति कठिन समय से गुजर रहा है तो वह उस व्यक्ति को बहुत आशा देता है। और यदि हम क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, दूसरों को धोखा देने और धमकाने की इच्छा के अनुसार सोचते हैं तो यदि हममें आस्था है तो आस्था हमें ऐसी नकारात्मक भावनाओं और कार्यों के विरुद्ध सुरक्षित करता है। जब हम इसकी अनुभूति करते हैं तो दैनिक जीवन में आस्था बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। बौद्ध परम्परा में, हम आस्था तथा कारण पर समान रूप से बल देते हैं। अतः कुछ बौद्ध स्पष्टीकरण, विशेषकर वे जो कारणों पर आधारित हैं अन्य परम्पराओं के अभ्यासियों के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

विज्ञान के साथ ज्ञान साझा करना

सम्प्रति विश्व में मौजूद विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में, दो वर्ग हैं: एक जो कि ईश्वरवादी हैं और जो अनीश्वरवादी हैं। बौद्ध धर्म अनीश्वरवादियों में से एक है। अनीश्वरवादी धर्मों के अनुसार, हेतु फल के नियम पर बल दिया जाता है। अतः स्वाभाविक रूप से, बौद्ध धर्म में हेतु फल के नियम की विस्तृत व्याख्या है और यह ऐसा कुछ है जिसे जानना बहुत लाभकर है। यह इस रूप में उपयोगी है कि इससे हमें अपने तथा अपने चित्त के बारे में और जानने में सहायता मिलती है।

हमें यह समझने की आवश्यकता है कि, उदाहरण के लिए, विनाशकारी भावनाएँ और व्यवहार हमारे दुःख और पीड़ा के स्रोत हैं। दुःख और पीड़ा को समाप्त करने के लिए, हमें न केवल उनके शारीरिक और मौखिक स्तर पर बल्कि चैतसिक स्तर पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। उनके प्रतिकारक भी अधिकतर चैतसिक हैं।

बौद्ध परपरा में, चित्त की व्याख्या बहुत विस्तृत है इसके अतिरिक्त, हम कुछ प्राचीन भारतीय परम्पराओं में भी यही पाते हैं। अतः आज आधुनिक विज्ञान इस क्षेत्र में गहन परीक्षण कर रहा है। उदाहरणार्थ चिकित्सा विज्ञान भावनाओं पर शोध करना प्रारंभ कर रहा है, क्योंकि वे हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक स्वस्थ शरीर भावनाओं से संबंधित है। अतः यह विशेष रूप से न्यूरोलॉजिस्ट जो परीक्षण कर रहे हैं कि मस्तिष्क किस तरह कार्य करता है, के लिए महत्वपूर्ण है कि वे भावनाओं की ओर अधिक देखें। साथ ही अन्य अकादमिक क्षेत्रों में, चित्त तथा भावनाओं के प्रति काफी रुचि है। अतः उनके शोध कार्य के लिए बौद्ध धर्म और प्राचीन भारतीय धर्मों से चित्त तथा भावनाओं की जानकारी बहुत उपयोगी है।

साधारणतया मैं बौद्ध धर्म के तीन भागों में अंतर करता हूँ: बौद्ध विज्ञान, बौद्ध दर्शन और बौद्ध धर्म। बुद्ध के स्वयं का उदाहरण देखें। बुद्ध मूल रूप में एक साधारण सत्व थे, एक सीमित सत्व। उन्होंने देशना दी कि किस तरह अपनी सामान्य भावनाओं और चित्त को शनैः शनैः रूपांतरित किया जा सकता है और स्वयं उस मार्ग का अनुसरण कर, वे अंततः प्रबुद्ध हो गए और वही बुद्ध है। अतः बौद्ध दृष्टिकोण इस स्तर पर प्रारंभ करना है, सामान्य प्राणियों का स्तर, और फिर उस स्तर से बुद्धत्व की ओर आगे बढ़ें।

इस कारण, सबसे पहले, हमें वर्तमान यथार्थ को जानना होगाः जिसके लिए बौद्ध विज्ञान का ज्ञान आवश्यक है। फिर, उस आधार पर, हम परिवर्तन की संभावना देखते हैं। हम देख पाते हैं कि परिवर्तन संभव है और वही बौद्ध दर्शन है। जब वह हमारे लिए स्पष्ट हो जाता है और हममें आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया में विश्वास होता है तो हम बौद्ध धर्म का अभ्यास प्रारंभ कर सकते हैं।
 
तो यदि हम बौद्ध विज्ञान के बारे में मुड़कर देखें तो दो क्षेत्र हैं जिनके साथ इसका संबंध हैः आंतरिक रूप से चित्त और बाह्य रूप से अणु, ब्रह्मांड इत्यादि। बाह्य स्तर पर पाश्चात्य विज्ञान के पास देने के लिए बहुत कुछ है: इस क्षेत्र में वह अत्यंत विकसित प्रतीत होता है। हम बौद्ध इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं कण के बारे में, उनके प्रकार्य के विषय पर, आनुवंशिकी के बारे में, ब्रह्मांड के बारे में - बौद्धों के रूप में यह हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। कम से कम इस ग्रह के संदर्भ में, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मेरू पर्वत नहीं है। अतः हमारे शास्त्रीय विवरणों में से कुछ में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए। अतः हम बौद्धों को सीखने के लिए ब्रह्माण्ड विज्ञान, कण भौतिकी, क्वांटम भौतिकी और अन्य क्षेत्रों के वैज्ञानिक निष्कर्ष बहुत ही आवश्यक हैं।
 
परन्तु आधुनिक विज्ञान और बौद्ध धर्म के कुछ निष्कर्ष समान हैं। उदाहरण के लिए, पहले लोगों का मानना था कि वस्तु की अपनी ओर से एक तरह का आत्मनिर्भर, स्वतंत्र वस्तु थी। पर अब, क्वांटम भौतिकी के निष्कर्षों के अनुसार, हम देखते हैं कि ऐसी कोई वस्तु नहीं है। हम बौद्धों के पास यह समझ हजारों वर्षों से है। बौद्ध धर्म सिखाता है कि कुछ भी स्व-पर्याप्त उत्पादित अथवा स्व-पर्याप्त रूप से अस्तित्व नहीं रखता अपितु सब कुछ प्रतीत्य समुत्पादित है।
 
अब, आंतरिक ज्ञान के संदर्भ में आधुनिक विज्ञान ने कुछ जांच करना प्रारंभ किया है, अतः पारस्परिक लाभ हो सकता है। बौद्ध विज्ञान से बाह्य बातों के बारे में और विज्ञान बौद्धों से सीख सकता है कि किस तरह नकारात्मक भावनाओं और ऐसी आंतरिक बातों से निपटा जाए। तो जब हम वैज्ञानिकों से बात करते हैं तो आगामी जीवनों अथवा निर्वाण के बारे में नहीं, अपितु चित्त और भावनाओं के बारे में बात करते हैं। इसका कारण यह है कि हमारे उपाय समान हैं: यथार्थ के बारे में जानने के लिए हम वस्तुओं का परीक्षण करते हैं।  
तो आप पाश्चात्य लोगों में से जो बौद्ध धर्म में रुचि रखते हैं तो आपके लिए अपनी स्वयं की वैज्ञानिक खोज करना सहायक होगा। इस तरह बौद्ध शिक्षाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परीक्षण के अवसर देने के आधार पर, मेरे लिए बौद्ध धर्म पर अबौद्ध दर्शकों को व्याख्यान देना ठीक है। इस कारण कृपया मेरे व्याख्यानों को एक सीमा तक अकादमिक व्याख्यान की तरह लें। मेरे व्याख्यानों में प्रारंभ में कुछ मंत्र पाठ को छोड़ कोई अनुष्ठान, कोई धार्मिक पक्ष नहीं है, मैं सिर्फ वैज्ञानिक व्याख्यान देता हूँ। आप क्या सोचते हैं?

परम पावन १४वें दलाई लामा
studybuddhism.com सौजन्य से

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