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अभिषेक और उग्येन लिंग और दोर्जे खांडू स्मारक संग्रहालय की यात्रा ९/अप्रैल/२०१७

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तवांग, अरुणाचल प्रदेश, भारत - परम पावन दलाई लामा अवलोकितेश्वर अभिषेक देने हेतु प्रारंभिक अनुष्ठानों के लिए आज शीघ्र ही यिगा छोजिन पहुँचे। स्थानीय विधायक जम्बे टाशी के अनुरोध पर उन्होंने अन्य स्थानों से संबंधित परियोजनाओं की पट्टियों पर हस्ताक्षर किए। एक का संबंध डोलमा लखंग से था, जो लुमला में बनाया गया है, एक अन्य में तिब्बती सीमा के निकट लुन्पो ज़ेमिथंग में गुरु पद्मसंभव की मूर्ति को दर्शाया गया है। उन्होंने सीमा के निकट भूटान के साथ मैत्रेय की एक मूर्ति के लिए एक नींव का भी अनावरण किया।

His Holiness the Dalai Lama performing preparatory rituals for the Avalokiteshvara Empowerment at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 9, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"बुद्ध ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने स्वयं के अनुभव से प्रतीत्य समुत्पाद के बारे में शिक्षा दी" जब परम पावन तैयार हो गए तो उन्होंने व्याख्यायित किया। "यह महत्वपूर्ण है कि न केवल अच्छे लोग अपितु बुद्ध के अच्छे अनुयायी होने का भी प्रयास करें। उनकी शिक्षाओं का जो अनूठापन है, अति से मुक्त प्रतीत्य समुत्पाद की उनकी व्याख्या, वह नागार्जुन के मूल मध्यम कारिका के प्रथम श्लोक में विशिष्ट रूप से दर्शाया गया है।

जिसने प्रतीत्य समुत्पाद,
अनिरोध, अनुत्पाद,
अनुच्छेद, अशाश्वत,
अनागम, अनिर्गम,
अनेकार्थ, अनानार्थ,
प्रपञ्च उपशम, शिव की देशना दी है,
उस सम्बुद्ध को प्रणाम करता हूँ, जो वक्ताओं में श्रेष्ठ है।

"वस्तुएँ सांवृतिक स्तर पर अस्तित्व रखती हैं, पर वे अन्य कारकों, हेतुओं और परिस्थितियों पर निर्भर हैं।

"हम कहते हैं कि मैं बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेता हूँ, पर इसका क्या अर्थ है? बुद्ध केवल २६०० वर्ष पूर्व के इतिहास में एक पल में दृष्टिगोटर होने वाले कोई एक व्यक्ति मात्र नहीं थे। वे इसलिए असाधारण हैं कि उनमें धर्म का रत्न निहित है। इसका संदर्भ उनके द्वारा प्राप्त मार्ग सत्य और उससे उत्पन्न सच्चा निरोध है।

"उन्होंने जो आठ अतियों से मुक्त देखा है, उत्पाद, निरोध, अस्तित्व हीन और शाश्वत, आगम, निर्गम, अनेकार्थ और एकार्थ, उन्होंने अपने स्व प्रयास के परिणामस्वरूप देखा है। उन्होंने वस्तुओं की तथता की अनुभूति कर अपने चित्त के क्लेशों पर काबू पाया है। यह क्वांटम भौतिकी के अवलोकन से मेल खाता है कि किसी का भी वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं है। उनके सच्चे निरोध तथा मार्ग सत्य की उपलब्धि उन्हें एक संघ रत्न की गुणवत्ता देती है।

A view of many of the 50,000 people attending the second day of His Holiness the Dalai Lama's teachings at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 9, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"बुद्ध शिक्षक हैं; धर्म वास्तविक शरण है और संघ वे हैं जो मार्ग पर सहायता करते हैं। बुद्ध को शास्ता कहा जाता है शरण नहीं क्योंकि वह शिक्षण के माध्यम से मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे सत्य की शिक्षा देते हैं जो हमें मुक्ति की ओर ले जाता है। वह ऐसे नहीं जो पाप को धोते है, या अपने हाथों से दुःखों को दूर करते हैं, न ही अपने अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते हैं। हमें भी मार्ग व निरोध की प्राप्ति के लिए शिक्षण का अभ्यास करना चाहिए। यह समझने के लिए धर्म रत्न क्या है, हमें समझना चाहिए कि शून्यता क्या है और हम इसे प्रतीत्य समुत्पाद को समझकर कर सकते हैं।"

अभिषेक हेतु अनुष्ठान प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व परम पावन ने गुरु योग के पठन संचरण दिया जिसे उन्होंने ६० के दशक में लिखा था जिसे 'अवलोकितेश्वर से आध्यात्मिक गुरु की अवियोज्यता' कहा जाता है। जब वे नाम मंत्र पर आए तो उन्होंने टिप्पणी की कि उनके नामों में से एक, जमपेल या मंजुश्री उनकी पहली दीक्षा पर रडेंग रिनपोछे द्वारा दिया गया था और बाद में उसे छोड़ दिया गया। समय रहते उन्होंने इसे बहाल किया।

परम पावन ने तंत्र के मंत्रयान को पारिमतायान से अलग किया; सूत्र प्रणाली और तांत्रिक प्रणाली। तंत्र के चार वर्गों में से, उन्होंने कहा कि १००० बाहु और १००० चक्षु अवलोकितेश्वर का संबंध क्रिया तंत्र और पद्म वंश से है। यह भारत में भिक्षुणी लक्ष्मी के संचरण से आया। उन्होंने कहा कि उन्होंने इसे सर्वप्रथम तगडग रिनपोछे से और बाद में अपने वरिष्ठ शिक्षक लिंग रिनपोछे से प्राप्त किया था। उन्होंने यह भी पुष्टि की कि उन्होंने आवश्यक एकांत वास पूरा कर लिया है।

अभिषेक जारी रखने से पहले, परम पावन ने कहा कि वह समय के अभाव के कारण अधिक समझाने के लिए रुके बिना 'बोधिसत्व के ३७ अभ्यास' का पाठ करेंगे।

A young member of the crowd listening to His Holiness the Dalai Lama speaking on the second day of his teachings at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 9, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"रचयिता ङुल्छु के थोंगमे संगपो, एक महान विद्वान और एक बोधिसत्व के रूप में विख्यात बुतोन रिनपोछे के समकालीन थे। उनकी बोधिचित्त की अनुभूति इस तरह की थी कि पक्षी व जंगली जानवर, जिनमें लोमड़ी भी शामिल थी, उनके चारों ओर जमा हो जाती थी। उन्होंने यह रचना अपने शिष्यों को अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए भी किया। मैंने इसे खुनु लामा रिनपोछे से प्राप्त किया।

"धर्म के अभ्यास का अर्थ चित्त को इस तरह से परिवर्तित करना है कि वह बुद्ध का चित्त बन जाता है। हममें एक विशुद्ध जागरूकता है, एक आदि विशुद्ध चित्त, जो कि हमारी बुद्ध प्रकृति है। कमियाँ आती हैं क्योंकि हम अपने चित्त को काबू में नहीं ला पाए हैं। दुःख आधारभूत रूप से अज्ञानता से उत्पन्न होता है। न केवल न जानने का बल्कि एक विकृत दृष्टि जो वास्तविकता, जैसा कि जो है, के विपरीत है। जब हम वास्तविकता को पहचान लेते हैं तो अज्ञान दूर हो जाता है। यह कुछ दूर से देखने जैसा है जो इंसान की तरह दिखता है। हम जितने निकट होते हैं उतना ही अधिक स्पष्ट होता है कि यह एक बिजूका या कोई शिला है।"

यह ग्रंथ आपके आध्यात्मिक आचार्यों को पोषित करने की बात करता है जिसके लिए परम पावन ने कहा कि इसका अर्थ उनके गुणों की सराहना करना है। उन्होंने टिप्पणी की कि उन्होंने सुना है कि खम के कुछ भागों में लामा की महानता को उनके कारवाँ में घोड़ों की संख्या से मापा जाता है, जो उन्होंने कहा कि अज्ञान है। उन्हें एक कहानी का स्मरण हो आया जिसमें कोई खम में किसी उपाध्याय से मिलने गया और उसे बताया गया कि वे गांव में बूढ़ों को डराने के लिए गए हैं। परम पावन ने कहा कि चूंकि बौद्ध धर्म का संबंध मुक्ति और सर्वज्ञता से है इसे लोगों को भयभीत करने के लिए उपयोग में नहीं लाना चाहिए। यह विश्वास और प्रेरणा उत्पन्न करने के बारे में होना चाहिए कि हमारे पास अभ्यास करने के लिए मानव जीवन का अवसर है।

His Holiness the Dalai Lama granting the Avalokiteshvara Empowerment at the Yiga Choezin teaching ground in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 9, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

इस पंक्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए कि 'कौन सा सांसारिक ईश्वर आपको सुरक्षा प्रदान कर सकता है?' परम पावन ने शुगदेन की पूजा पर बात की। उन्होंने कहा कि १९५१ से उन्होंने भी यह किया था, परन्तु अजीब अनुभव होने के बाद बंद कर दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने पाया कि ऐतिहासिक रूप से पञ्चम दलाई लामा ने इस आत्मा को प्रसन्न करने का प्रयास किया था और इसे शांत करने के लिए रौद्र साधनों का सहारा लिया था। उन्होंने लिखा था कि किस तरह टुल्कु डगपा ज्ञलछेन, पंचेन सोनम डगपा के उत्तराधिकारी टुल्कु गेलेग पलसंग के वास्तविक पुनर्जन्म नहीं थे। उन्होंने भी ज्ञलपो शुगदेन को ऐसी आत्मा के रूप में वर्णित किया था जो गलत प्रार्थनाओं के कारण उत्पन्न हुई थी जो धर्म और सत्वों के लिए हानिकारक थी। परम पावन ने कहा कि किस तरह यह सब गदेन जंगचे में हुई कठिनाइयों की जांच के कारण हुई, उन्होंने किस तरह अभ्यास को रोका और जांच की कि क्या दूसरों को भी इसे रोकने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

परम पावन ने सुझाव दिया कि बगल के संरक्षक स्थल को सामने की बुद्ध की मूर्ति से अधिक महत्वपूर्ण मानना गलत प्राथमिकताओं की ओर संकेत करती हैं। पाठ का त्वरित लगातार पाठ करते हुए उन्होंने उन छंदों को संकेतित किया जो षट पारमिताओं के अभ्यास को रेखांकित करती हैं।

अभिषेक के दौरान साधारण अभ्यासियों को उपासक और उपासिका के संवर प्रदान करते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि चौगुना संघ पूरा हो गया था। उन्होंने कहा कि यद्यपि तिब्बती परम्परा में भिक्षुणी प्रव्रज्या स्थापित नहीं हुई थी पर अब गेशेमा और साथ ही गेछुलमा भी थे।

यिगा छोजिन प्रवचन स्थल से परम पावन गाड़ी से उग्येन लिंग गए जहाँ छठवें दलाई लामा ज्ञलवा छयंग ज्ञाछो का जन्मस्थान संरक्षित है। एक संक्षिप्त छोग समर्पण में सम्मिलित होने के बाद, उन्होंने मंदिर के ऊपरी कक्ष में आमंत्रित अतिथियों के साथ मध्याह्न का भोजन किया। मध्याह्न भोजनोपरांत वे गाड़ी से दोर्जे खांडू स्मारक संग्रहालय के लिए निकले और मार्ग में मंजुश्री विद्यालय के बच्चों और कर्मचारियों का अभिनन्दन करने के लिए रुके।

His Holiness the Dalai Lama, accompanied by Arunachal Chief Minister Pema Khandu, viewing exhibits at the Dorjee Khandu Memorial Museum in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 9, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

उन्हें वर्तमान मुख्यमंत्री के दिवंगत पिता, जो मुख्यमंत्री भी रहे थे और जिन्हें परम पावन एक मित्र के रूप गिनती करते थे, के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में स्थापित संग्रहालय और जंगछुब छोतेन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने पवित्रीकरण को सूचित करने वाली पट्टिका का अनावरण किया, अभिनव और अच्छी तरह से नियुक्त संग्रहालय का उद्घाटन किया और अंदर का एक संक्षिप्त दौरा किया। परम पावन ने दोर्जे खांडू के जीवन से संबंधित सामग्रियों में और साथ ही तिब्बत से अपने पलायन और १९५९ में तवांग पहुंचने के संबंध में भी गहरी दिलचस्पी दिखायी। उन्होंने अपने दिवंगत मित्र की प्रशंसा की और दीवार पर उनके हाथों के निशान छोड़ने के अनुरोध को स्वेच्छा से स्वीकार किया। उन्होंने बाहर बगीचे में एक वृक्षारोपण किया।

एक बार पुनः तवांग विहार लौटकर भिक्षु मंदिर में एकत्रित हुए थे। नए उपाध्याय ने विनम्रतापूर्वक परम पावन से भिक्षुओं को सलाह के कुछ शब्द कहने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि वह परम पावन की इच्छाओं को पूरा करने यथासंभव प्रयास कर रहे थे और शिक्षा के सुधार के लिए उनके पूर्ववर्तियों ने जो कुछ किया था, उसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने सूचित किया कि इस समय लगभग ४०० आवासी भिक्षु हैं और १०० से अधिक अन्य जगहों पर अध्ययन कर रहे हैं।

परम पावन ने उन्हें स्मरण कराया कि तिब्बती बौद्ध परम्परा उपाध्याय शांतरक्षित द्वारा स्थापित की गई थी, पर अब तिब्बत में लोग जो कुछ उन्होंने चुना उसका अध्ययन और अभ्यास करने के लिए स्वतंत्र नहीं थे। उन्होंने याद किया कि जब वे अपनी गेशे की परीक्षा दे रहे थे तो डेपुंग महाविहार में १०,००० भिक्षु थे और सेरा में कई हजार थे। उन्होंने कहा कि उन्हें बताया गया है कि इन दिनों डेपुंग में मुश्किल से ४० भिक्षु हैं। उन्होंने बल देते हुए कहा कि यह कितना मूल्यवान है कि सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में अध्ययन और अभ्यास की स्वतंत्रता है और उन्होंने भिक्षुओं से इसका लाभ उठाने का आग्रह किया।

His Holiness the Dalai Lama speaking to the monks of Tawang Monastery in Tawang, Arunachal Pradesh, India on April 9, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

उन्होंने विहार की दिनचर्या के बारे में पूछा और यह सुनकर कि दिनारंभ ४ या ५ बजे प्रार्थनाओं से होता है सुझाव दिया कि छोटे भिक्षुओं को सोने के लिए और अधिक समय की आवश्यकता होती है। उन्होंने भिक्षु विहारों और भिक्षुणी विहारों को अच्छी गुणवत्ता वाले होने के महत्व पर चर्चा की, जिसका अर्थ उन्होंने बताया कि विशाल भवन नहीं हैं, पर उनके अंदर अच्छी गुणवत्ता का अध्ययन और अभ्यास है।

जब उन्हें बताया गया कि तवांग विहार के तहत दो भिक्षुणी विहार भी हैं तो उन्होंने भिक्षुणियों को भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने उन्हें बताया कि अब भिक्षुणियों के प्रथम समूह ने गेशे मा के रूप में योग्यता प्राप्त की है, तो अन्य स्तर की उपाधियाँ भी प्रदान करना संभव होना चाहिए। उदाहरणार्थ प्रज्ञा पारमिता और मध्यमक कक्षाओं की समाप्ति पर उन्हें संभवतः रबजम्पा की उपाधि दी जानी चाहिए।

उन्होंने आशा जताई कि अधिक भिक्षुणियाँ अध्यापन का उत्तरदायित्व लेंगी और स्मरण किया कि किस तरह उन्होंने नागपुर में एक आवास के पास स्कूली बच्चों को बड़ी कुशलता से शास्त्रार्थ करते देखा था। उन्होंने उनसे पूछा कि उनका शिक्षक कौन था और यह एक जानकर उन्हें एक सुखद आश्चर्य हुआ कि वह एक भिक्षुणी थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने उसके अच्छे कार्य की प्रशंसा की।

कल पुनः यिगा छोजिन में परम पावन प्रातः रिगजिन दोनडुब अभिषेक प्रदान करेंगे। इसके बाद मध्याह्न में कलावंगपो कन्वेंशन सेंटर वे एक सार्वजनिक व्याख्यान देंगे।

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