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नव नालंदा महाविहार की यात्रा और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का दूसरा दिन १८/मार्च/२०१७

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भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा गाड़ी से नव नालंदा महाविहार गए जिसकी स्थापना १९५१ में एक विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी। कुलपति श्री एम.एल. श्रीवास्तव ने उनका स्वागत किया। विश्वविद्यालय के सम्मेलन सभागार में १०० से भी अधिक छात्रों और संकाय को संबोधित करने से पूर्व परम पावन ने एक बोधि वृक्ष के पौध का रोपण किया और एक नए प्रशासनिक भवन पर एक स्मारक पट्टिका का अनावरण किया।

परम पावन ने १९५६ में विश्वविद्यालय की यात्रा का स्मरण किया जब वे भारत में महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित २५००वीं बुद्ध जयंती समारोह में भाग ले रहे थे।

His Holiness the Dalai lama speaking to students and faculty at Nava Nalanda Mahavihara in Rajgir, Bihar, India on March 18, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

"चीनी प्रीमियर चाउ एन-लाइ नव नालंदा महाविहार की यात्रा करने वाले थे, लेकिन किसी कारण से वह ऐसा न कर सके। मुझे उनके स्थान पर जाने के लिए कहा गया था। उस समय मैं पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नेशनल पीपुल कांग्रेस की स्थायी समिति का उपाध्यक्ष था। आज मेरी यात्रा एक शरणार्थी के रूप में है।"

अपने अध्ययन में स्वयं को व्यवहृत करने के महत्व पर बल देते हुए, परम पावन ने छात्रों से सलाह दी:

"मात्र एक भिक्षु या भिक्षुणियों का चीवर धारण करना पर्याप्त नहीं है। आपको गंभीर अध्ययन भी करना होगा। आज, तिब्बती भिक्षुणियों ने १८ - २० वर्षों के श्रमसाध्य अध्ययन द्वारा गेशे -मा की उच्चतम उपाधि प्राप्त की है। वे विद्वत्ता में भिक्षुओं के समकक्ष हो गई हैं। एक ओर बौद्ध धर्म ध्यानाभ्यास द्वारा हमारे आंतरिक विश्व पर केंद्रित है, परन्तु हम तर्क और कारण का व्यापक उपयोग भी करते हैं। परिणामस्वरूप भारत में और विशेषकर यहाँ नालंदा में बौद्ध, अबौद्ध परम्पराओं की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम थे और उन्हें अपनी समझ को विकसित और गहन करने के अवसर के रूप में ग्रहण किया।

"आप को अपने शिक्षकों को सुनने तथा विभिन्न तरह की पुस्तकों को पढ़कर अपने ज्ञान को गहन करना चाहिए। एक दृष्टिकोण की तुलना दूसरे से करके ही आप इस विषय को अधिक व्यापक रूप से समझते हैं।"

राजगीर लौटने से पहले, परम पावन ने विश्वविद्यालय को बुद्ध शाक्यमुनि की एक प्रतिमा और तिब्बती थंगका भेंट किया, जिसे उन्होंने विशेष रूप से बनवाया था जिसमें केन्द्र में बुद्ध हैं जो नालंदा के १७ महान पंडितों से घिरे हुए हैं।

His Holiness the Dalai Lama speaking on the second day of the International Conference on Buddhism in the 21at Century in Rajgir, Bihar, India on March 18, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDL

राजगीर लौटकर परम पावन २१वीं सदी में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन के प्रातःकालीन सत्र में सम्मिलित हुए। उन्होंने और श्रीलंका, थाइलैंड और मलेशिया के नौ वरिष्ठ थेरो और थाइलैंड की एक वरिष्ठ भिक्षुणी ने बारी बारी से श्रोताओं को संबोधित किया।

"मैंने वास्तव में इस बैठक का आनंद लिया है," परम पावन ने सम्मेलन को बताया। "मुझे यह देखकर विशेष रूप से प्रसन्नता हो रही है कि विभिन्न बौद्ध देशों से अनेक लोग आए हैं। यह यात्रा सरल नहीं है, पर फिर भी यह तथ्य कि आप इतने अधिक लोग आए हैं, बौद्ध धर्म के संबंध में आपकी चिंता को व्यक्त करता है।

"२१वीं शताब्दी में हम अपने स्वनिर्मित कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। मानवता पर सम्पूर्ण रूप से समाधान ढूँढने का उत्तरदायित्व है, उदाहरण के लिए, कई स्थानों पर हो रही हिंसा और हत्याएँ और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में अनावश्यक भुखमरी। इसी तरह हमें अपने पर्यावरण का ध्यान रखने के लिए और कुछ और करना सीखना होगा। यदि यह ग्रह रहने के योग्य न रह जाने के कारण बुद्ध हमें एक अन्य ग्रह में स्थानांतरित करने में सक्षम होते तो हमें चिंता न होती। पर ऐसा संभव नहीं है। यह ग्रह हमारा एकमात्र घर है, इसलिए हमें इसका ध्यान रखना होगा। बौद्धों के रूप में मेरी मान्यता है कि धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने का भी हमारा उत्तरदायित्व है। हमें विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए अधिक नियमित रूप से मिलने के अवसरों का निर्माण करना चाहिए। हम एक-दूसरे से सीख सकते हैं।"

A delegate to the Conference on Buddhism in the 21at Century asking the panel a question during second day of the conference in Rajgir, Bihar, India on March 17, 2017. Photo by Tenzin Choejor/OHHDLPhoto by Tenzin Choejor/OHHDL

परम पावन ने बताया कि विनय अथवा और चार आर्य सत्य जैसी शिक्षाओं का पालन सभी बौद्ध परम्पराओं का आधार है। उन्होंने सुझाव दिया कि पालि परम्परा के कुछ अनुयायियों के लिए सूत्रों पर ध्यान देना भी उपयोगी हो सकता है, जैसे कि संस्कृत परम्परा से हृदय सूत्र।

समापन में परम पावन ने इस महत्वपूर्ण सम्मेलन के आयोजन के लिए विशेष रूप से भारत सरकार और संस्कृति मंत्रालय को धन्यवाद दिया। जब सत्र समाप्त होने को आया तो उन्होंने अपने सभी सह वक्ताओं को बुद्ध की मूर्ति एक श्वेत रेशमी स्कार्फ के साथ भेंट दी।

कल मध्याह्न में शीघ्र भोजन के बाद, परम पावन गया के लिए रवाना हुए। वहाँ से उन्होंने भोपाल के लिए उड़ान भरी, जहाँ आगमन पर मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री चौहान सिंह ने राज्य के लोगों की ओर से उनका स्वागत किया।

कल प्रातः परम पावन नर्मदा सेवा यात्रा, जो मध्य प्रदेश राज्य सरकार की जल की बचत और नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए समर्पित एक योजना है, में भाग लेने के लिए तुरनल की यात्रा करेंगे। मध्याह्न में, वह विधान सभा के सभागार में 'आर्ट ऑफ हैप्पिनस (सुख की कला)' पर व्याख्यान देंगे।

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