परम पावन दलाई लामा
इंडिया टुडे
धर्मशाला, २१ अगस्त, २०२१
मेरे लिए महात्मा गाँधी अहिंसा और करुणा के प्रतीक हैं। अहिंसा और करुणा इन दो सिद्धांतो को प्रसारित करना मेरी मूल प्रतिबद्धताओं में से एक है, तथा मेरा यह विश्वास है कि भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो प्राचीन भारतीय विद्या तथा आधुनिक शिक्षा को संयोजित करने की क्षमता रखता है। गाँधी जी ने अहिंसा और करुणा दोनों की मिसाल पेश की है तथा मैं उन्हें अपना शिक्षक मानता हूँ।
सन् 1956 में, मेरी प्रथम भारत यात्रा के दौरान मैंने यमुना नदी के किनारे राजघाट स्थित महात्मा गाँधी की समाधि स्थल का दर्शन किया था। जब मैं वहाँ प्रार्थना कर रहा था तो मुझे अत्यन्त दुःख हुआ कि मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल पाया, किन्तु उनके महान व्यक्तित्व पर विचार करते हुये अत्यंत प्रसन्नता भी हुई। मेरे लिए वे एक आदर्श राजनेता रहे हैं, एक ऐसे व्यक्ति जो अपनी लोकोपकारी भावना को सभी व्यक्तिगत विचारों से अधिक महत्त्व देते थे तथा अविच्छिन्न रूप से सभी महान धार्मिक परम्पराओं के प्रति आदर भाव रखते थे।
गाँधी जी निश्चित रूप से हमारे समय के महानतम विभूति थे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक भारत तथा सम्पूर्ण मानव जाति के एकात्मभाव को अक्षुण्ण बनाये रखा। वे शांति और सद्भाव के सच्चे समर्थक थे। उन्होंने अफ्रीका और अमेरिका में नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे अनुयायियों को प्रेरित किया। दुनिया में आज अत्याचार और हत्यायें अभी भी जारी हैं, ऐसे में हमें करुणा और अहिंसा की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है। मैं करुणा और अहिंसा जैसे आदर्श मूल्यों को सर्वोत्तम वर्तमान शिक्षा के साथ संयोजित करने के लिए कृत संकल्पित हूँ।